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This Article is From Jun 02, 2022

हार्दिक का बीजेपी में हार्दिक स्वागत, कश्मीरी पंडितों का फिर से पलायन?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 02, 2022 23:30 pm IST
    • Published On जून 02, 2022 23:22 pm IST
    • Last Updated On जून 02, 2022 23:30 pm IST

हार्दिक पटेल कांग्रेस से पलायन कर बीजेपी में आ गए तो कश्मीर में अनंतनाग से कश्मीरी पंडित पलायन करने लगे हैं. इन बड़ी ख़बरों के बीच किसी के हाथों बिक जाने की ख़बरों को गलत बताते हुए हरियाणा कांग्रेस के विधायक कहते रहे कि हम सब एक हैं. कोई नहीं टूट रहा है. राजनीति आलोचना की परवाह नहीं करती है और आलोचना भी राजनीति की परवाह नहीं करती है. दोनों एक ही अपार्टमेंट में रहते हैं, मगर अलग-अलग फ्लैट में. किसी को किसी से दिक्कत नहीं होती है. बस गेट पर सीसीटीवी कैमरा लगा देते हैं, ताकि पता रहे कि कौन आ रहा है और कौन जा रहा है. हर दल बदल की घटना असाधारण नहीं होती है लेकिन इस घटना में जो हार्दिकता है, वह दलबदल की कम ही घटनाओं में होती हैं. जिस हार्दिक पटेल पर बीजेपी सरकार ने देशद्रोह का मामला दर्ज किया, आज उसी हार्दिक का बीजेपी ने स्वागत किया. देशद्रोह के आरोप में हार्दिक पटेल 9 महीने जेल रह चुके हैं, अब बीजेपी में रहेंगे. बीजेपी जिन लोगों को देशद्रोही कहेगी, उन्हें घबराने की ज़रूरत नहीं है बल्कि खुश हो सकते हैं कि उनका एक घर जेल में है तो दूसरा बीजेपी में भी हो सकता है.

बीजेपी में शामिल होते हुए हार्दिक ने कहा कि किसी ने मुझसे ऐसा नहीं कहा कि आपका बीजेपी में स्वागत है, सबने बोला कि आपका फिर से आपके घर में स्वागत है. बस जैसे-जैसे कोई पापा से चॉकलेट मांगता है, और पापा दांत खराब होने के कारण चॉकलेट नहीं देते हैं, ऐसी कुछ लड़ाई थी. बताइये चॉकलेट की लड़ाई इतनी बड़ी हो गई कि इसके लिए हार्दिक पटेल ने अमित शाह की तुलना जनरल डायर से लेकर तानाशाह तक से कर दी है. एक न्यूज़ चैनल के इंटरव्यू में गुंडा तक बोल दिया. क्या गुजरात में चॉकलेट इतना महंगा हो गया है कि हार्दिक को ये सब बोलना पड़ा. 

क्या-क्या नहीं ट्विट किया है हार्दिक ने अमित शाह के बारे में. इसके बाद भी अगर बीजेपी में स्वागत है तब इसका मतलब है कि हार्दिक बड़े नेता बन गए हैं. उनके लिए पार्टी हर तरह के शरबत के घूंट पीने को तैयार है.  राजनीति में अपमान के घूंट को शरबत के घूंट होता है. कुछ तो बात होगी हार्दिक में.

