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This Article is From Jan 12, 2018

विश्व पुस्तक मेला 2018: युवाओं में बढ़ रहा है जौन एलिया का क्रेज, जानिए क्या है वजह?

Om Nishchal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 12, 2018 09:32 am IST
    • Published On जनवरी 12, 2018 09:32 am IST
    • Last Updated On जनवरी 12, 2018 09:32 am IST
बीती छह तारीख से चल रहे विश्व पुस्तक मेले में इन दिनों शायरी की धूम है. बीते कुछ वर्षों में गजलों के प्रति सभी वर्ग के लोगों का रुझान बढ़ा है. महफिलों व संगीत सभाओं में गजलों की लोकप्रियता जानी पहचानी है. गजल गायकी ने भी इसमें चार चांद लगाया है. इसमें भी हिंदी में अनुवाद होने से गजलों की पहुंच आम पाठक तक बनी है. एक बड़ा पाठक संसार सुलभ हुआ है देवनागरी में आने वाली गजलों को. गजलों के कैसेट और सीडीज से बाजार अटा पड़ा है. इसमें भी सूफिया कलाम सुनने के दीवाने अलग हैं तो रोमांटिक शायरी के आशिक अलग. 

खास तौर पर किशोरावस्‍था की दहलीज पर खड़े युवाओं ने गजलों में अपनी पसंद निर्मित की है. फेसबुक ट्विटर और सोशल साइट्स पर अपने स्‍टेटस से लुभाने के लिए युवा पीढ़ी ऐसी गजलों की ओर खिंच रही है जो उसे दूसरों की नजर में कुछ अलग सी पहचान दिलाए.

ऐसी ही दीवानगी वर्ल्ड बुक फेयर में इन दिनों युवा पीढ़ी में जौन एलिया की गजलों के लिए दिख रही है. हालांकि जौन एलिया की गजलों के एलीमेंट्स परिपक्‍व समझ के अदब प्रेमियों को भी भाते हैं पर टीनेज़र्स जौन एलिया में अपनी भावनाओं की बिंदास अभिव्‍यक्‍ति पाते हैं. पिछले विश्‍व पुस्‍तक मेले में कुमार विश्‍वास के संपादन में एलिया की ग़ज़लों की किताब 'मैं जो हूं जॉन एलिया हूं' आई तो हिंदी में ग़ज़लों के सबसे बड़े प्रकाशक वाणी प्रकाशन में खरीदारों की कतारें लग गयीं. 

लोग उनकी गजलों के दीवाने बन गए. जिसे देखो वही जान एलिया को पढ़ लेना चाहता था. आज भी उनके यहां इस पुस्तक की बेहद मांग है. इधर कुछ और प्रकाशकों ने जौन एलिया में दिलचस्पी दिखाई है. एक नए प्रकाशक एनीबुक ने जॉन एलिया की कई किताबें साया की हैं. गुमान और लेकिन उनकी नई सूची में शुमार हैं. इस मेले में उन्होंने एलिया का संग्रह यानी का प्रकाशन किया है. 

वे संपूर्ण जान एलिया को हिंदी देवनागरी में लाने के लिए प्रतिश्रुत हैं. लेकिन का लिप्‍यंतरण अनुराधा शर्मा, क़ाज़ी असद व पराग अग्रवाल ने मिल कर किया है. इस खूबसूरत कलेक्‍शन में जॉन एलिया की गजलें कुछ नज्‍मे व क़तआत शामिल हैं तो यानी का लिप्यंतरण अजमल सिद्दीकी, क़ाज़ी असद, अनुराधा शर्मा व पल्लव मिश्रा ने किया है. इसमें उनकी ग़ज़लें और नज़्में शामिल हैं. 

