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दिल्ली के कुछ इलाकों में दिखा क्लाउड सीडिंग का असर, जानें कहां कितनी साफ हुई आबोहवा

विशेषज्ञों का मानना है कि सीडिंग पार्टिकल्स से बनी नमी ने निचले वातावरण में प्रदूषकों को बैठाने में मदद की.

दिल्ली के कुछ इलाकों में दिखा क्लाउड सीडिंग का असर, जानें कहां कितनी साफ हुई आबोहवा
  • दिल्ली-एनसीआर में क्लाउड सीडिंग के बाद हुई हल्की बारिश से वायु प्रदूषण के स्तर में मामूली सुधार देखा गया है
  • नोएडा और ग्रेटर नोएडा में क्रमशः 0.1 मिमी और 0.2 मिमी बारिश हुई जिससे प्रदूषण के कणों में कमी आई है
  • मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में PM 2.5 और PM 10 प्रदूषण के स्तर में स्पष्ट गिरावट दर्ज की गई है
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नई दिल्ली:

दिल्ली-एनसीआर में क्लाउड सीडिंग के बाद हल्की बारिश से बढ़ते प्रदूषण में मामूली सुधार दर्ज किया गया है. फिलहाल जो शुरुआती जानकारी सामने आ रही है, उसके आंकड़ों के मुताबिक, नोएडा में 0.1 मिमी और ग्रेटर नोएडा में 0.2 मिमी बारिश हुई है. जिससे प्रदूषण स्तर में हल्की गिरावट आई है. 20 मॉनिटरिंग साइट्स से मिले डेटा के अनुसार, PM 2.5 और PM 10 के स्तर में कमी आई है.

कहां PM 2.5 में आई कितनी कमी:

  • मयूर विहार: 221 → 207
  • करोल बाग: 230 → 206
  • बुराड़ी: 229 → 203

कहां PM 10 में आई कितनी कमी:

  • मयूर विहार: 207 → 177
  • करोल बाग: 206 → 163
  • बुराड़ी: 209 → 177

एक्सपर्ट्स ने क्या कुछ कहा 

विशेषज्ञों का मानना है कि सीडिंग पार्टिकल्स से बनी नमी ने निचले वातावरण में प्रदूषकों को बैठाने में मदद की. कम आर्द्रता के बावजूद क्लाउड सीडिंग ट्रायल से हल्की बारिश हुई और चयनित NCR क्षेत्रों में पार्टिकुलेट प्रदूषण घटा. फिलहाल डेटा विश्लेषण जारी है, जिससे भविष्य की क्लाउड सीडिंग रणनीतियों को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. दरअसल दिल्ली में ठंड की दस्तक के साथ ही शहर की आबोहवा भी जहरीली होती जा रही है, जिससे निजात पाने की कोशिशें की जा रही है.

दिल्ली में तीसरी बार किया गया कृत्रिम वर्षा प्रयोग

दिल्ली में करीब 53 साल के अंतराल के बाद एक बार फिर कृत्रिम वर्षा का प्रयोग किया गया. इस बार यह प्रयोग राष्ट्रीय राजधानी के वायु प्रदूषण संकट को कम करने के उद्देश्य से किया गया. भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का पहला परीक्षण 1957 के मानसून के दौरान किया गया था जबकि दूसरा प्रयास 1970 के दशक की शुरुआत की सर्दियों में किया गया था.

दिल्ली सरकार ने किया ये दावा

दिल्ली सरकार ने दावा किया है कि मंगलवार को हुए दो क्लाउड सीडिंग से हल्की बारिश और प्रदूषण में कमी आई है . आईआईटी कानपुर ने दिल्ली में किए दो क्लाउड सीडिंग ट्रायल किए हैं. जिससे हल्की बारिश हुई और प्रदूषण स्तर में गिरावट दर्ज हुई. पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि आज आईआईटी कानपुर की टीम ने सेसना विमान के ज़रिए दिल्ली में दो बड़े क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन पूरे किए.

  • यह प्रयोग खास तौर पर खेकरा, बुराड़ी, नॉर्थ करोल बाग, मयूर विहार, सड़कपुर, भोजपुर और आस-पास के इलाकों में किया गया.
  • हर उड़ान में 8 केमिकल फ्लेयर छोड़े गए, जो लगभग 2 से 2.5 मिनट तक सक्रिय रहे.
  • प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, कुछ जगहों पर पीएम2.5 और पीएम10 में मापी जा सकने वाली कमी दर्ज
  • दिल्ली-नोएडा बॉर्डर पर हल्की बारिश दर्ज की गई
  • वैज्ञानिक पूरे आंकड़ों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे और रिपोर्ट जारी करेंगे

पर्यावरण मंत्री श्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, “दिल्ली ने प्रदूषण से लड़ाई में एक अभूतपूर्व कदम उठाया है. क्लाउड सीडिंग तकनीक के ज़रिए हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि वास्तविक वातावरण में कितनी कृत्रिम वर्षा संभव है. हर प्रयोग हमें विज्ञान के ज़रिए समाधान की ओर ले जाएगा.”

