जम्मू कश्मीर और लद्दाख अब दो हिस्सों में बंट गया. पहले राज्य था अब केंद्र शासित प्रदेश हो गया. मुख्यमंत्री का पद समाप्त हो गया. राज्यपाल का पद समाप्त हो गया. दिल्ली की तरह उपराज्यपाल का पद होगा और पुलिस केंद्र सरकार के पास होगी. जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश होगा. लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा. लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी. गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में जम्मू कश्मीर संशोधन विधेयक 2019 पेश किया और बहस के बाद पास भी हो गया. इसे लोकसभा में पास कराना मुश्किल नहीं होगा. अब इसका विश्लेषण तीन पैमानों पर किया जा सकता है. प्रक्रिया, प्रतिक्रिया और प्रभाव. पहले प्रतिक्रिया पर आते हैं.
शेष भारत में जश्न मनाते हुए इन तस्वीरें बता रही हैं कि कश्मीर को लेकर आम लोगों में एक छवि और समझ है. जो कई सालों से बनती चली आ रही है. इस समझ में भले ही तमाम बारीकियां न हों मगर बीजेपी और संघ लंबे समय से लोगों के मन में समझ बनाने में कामयाब रही कि धारा 370 के रहते कश्मीर भारत का पूरा हिस्सा नहीं है. भले ही धारा 370 पर किताब लिखने वाले कहें कि लोगों की समझ अधूरी है लेकिन सच्चाई है कि शेष भारत के बड़ी संख्या में लोग उसके उलट राय रखते हैं. यह जश्न उन्हीं धारणाओं की प्रतिक्रिया में है. यही कारण है कि कई लोग कहते मिले कि लोग यही सुनना चाहते हैं जो आज सरकार ने कश्मीर को लेकर किया है. तर्क और तथ्य से कोई फायदा नहीं. देश बदल गया है. इस राय की आंधी में उनकी राय पत्तों की तरह उड़ रही है जिनके कुछ सवाल हैं. अमित शाह ने भी कहा कि यकीन न हो को टीवी देख लीजिए. टीवी पर स्वागत ही स्वागत है. आप घर जाकर टीवी देखिए जनता मानती है कि कश्मीर ठीक हो जाएगा. जब जनता का इतना विश्वास है तो मेरा भी है.
कश्मीर क्या चाहता है, क्या इस फैसले में उसकी राय है? लद्दाख और जम्मू की क्या प्रतिक्रिया है? पिछले कई घंटों से कश्मीर कैसे सांस ले रहा है, किसी को खबर नहीं रही. कश्मीर की अब क्या राय है किसी को पता नहीं. सारे संपर्क और नेटवर्क नियंत्रित कर लिए गए हैं. महबूबा मुफ्ती को गिरफ्तार कर लिया गया है. उमर अब्दुल्ला को भी गिरफ्तार किया गया है. पहले नज़रबंद किया गया था. लोकसभा में नेशनल कांफ्रेंस के तीन सांसद हैं. राज्यसभा में पीडीपी के दो सांसद हैं. ये तो अलगाववादी नहीं थे फिर इनकी राय क्यों नहीं ली गई.
कहा गया कि पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस कुछ परिवारों का मामला है, उनके अपने हित हैं धारा 370 में, 370 के कारण वहां भ्रष्टाचार बढ़ गया है, गरीबी हो गई है और आतंकवाद बढ़ गया है. यह समस्याएं तो दूसरे राज्यों में भी हैं तो क्या वहां भी राज्य का दर्जा घटा दिया जाए और उसके कई हिस्सों को केंद शासित प्रदेश में बदल दिया जाए. आखिर वहां के राजनीतिक दलों को इस प्रक्रिया का हिस्सा क्यों नहीं बनाया गया.
अक्तूबर 1947 में जब पाकिस्तान की सेना ने कश्मीर पर हमला किया था तब नेशनल कांफ्रेंस के सैकड़ों कार्यकर्ता मुकाबला करते हुए मारे गए थे. भारत की सेना पहुंचने से पहले कश्मीर की आम जनता ने पाकिस्तान का मुकाबला किया था, अपनी जान दी थी. 1947 के विभाजन के भयानक हिंसा के बीच कश्मीर शांत रहा. वहां दंगे नहीं हुए. गांधी ने कहा था कि कश्मीर का यह भाईचारा भारत की उम्मीद है. आपको यह नहीं बताया जाएगा कि आतंकवादियों ने नेशनल कांफ्रेंस के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को इसलिए मारा क्योंकि वे भारतीय संविधान के साथ थे. आपको यह नहीं बताया जाएगा कि आतंकवादियों ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी मारा. आपको यह नहीं बताया जाएगा कि पीडीपी के साथ कुछ दिन पहले तक बीजेपी की वहां साझा सरकार चल रही थी. नेशनल कांफ्रेंस को आतंकवादी निशाना बनाते रहे. क्या इन सभी से किसी तरह की राय ली गई, अगर आप यह सवाल करेंगे तो सभी को अलगाववादियों के साथ खड़ा कर दिया जाएगा.
