तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) तीन दिनों के दौरे पर मुंबई में हैं. यह उनके रिवेंज टूरिज्म का एक रूप है. इस दौरान उन्होंने शरद पवार और आदित्य ठाकरे के साथ दो महत्वपूर्ण बैठकें कीं. ममता बनर्जी के मुताबिक, ये दोनों उन पार्टियों के नेता हैं, जो अपने तीसरे सहयोगी कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में सरकार चला रहे हैं, जिन्हें बीजेपी विरोधी विपक्षी लीग की सबसे कमजोर कड़ी कही जानी चाहिए.
ममता, कांग्रेस पार्टी और उसके शीर्ष नेता- दोनों पर कठोर टिप्पणी करते हुए कहती हैं, "आप हर समय विदेश में नहीं रह सकते." यह राहुल गांधी का एक कुंद मूल्यांकन है, जिनकी ग्राउंड पर कम उपस्थिति विरोधियों द्वारा बार-बार चिह्नित की जाती रही है. संगठन पर भी टिप्पणी करते हुए ममता ने कहा, "यूपीए क्या है? कोई यूपीए नहीं है." कांग्रेस के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय गठबंधन को उन्होंने एक मिथ्या और असंतोषजनक गठबंधन करार दिया है.
अगर गांधी परिवार के नेतृत्व वाली कांग्रेस पर उनकी राय ऐसी है और स्पष्ट है, तो इसका निहित अर्थ है: पीएम बनर्जी. हालांकि 66 वर्षीय ममता खुद को "LIP" या "कम से कम महत्वपूर्ण व्यक्ति" कहना पसंद करती हैं, लेकिन वह जानती हैं कि अगर कभी देश के शीर्ष पद के लिए ऑडिशन देने का कोई सही समय है, तो वह अभी ही है.
मई में, एक व्हीलचेयर की परिधि से ही उन्होंने पश्चिम बंगाल में शानदार जीत हासिल की थी और हैट्रिक लगाते हुए तीसरी बार राज्य की मुख्यमंत्री पद पर वापसी कीं. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में उनके खिलाफ आक्रामक चुनावी अभियान के बावजूद उन्होंने न केवल रिकॉर्ड संख्या हासिल की बल्कि प्रभावशाली तरीके से सत्ता में वापसी भी की.
ममता बनर्जी की यह जीत विपक्ष के लिए अनुकरणीय है क्योंकि ऐसा समझा जा रहा था कि प्रधान मंत्री मोदी चुनावों में अजेय हैं और जहां-जहां उन्होंने चुनाव प्रचार में मुख्य भूमिका निभाई हो, वहां बीजेपी की जीत तय है लेकिन बंगाल चुनावों में बीजेपी को परास्त करने वाली ममता बनर्जी ने अब भारी राजनीतिक पूंजी जमा कर ली है और अब उसी पूंजी को खर्च कर रही हैं. इस कड़ी में वह न केवल कांग्रेस को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में नपुंसक करार दे रही हैं बल्कि बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय लड़ाई में वह खुद को आक्रामक योद्धा और अगुवा मान रही हैं.
इस दिशा में, उन्हें चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर या "पीके" का सहयोग मिल रहा है, जिन्होंने बंगाल चुनाव अभियान को डिजाइन करने में मदद की थी और उस दौरान सबसे करीबी सलाहकारों में से एक बनकर उभरे थे. पीके ने पहले पंजाब जैसे राज्यों में कांग्रेस के साथ काम किया था और ममता बनर्जी की दोबारा ताजपोशी करवाने के बाद उन्होंने कांग्रेस में शीर्ष भूमिका के लिए गहन बातचीत भी शुरू की थी. बातचीत सीधे गांधी परिवार के साथ हुई थी, लेकिन उत्तर प्रदेश और पंजाब में होने वाले चुनावों में पीके की भूमिका और जवाबदेही पर मतभेदों के कारण बातचीत विफल हो गई थी.
तभी से, ऐसा लगता है कि पीके ने कांग्रेस को अपने डार्ट बोर्ड के केंद्र में रखा है. वह एक के बाद एक प्रहार करते हुए कांग्रेस की स्थिति को और कमतर और कमजोर करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. हालांकि, ममता बनर्जी और उनके लिए यह खुशी की बात है कि उनके जैसा एक स्किल्ड पर्सन, गोवा से लेकर मेघालय तक में, कांग्रेस नेताओं को ममता बनर्जी की पार्टी में शामिल कराने के लिए हेडहंटर के रूप में मिल गया है. इनमें से कई नेताओं ने सार्वजनिक रूप से पीके को ही टीएमसी में लाने का श्रेय दिया है. ऐसा लगता है कि गांधी परिवार ने एक गलत आदमी को झुका दिया.
