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This Article is From Jun 29, 2016

सातवां वेतन आयोग, कहीं लाया खुशी तो कहीं दे गया गम....

Shikha Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 29, 2016 23:56 pm IST
    • Published On जून 29, 2016 23:56 pm IST
    • Last Updated On जून 29, 2016 23:56 pm IST
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। इस ऐलान के बाद लाखों सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों के हाथों में ज्यादा पैसा आएगा। इस रिपोर्ट में सरकारी कर्मचारियों की बेसिक सैलरी में 14.27 फीसदी बढ़ोत्तरी की सिफारिश की गई थी। यह खबर आज जैसे ही आई, वैसे ही हमारे पूरे ऑफिस में अफरा-तफरी मच गई। अलग-अलग एंगल से इस मुद्दे पर स्टो‍री प्लान होने लगीं। आम लोगों के बीच भी यह खबर आग की तरह फैली। लोग सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों में अपने काम की चीजें तलाशने लगे। खबर के प्रति लोगों की दिलचस्‍पी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि खबर के आते ही सातवां वेतन आयोग इंटरनेट पर ट्रेंड करने लगा। तभी मेरे फोन की घंटी बजी...।

मैंने दूर पड़े फोन को उठाया तो देखा मेरे एक अंकल का फोन था। काम काफी ज्यादा था, इसलिए सोचा कि फोन का जवाब न दूं। लेकिन पारिवारिक रिश्ते होने के नाते फोन उठाना पड़ा। कारण यह भी है कि उनकी तीन बेटियां हैं। सबसे बड़ी बेटी सुनीता की शादी दिसंबर में होने वाली है। लगा कि सुनीता की शादी के बारे में कोई बात करनी होगी। इसलिए मैंने फोन उठा लिया।

सामने से अंकल ने कहा, 'हैल्लो, शिखा, कैसी हो बेटा? काम कैसा चल रहा है तुम्हारा? इस समय तो तुम ऑफिस में हो न?' एक साथ उन्होंने तीन सवाल मुझ पर दाग दिए। लेकिन काम की अफरा-तफरी में मैंने सिर्फ एक का जवाब दिया। 'ऑफिस में हूं अंकल, बताइए कैसे फोन किया...?' अंकल की आवाज से पता चल रहा था कि वह सवाल अभी तक उन्होंने किया ही नहीं है, जिसके लिए असल में उन्होंने फोन किया है। 'बेटा सुना है कि सातवें वेतन आयोग को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है? अब लोगों की तनख्वाह बढ़ जाएगी? क्या हमारी सैलरी भी अब बढ़ जाएगी?' अंकल ने फिर एक साथ मेरे ऊपर कई सवाल दाग दिए।

इन अंकल के बारे में बता दूं कि इनका नाम रमेश सिंह है। वह ज्‍यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं और एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं। तनख्वाह ज्यादा नहीं है, इसलिए महंगाई के इस दौर में मुश्किल से घर का खर्च पूरा कर पाते हैं। ऊपर से दिसंबर में सुनीता की शादी होने वाली है। शादी के समय जितना पैसा हाथ में होता हो,  उतना कम। इसलिए सातवें वेतन आयोग के बारे में सुनकर अंकल की बांछें खिल गई थीं, यह उनकी आवाज से पता चल रहा था। उन्हें लगा था कि शायद अब उनकी तनख्वाह भी कुछ बढ़ जाएगी...।

लेकिन, मैं जानती थी कि मेरा जवाब अंकल को निराश करने वाला था। इसलिए मैं कुछ देर तक चुप रही, उधर से अंकल बोले, 'बेटा क्या हुआ...?' मैंने हिम्मत जुटाई और कहा कि अंकल सातवें वेतन आयोग से प्राइवेट सेक्टर में काम करने वालों की सैलरी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यह सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिए है।

इस जवाब के बाद अंकल की सारी खुशी एक पल में ही उदासी में बदल गई। उनके मुंह से सिर्फ एक ही शब्द निकला, 'अच्छा...!' उस समय कुछ पलों की खामोशी मानों सब कुछ बयां कर रही थी। मुझे पता था कि अब अंकल के पास पूछने और कहने के लिए कुछ बचा नहीं है। अंकल ने सातवें वेतन आयोग को कैबिनेट की मंजूरी की खबर सुनने के बाद जो सपने बुने थे, वे टूट चुके हैं। उन्हें पता चल गया था कि अप्रैल में जो नाम मात्र को उनकी तनख्वाह में इजाफा हुआ उसी में उन्हें सबकुछ करना है। घर का खर्च, बच्चों की पढ़ाई का खर्च और सुनीता की शादी, सब कुछ इसी तनख्वाह में करना है।

मुझे लगता है कि मेरा जवाब सुनकर अंकल ने एक बार को जरूर सोचा होगा कि काश वे भी सरकारी कर्मचारी होते, तो आज उनकी तनख्वाह बढ़ जाती और मुश्किलें घट जातीं... आज उनके घर में भी जश्‍न का माहौल होता... भविष्‍य को लेकर नई-नई योजनाएं बनाई जातीं...।

उनसे बात करने के बाद मुझे महसूस हुआ कि कैबिनट की यह मंजूरी कुछ को खुशी तो जरूर दे रही है, लेकिन जिनको इससे दुख और निराशा हुई है वह अब केवल अपने अगले अप्रैजल का इंतजार कर रहे होंगे...।

शिखा शर्मा एनडीटीवी में कार्यरत हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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