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गाजा पर कब्जा क्यों चाहते हैं बेंजामिन नेतन्याहू, हमास मजबूत होगा या कमजोर?

अज़ीज़ुर रहमान आज़मी
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 09, 2025 17:14 pm IST
    • Published On अगस्त 09, 2025 17:09 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 09, 2025 17:14 pm IST
गाजा पर कब्जा क्यों चाहते हैं बेंजामिन नेतन्याहू, हमास मजबूत होगा या कमजोर?

इजरायल की सुरक्षा कैबिनेट ने आठ अगस्त को गाजा सिटी पर नियंत्रण लेने का फैसला लिया. इसे पूरे गाजा पट्टी पर संभावित नियंत्रण की व्यापक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. इजरायल के इस निर्णय से मानवीय, राजनीतिक, सैन्य और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. हालांकि नेतान्याहू ने यह भी कहा है कि इजरायल का गाजा पर लंबे समय तक शासन करने का कोई इरादा नहीं है, बल्कि उसका उद्देश्य नागरिक शासन को ऐसे निकायों को सौंपना है जो इजरायल के प्रति शत्रुतापूर्ण न हों, जबकि एक सुरक्षा घेरा बनाए रखा जाएगा.इजरायल की इस योजना में चरणबद्ध अभियान शामिल हैं, जिसकी शुरुआत गाजा सिटी से होगी. इसमें नागरिकों को दक्षिणी गाजा में स्थानांतरित करना और युद्ध क्षेत्रों के बाहर मानवीय सहायता वितरण बढ़ाना शामिल है. इस निर्णय की अंतरराष्ट्रीय नेताओं और कुछ इजरायली सैन्य अधिकारियों ने आलोचना की है. आलोचकों ने मानवीय परिणामों और बंधकों के लिए खतरे की चेतावनी दी है.

क्या खतरनाक है इजरायल का इरादा

इजरायल ने आज तक कहां माना है अंतरराष्ट्रीय दवाब. बस कुछ वैश्विक निंदा संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ की ओर से आएगी. जैसा कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताते हुए 'खतरनाक' बताया है. अभी तक जो प्रतिक्रिया इजरायल के निर्णय के बाद आई है जिसमें जर्मनी ने गाजा में उपयोग होने वाले हथियारों का निर्यात रोक दिया है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीयर स्टार्मर ने इसे 'गलत' कहा है. ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड और तुर्की ने भी इसकी निंदा की है. सऊदी अरब, मिस्र और जॉर्डन ने विरोध किया है. 
वैसे अंतरराष्ट्रीय जनमत का कोई मतलब नहीं है जब तक अमेरिका में पॉवर है. अमेरिका जिसको चाहे आतंकवाद की लिस्ट में डाल दें या हटा लें यह खेल खेलने का हक सिर्फ अमेरिका को है, उसके बाद तीन यूरोपीय शक्ति जो मुख्य रूप से अमेरिकी पिछलग्गू हैं, जिसमें नैतिकता का खेल बाजार देख कर किया जाता है. इंग्लैंड और फ्रांस ने दुनिया एक बड़े हिस्से को गुलाम बनाया. फ्रांस की औपनिवेशिक नीति से आज भी अफ्रीका के कुछ देश झेल रहे हैं. जर्मनी अपने होलोकास्ट के गिल्ट में ही फंसा है.अमेरिकी उपनिवेशवाद तो पूरे अरब जगत पर हावी है.

सात अक्टूबर की घटना निंदनीय थी, लेकिन इसमें दुनिया के वो सभी देश जिम्मेदार हैं जो मनवाधिकार और प्रजातंत्र की वकालत करते हैं. वो देश भी जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं. इजरायल को रहने का अधिकार जिस अंतरराष्ट्रीय कानून ने दिया था, वहीं कानून 1967 की सीमा को फिलिस्तीन का अधिकार मानता है. लेकिन फिलिस्तीन का कानूनी अधिकार कभी धरातल पर लागू नहीं हुआ.साल 1967 से ही फिलिस्तीनी क्षेत्र जिसमें गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम (Occupied Territory)  शामिल हैं. ये इलाके इजरायल के सैन्य नियंत्रण में हैं. आधुनिक इतिहास में इतने लंबे समय तक किसी क्षेत्र को सैन्य नियंत्रण में बनाए रखने का यह पहला उदाहरण है.