हिंदयुग्म प्रकाशन भी ‘जौन एलिया: एक अजब गजब शायर’ नाम से उनकी ग़ज़लों का कलेक्शन ला रहा है जिसे मुंतजिर फिरोजाबादी ने लिप्यंतरित किया है. इसमें उनकी संक्षिप्त जीवनी के साथ उनकी चुनिंदा ग़ज़लें शामिल हैं. आखिर क्‍या बात है इस शायर में कि टीनेजर्स उसके दीवाने बन बैठे हैं. जाने माने शायर शीन काफ निजाम द्वारा लिप्‍यंतरित एवं कुमार विश्‍वास द्वारा संपादित एलिया की गजलों में कुछ कुछ उदासी है कुछ रिश्‍तों की पड़ताल और कुछ सूफियाना लहज़ा भी. खुद जान एलिया कहते हैं :

कभी कभी तो बहुत याद आने लगते हो
कि रुठते हो कभी और मनाने लगते हो
तुम्‍हारी शाइरी क्‍या है भला, भला क्‍या है
तुम अपने दिल की उदासी को गाने लगते हो

कौन हैं जॉन एलिया?
जौन एलिया उत्तर प्रदेश के अमरोहा के रहने वाले थे जिनकी पैदाइश 14 दिसंबर 1931 को हुई. हिंदुस्‍तान के बंटवारे के कुछ बरसों बाद वे 1957 में कराची जा बसे. वहीं उनका विवाह जानी मानी पत्रकार जाहिदा हिना से हुई. इनके अब तक पांच गजल संग्रह प्रकाशित हुए हैं. इसके अलावा गद्य का भी एक कलेक्‍शन फर्नूद भी साया हुआ है. जीवन, विचारधारा और शायरी में उच्‍चादर्श के लिए जीने वाले शायर विचारक जौन एलिया अंत में क्षय रोग के शिकार हुए और उनका निधन 8 नवंबर 2002 को हो गया.

शायरी जैसे गुफ्तगू हो कोई
उनकी शायरी का लबो लहज़ा बोलचाल वाला है. कभी वे रोमांटिक हो जाते हैं कभी एक ऊंची छलांग लगाते हैं अपनी अदा से पास खींच लेते हुए. शायरी और क्‍या है दो दिलों की गुफ्तगू ही तो है जैसे. पेशेनज़र हैं कुछ अशआर :

तू अगर आइयो तो जाइयो मत
और अगर जाइयो तो आइयो मत
जा रहे हो तो जाओ लेकिन अब
याद अपनी मुझे दिलाइयो मत
हैं ये लम्‍हात, जाविदां जानी
अपनी बेचैनियां दबाइयो मत.

दिल की बात हो तो शायर जज्‍़बात की हदों को लांघ जाते हैं. तुम्‍ही ने दर्द दिया है तुम्‍ही दवा देना का अहसास पीछा करता रहता है. अपने पुरलुत्‍फ अंदाज में जॉन एलिया कहते हैं :

कैसा दिल और उसके क्‍या ग़म जी
यूं ही बातें बनाते हैं हम जी
हार दुनिया से मान लें शायद
दिल हमारे में अब नही दम जी
आपसे दिल की बात कैसे कहूं
आप ही तो हैं दिल के मरहम जी.

खुशी के लम्‍हात को भी अपनी शायरी ने एलिया ने बहुधा दर्ज किया है. जैसा मौसम वैसा मिजाज, वैसे अशआर. देखिए कुछ नमूने :

महक उट्ठा है आंगन इस खबर से
वो खुशबू लौट आई है सफ़र से
मिरे मानिंद गुज़रा कर मिरी जां
कभी तो खु़द भी अपनी रहगुज़र से

एलिया के यहां जुदाई के अहसासात बहुत हैं. किसी शायर ने कहा है ‘हम थे उदासियां थीं खामोश गुलमोहर था. हम दर्द भी न गाते तो क्‍या बयान करते’ एलिया की हालत वैसी ही है. किसी गमगुशार शायर की मानिंद. कुछ अशआर देखें :

जिक्र भी उससे क्‍या भला मेरा
उस से रिश्‍ता ही क्‍या रहा मेरा
अब तो कुछ भी नहीं हूं मैं वैसे
कभी वो भी था मुब्‍तला मेरा
वो भी मंजिल तलक पहुंच जाता
उसने ढूढा नही पता मेरा