यह सब वे लिखित प्रमाण हैं जो अब हार्दिक ने डिलिट कर दिए हैं. ट्विट में तो हार्दिक ने गृहमंत्री अमित शाह की तुलना जनरल डायर से कर दी थी. लिखा है कि जिस GMDC मैदान में आरक्षण समर्थकों पर जनरल डायर ने हमला किया, अगर वह गुजरात का मुख्यमंत्री बनेगा तो अमित शाह के खिलाफ आंदोलन होगा. उस समय आनंदीबेन पटेल को हटाकर अमित शाह को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा चला करती थी. इतना कहने के बाद भी हार्दिक का हार्दिक अभिनंदन अमित शाह की पार्टी में हो रहा है. 29 मार्च 2017 का एक ट्विट है इसमें हार्दिक लिखते हैं कि योगी ने कहा गुंडे यूपी छोड़ दें तो अमित शाह गुजरात आ गए. क्या इन पंक्तियों में लेखक हार्दिक गुंडे की उपमा गृह मंत्री के लिए नहीं दे रहे? हार्दिक ने अमित शाह की तुलना तानाशाह से भी की है.अमित शाह से अपनी जान को ख़तरा तक बता चुके हैं. प्रधानमंत्री को फेकू कह चुके हैं और बीजेपी को हिटरलशाही.

इसका मतलब यह नहीं कि जो लोग अमित शाह या प्रधानमंत्री की आलोचना करते हैं, उनके खिलाफ अभद्र टिप्पणियां तक कर देते हैं, उनके जेल जाने का खतरा टल गया है. ऐसा सोचने वाले मेरे साथ पुरानी ख़बरों का रिविज़न कर लें तो बेहतर रहेगा.

किस्मत उन्हीं की ख़राब निकली जो प्रधानमंत्री की आलोचना करने के कारण जेल गए और ज़मानत के लिए तरस गए. ऐसे लोगों को प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी की उदारता का लाभ नहीं मिलने वाला है. अगर मिला होता तो ये सारे लोग बीजेपी में हो सकते थे और कानून व्यवस्था का समय बचता. इन्हें जेल में डाले रखने के लिए सरकारी वकीलों पर जनता का पैसा खर्च होने से बच जाता.

हार्दिक ने बीजेपी में आने से पहले 2000 से अधिक ट्विट डिलिट कर दिए हैं. 2000 से अधिक ट्विट करने में कितनी मेहनत लगी होगी. बीजेपी में आने से पहले हार्दिक ने इतनी मेहनत की है तो अब आने के बाद कितनी मेहनत करेंगे, सोच सकते हैं. इसलिए उन्होंने बीजेपी का छोटा सा सिपाही बताया है और यह बात सब जानते हैं कि सिपाही थानेदार से ज़्यादा काम करता है. अब आते हैं आईटी सेल और उन समर्थकों पर जो कल हार्दिक को गाली दिया करते थे, आज के बाद से हार्दिक का स्वागत किया करेंगे. क्या वे लोग भी अपना पोस्ट और कमेंट डिलिट कर रहे हैं. अगर ऐसा हो रहा है तो इसका पता लगाना चाहिए. पता चला कि इस समय भारत में सबसे बड़ा डिलिट अभियान चल रहा है. 

एक ट्विट अमित मालवीय का है जो बीजेपी आईटी सेल के चीफ हैं लिखते हैं कि कांग्रेस और आप के पोस्टर ब्वाय हार्दिक पटेल ने तीस लाख की हेराफेरी की है. ऑल्ट न्यूज़ के ज़ुबेर ने अमित मालवीय का पुराना ट्विट साझा किया है इसमें अमित मालवीय हार्दिक के बारे में कह रहे हैं कि नेहरु का DNA है. इस ट्विट के साथ नेहरू की कई तस्वीरें साझा की गई हैं जिनका मकसद है उन्हें अय्याश बताना. अमित मालवीय का यह ट्विट अब डिलिट हो चुका है. जु़बेर का दावा है कि उन्होंने सेव करके रख लिया था. हार्दिक के ट्विट भी कुछ लोगों ने डाउन लोड करके रख लिए हैं.

ट्विट को डिलिट करने की आवश्यकता नहीं. पुराना निकाल कर दिखा देने से राजनीति में तब फर्क पड़ता है जब जनता को फर्क पड़ता है. अगर जनता फर्क न पड़ने की घोषणा कर दे तो कोई किसी भी पार्टी में रहे किसी को फर्क नहीं पड़ना चाहिए. लिखित प्रमाण का रोल खत्म हो गया है.

