ऑटोमोबिल और टेक्सटाइल में रोज़गार पैदा क्यों नहीं कर पा रहा है भारत?

एक तर्क से लग सकता है कि मारुति के उत्पाद अब प्रतिस्पर्धा में नहीं टिक पा रहे हैं. लोग नहीं ख़रीद रहे हैं. इस तरह की दलील दी जाती है लेकिन महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा और होंडा की कारों की बिक्री भी घट रही है.

ऑटोमोबिल और टेक्सटाइल में रोज़गार पैदा क्यों नहीं कर पा रहा है भारत?

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

सात साल में पहली बार मारुति की बिक्री 22 प्रतिशत कम हो गई है. लगातार तीसरे महीने यह गिरावट हुई है. मारुति सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी है. मारुति के अलावा शीर्ष की कई कार कंपनियों की हालत ख़राब है. ऑटोमोबिल सेक्टर अभी भी रोज़गार का सेक्टर माना जाता है. ज़ाहिर है नौकरियों पर असर पड़ रहा होगा. नौकरियां जा रही होंगी.

एक तर्क से लग सकता है कि मारुति के उत्पाद अब प्रतिस्पर्धा में नहीं टिक पा रहे हैं. लोग नहीं ख़रीद रहे हैं. इस तरह की दलील दी जाती है लेकिन महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा और होंडा की कारों की बिक्री भी घट रही है. इन चारों कंपनियों की कुल बिक्री में पिछले साल की तुलना में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है. क्या लोगों की आर्थिक क्षमता घट रही है?

इसके कारण कितने लोगों की नौकरियां जा रही होंगी, हमें कोई अंदाज़ा नहीं है और न ही बिजनेस रिपोर्ट में यह बात आ रही है. ऑटोमोबिल सेक्टर में वैसे ही रोबोटिक ऑटोमेशन बढ़ रहा है. अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट बेहतर होता और कारों की बिक्री कम होती तो कितना अच्छा होता लेकिन फिलहाल कोई विकल्प नहीं है. तब भी कारों की बिक्री कम हो रही है. हम जिस अर्थव्यवस्था में रहते हैं उसमें ऐसी स्थिति तो आती ही रहती है. जेट एयरवेज़ के हज़ारों कर्मचारियों की नौकरी पर संकट की ख़बरें आई थीं मगर अब आनी बंद हो गई हैं. एक कर्मचारी ने आत्महत्या भी की थी.

अच्छी बात है कि 2019 के चुनाव में नौकरी के मुद्दे को समाप्त कर दिया. इससे सरकार को बड़ा संबल मिला है. उसका एक सरदर्द समाप्त हुआ है. नौकरी नहीं देना और नौकरी का चले जाना भले ही राजनीतिक मुद्दा न रहा हो मगर जीडीपी की गिरावट से सरकार को अच्छा नहीं लगेगा. क्योंकि वह अक्सर जी डी पी के आंकड़े को मोर मुकुट की तरह चमका कर रखना चाहती है. ऑटोमोबिल सेक्टर में आई गिरावट उसके लिए इस वजह से चिन्ता का कारण बन सकती है.

कुछ दिन पहले बिजनेस स्टैंडर्ड में किसी का संपादकीय लेख छपा था कि टेक्सटाइल सेक्टर में सुधार आने लगा है. रफ्तार धीमी है और दिशा उसी तरफ है. आज छपी शुभायन चक्रवर्ती की रिपोर्ट कुछ और ही कहती है. टेक्सटाइल सेक्टर भी रोज़गार देने वाला सेक्टर माना जाता है. सरकार ने कई तरह के सुधार किए थे ताकि टेक्सटाइल सेक्टर रफ्तार पकड़ सके. पिछले तीन साल में टेक्सटाइल सेक्टर का निर्यात घटा है और आयात बढ़ा है. सरकार ने इस सेक्टर में जान डालने के लिए 6000 करोड़ का पैकेज दिया था और लक्ष्य रखा था कि 1 करोड़ रोज़गार पैदा करेंगे. इस सेक्टर में रोज़गार का पता लगाने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं है मगर जो आम राय है वह यही है कि रोज़गार पैदा नहीं हो रहा है. रोज़गार देने वाले दो बड़े सेक्टर टेक्सटाइल और ऑटोमोबिल की हालत ठीक नहीं है.

लेकिन वहीं यह भी ख़बर है कि लगातार तीसरे महीने जी एसटी संग्रह एक लाख करोड़ से अधिक रहा है. कहा जा रहा है कि जीएसटी सिस्टम में अब स्थिरता आ रही है. लोग इसे समझने लगे हैं और बेहतर इस्तमाल करने लगे हैं. ये और बात है कि 2019-20 के बजट में जो लक्ष्य रखा गया था उसे हासिल नहीं किया जा सका है. ज़्यादा कमी नहीं है. मात्र 9 प्रतिशत कम है. अब इतना तो ऊपर नीचे होता ही रहता होगा.

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