कल जब एक कहानी चल कर आई, अपनी सुना कर मुझे अपना किरदार बना ले गई

अनिता किसी को अकेला नहीं देख सकती. उसे पता है अकेला होने का मतलब. तीस साल बाद तक याद है. इसलिए वह शाहीन बाग़ चली आई. उन औरतों को बताने कि बस अकेला मत समझना. साथ में उसकी बड़ी बहन भी थी.

कल जब एक कहानी चल कर आई, अपनी सुना कर मुझे अपना किरदार बना ले गई

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

“My self Anita from USA. Yes I am NRI and like to Meet you if you have time.” कुछ दिनों बाद अनिता अपनी बहन आरती के साथ सामने खड़ी थीं. साथ में बड़ी बहन आरती का नौजवान बेटा भी. इसके पहले कि कोई बात शुरू होती बेटे ने अपने मोबाइल फोन से एक तस्वीर दिखा दी. कहानी वहां से शुरू हो गई जो आप तक पहुंच रही है. बस किरदार का नाम बदला है. दफ्तर के मेरे छोटे से कमरे में हर दूसरे दिन कोई कहानी चल कर आती है.

कोई तीस साल पहले की बात है. अपने परिवार की ग़रीबी से तंग आकर एक नौजवान फ़ैसला करता है कि अमरीका जाएगा. उसके राज्य के बाकी लोगों की तरह वहां जाकर पैसे कमाएगा. वीज़ा के लिए मुंबई जाता है औऱ जब तक वीज़ा नहीं मिलता वो मुंबई में ही रहता है. पहले वह कनाडा पहुंचता है. फिर पैदल चल कर सीमा पार करता हुआ अमरीका आ जाता है.

कोई तीस साल पहले उसी राज्य की अनिता की शादी न्यूयार्क के अमीर परिवार से होती है. वो पहली बार रेल में सफ़र करती है. हवाई जहाज़ में सफ़र करती है. अपने राज्य से बाहर जहाज़ पकड़ने के लिए मुंबई आती है औऱ पहली बार दूसरे देश में सफ़र करती है. “जब इतना कर लिया तो मेरे अंदर हिम्मत आ गई अब मैं सब संभाल लूंगी.''

मोहन कनाडा से न्यूयॉर्क आता है. उसके पास कागज़ात नहीं हैं. ऐसे लोगों को हम सिर्फ अवैध कैटगरी से जानते हैं मगर ज़िंदगी हमेशा लीगल होती है. इस धरती पर कोई अवैध नहीं है. अपने राज्य के बाकी लोगों की तरह एक दुकान में काम करने लगता है. धीरे-धीरे नाम बदल कर सरकारी सुविधाओं पर जीने लगता है.

अनिता की शादी में परेशानी शुरू होती है. जिसके साथ शादी हुई थी वह न दोस्त बन सका न पति ही. एक अनजान शहर में उस लड़की का कोई रिश्तेदार भी नहीं है. दोनों के बीच तलाक हो जाता है. अत्यंत साधारण परिवार की बेटी अमीर घर की दहलीज़ से बाहर हो जाती है. अनिता खुद निकल आती है. एक अनजान शहर में वह शादी की सुरक्षा से बाहर चली आई. शादी ठुकरा दी. भारत लौट आती है.

बड़ी बहन को जब पता चलता है तो उसके होश उड़ जाते हैं. आरती उसे अपने पति के दोस्त की बेटी के पास वापस उसी शहर में भेज देती है. बस ये कहते हुए कि यहां इस समाज में तुम्हारी ज़िंदगी कभी नॉर्मल नहीं होगी. लोग तुम्हें जीने नहीं देंगे. सबसे पहले घर वाले ही तुम्हें नहीं समझेंगे. अनिता वापस न्यूयॉर्क जाती है और अपनी बहन के पति के दोस्त की बेटी के एक कमरे में रहने लगती है. छोटा सा कमरा है. दो बच्चे भी हैं वहां. गुस्से में अपनी बड़ी बहन से दो साल तक बात नहीं करती है.