नितिन पटेल ने बीजेपी की टोपी पहनाई जिन्हें हार्दिक पटेल बेचारा फटा हुआ स्पीकर बोल चुके हैं. नितिन पटेल ने भी हार्दिक को टारगेट किया था मगर ऐसी भाषा में नहीं. 2017 में नितिन भाई पटेल का बयान है हार्दिक पटेल ने अपना सच्चा रंग दिखा दिया है. हार्दिक को कांग्रेस में चले जाना चाहिए. हम लंबे समय से कहते रहे हैं कि ये कांग्रेस का एजेंट है. नितिन पटेल की बात सही निकली, हार्दिक कांग्रेस में गए, अब बीजेपी में भी आ गए हैं. समझ नहीं आ रहा है कि इस केस में सज़ा किसे मिल रही है, फल किसे मिल रहा है. 

बीजेपी में आने के दिन हार्दिक पटेल ने अपने ट्वीट में चार प्रकार के हित बताए हैं. राष्ट्रहित, प्रदेश हित, जनहित और समाज हित. 2015 में जब पटेल आरक्षण का मुद्दा गरमाया था, तब छात्र हित भी हुआ करता था. छात्र हित आज की सूची में नहीं है. 

हार्दिक की कथा बहुत सात्विक है. इसलिए मार्मिक है. चूंकि मार्मिक है तो ज़ाहिर है धार्मिक भी है. कांग्रेस से इस्तीफा देते ही, उसे हिन्दू विरोधी बताने लगे ताकि जनता में संदेश जाए कि वे धर्म के लिए बीजेपी में जा रहे हैं. अभी तक लोगों पर आरोप लगता था कि वे जांच एजेंसियों के प्रकोप से बचने के लिए बीजेपी में भागे जा रहे हैं लेकिन अब धार्मिक होने के लिए भी बीजेपी में जाने लगे हैं. ऐसा लगता है हार्दिक कांग्रेस में फील्ड सर्वे करने गए थे कि पार्टी कितना धर्म विरोधी है. अब वहां से सर्वे रिपोर्ट लेकर जैसे बीजेपी में आ गए हैं. दल बदल में लगता है आ की मात्रा छूट गई है. इसका नाम अब बदल की जगह बदला कर देना चाहिए. एक दल में रहते हुए दूसरे दल से बदला लेने वाले, जब उस दल में किसी के बदले के शिकार हो जाते हैं तब दूसरे दल में आ जाते हैं और फिर पहले दल से बदला लेने लगते हैं. दल-बदल के कई रूप और कारण होते हैं. लेकिन सोचिए उस आंदोलन में शामिल लोगों को आज कैसा लग रहा होगा, हो सकता है, उन्हें अच्छा भी लग रहा हो लेकिन हम और आप सोच तो सकते ही हैं

