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Kranti Goud:'लड़कों के साथ खेल रही है', गरीबी और तानों का सामना कर ऐसे क्रिकेट वर्ल्ड चैंपियन बनीं क्रांति गौर

Kranti Goud's Journey: क्रांति गौर सात भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. पिता पुलिस विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन सालों पहले नौकरी छूटने के बाद परिवार मुश्किलों में आ गया. भाई मज़दूरी करने लगे, कोई बस कंडक्टर बन गया, और घर की हालत तंग होती गई.

Kranti Goud:'लड़कों के साथ खेल रही है', गरीबी और तानों का सामना कर ऐसे क्रिकेट वर्ल्ड चैंपियन बनीं क्रांति गौर
Kranti Goud's Journey: गरीबी की ज़मीन से उठकर छू लिया आसमान
  • बुंदेलखंड के घुवारा गांव की क्रांति गौर ने भारतीय महिला क्रिकेट टीम की वर्ल्ड कप जीत में अहम भूमिका निभाई.
  • क्रांति ने तीन ओवर में केवल सोलह रन देकर भारत की विजय की नींव मजबूत की और टीम का मनोबल बढ़ाया.
  • परिवार आर्थिक तंगी में था लेकिन भाई-बहनों और कोच के समर्थन से क्रांति ने क्रिकेट में सफलता हासिल की.
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Kranti Goud's Journey: बुंदेलखंड के दिल में बसा छोटा सा कस्बे घुवारा रविवार की शाम जश्न में डूब गया. ढोल नगाड़ों की थाप गूंज उठी, आसमान में आतिशबाज़ी हुई और गांव की गलियों में लोग नंगे पैर नाच उठे. वजह थी भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ऐतिहासिक जीत. नवी मुंबई के डी वाय पाटिल स्टेडियम में टीम इंडिया ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर पहली बार वनडे वर्ल्ड कप अपने नाम किया. लेकिन घुवारा के लिए यह जीत सिर्फ एक क्रिकेट ट्रॉफी नहीं थी यह उस बेटी की कहानी थी जिसने गरीबी की ज़मीन से उठकर आसमान छू लिया. क्रांति गौर, जो इस विजेता टीम का हिस्सा रहीं, ने तीन ओवर में सिर्फ 16 रन देकर भारत की जीत की नींव रखी.

सुबह से ही गांव के चौक में लगा बड़ा एलईडी स्क्रीन लोगों से खचाखच भरा था. गांव के किनारे बने छोटे से दो कमरों वाले घर में, क्रांति का परिवार गर्व और खुशी से भर उठा. मां की आंखों में गर्व के आंसू थे, जबकि भाई-बहन मीडिया और पड़ोसियों से घिरे हुए थे सबकी ज़ुबान पर एक ही नाम था, क्रांति गौर.

क्रांति गौर सात भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. पिता पुलिस विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन सालों पहले नौकरी छूटने के बाद परिवार मुश्किलों में आ गया. भाई मज़दूरी करने लगे, कोई बस कंडक्टर बन गया, और घर की हालत तंग होती गई. लेकिन तमाम मुश्किलों के बीच, क्रांति ने बैट और बॉल को अपनी साथी बना लिया. 

उनकी बहन रोशनी सिंह गौर आज भी वह दौर याद करती हैं,"क्रांति घर के सामने ही खेला करती थी. उसे क्रिकेट से बहुत लगाव था और वो अपने भाइयों के साथ मैच देखती थी. उसने नौवीं तक पढ़ाई की, लेकिन मैचों के चलते आगे नहीं पढ़ पाई. पहले ही टूर्नामेंट में उसे 'मैन ऑफ द मैच' मिला और वहीं उसकी मुलाकात एक कोच से हुई. टूर्नामेंट में जाने में दिक्कतें थीं, लेकिन किसी तरह बैट वगैरह जुटा लिया. हमारे भाई, जान-पहचान वाले और कोच सबने मदद की."

