Muharram 2018: 10 मुहर्रम को मुस्लिम काले कपड़े पहनकर मातम मनाते हैं
नई दिल्ली:
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुहर्रम (Muharram) की 10वीं तारीख के अवसर पर कर्बला के शहीदों और हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानियों को नमन किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. उन्होंने कहा कि मैदान-ए-कर्बला में अन्याय, जुल्म, अहंकार के खिलाफ हक और सच्चाई के लिए हजरत इमाम हुसैन (Hazrat Imam Hussain) और उनके 72 साथियों द्वारा दी गई कुर्बानी अमर है. इसे जब तक दुनिया रहेगी, याद किया जाएगा.
जानिए क्यों शहीद हो गए थे हजरत इमाम हुसैन?
उन्होंने कहा, 'इससे प्रेरणा लेकर हमें इंसानियत, सच्चाई और भलाई के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए.'
मुख्यमंत्री ने मुहर्रम के अवसर पर बिहार के लोगों से अपील कि है कि वे हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानियों को याद करें और सच, इंसानियत, हक और भलाई के आदर्शों को अपनाते हुए बुराई, अहंकार और आतंक के विरुद्ध वातावरण बनाएं. उन्होंने मुहर्रम को पूरे मेल-जोल, भाईचारा और आपसी सौहार्द के साथ मनाए जाने की अपील की है.
गौरतलब है कि इस्लामी मान्यताओं के अनुसार इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था. यजीद खुद को खलीफा मानता था, लेकिन अल्लाह पर उसका कोई विश्वास नहीं था. वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं. लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने यजीद के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया था. पैगंबर-ए इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. जिस महीने हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था.
मुहर्रम खुशियों का त्योहार नहीं बल्कि मातम और आंसू बहाने का महीना है. शिया समुदाय के लोग 10 मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं. हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है. मुहर्रम की नौ और 10 तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है. वहीं सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में 10 दिन तक रोजे रखते हैं. कहा जाता है कि मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजों के बराबर मिलता है.
जानिए क्यों शहीद हो गए थे हजरत इमाम हुसैन?
उन्होंने कहा, 'इससे प्रेरणा लेकर हमें इंसानियत, सच्चाई और भलाई के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए.'
मुख्यमंत्री ने मुहर्रम के अवसर पर बिहार के लोगों से अपील कि है कि वे हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानियों को याद करें और सच, इंसानियत, हक और भलाई के आदर्शों को अपनाते हुए बुराई, अहंकार और आतंक के विरुद्ध वातावरण बनाएं. उन्होंने मुहर्रम को पूरे मेल-जोल, भाईचारा और आपसी सौहार्द के साथ मनाए जाने की अपील की है.
गौरतलब है कि इस्लामी मान्यताओं के अनुसार इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था. यजीद खुद को खलीफा मानता था, लेकिन अल्लाह पर उसका कोई विश्वास नहीं था. वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं. लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने यजीद के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया था. पैगंबर-ए इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. जिस महीने हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था.
मुहर्रम खुशियों का त्योहार नहीं बल्कि मातम और आंसू बहाने का महीना है. शिया समुदाय के लोग 10 मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं. हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है. मुहर्रम की नौ और 10 तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है. वहीं सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में 10 दिन तक रोजे रखते हैं. कहा जाता है कि मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजों के बराबर मिलता है.
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