2015 में जब गुजरात में पाटीदार आरक्षण आंदोलन भड़का था. कई जगहों पर भयंकर हिंसा हुई थी. मेहसाणा में गृह मंत्री रजनी पटेल के दफ्तर में भी तोड़फोड़ हो गई थी. इस हिंसा में सरकारी संपत्तियों को भारी नुकसान पहुंचा. कई लोग घायल हुए और 14 पाटिदार मारे गए थे. विसनगर के बीजेपी विधायक ऋषिकेश पटेल के दफ्तर में आगजनी और हिंसा हुई थी. इस मामले में हार्दिक पटेल के खिलाफ कई धाराएं लगाई गईं, विसनगर कोर्ट ने हार्दिक को दो साल की जेल की सज़ा सुनाई लेकिन ज़मानत मिल गई. ऋषिकेश पटेल इस समय गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री हैं और अब तो दंगा करने वाले हार्दिक पटेल बीजेपी में आ गए हैं. हार्दिक को ज़मानत मिल गई और मेहसाणा ज़िले में प्रवेश पर रोक लगी है. इस फैसले के खिलाफ हार्दिक गुजरात हाईकोर्ट गए लेकिन वहां अपनी अपील वापस ले ली. हार्दिक अब मेहसाणा जाते हैं या नहीं, जा सकेंगे या नहीं, इसकी स्पष्ट जानकारी मुझे नहीं है. 2015 के पाटिदार आंदोलन के समय  400 से अधिक मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से कई मामलों को वापस भी ले लिया गया था. 2015 से 2018 के बीच दर्ज हुई 30 FIR में हार्दिक पटेल का नाम था. 22 मई के इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि हार्दिक पटेल 11 FIR में दर्ज मामलों में कोर्ट की सुनवाई का सामना कर रहे हैं. अक्तूबर 2015 में हार्दिक पटेल को देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार किया गया था. 9 महीने तक जेल में रहे थे. देशद्रोह का मामला अब भी चल रहा है. देशद्रोह की जगह राजद्रोह ही सही शब्द है लेकिन राजनीति में इसके बदले देशद्रोह का ही इस्तेमाल किया जाता है. तो हमारा बेसिक सवाल यही है कि कौन बदल गया है. देशद्रोही या राष्ट्रवादी? 

इसी साल 22 मार्च को लोकसभा में गृह राज्य मंत्री ने जवाब दिया है कि गुजरात में 2015 में देशद्रोह के दो मामले दर्ज हुए हैं. इनमें हार्दिक पटेल के खिलाफ दर्ज मामला भी है. बाकी 2014, 2016, 17,18, 19 में गुजरात में देशद्रोह का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है. ज़ाहिर है बीजेपी के लिए देशद्रोह का मामला गंभीर रहा होगा लेकिन जिस पर देशद्रोह का मामला दर्ज हो क्या वह भी राष्ट्रवादी पार्टी में आ सकता है? जब बीजेपी हार्दिक पटेल पर देशद्रोह का मामला लगाकर पार्टी में ले सकती है तो इसका इंतज़ार करना चाहिए कि पाटिदार आरक्षण के समय दर्ज मामले भी वापस ले लिए जाएंगे. 

हार्दिक का संकट राजनीति से बाहर होने वाले आंदोलनों का भी संकट है. दलों की सरकार के खिलाफ होने वाले ऐसे आंदोलन जब खत्म होते हैं तब इनके आंदोलनकारी पता करने लग जाते हैं कि अब क्या करें. इतने केस मुकदमे से घिर जाते हैं कि जान छुड़ाने के लिए इस दल से उस दल में एडजस्ट होते रहते हैं. और अंत में उस सत्ताधारी दल में ही चले जाते हैं जिसके खिलाफ आंदोलन करते हुए जेल जाते हैं. 

राज्य सभा का चुनाव चल रहा है. किसी को नहीं पता कि उनका विधायक कहां जा रहा है. पैसे वाले मैदान में कूद गए हैं इसलिए विधायकों को उनसे बचाने के लिए महंगे होटलों में रुकाया जा रहा है. हरियाणा कांग्रेस के विधायक ज़ोर ज़ोर से कह रहे हैं कि वे एक जुट हैं.

दल बदल कानून बेमानी हो चुका है. इसे लेकर अब कोई नैतिकता नहीं बची है. लेकिन अगर आपको लगता है कि हार्दिक पटेल का दल बदल बड़ी घटना है, क्योंकि उन पर राजद्रोह का केस चल रहा है फिर भी बीजेपी ने अपनी पार्टी में लिया है तब आपको अजित पवार का केस याद करना चाहिए.

