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This Article is From Mar 04, 2022

यूक्रेन में युद्ध - छात्रों के लिए जितना प्रयास, उससे ज्यादा प्रचार

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    March 04, 2022 04:32 IST
    • Published On March 04, 2022 04:32 IST
    • Last Updated On March 04, 2022 04:32 IST

अपनी जेबें संभाल लीजिए, महंगाई का हमला होने वाला है. ऐसा नहीं था कि महंगाई चली गई थी, लेकिन जिस स्तर पर छुपकर आपकी जेबों को कुतर रही थी, अब वह जेबों से निकलकर पूरे कुर्ते को चट कर जाने वाली है. दो साल से कम कमाई और बेकारी की मार झेल रही जनता को अपनी जेब उलटनी पड़ सकती है ताकि जो भी खुदरा खुदरी बचा है वह भी निकल आए. जल्दी ही सारे एक्सपर्ट आपको बताने लगेंगे कि अंतरराष्ट्रीय कारणों से यह सब हो रहा है. इस समय चुनाव के कारण ये एक्सपर्ट चुप हैं.

यूपी की चुनावी सभाओं में अखिलेश यादव कहने लगे कि चुनाव के बाद पेट्रोल के दाम 200 रुपये लीटर हो जाने वाले हैं. अखबारों में ऐलान हो रहा है कि चुनाव होते ही यानी सात मार्च के आखिरी मतदान के बाद पेट्रोल 9-10 रुपया लीटर महंगा हो जाएगा. इस वक्त जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव 116 डॉलर प्रति बैरल हो गया है तब भी पेट्रोल और डीज़ल के दाम नहीं बढ़ रहे, क्योंकि चुनाव हैं. इस वक्त कंपनियां भी चुप हैं. सात मार्च के बाद सब अंतरराष्ट्रीय कारण जपने लगेंगे. पिछले साल अक्तूबर नवंबर में जब 75 डॉलर प्रति बैरल था तब पेट्रोल 110 रुपया पार चला गया था. अभी भी कई शहरों के लिए 95-109 के बीच दाम दे ही रहे हैं लेकिन चुनाव नहीं होता और कच्चे तेल का भाव 116 डॉलर प्रति बैरल होता तब पेट्रोल का दाम कितना होता, प्रधानमंत्री ही बता सकते हैं. यूपी चुनाव का शुक्रिया अदा कीजिए. 

पेट्रोल के दाम कहां तक बढ़ेंगे, कोई नहीं कह सकता. पुराने अनुभव को देखते हुए अनुमान ही लगाए जा सकते हैं. हां, अगर चुनावी सभा में प्रधानमंत्री कह दें कि दाम नहीं बढ़ेंगे तो और बात है. वैसे सरसों छोड़कर खाने के बाकी तेलों के दाम बढ़ने लगे हैं. 

प्रधानमंत्री भी युद्ध के असर की बात कर रहे हैं, मगर चुनाव में नहीं, वेबिनार में. चुनाव के लिए युद्ध को लेकर कुछ और भाषण है, आगे बताएंगे. प्रधानमंत्री की यह बात ठीक भी है कि पूरी दुनिया की इकॉनामी हिल गई है. लेकिन सात मार्च के बाद प्रधानमंत्री से सवाल सात फरवरी का उनका ही भाषण करने वाला है. उस दिन लोकसभा में प्रधानमंत्री ने  नेहरू की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि महंगाई के आगे नेहरू ने लाल किले पर हाथ खड़े कर दिए. तब उन्होंने खास तौर से ज़ोर देकर कहा था कि ये थे नेहरू.

