साल 2013 में टीम इंडिया फाइनल में पहुंचकर हार गई थी... (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
साल 1983 के बाद टीम इंडिया ने साल 2011 में वनडे क्रिकेट इतिहास में दूसरी बार वर्ल्ड कप जीता था. हालांकि ऐसा नहीं है कि इससे पहले टीम चैंपियन बनने के करीब नहीं पहुंची थी, लेकिन हर बार वह किसी न किसी कारण से ऐसा नहीं कर पाई थी. साल 2011 में भले ही टीम ने सचिन तेंदुलकर को वर्ल्ड कप का तोहफा दे दिया हो, लेकिन खुद सचिन को एक चीज का मलाल आज भी है. वास्तव में साल 2003 के वर्ल्ड कप में टीम इंडिया फाइनल में तो पहुंच गई थी और वह जीत की दावेदार भी थी, लेकिन फिर कुछ ऐसा हो गया कि उसे मायूस होना पड़ा और सचिन का वर्ल्ड कप जीतने का सपना भी उस अधूरा गया था. अब सचिन तेंदुलकर ने इस पर बात करते हुए कहा है कि अगर एक चीज उस समय शुरू हो जाती, तो इस मैच का परिणाम कुछ और ही होता... या फिर वह मैच आज के दौर में खेला जाता तो भी परिणाम कुछ और होता...
अपनी सचिन : अ बिलियन ड्रीम्स के प्रचार-प्रसार में व्यस्त सचिन तेंदुलकर अपने करियर के बारे में कई बातों का खुलासा कर रहे हैं. मास्टर-ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर का मानना है कि छोटे फॉर्मेट के क्रिकेट ने लगभग सबकुछ बदल दिया है. उनके अनुसार टी-20 क्रिकेट के आने से वनडे में बड़े स्कोर का पीछा करने के मामले में बल्लेबाजों के रवैये में बदलाव आया है और अगर 2003 विश्व कप के दौरान ऐसा होता तो भारत को मदद मिलती.
वास्तव में दक्षिण अफ्रीकी धरती पर खेले गए 2003 के वर्ल्ड कप में भारतीय टीम ने जबर्दस्त खेल दिखाया था. वह फाइनल में पहुंची थी. जोहानिसबर्ग में खेले गए इस खिताबी मैच में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने भारतीय गेंदबाजों की ऐसी धुनाई की थी, जैसी कि आज के दौर में आप टी-20 में देखते हैं. ऑस्ट्रेलिया ने पहले बैटिंग करते हुए दो विकेट पर 359 रन बनाए थे, जिसके जवाब में भारतीय टीम 234 रन पर आउट हो गई थी. टीम इंडिया ने लक्ष्य का पीछा करते समय लगभग पहले ही हार मान ली थी और अंत में 125 रन से हार गई थी. टीम को लगा था कि यह लक्ष्य असंभव है, जबकि टी-20 में 20 ओवर में में ही टीमें 200 से अधिक के लक्ष्य को हासिल कर लेती हैं...
सचिन तेंदुलकर ने पुराने दिन याद करते हुए कहा, ‘मुझे लगता है कि यदि हम वह मैच आज खेलते तो खिलाड़ी अलग तरीके से खेलते.’
मास्टर-ब्लास्टर के कहने आशय यही थी कि टी-20 के आने से बल्लेबाजों ने तेजी से स्कोर करने के तरीके ढूंढ लिए हैं और खुद को उसके अनुरूप ढाल लिया है. उन्हें इस बात का मलाल है कि उनकी टीम के बल्लेबाज उस समय ऐसा नहीं खेल पाए थे.
उन्होंने कहा, ‘हम उस मैच में उत्साह से भरे थे और पहले ही ओवर से काफी उत्साहित थे. यदि उन्हीं खिलाड़ियों को आज मौका मिलता तो खेल के प्रति रवैया दूसरा होता.’
पहले स्कोर 300 से पार हो जाने पर टीमें लक्ष्य को असंभव मान लेती थीं और एक्सपर्ट भी हार लगभग तय बताने लगते थे. उन्होंने कहा, ‘टी-20 क्रिकेट उस समय होता तो खिलाड़ियों का रवैया अलग होता क्योंकि उन दिनों 359 रन बनाना मुश्किल लगता था. आज के दौर में यह आसान लगता है.’
अपनी सचिन : अ बिलियन ड्रीम्स के प्रचार-प्रसार में व्यस्त सचिन तेंदुलकर अपने करियर के बारे में कई बातों का खुलासा कर रहे हैं. मास्टर-ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर का मानना है कि छोटे फॉर्मेट के क्रिकेट ने लगभग सबकुछ बदल दिया है. उनके अनुसार टी-20 क्रिकेट के आने से वनडे में बड़े स्कोर का पीछा करने के मामले में बल्लेबाजों के रवैये में बदलाव आया है और अगर 2003 विश्व कप के दौरान ऐसा होता तो भारत को मदद मिलती.
वास्तव में दक्षिण अफ्रीकी धरती पर खेले गए 2003 के वर्ल्ड कप में भारतीय टीम ने जबर्दस्त खेल दिखाया था. वह फाइनल में पहुंची थी. जोहानिसबर्ग में खेले गए इस खिताबी मैच में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने भारतीय गेंदबाजों की ऐसी धुनाई की थी, जैसी कि आज के दौर में आप टी-20 में देखते हैं. ऑस्ट्रेलिया ने पहले बैटिंग करते हुए दो विकेट पर 359 रन बनाए थे, जिसके जवाब में भारतीय टीम 234 रन पर आउट हो गई थी. टीम इंडिया ने लक्ष्य का पीछा करते समय लगभग पहले ही हार मान ली थी और अंत में 125 रन से हार गई थी. टीम को लगा था कि यह लक्ष्य असंभव है, जबकि टी-20 में 20 ओवर में में ही टीमें 200 से अधिक के लक्ष्य को हासिल कर लेती हैं...
सचिन तेंदुलकर ने पुराने दिन याद करते हुए कहा, ‘मुझे लगता है कि यदि हम वह मैच आज खेलते तो खिलाड़ी अलग तरीके से खेलते.’
मास्टर-ब्लास्टर के कहने आशय यही थी कि टी-20 के आने से बल्लेबाजों ने तेजी से स्कोर करने के तरीके ढूंढ लिए हैं और खुद को उसके अनुरूप ढाल लिया है. उन्हें इस बात का मलाल है कि उनकी टीम के बल्लेबाज उस समय ऐसा नहीं खेल पाए थे.
उन्होंने कहा, ‘हम उस मैच में उत्साह से भरे थे और पहले ही ओवर से काफी उत्साहित थे. यदि उन्हीं खिलाड़ियों को आज मौका मिलता तो खेल के प्रति रवैया दूसरा होता.’
पहले स्कोर 300 से पार हो जाने पर टीमें लक्ष्य को असंभव मान लेती थीं और एक्सपर्ट भी हार लगभग तय बताने लगते थे. उन्होंने कहा, ‘टी-20 क्रिकेट उस समय होता तो खिलाड़ियों का रवैया अलग होता क्योंकि उन दिनों 359 रन बनाना मुश्किल लगता था. आज के दौर में यह आसान लगता है.’
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