
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मंगलवार को 'परफॉरमेंस ऑडिट ऑफ़ प्रिवेंशन एंड मिटिगेशन ऑफ़ वेहिकुलर एयर पोलुशन इन दिल्ली' को लेकर कैग की रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी. इस रिपोर्ट पर चर्चा में भाग लेते हुए पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने पिछली सरकार की गंभीर लापरवाही और अनियमितताओं को सदन के सामने रखा.
कैग रिपोर्ट में चर्चा के दौरान मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, "पिछली सरकार ने पर्यावरण नियमों को दरकिनार कर जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया. 1.08 लाख से अधिक ऐसे वाहनों को प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र (पीयूसी) जारी कर दिया गया, जो तय मानकों से अधिक प्रदूषण फैला रहे थे, जिससे पर्यावरण नियमों का उल्लंघन हुआ. इस कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा."
वहीं, 7,643 मामलों में एक ही सेंटर पर एक समय में दो वाहनों को पीयूसी प्रमाण पत्र जारी किए गए, जिससे यह साफ होता है कि बिना किसी जांच के ही प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे थे. यह लापरवाही पीयूसी सेंटर की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हैं.
मंत्री सिरसा ने बताया कि, डीटीसी (DTC) बसों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई. इसके अलावा, डीटीसी बसों का एक बड़ा हिस्सा मरम्मत और मेंटेनेंस की कमी के कारण सड़कों पर चलने के लायक नहीं रह गए. कुल उपलब्ध बसों में से 14 प्रतिशत से 16 प्रतिशत बसें लगातार रिपेयर और मेंटेनेंस के चलते चल नहीं पाईं.

इसके अलावा, जून 2021 में 380 इलेक्ट्रिक बसों की खरीद के लिए जारी टेंडर को भी रोका गया. साल 2022 में सिर्फ 2 इलेक्ट्रिक बसें डीटीसी के बेड़ें में शामिल की गईं, जिससे प्रदूषण नियंत्रण के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर में देरी हुई.
पिछली सरकार ने रूट रेशनलाइजेशन अध्ययन के लिए 3 करोड़ रुपये आवंटित किए, लेकिन पैसा खर्च होने के बाद यह योजना अधूरी छोड़ दी गई.
उन्होंने यह भी कहा कि कैग रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि पिछली सरकार के नेताओं ने सिर्फ सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाया और जमीनी स्तर पर कोई ठोस काम नहीं किया. मोनोरेल, लाइट रेल ट्रांजिट और इलेक्ट्रिक ट्रॉली बस जैसी योजनाओं की घोषणा जरूर हुई, लेकिन कोई ठोस प्रगति नहीं हुई.
कैग रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि स्मोक टावर परियोजना पर 22 करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन यह प्रदूषण नियंत्रण में प्रभावी साबित नहीं हुई.
मंत्री ने बताया कि ऑड-ईवन स्कीम के प्रचार पर 53 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए, लेकिन इस योजना से वाहन प्रदूषण में कोई ठोस कमी नहीं आई. प्रदूषण नियंत्रण के ठोस उपायों पर निवेश करने के बजाय, पिछली सरकार ने सिर्फ प्रचार अभियानों पर पैसा खर्च किया, जिससे दिल्ली के पर्यावरण को कोई स्थायी लाभ नहीं मिला.
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