ममता बनर्जी की यात्रा कड़ियों में जल्द ही और नेताओं के साथ मीटिंग होने की संभावना है क्योंकि वह अन्य नेताओं से मिलकर यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि क्या वे केंद्र में नए रूप में उन्हें स्वीकार करेंगे? हालांकि, तथ्य यह भी है कि महाराष्ट्र सरकार में सहयोगी पार्टी कांग्रेस, जो कुछ अन्य राज्यों में भी शासन करती है, ने अपनी आंखें नहीं मूंदी हैं क्योंकि इससे उनकी धारणा न केवल प्रबल होगी बल्कि उनका हौसला भी बढ़ेगा.
ममता ने मुंबई में कहा, "शरद जी ने जो कहा (वह है) लड़ने वालों का एक मजबूत विकल्प होना चाहिए लेकिन अगर कोई लड़ नहीं रहा है तो हम क्या करें?" उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि कांग्रेस की जड़ता अब उन उन लोगों को दबा रही है जो भाजपा को हराना चाहते हैं.
शरद पवार हमेशा की तरह अधिक चौकस हैं. वह एक चतुर राजनीतिज्ञ रहे हैं जो राजनीतिक दबाव बनाने या बिगाड़ने के खेल के माहिर माने जाते हैं. उनकी पार्टी और ममता बनर्जी की पार्टी, दोनों का जन्म कांग्रेस से ही हुआ है और वे कांग्रेस विरोध को भी प्रतिबिंबित करते रहे हैं. साथ ही दोनों नेता राहुल गांधी के प्रति एक अप्रभावी राय भी रखते हैं.
गौरतलब है कि शरद पवार ने पहले एक मौके पर कांग्रेस को अपनी जमीन खो चुका "पुराना जमींदार" कहा था.
शरद पवार की पार्टी के एक नेता ने मुझसे कहा, "कांग्रेस (अभी भी) राहुल गांधी को बनाने की कोशिश कर रही है. देश ने पहले ही तय कर लिया है कि उनका नेतृत्व नहीं होगा. हमें आगे बढ़ना होगा. अगर कांग्रेस सो रही है तो, यह हमारी समस्या नहीं है." यहां तक कि राहुल गांधी के आलोचक भी मानते हैं कि अपनी सभी विफलताओं के बावजूद, वह एक ऐसे नेता हैं जो किसी भी तरह से भाजपा और इसकी बहुसंख्यकवाद की राजनीति पर अपने रुख को नरम करने से इनकार करते रहे हैं.
ममता बनर्जी जिस रास्ते पर चल रही हैं, उससे इतनी आश्वस्त हैं कि हाल ही में उन्होंने बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, जो ढीले तोप और आदतन गांधी परिवार को कोसने वाले नेता माने जाते हैं, से भी मुलाकात की. इस मुलाकात का अचेतन संदेश यही है कि वह गांधी विरोधी किसी भी राजनेता के साथ टाई अप करने में नहीं सकुचाएंगी.
विपक्षी एकता के लिए भविष्य स्पष्ट होता जा रहा है: ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे राजनेता जानते हैं कि पीएम मोदी, जिनका करिश्माई व्यक्तित्व और मतदाताओं से जुड़ाव उनकी सबसे बड़ी संपत्ति है, को हराने के लिए गंभीर प्रयास करने के लिए उन्हें एक साथ काम करने की जरूरत है, लेकिन वे अपनी क्षेत्रीय पहचान और पार्टियों को राष्ट्रीय राजनीति की सीढ़ी पर ऊपर ले जाने के लिए गोवा जैसे राज्यों में कांग्रेस द्वारा छोड़े गए स्थान पर जल्दी से कब्जा करने के लिए दृढ़ संकल्पित होना होगा.
कांग्रेस उनके लिए इसे कठिन नहीं बना रही है. कई चुनावी हार के बाद, कांग्रेस बिना बहुत कुछ प्रदर्शन करते हुए स्वयं सहायता गलियारे में भटकती रहती है. महाराष्ट्र में, जहां पार्टी के नेता अक्सर शिकायत करते हैं कि राहुल गांधी शिवसेना के साथ गठबंधन करने के खिलाफ हैं, भले ही वह पार्टी को सत्ता में बनाए रखें. वहां कांग्रेस के विधायक भी शरद पवार की टीम में जाने के लिए तैयार हैं, अगर वहां ऐसी स्थितियां बनती हैं तब.
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि क्षेत्रीय नेता अक्सर बड़े हिस्से का लालच करते रहते हैं. ऐसे में ममता बनर्जी एक्सप्रेस उनके बीच आ रही है और उस पर सवार होने के लिए टिकट भी उपलब्ध हैं.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं…)
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