जौन एलिया का अंदाजेबयां दूसरों से काफी जुदा है. उनके काफिये रदीफ ऐसे जैसे किसी उस्‍ताद दर्जी ने कपड़े नाप से सिले हों. एक एक सिलन, एक एक काज़ दुरुस्‍त. बतौर उदाहरण कुछ अशआर :

काम की बात मैंने की ही नहीं
ये मिरा तौरे जिन्‍दगी ही नहीं
मुझ में अब मेरा जी नही लगता
और सितम ये कि मेरा जी ही नहीं
वो जो रहती थी दिल मुहल्‍ले में
फिर वो लड़की मुझे मिली ही नहीं
हाय वो शौक जो नहीं था कभी
हाय वो जिन्‍दगी जो थी ही नहीं.
तुमने हमारे दिल में बहुत दिन सफर किया

'मैं तो खुदा के साथ हूं, तुम किसके साथ हो' पूछने वाले जॉन एलिया लेकिन और यानी की अपनी गजलों में अपने कुछ जुदा तेवर के साथ सामने आते हैं. कुछ मुश्किल काफिये रदीफ यहां उन्होंने आजमाए हैं तो कुछ बोलचाल का लहजा भी आजमाया है. बतौर सनद कुछ अशआर:

कुछ कहूं कुछ सूनूं, जरा ठहरो
अभी रिन्दों में हूं, जरा ठहरो.
मेरा दरवाज़ा तोड़ने वालो
मैं कहीं छुप रहूं, जरा ठहरो.

मैं अपने आप में न मिला इसका ग़म नहीं
ग़म तो ये है कि तुम भी बहुत कम मिले तुम्हें.
तुमने हमारे दिल में बहुत दिन सफ़र किया
शर्मिंदा हैं कि उसमें बहुत ख़म मिले तुम्हें.

यूं हो कि और ही कोई हव्वा मिले मुझे
हो यूं कि और ही कोई आदम मिले तुम्हें.
एक और नायाब गजल के चंद अशआर
जब्त करके हंसी को भूल गया

मैं तो उस ज़ख्म को ही भूल गया
सब दलीलें तो मुझको याद रहीं
बहस क्या थी उसी को भूल गया
सब बुरे मुझको याद रहते हैं

जो भला था उसी को भूल गया
उनसे वादा तो कर लिया लेकिन
अपनी कम फुरसती को भूल गया
बस्तियो अब तो रास्ता दे दो
अब तो मैं उस गली को भूल गया

एक और ग़ज़ल के चंद अशआर -

कू-ऐ-ख्वाहिश में ख़म ब ख़म ठहरूं
दम न लूं और दम ब दम ठहरूं.
मैं हूं एक ऐसी राह में कि जहां
न चलूं और बहुत ही कम ठहरूं.

सारी दुनिया के ग़म है ग़म मेरे
मैं भी आख़िर किसी का ग़म ठहरूँ.

आधुनिक शायरी में जॉन एलिया उस खुशगवार हवा के झोंके की तरह हैं जिसका इंतजार हर किसी को रहता है. उन्होंने इंसानियत की नींव मजबूत करने के मकसद से शायरी को अपना मिशन जैसा बनाया और ताजिंदगी उसके लिए समर्पित रहे. यह अच्छी बात है कि उर्दू शायरी के क्लासिक शायरों को धीरे धीरे देवनागरी में तर्जुमा कर लाया जा रहा है. 

इससे निश्चय ही अदब की बुनियाद और मजबूत होगी तथा शायरी की पहुंच उस हर शख्स तक होगी जो उर्दू नहीं जानता किन्तु उर्दू शायरी से बेपनाह मुहब्बत करता है. मैं यानी का एक पन्ना पलटता हूं तो उनके ये अशआर उदास कर देते हैं..

रूह प्यासी कहां से आती है
ये उदासी कहां से आती है
तू है पहलू में फिर तेरी खुशबू
होके बासी कहां से आती है


डॉ ओम निश्चल एक सुपरिचित कवि, गीतकार एवं आलोचक हैं

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