
Snakes Related Hindu God and Goddesses: श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी को नागपंचमी (Nag Panchami 2025) पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन नाग देवता की पूजा अत्यंत ही शुभ और फलदायी मानी गई है. इस साल यह पावन पर्व 29 जुलाई 2025, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा. लोक परंपरा और आस्था से जुड़ी नाग पूजा कोई सर्पदंश के भय से मुक्ति पाने के लिए तो कोई अपने वंश की वृद्धि की कामना लिए करता है. जिस सर्प (Snake) को देवों के देव महादेव ने अपने गले का हार बना रखा है, उस नाग देवता की पूजा प्राचीन काल से चली आ रही है.
अथर्ववेद में श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष-ग्रीव और तिरश्चिराजी को क्रमश: उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और वायुमण्डल का रक्षक मानते हुए देवताओं से जोड़ता है. आइए जानते हैं कि सनातन परंपरा में शिव के साथ आखिर किन देवी-देवताओं के साथ सर्प का जुड़ाव है.

भगवान शिव (Lord Shiva)
कल्याण के देवता माने जाने वाले भगवान शिव ने अपने गले और भुजाओं में सर्प को धारण कर रखा है. भगवान भोलेनाथ ने जिस सर्प को अपने गले में धारण किया हुआ है, उसे वासुकि के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला तो उसका नाग वासुकि (Nag Vasuki) ने महादेव की मदद के लिए उसका कुछ भाग ग्रहण किया था. इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे हमेशा अपने पास रहने का वरदान दिया और अपने गले में धारण कर लिया था.

भगवान विष्णु (Lord Vishnu)
जगत के पालनहार माने जाने वाले भगवान श्री विष्णु शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं. शेषनाग जिन्हें सृष्टि का पहला नाग माना जाता है वो भगवान श्री विष्णु के साथ क्षीर सागर में रहते हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार शेषनाग ने रामायण काल में भगवान राम (Lord Ram) के छोटे भाई लक्ष्मण और महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) के बड़े भाई बलराम के रूप में अवतार लिया था. माना जाता है कि उन्होंने पूरी पृथ्वी को अपने फन पर टिका रखा है और उनका कोई अंत नहीं है, इसी कारण से उन्हें अनंत भी कहा जाता है.

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भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna)
हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु भगवान श्री विष्णु का अवतार माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण और कालिया नाग (Kaliya Naag) के बीच संघर्ष हुआ था, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने उसका मान मर्दन करते हुए उसके फनों पर नृत्य किया था. कालिया नाग पर विजय हासिल करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उसे ब्रजमंडल छोड़कर जाने को कहा और साथ ही यह चेतावनी भी दी कि यदि तुमने पीछे पलट कर देखा तो तुम पत्थर के बन जाओगे. लोक मान्यता के अनुसार कुछ दूर जाने के बाद उसने जैसे ही पलट कर देखा, उसी क्षण वह पत्थर का हो गया.

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मनसा देवी (Mansa Devi)
सनातन परंपरा में मनसा देवी जो शिव की मानस पुत्री कहलाती हैं, उनके साथ भी सर्पों का जुड़ाव बना हुआ है. हिंदू मान्यता के अनुसार मां मनसा के साथ हमेशा सात नाग बने रहते हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार मां मनसा की पूजा करने वाले साधक को सर्पदंश (snake bite) अथवा किसी अन्य प्रकार के विष से भय नहीं रहता है. मां मनसा को जरत्कारु, नागभगिनी, नागेश्वरी, आस्तिकमाता और विषहरी आदि के नाम से भी जाना जाता है. मां मनसा की पूजा मुख्य रूप से बिहार, बंगाल, आसाम आदि राज्यों में होती है. नागपंचमी पर देवी की विशेष पूजा का विधान है. जिन आस्तिक ऋषि का ध्यान करने पर सर्पदंश का भय नहीं रहता है, वो मां मनसा के पुत्र माने जाते हैं.

भगवान कार्तिकेय (Lord Kartikeya)
दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को नागों का देवता माना जाता है. दक्षिण भारत में उन्हें मुरुगन और सुब्रमण्य के नाम जाना जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान कार्तिकेय ने बेंगलुरू के सुब्रमण्य मंदिर में कभी सर्प के रूप में तपस्या की थी. वर्तमान में इस मंदिर में उनकी सात मुख वाले सर्प के रूप में प्रतिदिन पूजा होती है. मान्यता है कि यहां दर्शन और पूजन करने पर कुंडली का कालसर्प दोष दूर हो जाता है.

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गोगा जी महाराज (Goga ji Maharaj)
राजस्थान में गोगा जी महाराज को सांपों का देवता माना जाता है. यहां पर लोग उन्हें लोक देवता के रूप में पूजते हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे तमाम क्षेत्रों में नागदेवता को ग्राम देवता अथवा क्षेत्र देवता के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि नागपंचमी पर गोगा जी महाराज की पूजा करने वाले को सर्पदंश का भय नहीं रहता है. गोगाजी, गुग्गावीर, जाहर वीर, जाहर पीर आदि नामों से पुकारे जाने वाले गोगा जी महाराज की गोगा नवमी के दिन विशेष पूजा की जाती है. यह पर्व हर साल भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की नवमी को मनाया जाता है.
जैन और बौद्ध धर्म में नाग
नाग देवता का संबंध सिर्फ हिंदू देवी-देवताओं से ही नहीं बल्कि भगवान बुद्ध (Lord Buddha) और महावीर जैन (Lord Mahavira) से भी जोड़ा जाता है. मान्यता है कि जब भगवान बुद्ध अनवरत तपस्या कर रहे थे तो उस समय नागराज मच्छलिंदा ने अपना बड़ा सा फन फैलाकर उन्हें तेज बारिश, तूफान और ठंड से बचाया था. बौद्ध धर्म में दिशाओं के रक्षा करने वाले छायापति, कान्हागौतमाक्षी, विरुपाक्षी एवं ऐरावत नाम के नागों का उल्लेख मिलता है. इसी प्रकार जैन ग्रंथों के अनुसार एक बार भगवान पार्श्वनाथ ने यज्ञ में जलते हुए सर्प को बचाया था, जिनका पुनर्जन्म नागों के धनि राजा धारणा या फिर कहें धरणेंद्र के नाम से हुआ. भगवान पार्श्वनाथ की मूर्तियों में अक्सर सर्प के फन का छत्र देखा जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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