पंडित नेहरू जी ने लाल किले पर से कहा था और ये उस जमाने में कहा गया था तब ग्लोबलाइजेशन इतना नहीं था, नाम मात्र का भी नहीं था. उस समय, नेहरू जी लाल किले से देश को सम्‍बोधन करते हुए क्या कह रहे हैं, कभी-कभी कोरिया में लड़ाई भी हमें प्रभावित करती है. इसके चलते वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं. ये थे नेहरू जी! भारत के पहले प्रधानमंत्री! कभी-कभी कोरिया में लड़ाई भी हमें प्रभावित करती है. इसके चलते वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं और यह हमारे नियंत्रण से भी बाहर हो जाती हैं. देश के सामने, देश का पहला प्रधानमंत्री हाथ ऊपर कर देता है. आगे क्‍या कहते हैं, देखो जी आपके काम की बात है. पंडित नेहरू जी आगे कहते हैं अगर अमेरिका में भी कुछ हो जाता है तो इसका असर वस्तुओं की कीमत पर पड़ता है. सोचिए, तब महंगाई की समस्या कितनी गंभीर थी कि नेहरू जी को लाल किले से देश के सामने हाथ ऊपर करने पड़े थे, नेहरू जी ने तब कहा था.

प्रधानमंत्री का भाषण ही प्रधानमंत्री के भाषण से सवाल कर रहा है, क्योंकि जिन्हें सवाल करना है वो जय जयकार कर रहे हैं. 24 फरवरी को रूस ने जब यूक्रेन पर हमला बोला तब गोदी मीडिया के स्क्रीन पर मिसाइलों से लेकर टैंकों का एनिमेशन बना दिया गया. गोदी मीडिया तो पुतिन के सीक्रेट प्लान के बारे में फ्लैश करने लगा. हज़ारों भारतीय यूक्रेन में उस प्लान के नीचे आने वाले हैं, बस इसका पता नहीं था. सात मार्च के बाद जब पेट्रोल महंगा होगा तब पुतिन का प्लान बताने वाला, पुतिन को पावरफुल बताने वाला गोदी मीडिया क्या करेगा?  उस समय जब आपका चेहरा सुर्ख़ होने लगेगा तब गोदी मीडिया की सुर्खियों को याद कीजिएगा.  “पुतिन की ताकत से बाइडन को भी लगता है डर?'',  “रुस जानता है अमेरिका की हर कमज़ोरी”,  “पुतिन की परमाणु शक्ति से बेबस पड़े बाइडेन”, “यूक्रेन में पुतिन का आपरेशन डोनबास एक्टिव”, “भारत का ये एहसान नहीं भूलेंगे पुतिन, पीएम मोदी ने आखिरकार निभाई दोस्ती”, “क्या राष्ट्रपति की ‘कॉमेडी' ने यूक्रेन को ‘ट्रेजडी' में धकेल दिया?”, “बम के अंदर बारूद नहीं पुतिन की चेतावनी छिपी थी”, “पुतिन से बड़े बड़े डर रहे हैं”, “रशिया के सामने जो आएगा... वह जान से जाएगा”... मज़े लेती ऐसी हेडलाइनों को हिन्दी का दर्शक समाज भकुआ कर देखने लगा. जिस तरह से पुतिन को परोसा गया उससे जनता को लगा कि नेता ऐसा ही होना चाहिए. अब वैसे ही नेता के चलते आप पेट्रोल पंप पर होली मनाने वाले हैं. 

इस तथ्य से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यूक्रेन से निकलने के लिए भारतीय छात्रों ने लाखों रुपये जमा किए और बस भाड़ा दिया, कई किलो मीटर पैदल चलते रहे, लेकिन मोदी सरकार जिस तरह से कामयाबी का जश्न मनाने लगी है उसका ज़मीन की सच्चाई से बहुत कम रिश्ता है. पीयूष गोयल ने यह कार्टून ट्वीट किया है. इसमें प्रधानमंत्री को एक नहर के बीच में खड़ा दिखाया गया है. उन्होंने अपनी बांहों को फैलाकर पुल बना दिया है जिस पर चढ़कर भारत के छात्र यूक्रेन से रोमानिया आ रहे हैं. यूक्रेन में गंगा नहीं है लेकिन आपरेशन का नाम तो गंगा है. गंगा नहर की शक्ल में है. गंगा पतली सी नहर है. कार्टूनिस्ट को पूरी छूट है कि वह कैसे भी चित्रण करे लेकिन जब एक मंत्री इसे ट्वीट करते हैं तब वह सरकार के दावे का प्रतिनिधि बन जाता है. फिर सवाल उठ सकता है कि क्या इसके ज़रिए जो तथ्य गढ़ा जा रहा है उसका संबंध ज़मीन के हालात से है? इसमें लगता है कि सारे कष्ट प्रधानमंत्री ने उठाए, छात्रों ने बस पुल पार किया. 