23 नवंबर 2019 की सुबह 8 बजकर 11 मिनट पर मीडिया में सनसनी फैली और गोदी मीडिया ने मास्टर स्ट्रोक करार दिया. उद्धव शपथ की तैयारी कर रहे थे लेकिन फोटो आ गया देवेंद्र फड़णवीस के शपथ ग्रहण का. उनके साथ  NCP के बड़े नेता अजित पवार ने भी शपथ ली और उपमुख्यमंत्री बनाए गए. राजनीति में इसे मास्टर स्ट्रोक बताया गया कि बीजेपी ने शरद पवार की पार्टी तोड़ दी. 80 घंटे तक बीजेपी सरकार चलती है और यह सरकार पहले लिए गए फैसलों में अजित पवार पर भारी उपकार करती है. अजीत पवार इस्तीफा देकर अपनी उस एनसीपी को लेकर एनसीपी में चले जाते हैं जिस एनसीपी को लेकर बीजेपी में आए थे. बीजेपी में भी उपमुख्यमंत्री बनते हैं और शिवसेना एनसीपी कांग्रेस सरकार में भी उप मुख्यमंत्री बन जाते हैं.  28 नवंबर के इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि एंटी करप्शन ब्यूरो ने सिंचाई विभाग के घोटाले में 99 मामले वापस ले लिए. 24 FIR बंद कर दी गई. इस घोटाले में अजित पवार के भी खिलाफ़ जांच चल रही थी. जिनके बारे में बीजेपी चुनावों में दावा करती थी कि कई हज़ार करोड़ के घोटाले हुए हैं लेकिन सरकार बनाने के लिए मामले बंद कर देती है. तब वैसे कहा गया की यह मामले वह नहीं थे जो पवार के खिलाफ़ थे. इस तरह मामलों को बंद कराकर साढ़े तीन दिन बाद अजीत पवार दूसरी सरकार में आ जाते हैं. 20 दिसंबर को इकनॉमिक टाइम्स में लिखा है कि महा विकास आघाडी सरकार बनने के एक महीने बाद एंटी करप्शन ब्यूरो अजित पवार को सिंचाई विभाग के 12 घोटाले में क्लीन चिट दे देता है. और तब से अजित पवार उद्धव ठाकरे सरकार में उप मुख्यमंत्री मंत्री हैं. 

दल बदल के इतिहास में अजित पवार का मामला क्लासिक है. कम से कम उन्होंने इसका फायदा उठाकर अपने खिलाफ चल रही जांचों को उस पार्टी की सरकार से बंद करवा दिया जिस पार्टी ने उन पर आरोप लगाए थे. हार्दिक पटेल तो ख़ाली हाथ चले गए हैं. इसका जवाब यही है कि कांग्रेस भी तो करती है या फिर प्रधानमंत्री ही बता सकते हैं कि कैसे घोटाले का आरोपी उनकी पार्टी की सरकार में उप मुख्यमंत्री बन जाता है और शपथ लेते ही जांच बंद हो जाती है. बशर्ते वे प्रेस कांफ्रेंस करें तो. आम कैसे खाते हैं पूछने वाले पत्रकार अक्षय कुमार ही यह सवाल पूछ सकते थे लेकिन इन दिनों अक्षय कुमार इतिहासकार बन गए हैं. हम इस प्रसंग को यहीं छोड़ देते हैं क्योंकि कुछ पता नहीं अक्षय कुमार कल आइंसटीन बन कर आ जाएं. कब क्या हो जाए पता नहीं. कश्मीर में आतंकवाद का मामला अलग ही मोड़ लेता जा रहा है. गोदी मीडिया चाहे जिनती कोशिश कर ले कि इस मसले को धार्मिक रूप दे दे लेकिन आतंकी हमले नाकामी की दूसरी कहानी कहने लगे हैं. आज उसी कुलगाम में विजय कुमार की हत्या कर दी गई जिस कुलगाम में दो दिन पहले रजनी बाला को गोली मारी गई थी. 

