मनोज बाजपेई (पाइल फोटो)
मुंबई:
फ़िल्म 'अलीगढ़' में समलैंगिक प्रोफेसर की भूमिका निभाने के बाद मनोज बाजपेयी की सोच में ये फ़र्क़ आया है या पहले से ही उनकी सोच ऐसी थी, ये कहना मुश्किल है, मगर ये साफ़ है कि इस फ़िल्म के प्रचार के दौरान मनोज बाजपेई अक्सर समलैंगिकता के पक्ष में बात करते नज़र आ रहे हैं। इतना ही नहीं, धारा 377 को हटाये जाने के पक्ष में भी हैं मनोज बाजपेई।
फ़िल्म 'अलीगढ़' के प्रचार के दौरान मनोज ने कहा है कि 'धारा 377 पर बहस जारी है और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा पर बहस करने और सोच विचार करने के लिए 5 सदस्यों की एक बेंच का गठन किया है जिसे देखकर ऐसा महसूस होता है कि उच्च न्यायालय भी कहीं न कहीं इस धारा को हटाने के पक्ष में है। मुझे बहुत उम्मीद है उच्च न्यायालय से कि वो इस बार इस मुद्दे को सुलझाएगी"।
धारा 377 को हटाये जाने का विरोध कर रहे लोगों के बारे में बात करते हुए मनोज ने कहा कि "उनकी संख्या बहुत कम है मगर उनकी आवाज़ ऊंची है। वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हैं समलैंगिकता के ख़िलाफ़ और कहते हैं भारी संख्या उनके साथ है। क्या उन लोगों ने कोई सर्वे किया है? बस इतनी सी बात है कि समलैंगिकता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों की आवाज़ ऊंची है इसिलिए वो धारा 377 हटाने नहीं देते हैं"।
समलैंगिकता के पक्ष पर बात करते हुए मनोज ने ये भी कहा कि "किसी के समलैंगिक होने से उसके चरित्र का आकलन करना सही नहीं है। अगर कोई होमो सेक्सुअल है इसका ये मतलब नहीं है कि उसका चरित्र ख़राब है"।
वहीं फ़िल्म 'अलीगढ' के निर्देशक हंसल मेहता का भी मानना है कि "क़ानून में बदलाव की ज़रूरत है। समाज एक तरह कभी भी नहीं रहता है, ये बदलता रहता है"।
फ़िल्म 'अलीगढ़' के प्रचार के दौरान मनोज ने कहा है कि 'धारा 377 पर बहस जारी है और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा पर बहस करने और सोच विचार करने के लिए 5 सदस्यों की एक बेंच का गठन किया है जिसे देखकर ऐसा महसूस होता है कि उच्च न्यायालय भी कहीं न कहीं इस धारा को हटाने के पक्ष में है। मुझे बहुत उम्मीद है उच्च न्यायालय से कि वो इस बार इस मुद्दे को सुलझाएगी"।
धारा 377 को हटाये जाने का विरोध कर रहे लोगों के बारे में बात करते हुए मनोज ने कहा कि "उनकी संख्या बहुत कम है मगर उनकी आवाज़ ऊंची है। वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हैं समलैंगिकता के ख़िलाफ़ और कहते हैं भारी संख्या उनके साथ है। क्या उन लोगों ने कोई सर्वे किया है? बस इतनी सी बात है कि समलैंगिकता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों की आवाज़ ऊंची है इसिलिए वो धारा 377 हटाने नहीं देते हैं"।
समलैंगिकता के पक्ष पर बात करते हुए मनोज ने ये भी कहा कि "किसी के समलैंगिक होने से उसके चरित्र का आकलन करना सही नहीं है। अगर कोई होमो सेक्सुअल है इसका ये मतलब नहीं है कि उसका चरित्र ख़राब है"।
वहीं फ़िल्म 'अलीगढ' के निर्देशक हंसल मेहता का भी मानना है कि "क़ानून में बदलाव की ज़रूरत है। समाज एक तरह कभी भी नहीं रहता है, ये बदलता रहता है"।
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