“मेरा सोचिए. मुझे अपने राज्य में ही रहना था. अपने लोगों के बीच. लेकिन इसने देश छुड़वा दिया.''

बजट के हंगामे के बीच मेरे कमरे में कहानी की रील चलती जा रही है. फ्लैश बैक में. रील बिल्कुल ताज़ा है. घिसीपिटी नहीं है.

न्यूयार्क के उसी छोटे से कमरे में मोहन का आना जाना होता है. मोहन अपने लिए काग़ज़ात बनाने में लगा रहता है. अपनी पढ़ाई के कारण अनिता मदद करने लगती है. एक दिन मोहन से कह देती है, तू मुझसे शादी करेगा. मोहन कहता है कि “मैं तो सुंदर भी नहीं हूं. मुझे अपने भाइयों और बहनों को बड़ा करना है. उनकी शादी करनी है. मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है.''

अनिता को मोहन पसंद आ गया था. उसकी बातें, उसका अकेले का संघर्ष, अवैध होते हुए भी काम की ईमानदारी, ख़ुदमुख़्तारी. कमा कर खाना. अनिता शादी के लिए जाति तोड़ देती है.

जब दोनों शादी करने पहुंचते हैं तो मोहन कहता है कि ये मेरा नाम नहीं है. मैं अपना नाम वापस चाहता हूं. यहां के सरकारी दस्तावेज़ में मेरा नाम कुछ और है. मैं तुम्हारे साथ अपने नाम के साथ जीना चाहता हूं. राकेश नाम से शादी होती है. इमिग्रेशन दफ्तर में राकेश सच बोल देता है. सच बोलने में उसका साथ अनिता देती है. इमिग्रेशन अफसर उसकी ईमानदारी को स्वीकार करता है. असली नाम से रहने की इजाज़त दे देता है.

दोनों न्यूयार्क की सड़कों पर अपनी ज़िंदगी बनाने लगते हैं. अनिता ने कहा कि मेरे पास आज भी पैसा नहीं है. न ही मेरा कोई अकाउंट है. पैसे जमा करती हूं और भारत आ जाती हूं. मुझे भारत से बहुत प्यार है. जब मैं प्रेगनेंट थी तो हमने फैसला किया कि हमारे बच्चे भारत में पैदा होंगे तो उनमें अपने देश की मिट्टी की खुशबू होगी. अनिता दो-दो बार भारत आती है. उसके दोनों बच्चे भारत में पैदा होते हैं. इस वक्त नौजवान हैं. अपनी ज़िंदगी का रास्ता तलाश रहे हैं.

राकेश तीस साल तक भारत नहीं आ पाया. वैध काग़ज़ नहीं होने के कारण वह अनजान मुल्क में पैसे जोड़ने लग गया. पीछे अपने राज्य में भाइयों और बहनों को सेटल करता है. तीस साल तक अनिता के परिवार वाले ने देखा नहीं कि राकेश कैसा है. जब वह भारत आया तो पूरा गांव ही बदल चुका था. बहुत कम लोग बचे थे दामाद को देखने के लिए.

राकेश को पता है नई दुनिया का मतलब. इसलिए अपनी छुट्टी के दिनों में सांप्रदायिकता से अकेला लड़ता रहता है. कहीं पर भी पोस्टर लेकर पहुंच जाता है. अनिता का यहीं पर बस गला भर आया. बोलीं कि अपने दो-दो बच्चों को पैदा करने भारत आई. इतना प्यार है मुझे भारत से. और देखो व्हाट्सएप में लोग क्या बोलते हैं. फेसबुक पर लिखती हूं तो गालियां निकालते हैं. सिर्फ इसलिए कि उनकी बात नहीं बोलती. ग़लत को ग़लत बोल देती हूं.