दिल्ली जम्मू और अन्य जगहों में रहने वाले कश्मीरी पंडितों की प्रतिक्रिया आ गई है और उनके बीच इसे लेकर काफी उत्साह है. कश्मीरी पंडितों के प्रश्न का उत्तर बाकी है. उनके साथ जो हुआ वो सारी बहस को निरुत्तर कर देता है. इसलिए आज कश्मीरी पंडित अपनी जीत के रूप में देख रहे हैं. क्या अब वे वापस जाएंगे, या जाने के हालात होंगे, इस का ज़िक्र भाषण में नहीं आया. कम से कम अमित शाह ने सदन में इस बारे में कुछ नहीं कहा. फिर भी कश्मीरी पंडितों ने इस फैसले का स्वागत किया और ऐतिहासिक बताया. मीडिया आपको नहीं बताएगा कि घाटी में 6000 कश्मीरी पंडित अब भी रहते हैं. वे किस भाईचारे के माहौल में रहते हैं, उनका अनुभव क्या है, घाटी में कई हज़ार सिख भी रहते हैं, कश्मीरी बोलते हैं. चित्तिसिंहपुरा में आतंकवादियों ने सिखों को भी निशाना बनाया था लेकिन उसी आतंक प्रभावित कश्मीर के गांवों में सिख परिवार कैसे रहते हैं हमें नहीं बताया जाता है. उस भाईचारे की कहानी शायद राजनीतिक मुनाफे के लिए नहीं है. इनकी वापसी पर राज्य के सभी दलों का यही स्टैंड है कि उनका स्वागत है लेकिन वापसी नहीं हुई यह तथ्य है. कश्मीरी पंडितों के साथ जो भी हुआ वो एक गहरा ज़ख्म है.
इस फैसले से राजनीतिक अधिकार भी प्रभावित हुआ है. जम्मू कश्मीर और लद्दाख के मतदाता पूर्ण राज्य के लिए मतदान करते थे अब वे केंद्र शासित प्रदेश के लिए मतदान करेंगे यानी उनकी राजनीतिक पहचान आधी रह गई है और अधिकार भी आधा हो गया है. कुछ दिनों से कश्मीर में सेना की तैनाती हो रही थी. संपर्क समाप्त किए जा रहे थे. राज्यपाल बयान दे रहे थे कि उन्हें पता नहीं है, कल क्या होगा पता नहीं है.
सत्यपाल मलिक कहते रहे कि 35-ए हटाने की कोई योजना नहीं है. न ही राज्य को तीन हिस्सों में बांटने की योजना है. सत्यपाल मलिक ने 12 जून को भी कहा था कि धारा 370 नहीं हटाया जा रहा है, दो दिन पहले भी उनका इंडियन एक्सप्रेस में बयान छपा कि धारा 370 से छेड़छाड़ नहीं होगी. इतना बड़ा फैसला हो रहा था राज्यपाल को न तो दो दिन पहले पता था, न दो महीना पहले पता था और राष्ट्रपति का आदेश कहता है कि राज्यपाल की मंज़ूरी ले ली गई है. अब सत्यपाल मलिक का संवैधानिक नैतिक बोध ही बता सकता है कि क्या वे सही बोल रहे थे. अब यहां पर वकील गौतम भाटिया ने सवाल उठाया है. इस सवाल पर गौर कीजिए. राज्यपाल तो केंद्र का प्रतिनिधि होता है वो कब से राज्य की आवाज़ हो गया.
इसीलिए हमने कहा कि इस फैसले की प्रक्रिया क्या है. दो तिहाई बहुमत से राज्यसभा में बिल पास हुआ लेकिन ऐसा क्यों हुआ कि राज्यपाल से लेकर राजनीतिक दल बेखबर थे. यहां तक कि सहयोगी जनता दल यूनाईटेड ने भी कहा कि उन्हें भनक तक नहीं थी. सत्यपाल मलिक समाजवादी खेमे से आते हैं. उसी धारा से जनता दल यूनाइटेड भी है. वैसे दूसरे समाजवादी जैसे समाजवादी पार्टी ने इस फैसले में साथ दिया है.
