- अमोल मजूमदार ने कभी भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में खेल नहीं पाए
- 1993 में बॉम्बे के लिए डेब्यू करते हुए उन्होंने पहली पारी में 260 रन बनाए थे जो एक रिकॉर्ड था
- उन्होंने 11,000 से अधिक रन बनाए और 30 शतक लगाकर घरेलू क्रिकेट में अपनी पहचान बनाई
कभी-कभी, हमारी आंखों में पले सपने, दूसरे के हाथों पूरे होते हैं. वो सपना जो कभी हमारा था, वही सपना दूसरों को देखना सिखाया और केवल सिखाया ही नहीं, साकार भी करवाया. विश्वकप हाथ में पकड़े. ये चक दे इंडिया का ' कबीर सिंह ' नहीं, बल्कि इंडियन वुमन क्रिकेट टीम के पीछे खड़ा अमोल मजूमदार थे. साउथ अफ्रीका का अंतिम विकेट गिरते ही भारतीय शेरनियां जश्न मना रही थी और दूर खड़े अमोल मजूमदार की आंखों की चमक बढ़ती जा रही थी.
मजूमदार भले ही कभी नीली जर्सी नहीं पहन पाए, लेकिन नीली जर्सी वाली शेरनियों को उस खिताब तक पहुंचा दिया, जिसका सपना हर खिलाड़ी देख रहा होता है. अमोल मजूमदार की कहानी क्रिकेट के मैदान तक सीमित नहीं रही है, बल्कि उससे कहीं आगे की है. ये गाथा है, एक ऐसे खिलाड़ी की है, जिसने अपनी अधूरी कहानी को दूसरों के सपनों के साथ पूरा कर दिखाया.

वो साल था, 1988, जब 13 साल का एक लड़का, हैरिस शील्ड टूर्नामेंट में नेट्स के पास अपनी बल्लेबाजी की बारी का इंतजार कर रहा था. उसी मैच में उसके साथी सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने 664 रनों की ऐतिहासिक साझेदारी कर दिखाई.पारी खत्म हो गई, दिन खत्म हो गया, लेकिन अमोल की बारी नहीं आई.
वो इंतजार, जो उस दिन शुरू हुआ, उसकी जिंदगी में शनि की साढ़े साती ' बन गया. हर बार, बारी उनसे कुछ ही कदम दूर रह जाती. 1993 में जब उन्होंने बॉम्बे के लिए डेब्यू किया तो पहले ही मैच में 260 रन ठोक दिए. डेब्यू पारी में दुनिया का सबसे बड़ा स्कोर. सब बोले- ' यह अगला सचिन बनेगा.' लेकिन भारतीय टीम में पहले से ही तेंदुलकर, द्रविड, गांगुली, लक्ष्मण जैसे सितारे थे. मजूमदार की चमक उनके बीच कहीं धुंधली पड़ गई.

फिर दो दशक तक उन्होंने घरेलू क्रिकेट में रनों का अंबार लगा दिया. 11,000 से ज्यादा रन, 30 शतक, इतने के बावजूद वो भारत की नीली जर्सी से दूर रह गए. 2002 में जब सबकुछ खत्म सा लग रहा था, पिता बोले, खेल छोड़ना मत, तेरे अंदर अभी क्रिकेट बाकी है.
पिता की कही ये बात उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई. मजूमदार ने खुद को फिर से गढ़ा और मुंबई को रणजी ट्रॉफी जिताई. उसी दौर में उन्होंने एक नौजवान को फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में मौका दिया, जो आगे चल कर इंडियन क्रिकेट टीम का चमकता सितारा बना -रोहित शर्मा.
हालांकि उन्हें असली पहचान उन्हें तब मिली, जब उन्होंने बल्ला छोड़कर कोचिंग थामी. औरों के लिए वो दरवाजे खोले जो उनके लिए कभी नहीं खुले. और अब, जब भारतीय महिला टीम 2025 में विश्व कप की विजेता बनी है. उस ड्रेसिंग रूम के पीछे का वो चेहरा आज सूरज की तेज सा चमक रहा है. जिस खिलाड़ी की बारी कभी नहीं आई, उसी ने आज पूरी टीम को उनकी बारी तक, उनके लक्ष्य तक पहुंचा दिया.
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