रोशनी सिंह गौर ने आगे कहा,"उसे खेलने का शौक था, इसलिए मम्मी-पापा ने ज़्यादा दबाव नहीं डाला. शुरू में गांववाले कहते थे कि 'लड़कों के साथ खेल रही है', लेकिन जब उसने टूर्नामेंट खेलने शुरू किए तो फिर कोई रोक नहीं पाया. मुस्कुराते हुए बोली शुरू में तो वह खूब बल्लेबाज़ी करती थी, खूब चौके-छक्के मारती थी. हमारे बड़े भाई मज़दूर हैं और एक कंडक्टर, इसलिए जैसा भी था, ठीक था. शुरुआत में भाई ने बहुत मदद की, बाद में कोच ने भी बहुत साथ दिया."

रोशनी की बातों में वो ताने, तकलीफ़ें और ताक़त साफ झलकती है जो हर उस लड़की के रास्ते में आती हैं, जो परंपरा तोड़कर कुछ नया करने की हिम्मत दिखाती है. इन्हीं गली-मोहल्लों के टेनिस बॉल मैचों में एक दिन किस्मत ने करवट ली. एक टीम के पास खिलाड़ी कम थे, उन्होंने क्रांति से पूछा 'खेलेगी?' उसने हामी भरी और शानदार प्रदर्शन कर प्लेयर ऑफ द मैच बन गई.

उसी मैदान पर मौजूद थे राजीव बिल्थरे, छतरपुर जिला क्रिकेट संघ के सचिव और कोच. उन्होंने क्रांति की तेज़ गेंदबाज़ी और एथलेटिक मूवमेंट देखकर तुरंत पहचान लिया कि यह लड़की साधारण नहीं है. उन्होंने क्रांति को ट्रेनिंग देना शुरू किया फिटनेस, बॉलिंग एक्शन और बैटिंग तकनीक पर मेहनत की.

राजीव बिल्थरे की कोचिंग में क्रांति ने छतरपुर अकादमी जॉइन की और जल्द ही मध्य प्रदेश सीनियर महिला टीम का हिस्सा बनीं. 2024 में उनके शानदार प्रदर्शन से एमपी ने पहला वनडे घरेलू खिताब अपने नाम किया. क्रांति के भाई लोकपाल गौर एक तरह से उसके पहले स्पॉन्सर, पहले सपोर्टर बने. 

आज वो गर्व से कहते हैं,"वर्ल्ड कप जीतने के बाद पूरा परिवार बहुत खुश है. पहला वर्ल्ड कप आया है और हमारी बहन क्रांति उसका हिस्सा बनी है. उसने रणजी खेली और एमपी के लिए शानदार प्रदर्शन किया. परिवार ने कभी नहीं रोका, कहा'अगर खेलना है तो खेलो.' सबको उस पर भरोसा था और आज उसने वर्ल्ड कप खेलकर दिखा दिया. 2017 में वो यहां लड़कों के साथ खेलती थी. अच्छा प्रदर्शन किया तो छतरपुर अकादमी में शामिल हुई. फिर लगातार आगे बढ़ती गई एमपी के लिए खेली, डब्ल्यूपीएल में चुनी गई और फिर इंडिया टीम तक पहुंच गई."

लोकपाल की आवाज़ में वो संतोष झलकता है जो सिर्फ एक संघर्ष के पार जाने पर मिलता है, जब सपने पसीने और त्याग से हक़ीक़त बनते हैं. क्रांति की उड़ान यहीं नहीं रुकी. घरेलू सफलता के बाद 2025 में उन्हें यूपी वॉरियर्स ने महिला प्रीमियर लीग (WPL) में 10 लाख रुपये में खरीदा. वहां उनके प्रदर्शन ने चयनकर्ताओं का ध्यान खींचा और वो भारतीय वनडे टीम में शामिल हो गईं. 

इंग्लैंड दौरे पर उन्होंने चेस्टर-ले-स्ट्रीट में 6 विकेट लेकर सुर्खियां बटोरीं और अब वर्ल्ड कप की ट्रॉफी के साथ उन्होंने अपने नाम को इतिहास में दर्ज करा लिया है. आज घुवारा के हर घर में एक ही बात हो रही है"हमारी क्रांति ने नाम रोशन कर दिया." उसकी कहानी अब बुंदेलखंड की पहचान बन गई है यह सबूत कि अगर हिम्मत सच्ची हो तो न गरीबी, न परंपरा, कोई भी दीवार बड़ी नहीं होती.

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