अमित शाह ने बार बार कहा कि हम कश्मीर को स्वर्ग बनाएंगे. भरोसा रखें. यह भी सोचना होगा कि धारा 370 के रहने से कश्मीर को क्या मिला, धारा 370 के हट जाने से क्या मिल जाएगा. कहा जा रहा है कि रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे लेकिन क्या इसके लिए किसी का राजनीतिक अधिकार कम किया जा सकता है. जैसे क्या यूपी को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जा सकता है कि वहां रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे. यह भी तथ्य है कि धारा 370 खोखला हो चुका था. खुद अमित शाह ने कहा है कि कांग्रेस ने भी 1952 और 1967 में कांग्रेस ने धारा 370 को अमेंड किया है. यहां पर संविधान विशेषज्ञ गौतम भाटिया ने एक बात कही है. अभी तक धारा 370 का इस्तमाल होता था दूसरे प्रावधानों को बदलने में. यह पहली बार हुआ है कि धारा 370 का इस्तमाल हुआ है, 370 को ही हटाने में. अमित शाह कह रहे हैं कि जम्मू कश्मीर में भ्रष्टाचार था. यह सही भी है. लेकिन क्या इस आधार पर किसी राज्य का दर्जा कम किया जा सकता है, उसका बंटवारा किया जा सकता है.
यह भी कमाल है. अर्थव्यवस्था संकट में है. फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं. रोज़गार जा रहे हैं लेकिन जम्मू कश्मीर और लद्दाख का दर्जा बदल दिया गया ताकि वहां रोज़गार आए, फैक्ट्रियां चलें. आयुष्मान को लेकर सवाल तो शेष भारत में भी है. सरकारी अस्पताल कहां हैं, डाक्टर कहां हैं. अमित शाह जिन आंकड़ों को पढ़ रहे हैं वो कश्मीर ही नहीं दूसरे राज्यों के बारे में यही कहा जा सकता है क्या उनका बंटवारा भी इस तरह से किया जा सकता है.
तो अब जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में हिन्दू मुसमलान और सिख को आरक्षण मिलेगा. पहले नहीं मिलता था. कश्मीर का इतिहास बेहद जटिल है और ये फैसला भी. जब तब सरकारें बर्खास्त की गईं और चुनाव जैसे तैसे कराए गए. खुद अमित शाह ने लोकसभा में इसके पहले के भाषण में बताया था कि राज्य के चुनाव में किस तरह का फर्जीवाड़ा होता था. आज यह बात कोई और कह दे तो देशद्रोही कहा जाए लेकिन देश के गृहमंत्री ने ही बताया था कि कश्मीर में चुनाव के नाम पर क्या हो रहा था.
यही नहीं अब केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह के बयान को भी सुनिये जो उन्होंने लोकसभा में कहा है. वे कश्मीर के निर्वाचित प्रतिनिधियों को 8-10 प्रतिशत वोट का लाभारथी बता रहे थे. अब सवाल पूछने का फायदा भी नहीं कि क्या बाकी कश्मीर ने इस फैसले पर हामी भरी थी.
सरकार ने हर तरह से समझाने की कोशिश की कि जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन बहुत ज़रूरी था. भले जश्न मन रहा हो लेकिन संविधान विशेषज्ञ कहते रहे कि धारा 370 नहीं हटा है. उसके दो प्रावधान समाप्त हुए हैं.
नोटबंदी के समय कहा गया था कि घाटी में आतंकवाद खत्म हो जाएगा. नहीं हुआ. अब कहा जा रहा है कि आतंकवाद की जड़ में धारा 370 है. अमित शाह ने धारा 370 ही नहीं हटाया बल्कि इतिहास भी बदल दिया. उन्होंने कहा कि यह गलत कहा जाता है कि सरदार पटेल पाकिस्तान को कश्मीर दे देना चाहते थे. इसे सदन के रिकार्ड में न रखा जाए. उन्होंने कहा कि कश्मीर को नेहरू हैंडल कर रहे थे. कह दिया कि सदन के रिकार्ड में न हो. अमित शाह आज इतिहास भी बदलना चाहते थे. सरदार पटेल के बारे में कहा जाता है कि वे कश्मीर को पाकिस्तान को दे देना चाहते थे. ऐसा हो ही नही सकता है, इसे रिकॉर्ड पर लाने की ज़रूरत ही नहीं है.
