
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि राजनीतिक दल चुनाव चिह्न को अपनी ‘विशिष्ट संपत्ति' नहीं मान सकते हैं और अगर किसी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक है तो उसका चुनाव चिह्न के इस्तेमाल का अधिकार समाप्त हो सकता है.
उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी समता पार्टी की उस अपील को खारिज करते हुए की जिसमें एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी. एकल न्यायाधीश ने इस आदेश में शिवसेना के उद्धव ठाकरे धड़े को ‘मशाल' चुनाव चिह्न आवंटित करने के खिलाफ दायर समता पार्टी की याचिका को खारिज कर दिया गया था.
अपीलकर्ता पार्टी ने दावा किया कि ‘मशाल' का चिह्न उससे संबंधित है और उसने इस पर चुनाव लड़ा था. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारतीय निर्वाचन आयोग मामले में उच्चतम न्यायालय के पुराने फैसले का भी उल्लेख किया और कहा कि इस निर्णय में कहा गया है कि चुनाव चिह्न कोई मूर्त वस्तु नहीं है और न ही इससे कोई आय होती है.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘यह किसी राजनीतिक दल से जुड़ा केवल एक प्रतीक चिह्न है ताकि लाखों निरक्षर मतदाताओं को किसी विशेष पार्टी से संबंधित अपनी पसंद के उम्मीदवार के पक्ष में मताधिकार का प्रयोग करने में मदद मिल सके. संबंधित दल चिह्न को अपनी विशिष्ट संपत्ति नहीं मान सकते.''
पीठ ने कहा, ‘‘चुनाव चिह्न (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 यह स्पष्ट करता है कि पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन से चुनाव चिह्न के उपयोग का उसका अधिकार समाप्त हो सकता है.'' अदालत ने कहा कि भले ही समता पार्टी के सदस्यों को ‘मशाल' चिह्न का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन 2004 में पार्टी की मान्यता समाप्त होने के साथ यह एक स्वतंत्र चिह्न बन गया है. इसने कहा कि यह निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र में है कि वह इस चुनाव चिह्न को किसी अन्य दल को आवंटित करे.
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