गाजियाबाद:
दिल्ली की सीमा से कुछ ही दूर गाजियाबाद जिले के मुरादनगर के ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के बाहर भीड़ लगी थी. दोपहर का एक बज रहा था. शुरुआत में मुझे लगा कि भीड़ कुछ कम हो गई है पहले लेकिन जैसे ही वहां गया तो देखा एक ए4 साइज का कागज चिपकाया गया था जिसपर लिखा था कि आज बैंक में नकद नहीं है. ज़ाहिर सी बात है जब नकद नहीं होगा तो वहां लोग क्यों होंगे?
लोगों ने जैसे ही मुझ मीडियावाले को पहचाना, अपनी शिकायतें सुनानी शुरू कर दी. सुशील त्यागी जो गाड़ी चलाकर अपना परिवार चलाते हैं वो बीते 6 दिन से इस बैंक के बाहर लाइन में लग रहे हैं. उन्होंने कहा, 'पिछले छह दिन से हम सिर्फ लाइन में लग रहे हैं लेकिन हमको बैंक से एक पैसा नहीं मिल पाया है.'
सुशील एकलौते ऐसे शिकायतकर्ता नहीं थे. जिसको देखो हर कोई बता रहा था कि हम चार दिन से, छह दिन से, आठ दिन से, 11 दिन से रोजाना लाइन में लग रहे हैं, लेकिन पैसा नहीं मिल पा रहा है. लोगों ने आरोप लगाया कि खास लोग फोन पर बात करके सीधा अंदर चले जाते हैं और चूंकि हम हम गरीब लोग हैं, इसलिए बस लाइन में लगे रह जाते हैं. अगर विरोध करते हैं तो पुलिस है हमारा 'इंतजाम' करने के लिए.
इस बैंक के बाहर लाइन में ज्यादातर मेहनत-मजदूरी करने वाले लोग थे. कई महिलाएं भी बता रही थीं कि हम कई दिन से लाइन में सुबह से शाम तक लगती हैं, लेकिन नंबर आने से पहले कहते हैं कि कैश खत्म हो गया. ये वो महिलाएं थीं, जो दूसरों के घरों में काम करती हैं. ऐसी ही एक महिला बोली, 'हम घरों में काम करके थककर घर जाने की बजाय यहां लाइन में आकर लगते हैं, लेकिन हमको पैसा नहीं मिलता. बताओ हमारी क्या गलती है? बुखार चढ़ा हुआ है, लेकिन क्या करें लाइन में लगे हैं.'
हमने जब मैनेजर साहब से पूछा तो उनका जवाब सुनकर हैरान रह गया. मैनेजर साहब ने कहा कि परसों 20 हजार रुपये आये थे, कल आये ही नहीं, लेकिन आज आने की उम्मीद है, इसलिए लोगों को रोककर रखा है.' 24 हजार रुपये तो सरकार ने केवल एक बार एक शख्स को बैंक से निकालने की अनुमति दी है और यहां 20 हजार इस पूरी ब्रांच के हज़ारों ग्राहकों के लिए आए हैं. इसको कैश कहेंगे या चिल्लर?
इसके बाद मैं थोड़ी दूर नूरपुर गांव गया, जहां बैंक ऑफ महाराष्ट्र की शाखा है. दोपहर के दो बज रहे थे और बैंक का शटर गिरा हुआ था. मैंने लोगों से पूछा तो बोले, तीन दिन से पैसा नहीं आया है और आज भी बैंक अब तक नहीं खुला सुबह से. जब मैंने पूछा कि बैंक के मैनेजर साहब नहीं हैं यहां? तो तुरंत किसी ने कैशियर को बुलाया. कैशियर ने बताया कि तीन दिन पहले पैसा आया था, उसके बाद नहीं आया. पहले पैसा सप्लाई करने गाड़ी आती थी, लेकिन तीन दिन से गाड़ी नहीं आई, तो मैनेजर साहब खुद दिल्ली से कैश लेने गए हैं, इसलिए अभी तक बैंक नहीं खुल पाया है.
गांव के लोगों ने बताया कि वो सुबह से, कल से या दो दिन से इंतज़ार कर रहे हैं कि पैसा आएगा. हालांकि लोगों का कहना था कि पीएम की ये योजना तो बहुत अच्छी है, लेकिन व्यवस्था ठीक नहीं है.
