कहते हैं, कोलकाता की दुर्गा पूजा सिर्फ भक्ति और संस्कृति का उत्सव है, लेकिन अगर आप गहराई से देखें, तो ये राजनीति की धड़कनों से भी जुड़ी है. जब मां दुर्गा आती हैं, तो पूरा शहर एक मंच बन जाता है और इस मंच पर सिर्फ़ कलाकार ही नहीं, नेता भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं. राजनीति और पूजा का ये रिश्ता बहुत पुराना है.
इतिहास गवाह है कि दुर्गा पूजा का इस्तेमाल एकता और स्वतंत्रता की आवाज़ बुलंद करने के लिए किया गया. बड़े-बड़े ज़मींदारों के दरबारों से निकलकर जब पूजा मोहल्लों तक पहुंची, तब नेताओं ने इसे जनता तक पहुंचने का सबसे सशक्त माध्यम माना. मां दुर्गा की मूर्ति के सामने खड़े होकर जब जनता और नेता साथ दिखते थे, तो भरोसा बनता था कि ये त्यौहार सिर्फ़ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक ताक़त है.
आज भी यही तस्वीर है.
हर साल पूजा के पंडालों में राजनीतिक हस्तियों की मौजूदगी सिर्फ़ श्रद्धा का मामला नहीं होती. ये जनता से जुड़ने का मौका भी होता है. नेता जानते हैं कि दुर्गा पूजा भावनाओं का सबसे बड़ा उत्सव है… और जो इस उत्सव में दिल जीत लेता है, वो राजनीति में भी जगह बना लेता है.
पंडालों में योगदान, उद्घाटन समारोह में हिस्सा, या मां के सामने आशीर्वाद की तस्वीरें—ये सब जनता तक सीधा संदेश भेजती हैं.
कभी ये संदेश होता है ‘हम आपके बीच हैं', कभी होता है ‘हम आपके संरक्षक हैं.'
और मैं, एक महिला होकर, इसे एक अलग नज़र से देखती हूं.
मां दुर्गा खुद स्त्री शक्ति की प्रतीक हैं, लेकिन राजनीति में जब उनकी पूजा के ज़रिए शक्ति प्रदर्शन होता है, तो सवाल भी उठते हैं—क्या मां का आशीर्वाद सिर्फ़ सत्ता पाने के लिए मांगा जाता है, या सच में समाज को बदलने के लिए?
पूजा के दौरान पंडालों पर लगने वाले पोस्टर, नेताओं की मौजूदगी, और मंच से किए गए भाषण… ये सब इस बात का सबूत हैं कि दुर्गा पूजा सिर्फ़ धर्म नहीं, बल्कि राजनीति का भी उत्सव बन चुकी है.
यहां जनता नेताओं को आंकती है—कौन मां के सामने विनम्र है, कौन दिखावे में डूबा है, कौन वाक़ई अपने लोगों से जुड़ा है.
लेकिन सच कहूं तो…
चाहे राजनीति कितनी भी घुल जाए इस पर्व में, मां की उपस्थिति सब पर भारी होती है.
जब ढाक बजती है, जब धुनुची नाचते हैं, जब संधि पूजा में दीप जलते हैं… तो वहां किसी नेता की पहचान मायने नहीं रखती. वहां सिर्फ़ एक पहचान होती है—भक्त और मां का रिश्ता.
हां, कोलकाता की दुर्गा पूजा का राजनीतिक कनेक्शन गहरा है.
नेताओं के लिए ये जनता तक पहुंचने का पुल है.
जनता के लिए ये नेताओं की असली छवि देखने का आईना है.
और मां के लिए… ये एक याद दिलाने वाला क्षण है—कि असली शक्ति किसी कुर्सी में नहीं, बल्कि जनता के दिल में होती है.
कोलकाता की दुर्गा पूजा हमें यही सिखाती है—राजनीति आती-जाती रहती है, लेकिन मां का आशीर्वाद स्थायी है.
और अंत में जीत उसी की होती है, जो मां के संदेश को सच में समझ लेता है—
‘शक्ति जनता से आती है, और वही सबसे बड़ी राजनीति है.