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हर साल 6 हजार से ज्यादा दहेज हत्याएं, UP-बिहार से हरियाणा तक... NCRB रिपोर्ट के भयावह आंकड़े

ग्रेटर नोएडा के सिरसा गांव में निकी नाम की महिला की दर्दनाक मौत ने यह सवाल फिर उठा दिया कि क्या हमारे कानून और समाज सच में महिलाओं को सुरक्षा देने में सक्षम हैं?

हर साल 6 हजार से ज्यादा दहेज हत्याएं, UP-बिहार से हरियाणा तक... NCRB रिपोर्ट के भयावह आंकड़े
देश में हर साल हजारों महिला दहेज हत्या की शिकार हो रही हैं
  • वर्ष 2022 में भारत में दहेज हत्या के कुल 6,450 मामले दर्ज हुए जिनमें सात प्रमुख राज्यों से 80 प्रतिशत मामले थे
  • दहेज प्रताड़ना और हत्या के कारण लगभग हर तीन दिन में 54 महिलाएं अपनी जान गंवा रही हैं यह गंभीर समस्या है
  • दहेज निषेध अधिनियम और अन्य संबंधित कानून मौजूद होने के बावजूद जांच और न्याय प्रक्रिया में भारी देरी बनी हुई है
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नई दिल्ली:

भारत में दहेज की लालच ने दशकों से महिलाओं को मौत की आग में झोंका है. NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) के अनुसार, 2022 में दहेज हत्या के कुल 6,450 मामले दर्ज हुए, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और हरियाणा ने अकेले 80% मामलों में योगदान दिया. इसका अर्थ है कि हर तीन दिन में लगभग 54 महिलाएं दहेज प्रताड़ना और हत्या का शिकार होती रही है. यह सिर्फ संख्या नहीं, यह दर्दनाक सच्चाई है. 

ग्रेटर नोएडा के सिरसा गांव में निकी नाम की महिला की दर्दनाक मौत ने यह सवाल फिर उठा दिया कि क्या हमारे कानून और समाज सच में महिलाओं को सुरक्षा देने में सक्षम हैं. सीटीवी फुटेज में दिखाई देता है कि निकी आग से जलती हुई सीढ़ियों से उतरीं, जैसे खुद अपनी जान बचाने की जंग लड़ रही हों. 

उनकी बड़ी बहन कंचन ने बताया कि शुरुआती दहेज में स्कॉर्पियो गाड़ी देने के बावजूद, अगली मांग ₹36 लाख की की गई थी.  टना वाले रात उन्हें बेरहमी से पीटा गया और आग के हवाले कर दिया गया.  

आंकड़ों में छिपा सच: वर्षों का ट्रेंड

सालदहेज-हत्या के मामले (NCRB अनुसार)प्रमुख राज्य (संख्या)
20206,966यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश
2021लगभग 6,753*यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश
20226,450यूपी (2,218), बिहार (1,057), मध्य प्रदेश (518)
2023आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहींउपलब्ध नहीं है

2021 का आंकड़ा अनुमानित है, क्योंकि NCRB रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है.

इन आंकड़ों से यह साफ है कि दहेज-हत्या की घटनाओं में मामूली गिरावट तो आई है. लेकिन हर साल हजारों महिलाओं का जीवन इसकी भेंट चढ़ रहा है. जांच, मुकदमेबाज़ी, और सज़ा की धीमी प्रक्रिया आरोपियों को बचाने वाली बन चुकी है. 

कानून हैं पर क्या असर दिखता है?

दहेज के खिलाफ दहेज निषेध अधिनियम, 1961, IPC की धारा 304B और 498A, और Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 जैसी कानून मौजूद हैं। फिर भी, न्याय की राह में मुख्य तीन बाधाएं बनी हुई हैं:

  • देर से जांच और सुनवाई,
  • लॉ फर्मेस की अनुपस्थिति,
  • सामाजिक जागरूकता का अभाव जिससे पीड़ित अक्सर न्याय के लिए लड़ते हुए टूट जाती हैं.

निकी का परिवार और देश इस क्रूरता की चुप्पी को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। लेकिन सवाल बचता है—जब आंकड़े और व्यक्तिगत दर्द दोनों जुड़ते हैं, तो क्या यह देश सच में बदलाव की राह पर कदम बढ़ा पाएगा?

न्याय तक का सफर क्या हो?

  • तेज़ और निष्पक्ष जांच, ताकि आरोपियों को सज़ा समय से मिल सके.
  • न्याय प्रणाली में सुधार, खासकर ट्रायल की गति बढ़ाना और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना.
  • समाज में व्यापक जागरूकता अभियान, ताकि दहेज जैसी कुप्रथा के खिलाफ समय रहते आवाज़ उठ सके.

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