बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
पटना:
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
'सोशल इंजीनियर' में माहिर समझे जाने वाले और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (युनाइटेड) की जोकीहाट उपचुनाव में करारी हार के बाद बिहार की सियासी फिजा में यह सवाल तैरने लगा है कि क्या मुस्लिमों का नीतीश से मोहभंग हो गया है? राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की पहली पारी के दौरान नीतीश की पार्टी के नेता चुनाव में जहां मुस्लिम मतदाताओं को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर 'शिफ्ट' कराने का दावा किया करते थे, वहीं आज जद (यू) 70 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाली अपनी परंपरागत जोकीहाट सीट नहीं बचा पाई.
13 बड़ी बातें
- जोकीहाट सीट पर साल 2005 से ही जद (यू) का कब्जा था. हाल में अररिया संसदीय क्षेत्र और जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव के हालिया परिणामों से साफ है कि जद (यू) से मुस्लिम मतदाताओं का मोह टूट रहा है.
- साल 2005 में लालू विरोधी लहर पर सवार होकर नीतीश कुमार ने जब बिहार की सत्ता संभाली थी, तब उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक को साधना शुरू किया था. जिसमें वह काफी हद तक सफल भी हुए.
- इसके बाद साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव परिणाम में मुस्लिम बहुल सीमांचल की चार सीटों- अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज में से तीन पर भाजपा के प्रत्याशी विजयी रहे थे.
- बिहार के एनडीए में 'बड़े भाई' की भूमिका में नजर आ रही नीतीश की पार्टी ने तब मुस्लिम मतदाताओं के वोटो को शिफ्ट कराने का दावा कर भाजपा के लिए 'छोटे भाई' की भूमिका तय कर दी थी.
- इधर, साल 2014 में राज्य की सियासत में बड़ा बदलाव आया. नीतीश भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़े, जिसमें उन्हें जबरदस्त हार मिली. पूरे राज्य में आरजेडी भी नरेंद्र मोदी की आंधी में बह गई.
- लेकिन सीमांचल में मोदी लहर का असर नहीं दिखा. सीमांचल की चार सीटों में से एक भी सीट भाजपा के खाते में नहीं गई.
- राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि मुस्लिम मतदाताओं पर लालू की पकड़ कल भी थी और आज भी है. मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्ग के मतदाता नीतीश और उनके विकास के प्रशंसक जरूर रहे हैं.
- वे कहते हैं, "नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण हुआ है, ऐसे में नीतीश को भाजपा के साथ चले जाने पर कुछ नुकसान तो उठाना ही पड़ा है."
- बिहार के पत्रकार कहते हैं कि नीतीश के लालू को छोड़कर भाजपा के साथ जाने से मुस्लिम मतदाता खासे नाराज हैं। ऐसे में जोकीहाट के चुनाव में जद (यू) को हार का मुंह देखना पड़ा.
- सिंह इस परिणाम के दूरगामी प्रभाव बताते हुए स्पष्ट कहते हैं कि सीमांचल में नीतीश का जनाधार खिसका है और उनकी पार्टी को एक बार फिर से रणनीति बनाने की जरूरत है.
- अररिया, राजद के सांसद रहे मरहूम तस्लीमुद्दीन का गढ़ माना जाता है. जोकीहाट विधानसभा सीट जद (यू) विधायक सरफराज आलम के इस्तीफे से खाली हुई.
- सरफराज आलम अपने पिता तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद जद (यू) से इस्तीफा देकर राजद में शामिल हुए और इसी पार्टी से अररिया से सांसद चुने गए, जो उनके पिता के निधन से खाली हुई थी।
- जोकीहाट उपचुनाव में लालू की पार्टी राजद के शहनवाज आलम ने जद (यू) उम्मीदवार मुर्शीद आलम को 41,224 वोटों से हराया. शहनवाज पूर्व सांसद तस्लीमुद्दीन के ही पुत्र हैं.
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