ऑपरेशन का विवरण

आईआईटी कानपुर की विशेषज्ञ टीम ने आज दो उड़ानें कानपुर और मेरठ एयरफील्ड से संचालित कीं. दोनों उड़ानों ने खेकरा, बुराड़ी, नॉर्थ करोल बाग, मयूर विहार, सड़कपुर, भोजपुर और आसपास के क्षेत्रों को कवर किया. हर उड़ान में करीब 0.5 किलो वजन वाले आठ फ्लेयर छोड़े गए, जिनमें विशेष मिश्रण था जो बादलों में नमी बढ़ाने में सहायक होता है. ऑपरेशन लगभग डेढ़ घंटे तक चला. उस दौरान आर्द्रता 15–20% के बीच रही.  यह आदर्श से थोड़ी कम थी, लेकिन वैज्ञानिक परीक्षण के लिए पर्याप्त थी.

माननीय मंत्री श्री सिरसा ने बताया कि विशेषज्ञों के अनुसार, सीडिंग के बाद बारिश अगले 24 घंटे के भीतर हो सकती है, यह बादलों की नमी पर निर्भर करता है. शुरुआती रिपोर्टों में दिल्ली-नोएडा बॉर्डर पर लगभग 0.1–0.2 मिमी की हल्की वर्षा दर्ज हुई है, जो सकारात्मक संकेत है.

प्रारंभिक परिणाम:

  • पहली उड़ान से पहले: मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में पीएम2.5 क्रमशः 221, 230 और 229 µg/m³ दर्ज हुआ. ऑपरेशन के बाद ये स्तर घटकर 207, 206 और 203 µg/m³ रह गए.
  • पीएम10 का स्तर इन्हीं स्थानों पर 207, 206 और 209 µg/m³ से घटकर 177, 163 और 177 µg/m³ तक आया.
  • हवा की गति बहुत कम थी, यह गिरावट मुख्य रूप से बादलों में छोड़े गए कणों के प्रभाव से हुई, जिससे हवा में मौजूद धूलकण नीचे बैठ गए.

मंत्री सिरसा ने कहा, “हमारे हर आंकड़े हमें स्वच्छ और हरित राजधानी की दिशा में ले जा रहे हैं। वैज्ञानिक पूरी तरह से सभी आंकड़ों का विश्लेषण कर रहे हैं और आगे इस पर विस्तृत रिपोर्ट जारी की जाएगी। रिपोर्ट के आधार पर आने वाले हफ्तों में और क्लाउड सीडिंग प्रयोग किए जाएंगे. पहले चरण के बाद तय होगा कि फरवरी तक और कितनी उड़ानें की जाएं.” यह भारत में शहरी प्रदूषण नियंत्रण के लिए सबसे बड़ा वैज्ञानिक कदम है. मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन में दिल्ली सरकार हर कदम पारदर्शी और विज्ञान आधारित तरीके से उठा रही है, ताकि नागरिकों को स्वच्छ हवा मिल सकें.

क्या है क्लाउड सीडिंग?

क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसमें बादलों में विशेष रासायनिक कण (जैसे सिल्वर आयोडाइड या सोडियम क्लोराइड) छोड़े जाते हैं ताकि बारिश बनने की प्रक्रिया को प्रेरित किया जा सकें. इस प्रयोग में सेसना विमान के ज़रिए खास रासायनिक फ्लेयर जलाकर बादलों में छोड़े गए. ये कण बादलों में जलकण बनने की प्रक्रिया को तेज करते हैं और उचित नमी की स्थिति में वर्षा होती है.

उचित बादलों का चयन, फ्लेयर छोड़ने का सही समय, और मौसम की बारीकी से निगरानी. ये सभी इस प्रक्रिया की सफलता के लिए बेहद ज़रूरी होते हैं. ऑपरेशन के बाद बारिश और वायु गुणवत्ता से जुड़े सभी आंकड़े एकत्र किए जाते हैं ताकि प्रभाव का वैज्ञानिक मूल्यांकन किया जा सकें. दिल्ली सरकार की यह पहल प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में भारत की एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि है. सरकार ने इस पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी रखने और जनता को नियमित अपडेट देने के लिए प्रतिबद्ध है.

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