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This Article is From Oct 31, 2017

भारत के इन नौजवानों की चुप्पी काटती है...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 31, 2017 01:04 am IST
    • Published On अक्टूबर 31, 2017 01:04 am IST
    • Last Updated On अक्टूबर 31, 2017 01:04 am IST
देश के विश्वविद्यालयों पर लगातार 15 एपिसोड करता चला गया. हर एपिसोड बता रहा है कि विगत बीस साल में, हर पार्टी की सरकार और हर राज्य में कॉलेजों को गोदाम में बदल दिया गया है. कहीं टीचर नहीं हैं, कहीं लैब नहीं है, कहीं कोर्स नहीं है तो कहीं प्रिंसिपल नहीं है. पढ़ाने वाले टीचर भी भंयकर शोषण के शिकार हैं. सबसे ज़्यादा शोषण संस्कृत के शिक्षकों का हो रहा है. मध्यप्रदेश में संस्कृत के व्याख्याता को न्यूनतम मज़दूरी 274 रुपये से एक रुपया अधिक मिलता है. लेक्चरर 5000 से 25000 के बीच पढ़ा रहे हैं. नैक की ग्रेडिंग लेने के लिए कॉलेज की इमारत को बाहर से रंग दिया गया है. कुछ होता रहे इसके लिए ग्रेडिंग और रेटिंग एक नया फ्रॉड थोपा जा रहा है.

मैं हैरान हूं कि जब हर शहर की बात है तो भारत के युवाओं ने आवाज़ बुलंद क्यों नहीं की? क्या युवाओं ने चुप रहकर भारत के लोकतंत्र को निराश किया है? ख़ुद को पढ़ाई लिखाई से दूर रखकर उसे और जर्जर किया है. नेता और मीडिया को पता है कि आवाज़ उठ गई तो कोई संभाल नहीं पाएगा. इसलिए समय समय पर छात्रों के प्रदर्शन को खलनायक के तौर पर पेश किया जाता है. कहा जाता है कि यूनिवर्सिटी में पढ़ने आए हैं कि प्रदर्शन करने. तब भी किसी युवा ने नहीं कहा कि पढ़ने तो आएं हैं मगर पढ़ाने वाला तो भेजो. मीडिया जो थोपता है क्या उसे लोग शर्बत की तरह पी लेते हैं, क्या उसे अपने यथार्थ से मिलाकर नहीं देखेत हैं?

इंजीनियरिंग कॉलेज से लेकर मेडिकल कॉलेज सब जमकर युवाओं को लूट रहे हैं. परिवारों की पूंजी लूटी जा रही है. हर दूसरा तीसरा युवा शिक्षा तंत्र की इस लूट का शिकार है, मगर कहीं कोई आवाज़ नहीं. कोई संघर्ष नहीं है. छात्र आंदोलन पहले ही कुचल दिए गए. जेएनयू के बहाने बाकी संभावनाओं को भी डरा दिया गया. वाइस चांसलर से लेकर डीन तक युवाओं को करियर बर्बाद करने की धमकी दे रहे हैं. युवा चुप हो जा रहे हैं. ऐसा लगता है कि भारत के ये नौजवान ग़ुलामी की बेड़ी से बांध दिए गए हैं. जो आवाज़ उठाते हैं उन्हें अनसुना किया जाता है. राजनीति और फ़्रॉड नेताओं में युवाओं को लेकर यह आत्मविश्वास कहां से आया है?

भारत के युवाओं से क्या झुंड बनने की ही उम्मीद की जाए? आख़िर क्यों नहीं इन युवाओं ने अपने पढ़ने के अधिकार को लेकर आवाज़ उठाई, छात्र संगठनों को वोट देते समय क्यों नहीं कहा कि कॉलेज की हालत इतनी बुरी क्यों हैं, क्यों नहीं मांग की कि छात्र संगठन के चुनाव हों, उनकी आवाज़ सुनी जाए?

VIDEO: प्राइम टाइम : शिक्षा सरकार की प्राथमिकता में कहां?

अपवाद स्वरूप युवाओं ने किया है मगर आप बड़े फलक पर देखिए तो भारत के इन नौजवानों की चुप्पी काटती है. उनका खोखलापन झलकता है. आख़िर कैसे सबने बर्दाश्त कर लिया कि विषय के टीचर नहीं होंगे और वे कोचिंग जाकर कोर्स पूरा करेंगे. ज़रूर बहुत से लोग लिख रहे हैं, हौसला बढ़ा रहे हैं मगर मेरा हौसला बढ़ाकर क्या करेंगे, सरकारों से तो पूछिए कि कब ठीक होगा. तमाशा बनाकर रख दिया है सबने आपकी जवानी का और आप उनके इशारे पर नाचने वाले ट्रोल. करते रहिए इस पार्टी उस पार्टी, इस राज्य उस राज्य. कोई अपवाद हो तो बता दीजिए.

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