
Ganesh ki sawari kya hai: गणों के स्वामी कहलाने वाले भगवान श्री गणेश जी की पूजा उनके भक्त हर मास के कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि पर करते हैं, लेकिन यही चतुर्थी तिथि जब भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में पड़ती है तो इसका धार्मिक महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. पौराणिक मान्यता है कि इसी पावन चतुर्थी तिथि पर दोपहर के भगवान श्री गणेश जी का जन्म हुआ था. तमाम हिंदू देवी-देवताओं की तरह गणपति भी तमाम तरह के अस्त्र को धारण करते हुए विभिन्न प्रकार की सवारी का प्रयोग करते हैं. आइए गणपति की अलग-अलग सवारी का महत्व जानते हैं.
चूहा कैसे बना गणेश जी की सवारी?
गणेश जी की सवारी मुख्य रूप से मूषक या फिर कहें चूहा मानी गई है. गणेश जी द्वारा चूहे को अपनी सवारी बनाने के पीछे भी एक कथा है. मान्यता है कि एक बार क्रौंच नाम के अभिमानी गंधर्व ने वामदेव नाम के ऋषि का अपमान कर दिया, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने क्रौंच को चूहा बनने का श्राप दे दिया. जब वह विशाल चूहे में बदल गया तो उसने आस-पास के क्षेत्र में नुकसान पहुंचाकर आतंक मचा दिया. इसके बाद ऋषियों द्वारा भगवान श्री गणेश की स्तुति करने पर उन्होंने इसे अपने पाश से बांध लिया. जब चूहे ने गणपति से माफी मांगी तो उन्होंने उसका अभिमान दूर करने के लिए अपनी सवारी बना लिया.

शेर और मोर भी हैं गणपति के वाहन
हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान श्री गणेश जी प्रत्येक युग में अलग-अलग चीजों की सवारी करते रहे हैं. गणेश पुराण के अनुसार सतयुग वे सिंह पर सवार होते हैं. इस युग में उनका स्वरूप दस भुजाओं वाला था और उनके भक्त उन्हें विनायक के नाम से पूजते हैं. इसी प्रकार त्रेतायुग में वे मोर की सवारी करके मयूरेश्वर कहलाते हैं. भगवान श्री गणेश जी का यह स्वरूप 6 भुजाओं वाला माना गया है. वहीं द्वापर में वे चार भुजाओं वाले गजानन के रूप में मूषक की सवारी करते हैं.
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कलयुग में किस पर करेंगे सवारी?
हिंदू मान्यता के अनुसार कलयुग में न सिर्फ भगवान श्री विष्णु का कल्कि अवतार होगा बल्कि श्री गणेश जी भी पृथ्वी पर अवतरित होंगे. कलयुग में दो भुजाधारी स्वरूप में घोड़े की सवारी करेंगे और उनकी पूजा धूम्रकेतु के रूप में होगी.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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