रोमानिया की सीमा के भीतर तंबू लगे हैं. यहां -4 डिग्री सेल्सियस तापमान है और तापमान -8 डिग्री सेल्सियम भी हो जाता है. दिनप्रो से 28 घंटे की यात्रा कर प्राची और उनके साथी यहां पहली मार्च को पहुंचे हैं. बस के किराये के लिए सबने अपनी अपनी जेब से 15000 रुपये दिए हैं. तीन मार्च को प्राची ने बताया कि भारत के लिए फ्लाइट मिलने में दो तीन दिन लग सकते हैं. तब तक इस हालत में छात्रों को यहां रहना है. एक तंबू में छह-छह छात्र हैं और एक ही हीटर है. रोमानिया से ही एक छात्रा भारत पहुंची तो उसने वहां का हाल बताया और यह भी कि रोमानिया की सीमा तक पहुंचना कितना मुश्किल था.

जो खुद से निकल कर आए हैं उन्हें सरकार निकालना कह रही है. इस पर बहस होनी चाहिए कि क्या ये इवेकुएशन है? ऐसा नहीं है कि छात्र सरकार के प्रयासों की तारीफ नहीं कर रहे हैं लेकिन उस प्रयास का जो प्रचार बनाया जा रहा है क्या उसमें छात्रों का संघर्ष शामिल किया जा रहा है? सरकार केवल अपने प्रयास का प्रचार कर रही है. जबकि ये छात्र बस के किराए के लिए लाखों रुपये देकर यूक्रेन की सीमा पर पहुंचे, वहां भी कई किलोमीटर पैदल चले हैं. तब  पार कर पोलैंड, रोमानिया और हंगरी पहुंचे. तब जाकर सरकार उन देशों से भारतीय छात्रों को लेकर आई है. हज़ारों मां-बाप ने देखा होगा कि प्रचार और वास्तविकता में क्या अंतर है. बाढ़ में आप खुद से तैरकर किनारे आ जाएं और किनारे पर पहुंचने के बाद सरकार आपको गले लगा ले और कहे कि उसी ने बचाया है तो तैराक का चेहरा देखा जाना चाहिए. यूपी के चुनावों में यूक्रेन का ज़िक्र आने लगा है. 

प्रधानमंत्री ने कहा, आज दुनिया में जो हालात बनें हैं वो आप देख रहे हैं. ये भारत का बढ़ता सामर्थ्य ही है कि हम यूक्रेन में फंसे हमारे देश के नागरिकों को वहां से सुरक्षित निकालने के लिए इतना बड़ा अभियान चला रहे हैं. मैं आज देश के लोगों को भी ये विश्वास दिलाता हूं कि भारत सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ेगी. 

कल ही विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि खारकीव में जो छात्र हैं वो शहर छोड़ दें. बस न मिले तो पैदल चल दें. क्या यह निकालना हुआ? खारकीव से बड़ी संख्या में छात्र लीव पहुंचे हैं और वहां से रोमानिया और हंगरी की सीमा तक लेकिन लीव में ही कई सौ छात्र अटके हुए हैं. लीव से हमें आज दोपहर तक वीडियो मिलते रहे कि वहां गोलियां चल रही हैं. बम गिर रहे हैं. एक एक बंकर में काफी संख्या में छात्र दिखते हैं. यह वीडियो दो मार्च का है. 

छात्रों का दावा है कि सुमी में हज़ार से अधिक भारतीय हैं. शहर के बीच में फंसे होने के कारण इनके लिए निकलना मुश्किल हो गया है. अखबारों में खबर एक दिन पहले छप जाती है कि रूस से बात हो गई है, भारतीय छात्रों को सुरक्षित रास्ता देने के लिए बात हो गई है लेकिन छात्र अभी भी बाहर निकलने का इंतज़ार कर रहे हैं. सफलता मिलने से पहले सफलता को भुनाने की होड़ शुरू हो गई है. सूमी में कई छात्र फंसे हैं. यहां फंसे भारतीय छात्रों का कहना है कि चीनी छात्र भी फंसे थे लेकिन ज्यादातर जा चुके हैं.  