आज आतंकवादियों ने देहाती बैंक के एरिया मैनेजर विजय कुमार बेनीवाल को गोली मार दी. सीसीटीवी फुटेज से पता चलता है कि आतंकवादी ब्रांच में घुसते ही गोली चलाने लगे और मार कर लौट गए. विजय कुमार को अस्पताल ले जाया जाता है लेकिन उन्हें नहीं बचाया जा सका. 72 घंटों के भीतर कुलगाम में आतंकवादियों का यह दूसरा टारगेट अटैक है. विजय कुमार राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले के भगवान गांव के रहने वाले हैं. विजय के पिता ओम प्रकाश बेनीवाल एक सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं. छह महीने पहले विजय की शादी हुई थी. जुलाई में गांव आने वाले थे. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विजय कुमार की हत्या की निंदा की है और एनडीए सरकार पर आरोप लगाया है कि कश्मीर में शांति बहाली नहीं कर पा रही है. विजय की हाल ही में उनकी पोस्टिंग कुलगाम में हुई थी. मंगलवार को कुलगाम के ही स्कूल टीचर रजनी बल्ला की हत्या कर दी गई थी. शोपियां में भी फारूक़ अहमद को आतंकवादियों ने निशाना बनाया. फारूक़ घायल हैं. दूसरी तरफ आज आतंकी हमले में तीन जवान भी घायल हो गए हैं. इनमें से एक की हालत गंभीर बताई जा रही है. सेना के अनुसार ये जवान प्राइवेट गाड़ी में आपरेशन पर जा रहे थे.

नोटबंदी के बाद कहा गया कि कश्मीर में आतंकवाद समाप्त होगा. धारा 370 हटाने के बाद कहा गया कि आतंकवाद समाप्त होगा. अब तो पांच सौ के नकली नोटों के चलन में भी सौ फीसदी की वृद्धि हो गई है. धारा 370 के बाद कई आतंकवादी मारे गए, जिसके बाद कहा जाने लगा कि आतंकवाद काबू में आ रहा है लेकिन पिछले एक साल की घटनाएं बता रही हैं कि एक बार फिर से आतंकवाद बेलगाम होता जा रहा है. घाटी में आतंकवादी सभी समुदाय के लोगों को निशाना बना रहे हैं. ऐसा पहले कभी नहीं होता था. सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस के जवानों के साथ-साथ सिख, प्रवासी मज़दूर, अनुसूचित जाति, कश्मीरी मुसलमान और कश्मीरी पंडित को भी आतंकवादी निशाना बना चुके हैं. क्या सभी के पास घाटी छोड़ कर कहीं चले जाने के विकल्प हैं? कश्मीर के मुसलमान भी मारे जा रहे हैं, वे कहां चले जाएं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कश्मीरी पंडितों की असुरक्षा को अनसुना कर दिया जाए. उनके ख़तरों को कम समझा जाए. उनकी चिन्ता में वाकई दम है.

