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जहां पूजे जाते हैं भगवान राम के ईष्ट, जो ज्योतिर्लिंग होने के साथ चार धाम में भी रखता है अपना स्थान

इस मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है. इस मंदिर के बेहद खूबसूरत गलियारे में 108 शिवलिंग और गणपति के दर्शन होते हैं.

जहां पूजे जाते हैं भगवान राम के ईष्ट, जो ज्योतिर्लिंग होने के साथ चार धाम में भी रखता है अपना स्थान
मान्यता है कि इस मंदिर के पवित्र कुंडों को भगवान श्री राम ने अपने बाण से बनाया था.
नई दिल्ली:

देवों के देव महादेव जिनको पूजते थे और जो खुद महादेव की पूजा करते थे, यानी मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम, उनके नाम से जुड़ा द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है. इस ज्योतिर्लिंग को लेकर कहा जाता है कि इनका नाम रामेश्वर इसलिए पड़ा कि जो प्रभु राम के ईश्वर हैं, यानी रामेश्वर, वहीं दूसरी तरफ पुराणों के अनुसार भगवान भोलेनाथ ने इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा, "राम: ईश्वर: यस्य, स: रामेश्वर:।" यानी भगवान शिव के अनुसार भगवान राम जिसके ईश्वर हैं, वही रामेश्वर (शिव) हैं. अब ऐसे में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा को आप स्वतः समझ गए होंगे. भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को रामेश्वरम कहा गया है. यहां स्थापित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. उत्‍तर में 'काशी' की तरह का महत्‍व दक्षिण में 'रामेश्‍वरम' का है.

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रामेश्वरम मंदिर की खासियत

मान्यता है कि प्रभु श्रीराम ने रावण का अंत कर सीताजी को वापस पाया तो उन पर ब्राह्मण हत्‍या का पाप लगा. इस पाप से मुक्‍त होने के लिए प्रभु श्रीराम ने रामेश्‍वरम में शिवलिंग की स्‍थापना करने का विचार किया. उन्‍होंने पवनसुत हनुमान को कैलाश जाकर शिवलिंग लाने की आज्ञा दी. हनुमान जी को शिवलिंग लेकर लौटने में देर हो गई तो मां सीता ने समुद्र किनारे रेत से ही शिवलिंग की स्‍थापना कर दी. यही शिवलिंग 'रामनाथ' कहलाता है. वहीं, पवनसुत के द्वारा लाए गए शिवलिंग को भी पहले से ही स्‍थापित शिवलिंग के पास ही स्‍थापित कर दिया, जिसे हनुमदीश्वर के नाम से जाना जाता है. ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं.

रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है. इस मंदिर के बेहद खूबसूरत गलियारे में 108 शिवलिंग और गणपति के दर्शन होते हैं. 

यहां रामेश्वरम में महादेव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन से पहले अग्निकुंड में स्नान करने को बेहद पवित्र माना गया है. रामेश्वरम मंदिर के भीतर 22 कुंड हैं. मान्यता है कि इन पवित्र कुंडों को भगवान श्री राम ने अपने बाण से बनाया था. जहां चारों तरफ समुद्र का खारा पानी है, वहीं इन कुंडों का पानी मीठा है. यह भी एक आश्चर्य ही है. इसे ही 'अग्नि तीर्थम' कहा जाता है, और इसको लेकर मान्यता है कि इस तीर्थ में स्‍नान करने से सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं और सारे पापों का भी नाश हो जाता है.

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में इस मंदिर के बारे में वर्णित है...

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः । श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥

जो भगवान श्री रामचन्द्रजी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में अनेक बाणों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किए गए, उन श्री रामेश्वर को मैं नियम से प्रणाम करता हूं.

यहां पास ही स्थित कोथंडारामस्वामी मंदिर भगवान राम को समर्पित है और रामेश्वरम के धनुषकोडी क्षेत्र में स्थित है. ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है, जहां रावण के छोटे भाई विभीषण ने लंका छोड़ने के बाद भगवान राम से शरण मांगी थी. इसलिए, कोथंडारामस्वामी मंदिर में विभीषण की भी पूजा की जाती है.

इसके साथ ही यहां पंचमुखी हनुमान मंदिर स्थित है, जो भगवान हनुमान को समर्पित एक अनोखा मंदिर है. यह हनुमान की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें पांच मुख हैं, जिनमें से प्रत्येक देवता के एक अलग पहलू को दर्शाता है. ये मुख हनुमान, नरसिंह, गरुड़, वराह और हयग्रीव हैं.

यहीं गंधमाधन पर्वतम एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहां भगवान राम ने एक चट्टान पर अंकित चक्र (पहिए) पर अपने पदचिह्न छोड़े थे.

वहीं पास ही में राम सेतु है. चूना पत्थर की चट्टानों से निर्मित यह सेतु भारत को लंका से जोड़ता है. 30 किलोमीटर की लंबाई वाला यह पुल धनुषकोडी और श्रीलंका के मन्नार द्वीप को जोड़ने वाला पुल था. पौराणिक कथाओं के अनुसार, राम सेतु का निर्माण वानर सेना द्वारा लंका पहुंचने के लिए किया गया था ताकि देवी सीता को बचाया जा सके और राक्षस रावण को मारा जा सके.

इसके साथ यहां श्री रामनाथस्वामी मंदिर से सिर्फ 1 किमी दूर लक्ष्मण तीर्थ है, जहां भगवान शिव की पूजा करने से पहले भगवान लक्ष्मण ने स्नान किया था.

पास ही सुग्रीव तीर्थ, सुग्रीव को समर्पित है, जो वानर राजा थे और जिन्होंने राक्षस रावण के खिलाफ युद्ध में भगवान राम की मदद की थी. इसके साथ जटायु तीर्थ मंदिर जटायु को समर्पित है, जिन्होंने देवी सीता को राक्षस रावण के कब्जे से छुड़ाने के अपने प्रयासों में राक्षस रावण के खिलाफ युद्ध किया था.

इसके साथ पंबन के रास्ते में विलोंडी तीर्थ है, जहां भगवान राम ने अपना धनुष और बाण दफनाया था और समुद्र में बाण डुबोकर खारे पानी को मीठे पीने के पानी में बदलकर देवी सीता की प्यास बुझाई थी. धनुषकोडी के रास्ते में जड़ तीर्थ है, जहां भगवान राम ने भगवान शिव की पूजा करने से पहले अपने बाल धोए थे.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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