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This Article is From Aug 04, 2016

जानने का प्रयास करते रहें... किसके लिए कितना फायदेमंद है जीएसटी

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 04, 2016 20:15 pm IST
    • Published On अगस्त 04, 2016 19:48 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 04, 2016 20:15 pm IST
आज गुड़गांव गया था, डीएचएल कंपनी के दफ्तर. यह कंपनी तमाम जगहों के माल को लाने ले जाने का काम करती है. कूरियर कंपनी है. इस कंपनी के प्रीतम बनर्जी को जीएसटी से काफी उम्मीदें हैं. उनका कहना है कि अगर ठीक से लागू हुआ और एकदम से नई व्यवस्था आई तो बिजनेस करने वालों को काफी लाभ होगा. प्रीतम की दलील है कि बड़ी कंपनियों को तो वैसे भी खास दिक्कत नहीं होती थी. उनके पास हर तरह के संसाधन होते हैं लेकिन जीएसटी से छोटे कारोबारियों और घर बैठे काम करने वालों को लाभ मिल सकता है.

प्रीतम और उनके सहयोगियों ने सेल्स टैक्स की मौजूदा खामियों को गिनाना शुरू किया. वे बार-बार जोर दे रहे थे कि अधिकारियों की सोच में बदलाव की सक्त जरूरत है वर्ना वे किसी न किसी तरीके का जुगाड़ निकालकर जीएसटी की आत्मा को मार देंगे. उन्होंने कहा कि सरकार जब इसे लागू करने के लिए आईटी का ढांचा तैयार करे तो हर काम ऑनलाइन कर दे. यहां तक कि कोई अधिकारी हमारे ट्रक को रोके तो उसे भी आनलाइन भरना पड़े कि क्यों रोका, कितनी देर लगाया और क्या पाया. यही नहीं यह सब कुछ सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में हो.

इन लोगों के अनुभवों को सुनकर लगा कि अभी हर नाके वाले तमाम तरह की चेकिंग के नाम पर काफी परेशान करते हैं. पिन नंबर होने के बावजूद प्रिंटिंग की मामूली त्रुटियों के बहाने गाड़ी खड़ी कर देते हैं. यहां तक कि एक बार गाड़ी के नंबर का एक अंक नहीं छपा तो काफी बड़ी रकम जुर्माने के तौर पर वसूल ली, जबकि पिन नंबर के जरिए हमारे और हमारे माल के बारे में सारी जानकारी हासिल की जा सकती थी. मगर अफसरों ने सुना ही नहीं. एक-एक नाके पर हमारे ट्रक हफ्तों खड़े रहते हैं. हमारे ट्रक ड्राइवरों की यातना की तो पूछिए मत.

इन्हें उम्मीद है कि जीएसटी जब आएगा तब चुंगी और चेक पोस्ट इतिहास हो जाएगा. एक बार टैक्स देकर माल चला तो सीधे मंजिल पर उतरेगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर जीएसटी का लाभ नहीं. क्या ऐसा होगा? यह भी ध्यान रखना होगा कि दिल्ली में अदालत के आदेश के कारण ट्रकों को सीमा पर घंटों इंतजार करना होता है क्योंकि वे एक तय समय के भीतर ही दिल्ली में प्रवेश कर सकते हैं. हो सकता है कि दिल्ली में अगले पांच-छह साल में बाईपास बन जाए लेकिन इसके कारण माल के लाने ले जाने में आठ से दस घंटा जोड़ा जा सकता है. कुल मिलाकर जो माल अमरीका से चौबीस घंटे में गुड़गांव आ जाता है, उसे गुड़गांव से नोएडा पहुंचाने में तीन-चार दिन लग जाते हैं. कई तरह की कागजी कार्यवाही पूरी करनी होती है.

टैक्स विशेषज्ञ मुकुल गुप्ता जीएसटी के लिए बनी कई प्रकार की सलाहकार समितियों में से एक में शामिल थे. मुकुल गुप्ता का कहना है कि जरूरी है कि जीएसटी से किसी चीज को बाहर न रखा जाए. हर चीज पर समान टैक्स लगे. हालांकि सरकार ने शराब, तंबाकू और पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा है. यही नहीं कई प्रकार की कर व्यवस्था होने से जीएसटी को बहुत कामयाबी नहीं मिलेगी. प्रीतम बनर्जी का कहना है जीएसटी से छोटे उद्योगों को लाभ होगा.

मुकुल गुप्ता भी अधिकारियों और कर्मचारियों की मानसिकता में बदलाव की बात करते हैं. उनका कहना है कि यह इस बात पर भी काफी निर्भर करेगा कि सरकार जीएसटी की कैसी रूपरेखा बनाती है. जीएसटी के कारण छोटे उद्योगों को कर अदा करने की नई व्यवस्था अपनानी होगी. इससे उनकी लागत बढ़ जाएगी. इससे मध्यम श्रेणी के नौकरीपेशा लोगों पर महंगाई का बोझ बढ़ेगा, खासकर जिनकी तनख्वाह दस से पंद्रह हजार के बीच है.

मुकुल गुप्ता इस राय के नहीं लगे कि जीएसटी के कारण कारपोरेट और उच्च आय वालों के करों में कमी की जाए जैसा कि कई देशों में हुआ है. ऐसा हुआ तो जीएसटी के बहाने सारा लाभ कारपोरेट को चला जाएगा. मुकुल गुप्ता भी जोर देकर कह रहे हैं कि अगर इसे ईमानदारी से लागू किया गया तो बिजनेस करने का माहौल बनेगा. अब बहुत से लोग ईमानदार तरीके से बिजनेस करना चाहते हैं. अगर सबके लिए एक समान सिस्टम बनेगा तो उनका भरोसा बढ़ेगा.

दोनों इस बिंदु से आगे जाकर जीएसटी के प्रभाव की भविष्यवाणी करने से बचना चाहते हैं. इस वक्त वित्त मंत्री कह रहे हैं कि समय के साथ टैक्स कम होंगे लेकिन दुनिया भर में टैक्स रेट बढ़े हैं. हमारी जानकारी में कहीं भी समय के साथ टैक्स रेट कम नहीं हुआ है. जिन देशों में लागू हुआ वहां राजस्व में खास वृद्धि नहीं हुई. इस पर प्रीतम बनर्जी और मुकुल गुप्ता दोनों का मानना है कि भारत की व्यापार प्रणाली में काला धन यूरोप या अन्य देशों की तुलना में ज्यादा है. अगर जीएसटी से इसमें अस्सी फीसदी की भी कमी आ गई तो बहुत है.

जीएसटी हमारे दौर की एक नई कर प्रणाली है. इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाकर हम इस नई व्यवस्था के प्रति अपनी समझ बढ़ा सकते हैं. समझ बढ़ानी चाहिए. मीडिया में जीएसटी को लेकर स्वागत करने वालों की संख्या ज्यादा है. सामान्य रूप से देखने वालों की भी ठीक ठाक संख्या है. आलोचनात्मक रूप से देखने वाले कम हैं. फिर भी हमें खुद से भी जानने का प्रयास करना चाहिए. तरह-तरह की जानकारी ही जिम्मेदारी का विस्तार करती है.

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