नीला की प्रोग्रामर जिससे कार का सॉफ्टवेयर कॉपी होता है. यह ऐमज़ॉन पर एक लाख रुपये में मिलता है. काला छोटा उपकरण जीपीएस की जांच करने के लिए है. इसमें लेज़र लाइट लगी होती है.
                                                                                                                        - कार चोरी करने वाली गैंग का पुलिस ने किया परदाफाश
 - यू-ट्यूब के वीडियो से चोरी के तरीके सीखते थे गैंग के लोग
 - ऐमज़ॉन से खरीदा जाता था चोरी करने का सामान
 
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
 हमें बताएं।
                                        
                                        
                                                                                नई दिल्ली: 
                                        दिल्ली पुलिस ने कार चोरी करने वाली एक ऐसी गैंग को पकड़ा है जो मांग के मुताबिक कार चोरी करती थी. चोरी से पहले कार का फोटो व्हाट्सऐप पर गैंग लीडर को भेजा जाता था. यू-ट्यूब के वीडियो से चोरी के तरीके सीखे जाते थे. ऐमज़ॉन से चोरी करने का सामान खरीदा जाता था और फिर 10 मिनट में कार चोरी.
एक वाहन चोर ने डेमो बताया कि वह कैसे कार चोरी करता है. कारों में सुरक्षा इंतजाम कैसे भी हों, चोरी करने के तकनीकी ज्ञान से लैस इस शख्स के लिए कार उड़ाना महज 10 मिनट का काम है. उसने हमारे सामने महज 10 मिनट में कार स्टार्ट कर दी.
दक्षिणी-पूर्वी दिल्ली के डीसीपी रोमिल बानिया के मुताबिक आजकल हर बड़ी कार कंपनी अपनी कारों में बेहतर सिक्योरिटी फीचर्स के दावे करती हैं लेकिन इस गैंग के पकड़े जाने के बाद साफ हो गया है कि कैसे भी सिक्योरिटी फीचर्स हों, उन्हें फेल करना इस गैंग का बाएं हाथ का खेल है.
पुलिस ने वाहन चोरी करने वाली इस हाईटेक गैंग के चार लोगों आमिर,सफर,सगीर और शोएब खान को गिरफ्तार किया है. जबकि इनका सरगना सागिर सत्ता अभी फरार है. पुलिस के मुताबिक इनके चोरी करने का तरीका बिल्कुल अलग था. मांग के आधार पर इस गैंग का एक सदस्य पहले रेकी कर उसी कार का फोटो व्हाट्सऐप पर अपने आका सागिर को भेजता था. हरी झंडी मिलते ही उस कार के सुरक्षा इंतजामों को फेल करने के वीडियो गैंग के लोग यूट्यूब पर देखते थे. इसके बाद चोरी करने के समान जैसे नकली चाबी, चाबी का मेमोरी कार्ड और के प्रोग्रामर ऐमज़ॉन से खरीदे जाते थे. इस गैंग में अलग-अलग कंपनियों की कार चोरी करने के लिए अलग-अलग एक्सपर्ट हैं.
पुलिस के मुताबिक गैंग के लोग सबसे पहले कार के नीचे से हॉर्न का तार काटते थे. फिर पीछे का ग्लास तोड़कर दरवाजे खोलते थे. इसके बाद उस हिस्से को ड्रिल से बाहर निकालते थे जहां से कार स्टार्ट करने के लिए चाबी लगाई जाती है. इसके बाद की प्रोग्रामर को कार के दिमाग यानी ईसीएम से जोड़ते थे और कार का पूरा सॉफ्टवेयर कॉपी कर लेते थे. इसके बाद यही सॉफ्टवेयर नकली चाबी के मेमोरी कार्ड में डाल देते थे और उसी चाबी से कार स्टार्ट हो जाती थी.
जिस कार में जीपीएस लगा होता है उसकी जानकारी इन्हें एक लेज़र लाइट लगे उपकरण से मिल जाती थी. उसे ये आम तौर पर चोरी नहीं करते थे.
पुलिस के मुताबिक सागिर की गैंग में 50 से ज्यादा एक्सपर्ट लड़के हैं, जो 2005 से चोरी कर रहे हैं. तकनीकी चोरी में माहिर इन लड़कों में कोई भी पढ़ा लिखा नहीं है. पुलिस ने इनके पास से 16 महंगी गाड़ियां बरामद की हैं.
                                                                        
                                    
                                एक वाहन चोर ने डेमो बताया कि वह कैसे कार चोरी करता है. कारों में सुरक्षा इंतजाम कैसे भी हों, चोरी करने के तकनीकी ज्ञान से लैस इस शख्स के लिए कार उड़ाना महज 10 मिनट का काम है. उसने हमारे सामने महज 10 मिनट में कार स्टार्ट कर दी.
दक्षिणी-पूर्वी दिल्ली के डीसीपी रोमिल बानिया के मुताबिक आजकल हर बड़ी कार कंपनी अपनी कारों में बेहतर सिक्योरिटी फीचर्स के दावे करती हैं लेकिन इस गैंग के पकड़े जाने के बाद साफ हो गया है कि कैसे भी सिक्योरिटी फीचर्स हों, उन्हें फेल करना इस गैंग का बाएं हाथ का खेल है.
पुलिस ने वाहन चोरी करने वाली इस हाईटेक गैंग के चार लोगों आमिर,सफर,सगीर और शोएब खान को गिरफ्तार किया है. जबकि इनका सरगना सागिर सत्ता अभी फरार है. पुलिस के मुताबिक इनके चोरी करने का तरीका बिल्कुल अलग था. मांग के आधार पर इस गैंग का एक सदस्य पहले रेकी कर उसी कार का फोटो व्हाट्सऐप पर अपने आका सागिर को भेजता था. हरी झंडी मिलते ही उस कार के सुरक्षा इंतजामों को फेल करने के वीडियो गैंग के लोग यूट्यूब पर देखते थे. इसके बाद चोरी करने के समान जैसे नकली चाबी, चाबी का मेमोरी कार्ड और के प्रोग्रामर ऐमज़ॉन से खरीदे जाते थे. इस गैंग में अलग-अलग कंपनियों की कार चोरी करने के लिए अलग-अलग एक्सपर्ट हैं.
पुलिस के मुताबिक गैंग के लोग सबसे पहले कार के नीचे से हॉर्न का तार काटते थे. फिर पीछे का ग्लास तोड़कर दरवाजे खोलते थे. इसके बाद उस हिस्से को ड्रिल से बाहर निकालते थे जहां से कार स्टार्ट करने के लिए चाबी लगाई जाती है. इसके बाद की प्रोग्रामर को कार के दिमाग यानी ईसीएम से जोड़ते थे और कार का पूरा सॉफ्टवेयर कॉपी कर लेते थे. इसके बाद यही सॉफ्टवेयर नकली चाबी के मेमोरी कार्ड में डाल देते थे और उसी चाबी से कार स्टार्ट हो जाती थी.
जिस कार में जीपीएस लगा होता है उसकी जानकारी इन्हें एक लेज़र लाइट लगे उपकरण से मिल जाती थी. उसे ये आम तौर पर चोरी नहीं करते थे.
पुलिस के मुताबिक सागिर की गैंग में 50 से ज्यादा एक्सपर्ट लड़के हैं, जो 2005 से चोरी कर रहे हैं. तकनीकी चोरी में माहिर इन लड़कों में कोई भी पढ़ा लिखा नहीं है. पुलिस ने इनके पास से 16 महंगी गाड़ियां बरामद की हैं.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं