
- काशी विश्वनाथ मंदिर के स्वर्ण शिखर पर तीन दिनों तक सफेद उल्लू का बैठना शुभ संकेत माना जा रहा है.
- काशी के विद्वानों के अनुसार बाबा विश्वनाथ का दूसरा नाम लक्ष्मीविलास मोक्षेश्वर महादेव है.
- सफेद उल्लू के दर्शन को लोग सौभाग्य और कानूनी जंग में विजय का संकेत मान रहे हैं.
Kashi Vishwanath Mandir Safed Ullu: हिंदू मान्यता के अनुसार महादेव के त्रिशूल पर टिकी है जिस काशी नगरी मोक्षदायिनी गया है, वहां पर जाकर हर शिव भक्त बाबा विश्वनाथ का दर्शन और पूजन करना अपना सौभाग्य मानता है. द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक काशी विश्वनाथ का दर्शन करते समय अगर आपको धन की देवी माता लक्ष्मी का वाहन माने जाने वाले सफेद उल्लू के भी दर्शन करने को मिल जाए तो उसकी चर्चा होना लाजिमी है. खास बात ये भी कि यह सफेद उल्लू बाबा विश्वनाथ मंदिर के स्वर्णिम शिखर पर कुछ घंटे नहीं बल्कि तीन दिनों तक बैठा रहता है. आस्था के इस पावन केंद्र पर इस अजब संयोग को लेकर काशी के विद्वान और आमजन क्या कहते हैं, आइए उसे जानने और समझने की कोशिश करते हैं.
बाबा विश्वनाथ का दूसरा नाम लक्ष्मीविलास मोक्षेश्वर महादेव
काशी विद्वत परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री प्रोफेसर राम नारायण द्विवेद्वी बताते हैं कि बाबा विश्वनाथ मंदिर का दूसरा नाम लक्ष्मीविलास मोक्षेश्वर महादेव भी है. उनके अनुसार इसमें कोई शक नहीं है कि बाबा का संपूर्ण वैभव इस समय आपको देखने को मिल रहा है. उनके अनुसार समय-समय पर यहां ऐसे तमाम तरह के शुभ संकेत दिखते रहते हैं.
बाबा विश्वनाथ मंदिर के स्वर्ण शिखर पर सफेद उल्लू का दिखना उनके अनुसार एक शुभ संकेत ही है. वे इसे ज्ञानवापी और बाबा विश्वनाथ मंदिर के बीच चल रही कानूनी लड़ाई में विजय का संकेत मान रहे हैं. उनका मानना है कि कोर्ट का बहुप्रतीक्षित निर्णय 2027 से पहले आने का यह शुभ संकेत है और निश्चित रूप से बाबा अपने मूल स्थान को प्राप्त करेंगे.

कोई सौभाग्य तो कोई मंगल बोधक मान रहा है
महादेव की नगरी में जिन तीर्थयात्रियों और काशीवासियों ने इस अजब संयोग के साक्षी बने वे अपने आपको धन्य मान रहे हैं. प्रोफेसर रामनारायण द्विवेद्वी कहते हैं कि जिस तरह सनातन परंपरा में मंगल बोधक तमाम तरह के प्रतीक और चिन्ह बताए गये हैं, कुछ उसी तरह मंगल बोधक पक्षियों का दर्शन करना भी शुभता की दृष्टि से उत्तम माना गया है. ऐसे में जिन्होंने माता लक्ष्मी के वाहन सफेद उल्लू का बाबा विश्वनाथ मंदिर प्रांगण में दर्शन किया है, उन्हें शुभत्व की प्राप्ति होगी.
काशी विश्वनाथ मंदिर के भीतर और उसके आस-पास तमाम देवियों के मंदिर हैं. मां अन्नपूर्णा और मां विशालाक्षी के दर्शन के बगैर तो हर शिव भक्त अपनी काशी यात्रा अधूरी मानता है. लक्ष्मी आद्या शक्ति का ही एक अंश हैं. मां सरस्वती जिस तरह विद्या की अधिकारिणी हैं, उसी तरह माता लक्ष्मी धन और वैभव प्रदान करने वाली देवी हैं.
क्यों करते हैं मंदिर के शिखर के दर्शन
काशी विश्वनाथ मंदिर के जिस शिखर पर लक्ष्मी का वाहन सफेद उल्लू लोगों को दिखाई दिया, उस स्वर्णिम शिखर को लेकर भी अपनी एक धार्मिक मान्यता है. धर्मशास्त्र के अनुसार किसी भी मंदिर में बने शिखर में भगवान के प्राण रहते हैं. यदि आप किसी कारण से मंदिर के भीतर नहीं जाते हैं तो आपको बाहर से उसके शिखर दर्शन करने मात्र से दर्शन और पूजन का पुण्यफल प्राप्त हो जाता है. यही कारण है कि जब कभी भी किसी मंदिर का निर्माण होता है तो उसमें शिखर की बकायदा प्राण-प्रतिष्ठा करके पूजा की जाती है.
जाने-माने पत्रकार अभिताभ भट्टाचार्य कहते हैं बाबा विश्वनाथ मंदिर स्वर्ण धातु से बना हुआ है. यहां विराजमान बाबा विश्वनाथ सुचालक शक्ति के रूप में शिखर के माध्यम से विग्रह तक पहुंचते हैं. शिखर का दर्शन इस पावन देवालय की असीम शक्ति का दर्शन है. शिखर का दर्शन करना प्राचीन परंपरा है.

सिर्फ उल्लू ही नहीं इन पक्षियों के भी होते हैं दर्शन
काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में भले ही लक्ष्मी का वाहन माना जाने वाला सफेद उल्लू चर्चा का विषय बना हुआ हो लेकिन यहां पर समय-समय पर दूसरे पक्षी भी दिखाई देते रहे हैं. जैसे यहां पर आने वाले भक्तों को कई बार सोमवार के दिन नीलकंठ पक्षी के भी दर्शन हुए हैं. इसी प्रकार मंदिर प्रांगण में कबूतर और तोते भी यदा-कदा नजर आते रहते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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