आपरेशन गंगा का श्रेय सरकार ले सकती है लेकिन उसके लिए पूरा हो जाने का इंतज़ार किया जा सकता था. छात्र वहां सामने से बम और बंदूक देख रहे हैं और सरकार ने कहना शुरू कर दिया कि दिन रात काम हो रहा है. चार-चार मंत्री भेजे गए हैं. हमने विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी के ट्विटर हैंडल का अध्ययन किया. ज़रूर ट्विटर से दिन भर के सारे काम का पता नहीं चलता है और न ज़रूरी है कि हर बात की जानकारी दी जाए लेकिन यह देखने से पता चलता है कि उस दिनों में मंत्री जी ने क्या क्या ट्विट किए हैं. जब भारत में मां-बाप और यूक्रेन में हज़ारों छात्र अपनी जान को लेकर हाहाकार मचा रहे थे और सरकार दावा कर रही थी कि वह दिन रात काम कर रही है. पता चलता है कि हमारे मंत्री एक साथ कई महत्वपूर्ण कार्य करते हैं. युद्ध के हालात को संभालने के साथ साथ साइकलिंग और पैडलिंग को भी प्रमोट करते रहते हैं. 

24 फरवरी को जब रूस ने हमला किया मीनाक्षी लेखी ट्वीट करती हैं कि तीन साल पहले आज के ही दिन पीएम किसान सम्मान निधि की शुरुआत की गई थी. ये योजना आज देश के छोटे किसानों का बहुत बड़ा संबल बनी है. 24 फरवरी को प्रधानमंत्री की प्रयागराज में रैली थी, उनके 9 ट्वीट को विदेश राज्यमंत्री री-ट्विट करती हैं. 24 फरवरी को ही मीनाक्षी लेखी ने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का ट्वीट री-ट्वीट किया है जिसमें हेल्पलाइन नंबर दिए गए हैं. 25 फरवरी को यूक्रेन से संबंधित तीन RT करती हैं. 26 फरवरी को वे आफिस ऑफ मीनाक्षी लेखी के हैंडल से अपना बयान RT करती हैं कि यूक्रेन ने एयर स्पेस बंद कर दिया है लेकिन भारत अपने नागरिकों को ज़मीन के रास्ते लाने के लिए प्रतिबद्ध है. उसी 26 फ़रवरी को वे यहां भी हैं. आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में राजदूतों के साथ साइकलिंग और पैडलिंग को प्रमोट करते हुए ताकि पर्यावरण और स्वास्थ्य बेहतर हो सके. 26 फ़रवरी को दिल्ली के सीआर पार्क में विभिन्न सार्वजनिक सुविधाओं जैसे फुटपाथ, पार्क,गज़ेबो एवं रोड के उद्घाटन को 4 बजकर 40 मिनट पर मीनाक्षी लेखी एक ट्वीट करती हैं. लोगों का असीमित प्रेम देख मन प्रफुल्लित हुआ. हज़ारों मां-बाप और यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों का मन डूब रहा था लेकिन विदेश राज्यमंत्री जी का मन लोगों का असीमित प्रेम देख प्रफुल्लित हो रहा था. आपरेशन गंगा छोड़कर सीआर पार्क जाने का समय निकालना आसान काम नहीं है. यह भी एक काम है. 27 फरवरी को जब हालात बिगड़ जाते हैं और मां बाप हाहाकार कर रहे होते हैं उस दिन विदेश राज्यमंत्री मन की बात को लेकर दस री ट्वीट करती हैं. ट्वीट प्रधानमंत्री का था. लेकिन इस दिन के ट्वीट से पता चला है कि वे MEA के बनाए कंट्रोल रूम में गई हैं. 27 फरवरी को मीनाक्षी लेखी विदेश मंत्रालय की एडवाइज़री के दो ट्वीट को री ट्वीट  करती हैं. और उसी दिन वाराणसी में प्रधानमंत्री के कार्यकर्ता सम्मेलन का सीधा प्रसारण देखने के लिए भी ट्वीट करती हैं. 28 फरवरी के दिन प्रधानमंत्री आपरेशन गंगा को लेकर उच्चस्तरीय बैठक कर रहे थे उस दिन मीनाक्षी लेखी ट्वीट करती हैं कि कोयंबटूर में सदगुरु के आश्रम में हैं और मिट्टी की गुणवत्ता पर चर्चा कर रही थीं. वे सदगुरु के शो में थी, क्या  इस हंगामे में उनके पास दिल्ली से कोयबंटूर जाने का वक्त था? इस दिन आफिस ऑफ मीनाक्षी लेखी के हैंडल से एक नागरिक का ट्वीट री-ट्विट करती हैं जिसमें उसने मदद के लिए मीनाक्षी लेखी के प्रति आभार प्रकट किया है. मदद का संबंध यूक्रेन से ही है.एक मार्च को आफिस आफ मीनाक्षी लेखी से ट्वीट होता है कि  विदेश राज्यमंत्री ने दिल्ली में अमृत महोत्सव के तहत सांस्कृतिक संध्या का उदघाटन किया. एक मार्च को ट्वीट करती हैं कि सरकार ने यूक्रेन से नागरिकों को निकालने के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन शुरू की है. हमने कल गजेंद्र सिंह शेखावत का एक बयान दिखाया था जिसमें वे बता रहे थे कि विदेश मंत्रालय का एक एक अधिकारी दिन रात काम कर रहा है. विदेश राज्यमंत्री का ट्वीटर रिकार्ड बता रहा था कि वे इस दौरान साइकलिंग से लेकर सदगुरु के शो तक में हिस्सा ले रही थीं. 