सरदार पटेल को लेकर अमित शाह ने जो दावा किया इतिहास की किताबों में उससे अलग दावे हैं. राजमोहन गांधी ने सरदार पटेल की जीवनी में 439 में लिखा है कि सरदार पटेल ने 13 सितंबर 1947 को बलदेव सिंह को पत्र लिखा कि अगर कश्मीर अगर पाकिस्तान में शामिल होता है तो वे स्वीकार कर लेंगे. बाद में पटेल का नज़रिया बदल गया जब पता चला कि पाकिस्तान ने जूनागढ़ के विलय को स्वीकार कर लिया था. 26 जून 2018 को द प्रिंट में श्रीनाथ राघवन का लेख है. वे लिखते हैं कि 15-16 मई 1949 को पटेल के निवास में धारा 370 की बैठक शुरू हुई थी. उसके बाद पटेल ने नेहरू को लिखा था कि मैंने कांग्रेस को तैयार कर लिया है कि धारा 370 को स्वीकार कर लें. कश्मीर का मसला अकेले नेहरू हैंडल नहीं कर रहे थे और न ही सरदार पटेल हैदराबाद और जूनागढ़ का मसला.
बार बार सवाल उठा कि राज्य का दर्जा क्यों कम किया गया. वहां तो वैसे भी केंद्र का शासन चल रहा है. सेना मौजूद है. इसका जवाब अमित शाह ने दिया और कहा कि जब स्थिति नार्मल होगी केंद्र शासित प्रदेश से वापस राज्य बनाएंगे.
तो एक अस्थायी प्रावधान हटाकर दूसरा अस्थायी प्रावधान ले आया गया. राज्य से केंद्र शासित प्रदेश कर देने में आतंक से कैसे बेहतर लड़ा जा सकता है इसका स्पष्ट जवाब नहीं मिला. शायद ज़रूरत भी नहीं है. स्थिति के सामान्य होने की परिभाषा क्या है, वह सरकार ही तय करेगी. अमित शाह ने युवाओं से कहा है कि वे मोदी सरकार पर भरोसा करें, 5 साल में परिवर्तन आएगा. उन्हें कुछ नहीं होगा तो क्या अगले पांच साल तक के लिए केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है. आठ दलों ने विरोध किया है. बसपा, बीजेडी और आम आदमी पार्टी, वाईएसआर, एआईडीएमके ने सपोर्ट किया है. कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, राजद, तृणमूल कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड सहित आठ दलों ने विरोध किया है.
इस पूरे घटनाक्रम को अंतरराष्ट्रीय नज़र से भी देखना चाहिए. कुछ दिन पहले अमरीका के राष्ट्रपति कश्मीर की समस्या में भारत की मध्यस्थता की बात कर रहे थे. भारत ने तुरंत खंडन किया. आज जो भारत ने किया है उससे अमरीका को भी मेसेज गया होगा. लेकिन क्या यह मेसेज मेसेज की कूटनीति अफगानिस्तान को लेकर भी है जहां कभी भारत को बढ़त थी और अब अमरीका पाकिस्तान को महत्व दे रहा है. हम एक बार फिर से बता दें कि जम्मू-कश्मीर से जुड़ा अनुच्छेद 370 नहीं हटाया गया है. धारा 370 संविधान के भाग 21 का हिस्सा है और इसे संविधान संशोधन के बिना नहीं हटाया जा सकता है. संविधान का भाग 21 तीन तरह के प्रावधानों की बात करता है. संक्रमणकालीन यानी फौरी, अस्थायी, विशेष प्रावधान. जम्मू-कश्मीर से जुड़ा अनुच्छेद 370 संविधान के अस्थायी प्रावधान में आता है.
अनुच्छेद 370 के तहत तीन बिंदु हैं. 370 (1) कहता है कि जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ विचार विमर्श से राष्ट्रपति के आदेश द्वारा संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू-कश्मीर पर लागू किया जा सकता है. जबकि अनुच्छेद 370 (2) और 370 (3) जम्मू-कश्मीर को कई विशेष अधिकार देते हैं. 370(1) के इस्तेमाल से जम्मू-कश्मीर को कई विशेष अधिकार देने वाले प्रावधानों 370 (2) और 370 (3) को हटा दिया गया है और देश के संविधान के बाकी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू कर दिये गए हैं. 35ए भी इन्हीं प्रावधानों के तहत लगाया गया था जिसे हटा दिया.