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This Article is From Apr 23, 2015

मनीष कुमार की कलम से : केजरीवाल की रैली और मोदी की पटना रैली में तुलना करना बेकार है

Manish Kumar
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  • Updated:
    अप्रैल 24, 2015 00:55 am IST
    • Published On अप्रैल 23, 2015 20:13 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 24, 2015 00:55 am IST
दिल्ली के जंतर मंतर में आम आदमी पार्टी के बुधवार की रैली पर बहस पूरे देश में जारी है। ये रैली राजस्थान के दौसा के एक किसान गजेन्द्र सिंह के दिन दहाड़े सार्वजनिक रूप से की गई आत्महत्या के कारण चर्चा में है।

एक साथ कई सवाल किये जा रहे हैं। इसमें सबसे प्रमुख है जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अपने मंत्रिमंडल के सभी मंत्रियों के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ भाषण दे रहे थे, किसी ने कार्यक्रम रोक कर गजेन्द्र को बचाने का प्रयास नहीं किया।

लोगों का कहना है कि अगर भाषणबाजी रोककर केजरीवाल और उनके समर्थक गजेन्द्र को बचाने का प्रयास करते तो शयद उनकी जान बच जाती। लेकिन उनलोगों को शायद नहीं मालूम कि किसी ने पूरे प्रकरण को गंभीरता से नहीं लिया। और अब 'आप' समर्थक एक सवाल कर रहे हैं कि अगर केजरीवाल या विश्‍वास भाषण देते रह गए तो पटना के गांधी मैदान में जब बम ब्लास्ट हो रहे थे तब प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार और अब प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने भाषण क्यों दिया और वो आखिर कितने लोगों की जान बचाने के लिए मंच से कूदे।

अपने देश में हर चीज का तिल का ताड़ करने की लोगों की आदत होती है। और जब किसी की आलोचना करेंगे तो लोग बचाव में आपके कामों में मीन मेख निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। ये काम कांग्रेस भी करती है, बीजेपी थोड़ी आक्रामक होकर ज्यादा करती है और 'आप' भी पीछे नहीं।

लेकिन नरेंद्र मोदी का भाषण और अरविन्द केजरीवाल का भाषण दोनों में अंतर है। कम से कम मोदी की भाषण देने के लिए आलोचना नहीं की जानी चाहिए। पटना में जो बम ब्लास्ट हो रहे थे वो एक आतंकी हमला था, मोदी को निशाने पर रखा गया था। जो लाखों लोग उस रैली में भाग लेने गए थे उन्हें निशाना बनाया गया था। अगर मोदी ने या बीजेपी ने उस कार्यक्रम को रोक दिया होता तो वो आंतक के सामने घुटने टेकने के समान होता। बीजेपी और मोदी ने कार्यक्रम को चालू रखकर एक तरह से संदेश दिया कि कम से कम बम ब्लास्ट से आप राजनीतिक दल के कार्यक्रम को रोक नहीं सकते।

दूसरी जो सबसे महत्वपूर्ण बात रही कि मोदी ने पटना के गांधी मैदान में जो भाषण दिया उसमें बार-बार अपील की कि आप घर शांति से जाएं। अगर उन्होंने एक लाइन ये कह दिया होता कि अंतकियों को मजा चखाना है, तब उसका क्या परिणाम पटना और पूरे देश में उस दिन होता, उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।

मोदी के भाषण के दौरान भी बम ब्लास्ट हुए लेकिन वो रुके नहीं, बल्कि उसको आधार बनाकर उन्होंने राजनीतिक मैसेज देने की भरपूर कोशिश की और आज मोदी के राजनीतिक आलोचक भी मानते हैं कि अगर पटना का बम ब्लास्ट नहीं होता तो शयद बीजेपी को इतना प्रचंड बहुमत नहीं मिलता।

नरेंद्र मोदी ने उस दिन कम से कम तनाव न बढ़े उसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। वो घायलों को देखने अस्पताल नहीं गए, पटना एयरपोर्ट पर जाकर पार्टी के हर नेता के साथ बैठकर ये सुनिश्चित किया था कि सब लोग सकुशल अपने-अपने गृह जिलों के लिए वापस चले जाएं। बाद में मृतकों के परिवार वालों से मिलने कुछ दिनों के बाद पहुंचे। इसलिए दिल्ली में एक किसान द्वारा फसल की बर्बादी से तंग आकर आत्महत्या करना और आंतक की घटना के बाद भाषण देना, दोनों की तुलना करना बेकार है।

हां, दिल्ली और पटना दोनों में एक समानता है, वो है दोनों शहरों और राज्य की पुलिस का मूकदर्शक बने रहना। पटना में बम ब्लास्ट हुए, निश्चित रूप से पुलिस की नाकामी का एक उदाहरण है। गांधी मैदान में रैली के एक रात पहले नीतीश कुमार ने राज्य के पुलिस महानिदेशक अभयानंद को पूरे गांधी मैदान को सैनिटाइज करने का निर्देश दिया था। लेकिन उस रात आईपीएस मेस में दिवाली पार्टी चल रही थी और बिहार पुलिस के अला अधिकारी और उनके नीचे के अधिकारियों में एक सामान्य धारणा थी कि अगर मोदी की रैली की सुरक्षा को लेकर उन्होंने ज्यादा गंभीरता दिखाई तो शयद राजनैतिक बॉस मतलब नीतीश कुमार नाराज हो जाएंगे। इसलिए पुलिस ने कहीं कोई व्‍यवस्‍था नहीं की थी जिसके कारण एक नहीं कई बम गांधी मैदान में मिले और कई ब्लास्ट हुए जिसमें सात लोगों की जान गई।

दिल्ली में भी यही कुछ हो रहा है। 'आप' की सभा हो या रैली, दिल्ली पुलिस उन्हें गंभीरता से नहीं लेती। उन्हें मालूम है कि केजरीवाल उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते। इसलिए जो इंतजाम होने चाहिए वो नहीं करते और बाद में एक कागज मीडिया को लीक कर देते हैं कि कैसे 'आप' के आयोजकों ने दिल्ली पुलिस की नहीं सुनी।

पटना हो या दिल्ली, सबसे बड़े दोषी वो पुलिसवाले हैं जो अपने राजनतिक आकाओं को नाराज न करने के लिए अपने काम से भागते हैं। और नतीजा यही होता है कि पुलिस के सामने दिन दहाड़े आतंक की घटना होती है। गजेन्द्र जैसे किसान उनकी आंखों के सामने आत्महत्या करते हैं। याद रखिये पुलिस का काम इस देश और जनता की जान माल की हिफाजत करना है और जब तक दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कर्रवाई नहीं होती और जांच की आड़ में उन्हें बचाने की कोशिश होती रहेगी तब तक याद रखिये, हमारे देश में पुलिस की नाक के सामने ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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