प्रचार के चक्कर में अजब गज़ब की कहानी हो जा रही है. यह मौका है कि आप युद्ध के अलग अलग कारणों को देखें और समझें. इस युद्ध की जड़ें केवल नेटो और नात्ज़ी तत्वों में नहीं हैं. रक्षा कंपनियों के सीआईओ के कमरे में भी हैं. जिन्हें लाभ ही लाभ दिख रहा है.इन खबरों तक पहुंचने के लिए कई बार मुख्यधारा के बड़े अखबारों का रास्ता छोड़ कर छोटी छोटी पगडंडियों पर उतरना पड़ता है.युद्ध के कारण दुनियाभर की गोलाबारूद बनाने वाली कम्पनियों के शेयर बढ़ने लगे हैं.

गार्डियन ने 28 फरवरी को एक लंबी रिपोर्ट छापी है कि कैसे युद्ध के कारण रक्षा का बाज़ार उछल कूद कर रहा है. जर्मनी ने यूक्रेन को स्टिंगर मिसाइल देना का ऐलान किया. इसके बाद रेदियोन कंपनी का शेयर एक हफ्ते से भी कम समय में 10% से अधिक बढ़ गए. ब्रिटेन, फ़्रान्स, जर्मनी, इटली सब की डिफ़ेन्स कम्पनियों ने शेयर मार्केट में काफ़ी बढ़त देखी है. 10 फरवरी 2022 के फोर्ब्स में यह रिपोर्ट छपी है. अमेरिका की हथियार बनाने की कंपनी रेदियोन टेक्नालजी के CEO ग्रेगरी हेज़ का बयान छपा है. CEO तो हर तरह के युद्ध का हवाला देते हुए गदगद हुए जा रहा हैं कि पूर्वी यूरोप से लेकर दक्षिण चीन सागर तक के इलाके में तनाव की स्थिति बनी हुई है, इस कारण कंपनी को मुनाफ़े की पूरी उम्मीद है. 2014-21 के बीच अमेरिका ने यूक्रेन को 2.7 अरब डॉलर की सुरक्षा सहायता दी है जबकि इसी दौरान यूक्रेन के 14000 लोग मारे गए हैं. मगर रक्षा कंपनियां गदगद हैं कि जान जाए तो जाए, माल बनता रहे.