कुल मिलाकर कुछ दिन पहले तक छोटे शहर और गांव में कैश कम आ रहा था, लेकिन आ रोज़ रहा था, मगर अब कैश भी कम आ रहा है और कई-कई दिन बाद आ रहा है. सरकार और मीडिया का फोकस बड़े शहरों पर ज़्यादा रहता है, इसलिए कैश सप्लाई के लिए भी प्राथमिकता वहीं की होती है.
लोगों ने जैसे ही मुझ मीडियावाले को पहचाना, अपनी शिकायतें सुनानी शुरू कर दी. सुशील त्यागी जो गाड़ी चलाकर अपना परिवार चलाते हैं वो बीते 6 दिन से इस बैंक के बाहर लाइन में लग रहे हैं. उन्होंने कहा, 'पिछले छह दिन से हम सिर्फ लाइन में लग रहे हैं लेकिन हमको बैंक से एक पैसा नहीं मिल पाया है.'
सुशील एकलौते ऐसे शिकायतकर्ता नहीं थे. जिसको देखो हर कोई बता रहा था कि हम चार दिन से, छह दिन से, आठ दिन से, 11 दिन से रोजाना लाइन में लग रहे हैं, लेकिन पैसा नहीं मिल पा रहा है. लोगों ने आरोप लगाया कि खास लोग फोन पर बात करके सीधा अंदर चले जाते हैं और चूंकि हम हम गरीब लोग हैं, इसलिए बस लाइन में लगे रह जाते हैं. अगर विरोध करते हैं तो पुलिस है हमारा 'इंतजाम' करने के लिए.
इस बैंक के बाहर लाइन में ज्यादातर मेहनत-मजदूरी करने वाले लोग थे. कई महिलाएं भी बता रही थीं कि हम कई दिन से लाइन में सुबह से शाम तक लगती हैं, लेकिन नंबर आने से पहले कहते हैं कि कैश खत्म हो गया. ये वो महिलाएं थीं, जो दूसरों के घरों में काम करती हैं. ऐसी ही एक महिला बोली, 'हम घरों में काम करके थककर घर जाने की बजाय यहां लाइन में आकर लगते हैं, लेकिन हमको पैसा नहीं मिलता. बताओ हमारी क्या गलती है? बुखार चढ़ा हुआ है, लेकिन क्या करें लाइन में लगे हैं.'
हमने जब मैनेजर साहब से पूछा तो उनका जवाब सुनकर हैरान रह गया. मैनेजर साहब ने कहा कि परसों 20 हजार रुपये आये थे, कल आये ही नहीं, लेकिन आज आने की उम्मीद है, इसलिए लोगों को रोककर रखा है.' 24 हजार रुपये तो सरकार ने केवल एक बार एक शख्स को बैंक से निकालने की अनुमति दी है और यहां 20 हजार इस पूरी ब्रांच के हज़ारों ग्राहकों के लिए आए हैं. इसको कैश कहेंगे या चिल्लर?
इसके बाद मैं थोड़ी दूर नूरपुर गांव गया, जहां बैंक ऑफ महाराष्ट्र की शाखा है. दोपहर के दो बज रहे थे और बैंक का शटर गिरा हुआ था. मैंने लोगों से पूछा तो बोले, तीन दिन से पैसा नहीं आया है और आज भी बैंक अब तक नहीं खुला सुबह से. जब मैंने पूछा कि बैंक के मैनेजर साहब नहीं हैं यहां? तो तुरंत किसी ने कैशियर को बुलाया. कैशियर ने बताया कि तीन दिन पहले पैसा आया था, उसके बाद नहीं आया. पहले पैसा सप्लाई करने गाड़ी आती थी, लेकिन तीन दिन से गाड़ी नहीं आई, तो मैनेजर साहब खुद दिल्ली से कैश लेने गए हैं, इसलिए अभी तक बैंक नहीं खुल पाया है.
गांव के लोगों ने बताया कि वो सुबह से, कल से या दो दिन से इंतज़ार कर रहे हैं कि पैसा आएगा. हालांकि लोगों का कहना था कि पीएम की ये योजना तो बहुत अच्छी है, लेकिन व्यवस्था ठीक नहीं है.
कुल मिलाकर कुछ दिन पहले तक छोटे शहर और गांव में कैश कम आ रहा था, लेकिन आ रोज़ रहा था, मगर अब कैश भी कम आ रहा है और कई-कई दिन बाद आ रहा है. सरकार और मीडिया का फोकस बड़े शहरों पर ज़्यादा रहता है, इसलिए कैश सप्लाई के लिए भी प्राथमिकता वहीं की होती है.
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