लोकसभा चुनाव 2019 : उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के सामने खड़ी हैं 10 बड़ी चुनौतियां

मौजूदा हालात में प्रियंका गांधी के आगमन से एक बार फिर देश की सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश में चुनावी गणित बदल सकता है.

लोकसभा चुनाव 2019 :  उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के सामने खड़ी हैं 10 बड़ी चुनौतियां

प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस में महासचिव बनाया गया है. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती के साथ गठबंधन कर उत्तर प्रदेश का चुनावी गणित दुरुस्त कर दी है, मगर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठबंधन से बाहर रहने से ऐसा लग रहा था कि भारतीय जनता पार्टी के लिए अभी भी संभावना बची हुई है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर मीमांसा अगर मौजूदा हालात में करें तो सपा-बसपा-कांग्रेस के एक साथ मोर्चा खोलने पर भाजपा उत्तर प्रदेश की 80 में से जहां 71 सीटों पर कब्जा जमाई थी, उससे 20 सीट कम पर सिमट सकती है. भाजपा उत्तर प्रदेश में पहले ही फूलपुर और गोरखपुर सीटें उपचुनावों में गंवा चुकी है. अगर सपा-बसपा से अलग हटकर कांग्रेस चुनाव मैदान में उतरती है और मुकाबला त्रिकोणीय होता है तो भाजपा को 38 सीटें मिल सकती हैं और उसे 33 सीटों का नुकसान हो सकता है. मौजूदा हालात में प्रियंका गांधी के आगमन से एक बार फिर देश की सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश में चुनावी गणित बदल सकता है. मालूम हो कि देश में सबसे ज्यादा सांसद इसी प्रदेश से चुनकर लोकसभा पहुंचते हैं.

मामले से जुड़ी अहम जानकारियां :

  1. कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती है कि अगर प्रियंका के आने से कांग्रेस मजबूत होती है तो लड़ाई त्रिशंकु हो जाएगी इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है.

  2. भाजपा की जिन सीटों पर मजबूत पकड़ है, उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी समेत कैराना, मुजफ्फरनगर, मथुरा, आगरा, लखनऊ, कानपुर, बरेली और देवरिया हैं, जहां विपक्ष के किसी भी प्रकार के गठबंधन के बावजूद भाजपा दोबारा जीत सकती है. 

  3. प्रियंका गांधी के आने के बाद अगर कांग्रेस बीजेपी का नुकसान करती है तो साथ में सपा और बीएसपी को भी नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में ये दोनों दल भी जवाबी हमला बोलेंगे. 

  4. प्रियंका गांधी के सामने जातीय समीकरणों को साधने की बड़ी चुनौती होगी क्योंकि अमेठी और रायबरेली में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के आगे किसी भी तरह के जातीय समीकरण असर नहीं करते थे. लेकिन अब प्रियंका के सामने इस उलझे समीकरण को सुलझाने की बड़ी चुनौती होगी. 

  5. इंदिरा गांधी के समय कांग्रेस का कोर वोटर एससी/एसटी और ब्राह्मण होते थे. लेकिन उत्तर प्रदेश में अब समीकरण पूरी तरह से बदल चुके हैं. एससी/एसटी वोटर अब बीएसपी के साथ हैं. ब्राह्मण सवर्ण बीजेपी के साथ. 

  6. लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी का वोट को 42.30 प्रतिशत वोट मिले थे तो वहीं कांग्रेस को मात्र 7.50 फीसदी. सपा को 22.20 और बीएसपी को 19.60 फीसदी वोट मिले. 

  7. पूर्वांचल में इस समय कांग्रेस के पास संगठन के नाम पर कुछ भी नहीं है. हालात यह है कि इन चुनावों में उसको मजबूत प्रत्याशी भी ढूंढने नहीं मिलते हैं. जबकि बीजेपी और सपा-बीएसपी का अपना पूरा कॉडर है.

  8. पीएम मोदी अपनी चुनावी रैलियों में भ्रष्टाचार और वंशवाद पर हमेशा निशाना साधते हैं. वह हमेशा इसको लेकर गांधी परिवार पर तंज कसते हैं. प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ गुरुग्राम में जमीन घोटाले के आरोप हैं. चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका को इन बातों पर साफ नजरिया रखना होगा.

  9. पूर्वांचल की एक वाराणसी सीट पर पीएम मोदी प्रत्याशी होंगे. उनकी मौजूदगी से आसपास की सीटों पर असर रहेगा.  ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि क्या इस असर को कम करने के लिए प्रियंका खुद भी चुनाव लड़ेंगी और उनके उतरने से आसपास की सीटों पर कितना असर होगा.

  10. उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेताओं में आपसी तालमेल बिलकुल नहीं है और न ही वह अपना कोई वजूद बना पाए हैं. हर चुनाव कांग्रेस गांधी परिवार के भरोसे लड़ती रही है और यह कांग्रेस को हमेशा नुकसान पहुंचाती है.  आम जनता में प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा की छवि नकारात्मक रही है. यूपीए के समय उनके कछ बयानों को विपक्ष ने मुद्दा बनाया था.