सभी धर्मों और जातियों के आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण को लेकर संसदीय राजनीति में कोई खास विरोध नहीं हुआ. अब आते हैं विरोध के उन पहलुओं पर जो रोज़ देश के किसी न किसी हिस्से में हो रहा होता है मगर उनके लिए कोई भी दल सामने नहीं आता है. सभी प्रकार की सरकारों से आज तक ये न हुआ कि एक पारदर्शी और ईमानदार परीक्षा व्यवस्था दे सकें जिस पर सबका भरोसा हो. बुनियादी समस्या का समाधान छोड़ कर हर समय एक बड़े और आसान मुद्दे की तलाश ने लाखों की संख्या में नौजवानों को तोड़ दिया है. आसान इसलिए कहा कि आरक्षण को लेकर लोकसभा या राज्य सभा में कुछ खास विरोध नहीं हुआ. आरक्षण के विरोधियों को आरक्षण मिला है यह अच्छी बात है लेकिन आरक्षण का लाभ मिले इसके लिए सिस्टम कब ठीक होगा. यह सवाल क्यों नहीं प्रमुख बन सका कि नौकरी में बहाली की प्रकिया भ्रष्ट क्यों है. ये कब ठीक होगी.
20 मार्च 2017 को एआईडीएमके के सांसद एलूमलाई वेल्लाईगौण्डर ने प्रकाश जावड़ेकर से सवाल किया था कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी में छात्र और शिक्षकों के अनुपात को बेहतर करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, खाली पदों को भरने के लिए क्या किये जा रहे हैं. जिसके जवाब में मानव संसाधन मंत्री ने कहा था कि यह लगातार चलने वाली नीति है. हम एक साल के भीतर दिल्ली विश्विद्यालय में पढ़ा रहे सभी 9000 एडहॉक शिक्षकों को परमानेंट कर देंगे. बल्कि यह भी कहा कि हमने इस समस्या का समाधान कर लिया है.
प्रकाश जावड़ेकर ही बता सकते हैं कि सारे 9000 पद भरे गए हैं या नहीं. भरे गए होते तो गेस्ट टीचर और एडहॉक शिक्षक धरना नहीं देते. इनके लिए धरना देना भी आसान नहीं है. वेतन कट जाता है. प्रिंसिपल धमका देते हैं नौकरी का डर दिखाकर. तब भी ये अपना क्लास लेने के बाद इस धरने में शामिल हो रहे हैं. प्रकाश झावड़ेकर ने साफ साफ कहा था कि कि पार्ट टाइम रोज़गार केंदीय विश्वविद्यालयों की नीति नहीं हैं. मार्च 2017 का बयान है. अब आपको 11 अक्तूबर 2017 का बयान दिखात हैं जो हमारे चैनल पर चला था. 6 महीने बीत जाने के बाद भी मंत्री जी वही बात कर रहे हैं कि 9000 पद भर दिए जाएंगे. 6 महीने बाद भी प्रकाश झावड़ेकर एक साल की बात कर रहे हैं.
मार्च 2017 में प्रकाश झावड़ेकर ने यह भी कहा था कि एक साल के भीतर केंदीय विद्यालयों में दस हज़ार वेकेंसी भरने की भी बात कही थी जिसके बारे में मुझे अपडेट नहीं है कि वो दस हज़ार पद एक साल के भीतर भरे गए या नहीं. प्रकाश झावड़ेकर ने उस वक्त सिर्फ दिल्ली विश्वविद्यालय की ही बात नहीं कही थी बल्कि कहा था कि सभी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में खाली पद परमानेंट कर दिए जाएंगे. सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 20 प्रतिशत पद खाली थे. प्रतिशत में यह संख्या छोटी लगती है लेकिन जब हज़ार में देखेंगे तो कई हज़ार हो जाएगी. मंत्री जी ने कहा था कि इनका हर 15 दिन में रिव्यू होगा और वेबसाइट पर जानकारी दी जाएगी. ऐसी कोई जानकारी यूजीसी की वेबसाइट पर नहीं मिलती है.
जनवरी 2019 आ गई. आरक्षण को कामयाबी बताई जा रही है, नौकरियों की बहाली की प्रक्रिया को ईमानदार और चुस्त बनाए बग़ैर इसका लाभ किसी को नहीं मिलेगा और किसी को नहीं मिल रहा है. किसी भी पार्टी की सरकार को. मध्य प्रदेश से रोज़ सैंकड़ों लड़के लड़कियां मेसेज करते हैं कि 25 साल बाद मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ने असिस्टेंट प्रोफेसर की परीक्षा ली. हाईकोर्ट का आर्डर था कि 2018-19 का सेशन शुरू होने से पहले इनकी नियुक्ति कर दी जाए. इसके तहत परीक्षा हुई और अगस्त 2018 में रिज़ल्ट आ गया. इन सबका वेरिफिकेशन भी हो गया है मगर पोस्टिंग नहीं हुई है. सोचिए क्या होता है कालेजों में शिक्षक नहीं हैं. तो आपके बच्चे बर्बाद होते होंगे. अब फिर से लौटते हैं दिल्ली.