अनंतनाग से कुछ वीडियो आ रहे हैं जिसमें कश्मीर पंडित सामान लेकर जाते हुए दिख रहे हैं, इनके रोके जाने की ख़बर भी आ रही है. केंद्र में बीजेपी की सरकार के रहते कश्मीरी पंडितों को अगर भरोसा न हो कि वे कश्मीर में सुरक्षित हैं तो यह वाकई गंभीर मसला है. जिस कश्मीर में आतंकवाद को काबू में करने का दावा किया जा रहा है उस कश्मीर में ऐसी हालत हो गई है कि कश्मीर पंडितों ने पहले कई दिनों तक प्रदर्शन किया कि उन्हें जम्मू भेजा जाए, फिर कहने लगे कि नहीं भेजा गया तो पलायन करने लगेंगे. अब पलायन होने लगा है. यह कोई सामान्य दृश्य नहीं है. अगर 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के पलायन की जवाबदेही उस समय की सरकार की थी तो इस समय के सरकार की भी होनी ही चाहिए. आखिर तीन साल में कश्मीर में सरकार की नीतियों ने क्या हासिल किया कि कश्मीरी पंडित ही बैग उठाकर जाने के लिए उतारू हैं. रजनी बाला की हत्या के बाद ही कश्मीरी पंडितों ने अल्टीमेटम दे दिया था कि वे 24 घंटे के भीतर पलायन करेंगे. बुधवार को ट्रांजिंट कैंप को घेर लिया गया ताकि कोई पलायन न करे. कश्मीरी पंडितों को अब सुरक्षित जगहों पर भेजे जाने की बात हो रही है लेकिन अब उनका कहना है कि कोई जगह ही सुरक्षित नहीं बची है. वे पलायन करेंगे. ऐसा नहीं है कि आतंकवादी उन्हीं कश्मीरी पंडितों को निशाना बना रहे हैं जिन्हें प्रधानमंत्री पुनर्वास कार्यक्रम के वापस बसाया गया है बल्कि उन्हें भी बना चुके हैं जो पुरानी पीढ़ी के हैं और प्रथम पलायन के समय भी घाटी छोड़ कर नहीं गए. पिछले साल अक्तूबर में श्रीनगर के मशहूर दवा विक्रेता मक्खन लाल बिंदरू को निशाना बनाया गया था. मक्खन लाल बिंदरू का लोगों से ऐसा रिश्ता था कि हत्या की खबर से घाटी के हिन्दू मुसमलान सभी हिल गए और सभी ने मिलकर हत्या के खिलाफ प्रदर्शन किया था. 

हौसला उनका पस्त नहीं हो रहा है जो कश्मीर नीति की असफलता, आतंक को रोकने में केंद्र की असफलता पर सवाल करने के बजाए बार-बार इसे हिन्दू मुस्लिम चश्मे से देख रहे हैं. हिन्दी प्रदेशों के नेताओं के बयानों में भी एकतरफा पीड़ा झलकती है. बार बार ऐसे वक्त में कश्मीर के लोग हिन्दू मुसलमान का फर्क मिटाकर एक साथ आ रहे हैं लेकिन बार-बार गोदी मीडिया इसे हिन्दू मुसलमान का प्रश्न बना देता है. 

अक्तूबर में मक्खन लाल बिंदरू और इस मई में राहुल भट्ट की हत्या के समय एक ऐसा कश्मीर दिखा जो कभी नहीं दिखाया जाता है. उस कश्मीर के बिना सिख से लेकर अनुसूचित जाति और कश्मीरी पंडितों का वहां साथ रहना मुमकिन ही नहीं हो सकता है. 

कश्मीरी पंडितों की रैली में राहुल भट्ट अमर रहे का नारा लगा तो रियाज अमर रहे का भी नारा लगा. मगर मीडिया बार बार एकतरफा पीड़ित गढ़ता रहता है और दूसरे पक्ष की पीड़ा को गायब कर देता है. इससे खाई और बढ़ती है. 

उम्मीद है आप कश्मीर के हालात पर नेताओं के बयानों और व्हॉट्सएप यूनिवर्सिटी के अभियानों से अलग हटकर देखेंगे सोचेंगे. वैसे ये उम्मीद झूठी है. मैं जानता हूं कि आप अक्षय कुमार नहीं है, इसलिए आपसे उम्मीद नहीं कर सकता कि आप इतिहासकार बन जाएं. आम कैसे खाते हैं वो उनसे पूछ लीजिए, आम के नाम हम बता देते हैं. मालदा, दीघा मालदा, चौसा, रटौल, दशहरी, अल्फांसो, आम्रपाली, वनराज, सफेदा, केसर, हिमसागर, जर्दालु, लंगड़ा, बंबइया, बादामी, सिंदूरी, तोतापुरी, गुलाबख़ास. नीलम, मलीहाबादी. फिर मत कहिएगा कि हमें तो आम का नाम तक नहीं बताया गया, जैसे इन दिनों बोल रहे हैं कि हमें तो इतिहास में यह सब पढ़ाया ही नहीं गया. सारी पढ़ाई पढ़ाने से ही नहीं होती है. कभी-कभी खुद से भी पढ़ लीजिए.

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