राकेश के मिलने से अनिता को एक तजुर्बा हुआ. यही कि दुनिया में सारे लोग बुरे नहीं होते हैं. कोई राकेश के जैसा अच्छा भी होता है. अनिता आज भी राकेश जैसों की तलाश को जीवन का मकसद समझती है. जब उसने सुना कि कश्मीर में क्या हो रहा है तो वह पैसे जोड़ कर वहां चली गई. उन्हें नज़दीक से जानने और समझने. और कहने कि कोई साथ नहीं है तो वह साथ है. बस अकेला न समझे.

अनिता किसी को अकेला नहीं देख सकती. उसे पता है अकेला होने का मतलब. तीस साल बाद तक याद है. इसलिए वह शाहीन बाग़ चली आई. उन औरतों को बताने कि बस अकेला मत समझना. साथ में उसकी बड़ी बहन भी थी. दोनों गए भी. दोनों बहने औरतों की नज़र से दुनिया को देख रही थीं. जब अनिता शादी से बाहर आई तो नाते रिश्तेदार काम नहीं आए. दुनिया खिलाफ हो गई. इसलिए वो मुझे भी कहने आई थी कि अकेला मत समझना.

पूरी कहानी के दौरान अनिता के चेहरे पर एक बार भी तल्ख़ी नहीं देखी. वो अपनी कहानी की किरदार भी थी और लेखिका भी. तटस्थ होकर लिखे जा रही थी. बताए जा रही थी. बहुत सारी मुस्कुराहटों के साथ. कहानी सुनते हुए हमारे कमरे में बैठे उदास चेहरे खिलने लगे थे. बार-बार यही कहते रहे कि ये एक पूरी फिल्म है.

कोई पंद्रह मिनट का लम्हा गुज़रा होगा. हम अनिता की ज़िंदगी के तीस साल को जी रहे थे. उनके हमसफ़र हो गए थे. जाते जाते मन नहीं माना. गले से लगा लिया. बस इतना कहा. तुम्हारे तो भाई होंगे. बस मुझे भी भाई कहना. और साल में एक बार ज़रूर आना. हौसला देने के लिए. औरतों के पास संघर्ष के सिर्फ किस्से नहीं हैं. तमाम दुखों से निकल आने और जीत जाने का उपन्यास होता है. उस उपन्यास के किसी भी कोने में अगर वो जगह दें तो ले लिया कीजिए.

हमारी आंखें चमक रही थीं. लग रहा था कि अभी स्क्रिप्ट लिखें और कहानी बना दें. एक अनजान शहर में लड़की. शादी से निकलती है. ख़ुद को खोजती है. अपने भीतर देश को बचा कर रखती है. बच्चों को पैदा करने भारत आती है. लोगों से मिलती है. उन्हें जानती है. अनिता हमारे लिए मिठाई का डब्बा लाई थी. कहा कि मुझे अमरीका की चीज़ें पसंद नहीं. वहां से क्या लाती आपके लिए. ये मेरे गांव की मिठाई है.

"राकेश ने आपके लिए चिट्ठी भेजी है. हाथ से लिखी हुई. इसे पढ़ना ज़रूर." मैंने अभी पढ़ी नहीं है.

उन्हें विदा करने के बाद जब मैं टैक्सी के लिए बाहर सड़क पर आया तो तीनों एक बेंच पर बैठे थे. अनिता किसी को फोन पर कह रही थीं

" सच्ची. पता है... रवीश कुमार ने .........नहीं नहीं रवीश कुमार ही था. मिल कर आई हूं. हम तीनों बाहर बैठे हैं."

अब मैं इनकी कहानी का किरदार हो चुका था. कहानियां सुनना और ख़ुद को उन कहानियों का किरदार बन जाना. मैं अपनी टैक्सी में बैठ गया. ड्राईवर से कहा, कोई गाना बजा दो.

उसने कहा...

"पहले सेल्फी ले लूं सर"

साइलेंस. लाइट्स ऑन. कैमरा. रोल. शॉट्स ओके सर.

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