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इजरायल के फैसले का क्या हो सकता है असर

इजरायल की इस योजना से बड़े पैमाने पर विस्थापन और नागरिक पीड़ा का सामना करना होगा. योजना के तहत करीब 10 लाख निवासियों को गाजा सिटी से दक्षिणी गाजा में भेजा जाएगा. इससे पहले से ही मौजूद गंभीर मानवीय संकट और बढ़ जाएगा. गाजा की 86 फीसदी जमीन पहले से ही इजरायली सैन्यकृत जोन या निकासी आदेशों के अधीन है. लोगों को पहले से भीड़भाड़ वाले दक्षिणी क्षेत्रों में भेजना, जो अकाल और सीमित संसाधनों से जूझ रहे हैं, भूखमरी,बीमारियों और भोजन,पानी और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी को और बदतर बना देगा. यह निर्णय गाजा के बुनियादी ढांचे का और विनाश करेगा. गाजा सिटी में पहले से अस्पतालों और शरणस्थलों का बुरा हाल है. युद्ध ने पहले ही 70 फीसदी ढांचे को रहने लायक नहीं छोड़ा है. वहां बढ़ते सैन्य अभियान अस्पतालों, स्कूलों और अन्य महत्वपूर्ण ढांचे को भी नष्ट कर सकते हैं. इससे और अधिक तबाही का अंदेशा है.

मिस्र और जॉर्डन किसी भी तरह फिलिस्तीनी शरणार्थियों को लेने से इनकार भी कर दिया है. इससे इजरायल के अरब पड़ोसियों के साथ संबंध और तनावपूर्ण हो सकते हैं, खासकर तब जब मिस्र और कतर हमास को वैध वार्ताकार मानकर युद्धविराम की मध्यस्थता करते रहे हैं. हमास की गुरिल्ला रणनीतियां और सुरंग नेटवर्क लंबे समय तक प्रतिरोध जारी रख सकते हैं. अति-दक्षिणपंथी मंत्रियों ने फिलिस्तीनियों को तीसरे देशों में भेजने का सुझाव दिया है. इससे जातीय सफाए की आशंका बढ़ी है.

सेना भी है प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ

इस योजना को लेकर इजरायल के भीतर आलोचना तेज है. सेना के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल एयाल जमीर और अन्य अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि गाजा सिटी पर कब्जा शेष 20 बंधकों की जान खतरे में डाल सकता है. पहले से थके हुए रिजर्व सैनिकों पर बोझ बढ़ा सकता है. बंधक परिवारों के संगठनों ने प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ प्रदर्शन किए हैं. विपक्षी नेता यैर लापिद ने इस निर्णय को 'आपदा' बताया और आरोप लगाया कि अति-दक्षिणपंथी गठबंधन सदस्यों ने नेतन्याहू को लापरवाह रणनीति अपनाने पर मजबूर किया, जो हमास के हित में है.

समझा यह भी जा रहा है कि हमास भर्ती प्रक्रिया को और तेज करेगा. इजरायल जिस तरह से गाजा को बर्बाद किया है. उससे गाजा में इजरायल के प्रति असंतोष हजारों गुना बढ़ गया है. हमास ने अपने बड़बोलपन से हमले का विरोध करने का संकल्प लिया है. उसने चेतावनी दी है कि यह 'पिकनिक' नहीं होगी और इजरायल को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. नागरिक हताहत और विनाश के चलते संघर्ष लंबा खिंच सकता है. दूसरी तरफ इजरायली सैन्य बलों पर भी दबाव बढ़ेगा. इस अभियान के लिए हजारों रिजर्व सैनिकों की जरूरत होगी, जो पहले से दो साल के संघर्ष से थके हुए है. शहरी क्षेत्रों में सैन्य अभियान से सैनिकों और नागरिकों,दोनों के हताहत बढ़ेंगे. राहत वितरण में और  बाधाएं आ सकती है. जैसा कि इजरायल के कई मंत्रियों के बयान आए हैं जिसमें वो पूरी गाजा की आबादी दंडित करना चाहते हैं. इस योजना के तहत सैन्य नियंत्रण वाले राहत केंद्रों को मानवीय संगठनों ने 'अव्यवहारिक' और 'अवैध' बताया है, जिससे सहायता और सीमित हो सकती है.

