दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल.
नई दिल्ली: दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर बने केस के लिए दिल्ली पुलिस के सुझाये स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की लिस्ट पर मुहर लगा दी है. उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार को चिट्ठी भेजकर बताया कि मामला राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया है लेकिन क्योंकि यह अर्जेंट मामला है इसलिए संविधान में दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए दिल्ली पुलिस के सुझाये 11 वकीलों को किसानों के मामले में सरकारी वकील नियुक्त किया जाता है. दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी जानकारी दी.
19 जुलाई को केजरीवाल कैबिनेट ने फैसला किया था कि किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर जो केस बने हैं, उसमें दिल्ली सरकार के चयनित वकील ही पब्लिक प्रॉसिक्यूटर बनेंगे, दिल्ली पुलिस के नहीं. 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों ने मार्च निकाला था जिसके दौरान हिंसा हुई थी. इसी मामले में किसानों पर बहुत से केस दर्ज हुए हैं. इन्हीं मामलों में दिल्ली पुलिस अपने सुझाये हुए वकीलों को स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर बनाना चाहती थी जबकि दिल्ली सरकार का कहना था कि जो सरकारी वकील कोर्ट में सरकार की तरफ से नियुक्त होते हैं वही इस मामले में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर होंगे. अब उपराज्यपाल के इस आदेश के बाद दिल्ली पुलिस के सुझाए हुए वकील ही किसान मामले में पेश होंगे.
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मनीष सिसोदिया ने सवाल उठाते हुए कहा, वकीलों की नियुक्ति में केंद्र सरकार की क्या दिलचस्पी है? दिल्ली की चुनी हुई सरकार की नहीं चलने देंगे बल्कि केंद्र सरकार के वकील मामले को देखेंगे? केंद्र सरकार किसानों के खिलाफ ऐसा क्या करना चाह रही है? उन्होंने कहा कि अगर वकीलों की नियुक्ति भी उपराज्यपाल करेंगे तो संविधान में चुनी हुई सरकार का मतलब क्या रह जाएगा.
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मनीष सिसोदिया ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने संविधान की व्याख्या करते हुए यह साफ साफ कहा है कि दिल्ली सरकार के पास वकील चुनने का अधिकार है. यह बात भी सही है कि उपराज्यपाल के पास भी एक प्रॉब्लम है कि अगर दिल्ली सरकार के किसी फैसले से वह खुश नहीं है या सहमत नहीं है तो वह उसको राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं और जब तक वहां पर आदेश साफ ना आए तब तक के लिए आदेश दे सकते हैं. लेकिन संविधान के इस अधिकार के बारे में सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच ने अपने जजमेंट में कहा है कि अगर किसी मामले पर एलजी सहमत नहीं होते तो उसको राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं लेकिन हर मामले में एलजी ऐसा नहीं कर सकते.'
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'लेकिन यह अपनी इस ताकत का इस्तेमाल आए दिन और हर मामले में करते रहते हैं. अगर यही सब करना है तो केंद्र सरकार संविधान को ठीक से पढ़े और सोचे कि फिर दिल्ली में चुनाव क्यों करवाए जा रहे हैं और दिल्ली में सरकार का मतलब क्या है? लोकतंत्र, संविधान की बात क्यों की जाती है.'
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