Utpanna Ekadashi 2025 Vrat Kab Hai: हिंदू धर्म में जगत के पालनहार भगवान श्री विष्णु की कृपा पाने के लिए एकादशी व्रत को सबसे उत्तम उपाय माना गया है. प्रत्येक मास में दो बार और साल भर में 24 बार पड़ने वाली एकादशी व्रत को विधि-विधान से करने पर श्री हरि की कृपा से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर और कामनाएं शीघ्र ही पूरी हो जाती है. सनातन परंपरा में एकादशी तिथि को श्री हरि का ही स्वरूप माना जाता है, यही कारण है कि इस दिन किए जाने वाले व्रत से शीघ्र ही भगवान लक्ष्मीनारायण अपनी कृपा बरसाते हैं. आइए सुख, सौभाग्य और मोक्ष का वरदान दिलाने वाली मार्गशीर्ष मास की उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं.
किस लिए रखा जाता है एकादशी का व्रत
- एकादशी का व्रत तन, मन और शरीर की शुद्धता और पवित्रता के साथ धार्मिक और आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है.
- इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत को विधि-विधान से करने पर व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है.
- एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से उसके बीते जन्म के सारे पाप दूर हो जाते हैं.

उत्पन्ना एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार जिस एकादशी तिथि पर व्रत को करने पर साधक के सभी कष्ट दूर और कामनाएं पूरी होती हैं, वह मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष में 15 नवंबर 2025 को पूर्वाह्न 00:49 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन यानि 16 नवंबर 2025 को पूर्वाह्ल 02:37 बजे तक रहेगी. ऐसे में यह व्रत 15 नवंबर 2025 को रखा जाएगा. उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानि 16 नवंबर 2025 को दोपहर 01:10 से लेकर 03:18 बजे के बीच किया जाएगा.
उत्पन्ना एकादशी व्रत की पूजा विधि
एकादशी के नियम एक दिन पूर्व से ही प्रारंभ हो जाते हैं. व्यक्ति को एकादशी से एक दिन पूर्व एक समय भोजन करना चाहिए. इस व्रत को करने वाले साधक को दशमी के दिन सिर्फ एक समय भोजन करना चाहिए और इस दिन शाम के समय चावल या तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए. अगले दिन सुबह स्नान-ध्यान करने के बाद पूजा स्थल पर पीले वस्त्र बिछाकर भगवान श्री विष्णु की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए.
श्री हरि की पूजा में इस पावन तिथि पर भोग के साथ तुलसी पत्र अवश्य चढ़ाएं. फल-फूल,वस्त्र, मिष्ठान आदि अर्पित करने के बाद साधक को एकादशी व्रत की कथा कहनी या फिर सुननी चाहिए. इसके बाद पूजा के अंत में शुद्ध घी के दीये से आरती करें. एकादशी व्रत में साधक को फलाहार करना चाहिए और यथासंभव धन, वस्त्र, अन्न आदि का दान करना चाहिए. व्रत के अगले दिन शुभ मुहूर्त में पारण करना चाहिए. व्रत का पारण करते समय सबसे पहले भगवान श्री विष्णु को भोग लगाएं फिर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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