हमास को इजरायल, अमेरिका और अन्य देशों द्वारा भले ही आतंकवादी संगठन घोषित किया गया हो, लेकिन उसका चुनावी जनादेश उसे फिलिस्तीनियों के बीच वैधता देता है. साल 2006 के चुनाव नतीजे हमास के जनसमर्थन को दर्शाते हैं, जो उसके सामाजिक सेवाओं और प्रतिरोध की छवि पर आधारित है. यदि नई सरकार स्थानीय वैधता के बिना बनाई गई तो उसके लिए प्रभावी ढंग से शासन करना मुश्किल होगा. इससे अराजकता या चरमपंथी समूहों के लिए अवसर पैदा हो सकता है. जनवरी 2006 में हुए फिलिस्तीनी संसदीय चुनाव में हमास ने 132 में से 74 सीटें जीतकर तत्कालीन फतह पार्टी को हराया. यह चुनाव अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की निगरानी में एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत कराए गए थे, न कि सैन्य तख्तापलट हुआ था.हमास की जीत ने उसे फिलिस्तीनी विधान परिषद पर नियंत्रण दिया और 2007 में फतह के साथ एक संक्षिप्त गृहयुद्ध के बाद उसने गाजा पट्टी पर अपना शासन मजबूत कर लिया.इजरायल कैबिनेट का यह फैसला मिस्र और कतर द्वारा मध्यस्थता किए जा रहे युद्धविराम प्रयासों को कमजोर करता है. इससे कूटनीतिक प्रयासों को नुकसान हो सकता है. इजरायल की इस योजना से वैकल्पिक शासन की चुनौतियां बढ़ेगी.  

क्या जमीनी हकीकत से दूर है फैसला

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थित दो-राष्ट्र समाधान को नुकसान हो सकता है. इजरायल गाजा को निरस्त्रीकृत कर नियंत्रण में लाना चाहता है, लेकिन लंबे समय तक सीधे शासन से बचना चाहता है. इस योजना में न तो हमास को और न ही फिलिस्तीनी प्राधिकरण को शामिल किए जाने का प्रस्ताव है जिससे फिलिस्तीनी राजनीतिक वास्तविकताओं की अनदेखी होती है. नतीजतन, यह जनता को और अलग-थलग कर सकता है. यह फैसला स्थिर और गैर-शत्रुतापूर्ण शासन स्थापित करने के प्रयासों को जटिल बना सकता है. इजरायल की योजना को फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय पर हमला माना जा सकता है. इससे हमास और उसके समर्थकों को यह कहने का मौका मिलेगा कि चुनी हुई सरकार के खिलाफ बाहरी हमला है. इससे हमास में भर्ती और उसका प्रतिरोध दोनों बढ़ सकता है. इससे सत्ता संघर्ष गहरा सकता है और मानवीय संकट और भी बिगड़ सकता है, जिसका बोझ नागरिकों को ही उठाना पड़ेगा. 

गाजा सिटी पर नियंत्रण का निर्णय बड़े पैमाने पर विस्थापन, अकाल और ढांचागत विनाश जैसे विनाशकारी मानवीय परिणाम ला सकता है. राजनीतिक रूप से यह इजरायल में विभाजन को बढ़ाएगा और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों को दूर करेगा.जबकि सैन्य रूप से यह हमास पर दबाव डाल सकता है, लेकिन हमास के खिलाफ रणनीतिक लक्ष्यों को पाने में विफल हो सकता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह निंदा, कानूनी जांच और कूटनीतिक अलगाव को आमंत्रित करता है. दीर्घकाल में यह संघर्ष को लंबा कर सकता है, शांति वार्ताओं को बाधित कर सकता है और गाजा के जनसांख्यिकीय और राजनीतिक भविष्य को बदल सकता है. इससे पूरे क्षेत्र में अस्थिरता आ सकती है. इस समस्या को हमेशा शक्ति से ही सुलझाने की कोशिश की गई जबकि मानवीय  नैतिक और कानूनी पहलू की अनदेखी की गई है.

अस्वीकरण:अज़ीज़ुर रहमान आज़मी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वेस्ट एशिया एंड नार्थ अफ़्रीकन स्टडीज विभाग में पढ़ाते हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना ज़रूरी नहीं है. 

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