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Pitra Paksha 2025: कौवे के बगैर क्यों अधूरा माना जाता है श्राद्ध, जानें पितरों से इसका क्या कनेक्शन है

Pitra Paksha 2025: पितरों की पूजा से जुड़ा पितृपक्ष आते ही जिस पक्षी की जोर-शोर से तलाश शुरु हो जाती है वो एक मात्र कौआ है. श्राद्ध के लिए कौआ आखिर इतना महत्वपूर्ण क्यों माना गया है? आखिर किसलिए श्राद्ध में कागबलि निकाली जाती है? कौवे का पितरों से कनेक्शन जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

Pitra Paksha 2025: कौवे के बगैर क्यों अधूरा माना जाता है श्राद्ध, जानें पितरों से इसका क्या कनेक्शन है
Pitra Paksha 2025: पितृपक्ष में कौवे के लिए क्यों निकाला जाता है भोग?

Pitra Paksha 2025:  पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करते समय पांच जगह भोजन के अंश निकाले जाते हैं, जिसे पंचबलि कहते है. इसे पहली बलि गाय के लिए, दूसरी बलि कुत्ते के लिए, तीसरी बल कौवे के लिए और चौथी बलि देवताओं के लिए और पांचवीं बलि चीटियों के लिए निकाली जाती है. बलि की इस प्रक्रिया में कौवे की विशेष रूप से तलाश की जाती है. यम के प्रतीक माने जाने वाले कौए को लेकर मान्यता है कि श्राद्ध के दिन कौआ निकाले गये भोग को खाकर संतुष्ट हो जाए तो पितर भी प्रसन्न हो जाते हैं. आइए पितरों कौवे के कनेक्शन के बारे में विस्तार से जानते हैं. 

कौवे के बगैर क्यों अधूरा होता है श्राद्ध 

श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत (Sanskrit) विश्वविद्यालय के पौरोहित विभाग के प्रोफेसर रामराज उपाध्याय के अनुसार हिंदू धर्म में कौऐ को श्राद्धभक्षी कहा गया है. यह श्राद्ध की दृष्टि से विशिष्ट पक्षी माना गया है. सनातन परंपरा में श्राद्ध के भोजन का अधिकार जिन लोगों को दिया गया है, उसमें से कौआ प्रमुख है क्योंकि उसे पितृदूत माना गया है. पितरों के लिए किया जाने वाला श्राद्ध कागबलि के बगैर अधूरा होता है.

यही कारण है कि एक समय में लोग श्राद्ध का भोजन कराने के बाद बचे हुए भोजन को ऐसे जगह फेंकते थे, जहां पर दो दिनों तक कौआ, कुत्ता आदि आकर उसे खाया करते थे. उसके बाद उस स्थान को साफ करा दिया जाता था.  प्रोफेसर रामराज उपाध्याय के अनुसार पौराणिक कथाओं में काग भुसुंडी का स्वरूप कौवे वाला था. मान्यता है कि एक बार ब्रह्मा जी ने उनके काले स्वरूप को बदलने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने स्वयं के स्वरूप से संतुष्ट होने की बात कहते हुए ब्रह्मा जी के आग्रह को आदरपूर्वक मना कर दिया. 

कौवे को लेकर क्या कहता है शकुन शास्त्र 

  • पितृपक्ष में यदि कौआ आपके घर में बार-बार आकर आवाज लगाए तो इसे पितरों की तरफ से भेजा गया संकेत माना जाता है. 
  • घर की मुंडेर, बालकनी या दरवाजे पर सुबह-सुबह कौआ बोले तो ​इसे किसी अतिथि के आगमन का संकेत माना जाता है. 
  • घर के उत्तर दिशा में कौवे का बार-बार बोलना शीघ्र ही धन की प्राप्ति का संकेत माना जाता है. 
  • यदि अचानक से आपके आसपास ढेर सारे कौवे जमा होने लगें तो भविष्य में आपके जीवने से जुड़े बड़े बदलाव का संकेत देता है. 
  • यदि रास्ते में कौटा अपनी चोंच में रोटी, मांस का टुकड़ा या फिर कोई कपड़ा आदि दबाए दिखे तो यह आपकी बहुप्रतीक्षित कामना के पूरा होने का संकेत माना जाता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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