मार्च 2017 से जनवरी 2019 आ गई. परमानेंट नौकरी का पता नहीं. कई राजनीतिक दल, तमाम शिक्षक संगठनों के समर्थन के बाद भी इनकी समस्या का हल नहीं है. इनकी मांग है कि 10 साल 15 साल से पढ़ाने वाले एडहाक शिक्षकों को परमानेंट करने के लिए एक अध्यादेश लाया जाए. क्योंकि ये योग्यता की शर्तों को पूरा करते हुए दस दस साल से पढ़ा रहे हैं. यही नहीं हर चार महीने में विश्वविद्लाय इन एडहॉक शिक्षकों को सर्टिफिकेट देता है कि आपकी सेवा संतोषजनक है. जो शिक्षक दस साल से पढ़ा रहे हैं उनके पास कालेज और यूनिवर्सिटी से 30 सर्टिफिकेट जमा हो चुके हैं कि आप अच्छा पढ़ाते हैं. इसलिए आपकी सेवाओं का विस्तार किया जाता है. 5 मार्च 2018 को यूजीसी ने एक सर्कुलर निकाला कि कालेज को एक यूनिट नहीं मानेंगे, विभाग को यूनिट मानेंगे और रोस्टर बनाएंगे यानी शिक्षकों की सेवा और ज़रूरतें तय करेंगे. इस नीति के कारण हज़ारों एडहॉक शिक्षक सड़क पर आ जाते, इससे अनुसूचित जाति और जनजाति के शिक्षकों का संवैधानिक अधिकार भी छिन जाता. तो धरना दे रहे हैं इन शिक्षकों में जनरल भी हैं, अनुसूचित जाति, जनजाति, ईसाई मुसलमान सिख सब हैं जिनके लिए सरकार आरक्षण लाने के लिए इतनी मेहनत कर रही है. बहाली में भी मेहनत होगी तभी तो आरक्षण का लाभ मिलेगा.
जब यूजीसी के सर्कुलर का विरोध हुआ तो 19 जुलाई 2018 को देश भर की यूनिवर्सिटी में नौकरियां बंद कर दी गईं. सरकार ने कहा कि हम अध्यादेश लाएंगे. 8 से 9 महीने होंगे अध्यादेश नहीं आया. भारत की एक बड़ी यूनिवर्सिटी का ये हाल है. हमारे सहयोगी सौरव शुक्ल ने इन सभी शिक्षकों से बात की है. मौके पर जाकर रिपोर्टिंग की है. आप हैरान हो जाएंगे कि महिला शिक्षिकाएं कई कई साल से पढ़ा रही हैं मगर उन्हें इस दिल्ली में मातृत्व अवकाश का लाभ नहीं मिलता है.
दिल्ली विश्वविद्लाय में करीब 2000 पदों के लिए 3 लाख 80 हज़ार ने फार्म भरे. वेकेंसी तो 4500 की आनी थी मगर आई 2000 की. शिक्षकों के फार्म भरने और दस्तावेज़ों के फोटो कापी कराने में 700-800 रुपये खर्च हो गए. वो भी एक कॉलेज के. कई कालेजों के लिए भरने पर एक शिक्षक के कई कई हज़ार रुपये खर्च हो गए. उनकी जेब से यूनिवर्सिटी और कालेज को 15-20 करोड़ मिल गए. 15-16 महीने हो गए मगर बहाली का पता नहीं है. कुछ दिनों में ये फार्म लैप्स हो जाएंगे और पैसा बर्बाद. 2007 से लेकर अब तक कई बार फार्म निकला है. फीस देकर भरा गया है और फार्म लैप्स हो जाता है. दिल्ली हाई कोर्ट ने ऑर्डर किया था कि 31 जुलाई 2017 तक 4500 पद भर दिए जाएं. मगर विज्ञापन ही निकला 2000 पदों का. उसमें से भी दो साल में तीन पोस्ट भरे जाते हैं. ये दिल्ली विश्वविद्लाय का हाल है. एडहाक शिक्षकों ने बताया कि तीन विभागों में इंटरव्यू हुआ तो 18 साल से पढ़ा रहे शिक्षक को बाहर कर दिया गया.
दिल्ली में ही यूपीएससी के परीक्षारथी नौजवान दस दिनों से मुखजी नगर में भूख हड़ताल पर बैठे हैं. 9 जनवरी को संसद के बाहर प्रदर्शन करने लगे. यूपीएससी ने परीक्षा प्रणाली में बदलाव किया तो भाषाई छात्र बाहर हो गए. एक जानकारी भी आई है कि यूपीएससी में हिन्दी भाषी उम्मीदवारों की संख्या लगातार घटी है. यह जानकारी इन छात्रों की बात की पुष्टि करती है. इसलिए ये अपने लिए एक और चांस की मांग कर रहे हैं. जब नेता आरक्षण के सवाल को लेकर वाहवाही लूट रहे थे तब ये लड़के दिल्ली में ही बल्कि संसद में अपने सवालों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे. इनमें जनरल भी होंगे, एस सी एसटी मुसलमान और ईसाई भी होंगे. सिख भी होंगे. प्रदर्शन करते हुए पुलिस ने इन्हें धर लिया और मंदिर मार्ग थाने में बिठा भी दिया.
दिल्ली सहित कई राज्यों में नौजवान परीक्षा व्यवस्था से किस तरह परेशान हैं. उसी दिन धरना प्रदर्शन में लगे हैं जिस दिन उनके लिए आरक्षण पर बहस हो रही है. कानून आ रहा है. शाह फैसल कश्मीर के आईएएस ने अपनी नौकरी छोड़ दी है. शाह ने नौकरी कश्मीर के लिए छोड़ी है. उनका कहना है कि कश्मीर की समस्ता के प्रति केंद सरकार गंभीर और संवेदनशील नहीं है इसलिए वे अपनी नौकरी से इस्तीफा देते हैं. शाह फैसल ने 2010 के बैच में टॉप किया था. शाह के चुनाव लड़ने की भी चर्चा हो रही है.