अमेरिका ने रूस पर आरोप लगाया है कि पूर्वी यूक्रेन में वह अलगाववादी तत्वों को शह दे रहा है लेकिन क्या अमेरिका ने कभी ऐसा नहीं किया? इराक और अफगानिस्तान का इतिहास देखिए. यमन में क्या हो रहा है उसे देखिए. अमेरिकी सांसद और सदन में सैन्य सेवा समिति के अध्यक्ष एडम स्मिथ कह रहे हैं कि अमेरिका को यूक्रेन में अलगाववादी तत्यों को खड़ा करना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए. एक मार्च को हिलेरी क्लिंटन ने MSNBC को इंटरव्यू दिया है और इसके बारे में MSNBC ने ट्वीट किया है. 1980 में रूस ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया था. रूस के लिए नतीजा अच्छा नहीं रहा लेकिन तथ्य यह है कि हौसले से लबरेज़ और अच्छी तरह से फंड किए गए हथियारबंद दस्ते ने अफगानिस्तान से रूसियों को खदेड़ दिया था. 

मुजाहिदीन से लेकर तालिबान को खड़ा करने और इराक और अफगानिस्तान जैसे खूबसूरत मुल्क को बर्बाद कर देने की कहानी तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं है लेकिन जब तक आप युद्ध के अलग अलग कारणों को ढूंढ ढूंढ कर नहीं पढ़ेंगे, आप अंधेरे में रहेंगे. भारत के स्टैंड को लेकर बहस हो रही है लेकिन क्या इस खेल में भारत अमेरिका के साथ खड़ा हो सकता था? जिस पर आरोप है कि उसने नेटो का विस्तार न करने का रूस से वादा तोड़ दिया. नेटो के विस्तार के नाम पर युद्ध का माहौल बनने दिया, अमेरिका पर यूक्रेन में नात्जी तत्वों को बढ़ावा देने, औऱ यूक्रेन के चुनाव में हस्तक्षेप के आरोप हैं, उसकी कंपनियां खुल कर कह रही हैं कि इस युद्ध से कमाएंगे, यह सब अमेरिका के ही अखबारों में छप रहा है. उसी देश के एक्सपर्ट कह रहे हैं. 

पर जो रूस कर रहा है वह भी पूरी तरह से ग़लत है. यूक्रेन को तबाह कर रूस क्या हासिल करना चाहता है? जनवरी महीने में भारत में जर्मनी के नौसेना प्रमुख ने एक बयान दिया कि यूक्रेन पर रूस के कब्ज़े की बात बकवास है. पुतिन बस चाहते हैं कि उनका सम्मान हो. इस बात के बाद जर्मन के नौ सेना प्रमुख को इस्तीफा देना पड़ गया. क्या सम्मान और अहं के नाम पर यूक्रेन को बर्बाद कर दिया गया? अगर रूस को नेटो के विस्तार को लेकर इतना गुस्से मे है तो उस नेटो के देशों को चुनौती क्यों नहीं देता, यूक्रेन पर गुस्सा क्यों निकाल रहा है? रूस अमेरिका से नहीं लड़ रहा और अमेरिका रूस से नहीं. रूस अमेरिका को आंखें दिखा रहा है तो अमेरिका कह रहा है रूस की तरफ नहीं देखेगा. यूक्रेन को हथियार देगा. यूक्रेन तो बचा ही नहीं तो वह हथियार किससे लेगा औऱ उसका करेगा क्या. क्या दान के इन हथियारों से वह रूस से बदला ले सकेगा?  क्या इस तरह से दुनिया अंतहीन युद्ध में झोंक दी जाएगी? संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के 141 देशों ने युद्ध के खिलाफ स्टैंड लिया है. भले ही इस स्टैंड की ताकत न हो लेकिन इसका महत्व तो है ही. यूक्रेन में जो आप देख रहे हैं वह सही या गलत नहीं है सिर्फ और सिर्फ सनक है.

यूक्रेन की तबाही की कीमत बहुत बड़ी है. युद्ध कहीं भी होगा, कीमत आप भी चुकाएंगे. जल्दी ही पेट्रोल भराने जाएंगे तब उस पुतिन को याद कीजिएगा जिसके बारे में गोदी मीडिया ने बताया था कि पुतिन से सब डरते हैं. आप भी पुतिन का नाम लेकर 110, 120 130 रुपया लीटर जितना..

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