कई सालों बाद ऐसा संयोग आया है, जब सावन महीने का सोमवार और नाग पंचमी (Nag Panchami) एक ही दिन पड़ रही है, और इसी के साथ उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर (Nagchandreshwar Temple) के कपाट भी खुल गए हैं. इस मंदिर के कपाट साल में एक ही दिन खुलते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार नाग पंचमी के मौके पर इस मंदिर में दर्शन-पूजन करने से सर्पदोष से मुक्ति मिलती है. मंदिर के मुताबिक रविवार रात 12 बजे प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में मंदिर के कपाट खोले गए और इस मौके पर महानिर्वाणी अखाड़े के महंत पुजारी प्रकाशपुरी महाराज विधि-विधान से त्रिकाल की विशेष पूजा-अर्चना की.
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पुराणों के अनुसार, इस मंदिर में नाग पंचमी के दिन पूजा करने से सर्पदोषों से मुक्ति मिलती है. हर साल हजारों की संख्या में नाग पंचमी के दिन श्रद्घालु यहां पहुंचते हैं. इस दिन श्रावण सोमवार भी है, इसलिए भगवान महाकाल के दर्शन के लिए भी बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं.
प्रभारी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने संभागायुक्त, पुलिस महानिरीक्षक, कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को निर्देशित किया है कि वे दर्शन की ऐसी प्रभावी व्यवस्था करें, ताकि आम दर्शनार्थियों को किसी भी तरह से परेशानी न हो. दर्शनार्थियों को किसी तरह की दिक्कत न हो, इसके लिए महाकालेश्वर और नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की अलग-अलग लाइन बनवाई जा रही है.
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नाग पंचमी के मौके पर देश के विभिन्न नाग मंदिरों में नाग देवता की विधि-विधान से पूजा की जाती है. इस बार नाग पंचमी का पर्व सोमवार को पड़ रहा है, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ गया है. ज्योतिषियों के मुताबिक, ऐसा संयोग अरसे बाद बन रहा है.
उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर विरलतम मंदिरों में है, जिसमें शेषनाग की छाया में शिव और पार्वती विराजे हैं. द्वादश ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के परिसर में सबसे ऊपर यानी तीसरे खंड में यह मंदिर स्थित है. 11वीं शताब्दी के इस मंदिर में नाग पर आसीन शिव-पार्वती की अतिसुंदर प्रतिमा है, जिसके ऊपर छत्र के रूप में नागदेवता अपना फन फैलाए हुए हैं. कहा जाता है कि दुनिया में यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिव और पार्वती की ऐसी अद्भुत प्रतिमा स्थापित है. इस मंदिर में दशमुखी नाग शैय्या पर भगवान शिव और पार्वती अपने पुत्र गणेश के साथ विराजमान हैं.
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धार्मिक मान्यता है कि महादेव को खुश करने के लिए नागराज तक्षक ने कई सालों तक तपस्या की थी. नागराज की तपस्या से खुश होकर महादेव प्रकट हुए थे और नागराज को अमरत्व का वरदान दिया था. महादेव से आशीर्वाद मिलने के उपरान्त तक्षक ने शिवजी के सान्निध्य में वास करना शुरू कर दिया. इन्हीं कारणों से मंदिर में मूर्ति शिव तक्षक के साथ स्थापित की गई है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं