टोक्यो ओलिंपिक - मेहनत खिलाड़ियों की, शोहरत में नेताओं की सेंध

यह ओलिंपिक है, ओलिंपिक को राजनीतिक रंग देने और सारी कामयाबी में एक नेता की मौजूदगी सुनिश्चित करने का खेल

टोक्यो ओलिंपिक - मेहनत खिलाड़ियों की, शोहरत में नेताओं की सेंध

टोक्यो में ओलिंपिक के साथ-साथ भारत में एक और ओलिंपिक चल रहा है. यह ओलिंपिक है ओलिंपिक को राजनीतिक रंग देने और सारी कामयाबी में एक नेता की मौजूदगी सुनिश्चित करने का. खेल भावना और देश भावना के बहाने चल रहे इस ओलिंपिक को गलत और सही की नज़र से ज्यादा इस बात के लिए देखना चाहिए कि कहीं इसके बहाने किसी और खिलाड़ी की प्रतिभा पीछे तो नहीं छूट जा रही है. टोक्यो ओलंपिक की कामयाबी को देश की कामयाबी के नाम पर आगे करते हुए किस तरह उससे राजनीतिक दल खुद को जोड़ रहा है इसे देखना चाहिए. खेल को समझने के लिए काफी कुछ मिलेगा. भारत सरकार ने खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने के लिए एक अभियान शुरू किया Cheer4india, ताकि आप सभी इस नारे के साथ खिलाड़ियों को जोश बढ़ाते रहें. 

इस वेबसाइट (cheer4india.narendramodi.in.) के लिंक तक में प्रधानमंत्री का नाम है, खेल मंत्रालय का नाम हो सकता था लेकिन cheer4india.narendramodi.in है. इस पर जाते ही केवल प्रधानमंत्री मिलेंगे. नीचे लिखा है शुभकामनाएं भेजें या गैलरी में जाएं. आप शुभकामनाओं पर क्लिक करते हैं. फिर आता है खेल और खिलाड़ी का कॉलम. मान लीजिए आप बैडमिंटन और पीवी सिंधु का चुनाव करते हैं और क्लिक करते हैं. क्लिक करते ही एक तस्वीर आएगी. इसमें भी प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर है. अब आपसे कहा जाता है कि शुभकामनाओं के साथ भेजने के लिए पांच कथनों को चुनें. ये पांचों कथन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण से लिए गए हैं. गनीमत है कि भेजने के वक्त आपको अपना संदेश लिखने की भी जगह दी गई है. इस तरह आप बिना प्रधानमंत्री की तस्वीर या उनके कथनों के किसी खिलाड़ी को शुभकामनाएं नहीं दे सकते हैं.

शायद इसी वजह से चीयर फ़ॉर इंडिया को सहारा देने के लिए एक और अभियान शुरू किया गया. being like an olympian.लेकिन इसके पहले एक और चीज़ हुई.  24 जून को Cheer4india शुरू हुआ, एक महीना बाद इस अभियान का हौसला बढ़ाने के लिए 22 जुलाई को Being like an olympian शुरू हुआ. भारतीय जनता युवा मोर्चा के इस कार्यक्रम में खेल मंत्री अनुराग ठाकुर और खेल राज्यमंत्री निशीथ प्रमाणिक शामिल होते हैं. नारे को भी नारे का सहारा चाहिए. being like an olympian के लांच के समय कहा गया कि इसके तहत कई तरह के कार्यक्रम लांच किए गए हैं ताकि बड़े स्तर पर युवाओं के व्यवहार में बदलाव लाया जा सके. दावा किया गया कि किसी भी राजनीतिक दल के युवा संगठन ने ऐसा काम नहीं किया है. इसके लिए एक पोर्टल भी लांच हुआ है जहां अलग अलग गतिविधियों में युवा अपना पंजीकरण करा सकते हैं. नोट कीजिए कि ओलिंपिक शुरू होने वाला है तब यह कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है. भारतीय जनता युवा मोर्चा ने जो पोस्टर ट्वीट किए है उसमें खिलाड़ी की तस्वीर नहीं है. योगी जी की है. मंत्री जी की है. सासंद जी की है. 

एक मेगा अभियान के भीतर कई तरह के छोटे छोटे अभियान शामिल किए गए. लोगों से कहा गया कि अपने परिवार और दोस्तों के साथ वीडियो बनाकर शेयर करें और पांच लोगों को ट्विटर पर टैग करने के लिए कहा गया. पांच लोगों को टैग करने का आइडिया उस पोस्टकार्ड से लिया गया है जो कोई रेलगाड़ी की सीट पर छोड़ जाता था जिसमें लिखा होता था कि यह पोस्टकार्ड पांच लोगों को नहीं देने पर देवी नाराज़ हो जाएंगी और सत्यानाश हो जाएगा. इसका नाम दिया गया #humaraVictoryPunch. 

इस तरह से आप देख पाते हैं कि कैसे ओलिंपिक को लेकर चर्चाओं का जो स्थान बन रहा है उसमें या तो बीजेपी है या प्रधानमंत्री मोदी हैं. इन खबरों पर मुख्य रुप से प्रधानमंत्री मोदी का ही एकाधिकार है. हमारे पास ऐसा कोई ज़रिया नहीं है जिससे इस बात का आकलन हो सके कि चीयर फार इंडिया कितना लोकप्रिय रहा है और इसके पीछे सरकार ने कितना पैसा खर्च किया है. वैसे भारत सरकार का खेल बजट बहुत ज़्यादा प्रभावित करने वाला नहीं लगता है.

बजट- 2020-21 - 
अनुमानित राशि 2826.92 करोड़ थी
संशोधित राशि 1800.15 यानी 36% हो गई. 

घोषणा के बाद संशोधित राशि के कम होने की वजहें कई प्रकार की हो सकती हैं. 2014 से अब तक मोदी सरकार में छह बार खेल मंत्री बदले जा चुके हैं. सर्बानंद सोनोवाल, जितेंद्र सिंह, विजय गोयल, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, किरेन रिजीजू और अब अनुराग ठाकुर. यह जानने की इसलिए ज़रूरत नहीं है क्योंकि खेल की खबरों पर एकाधिकार प्रधानमंत्री का है. 

यह एकाधिकार इतना बड़ा है कि मोदी सरकार के मंत्री भी उनके सामने नज़र नहीं आते हैं. अपवाद छोड़ दें तो आपने ओलिंपिक से संबंधित किस विज्ञापन में खेल मंत्री का चेहरा देखा है. क्रिकेट विश्व कप के दौरान गोदी मीडिया ने बाक़ायदा इस तरह का शीर्षक लगाया कि मोदी दिलाएंगे विश्व कप. इस पूरी प्रक्रिया को मैं ख़बरों का निजीकरण कहता हूं. यह उस निजीकरण से अलग है जिसके तहत सरकारी कंपनी बेच दी जाती है. इस निजीकरण के तहत प्रमुख सूचनाओं पर एक नेता की छाप लगा दी जाती है. ओलिंपिक से जुड़ी खबरों को ध्यान से नहीं भी देखेंगे तो भी ख़बरों या खबरों के अलग बगल प्रधानमंत्री का नाम और फोटो दिख जाएगा. प्रधानमंत्री ने बधाई दी, जीत पर ट्वीट किया और जीत के बाद खिलाड़ी से बात की वगैरह वगैरह. ओलिंपिक से जुड़ी तमाम खबरों और चर्चाओं को आप फ्लैश बैक में निकालकर देखिए प्रधानमंत्री की निजी छाप दिखाई सुनाई देगी. इस तरह की होड़ में दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हो गए हैं. कहीं पदक जीतने पर करोड़ों की इनाम राशि का विज्ञापन लगा है तो कहीं शुभकामनाओं के नाम पर मुख्यमंत्री का चेहरा. एकाधिकार की बड़ी धारा के नीचे कई छोटी छोटी धाराएं बहने लगी हैं. अच्छा होता कि इसे लेकर विज्ञापनों का अभियान साल भर चलता कि सरकार इतनी सुविधाएं दे रही है. इसका लाभ लीजिए और आठ साल बाद होने वाले ओलिंपिक की तैयारी कीजिए. टोक्यो ओलिंपिक के ख़त्म होते ही इस तरह के विज्ञापन गायब हो जाएंगे.

यह एकाधिकार एक अगस्त तक बना रहा लेकिन जैसे ही टोक्यो में पुरुष और महिला हॉकी टीम ने कामयाबी की नई कहानी लिखी, इस कहानी के पीछे का नया नायक सामने आ गया, नवीन पटनायक. ओडिशा के मुख्यमंत्री के एक वीडियो ने ओलिंपिक खबरों पर प्रधानमंत्री के एकाधिकार को तोड़ दिया. 21 साल से मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए भी नवीन पटनायक का पूरे साल में भी दो बयान हेडलाइन नहीं बनता होगा. लेकिन हाकी टीम की सफलता के साथ नवीन पटनायक का काम बोलने लगा और उनके नाम की चर्चा होने लगी. यही नहीं मैच देखते हुए उनका वीडियो भी सामने आ गया. अगर आप पिछले सात साल के दौरान मीडिया और सोशल मीडिया से बनने वाले चर्चा स्थलों जिसे आप अंग्रेज़ी में स्पेस कहते हैं, उसे ठीक से देख रहे हैं तो नवीन पटनायक के वीडियो का वायरल होना ठीक उसी तरह से था जैसे सारा कैमरा उस खिलाड़ी पर लगा हो जो पदक जीतने वाला है लेकिन बहुत पीछे से कोई दौड़ता हुआ आगे निकल जाता है और विजयी हो जाता है और कैमरे वाला खिलाड़ी कैमरे से गायब हो जाता है. 

रविवार से ही ट्वीटर पर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का वीडियो साझा किया जा रहा है. इस वीडियो में नवीन पटनायक अपने घरेलू कपड़ों में हॉकी का मैच देख रहे हैं. टीम की जीत पर तालियां बजा रहे हैं. जहां टीवी लगा है उसके अगल-बगल किताबें रखी गई हैं. आम तौर पर नितांत निजी जीवन जीने वाले मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का यह वीडियो भी एक प्रचार रणनीति का हिस्सा ही है लेकिन मास्टर स्ट्रोक की उपाधि जब किसी और के लिए हमेशा के लिए रिज़र्व हो गई है तो उसे रहने देते हैं. नवीन पटनायक टीम की जीत पर कमरे में खड़े भी होते हैं, तालियां बजाते हैं. कैमरा उन्हें फॉलो करता है. जैसे कैमरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फॉलो करता है जब वे खड़े होकर उद्घाटन समारोह में भारतीय दल के सामने आते ही खड़े होकर हौसला बढ़ाते हैं. लेकिन इस तरह की गतिविधियों पर जिस तरह से प्रधानमंत्री ने एकाधिकार कायम किया है, नवीन पटनायक का यह वीडियो उस एकाधिकार में सेंध लगा देता है. आगे निकल जाता है. 

इस तरह से टोक्यो ओलंपिक से जुड़ी ख़बरों में पहली बार प्रधानमंत्री मोदी के अलावा किसी मुख्यमंत्री का काम बोलने लगता है. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और उनकी सरकार की नीति की बात होने लगती है. पता चलता है कि ओडिशा पिछले तीन साल से ओडिशा महिला और पुरुष हॉकी का स्पांसर है. जुलाई 2021 में हाकी टीम की शानदार कामयाबी के पीछे की कहानी शुरू होती है फरवरी 2018 से. उसी समय का एक वीडियो है. इसमें पर्दे पर लिखा है orissa: india's best kept secret मतलब ओडिशा एक ऐसा राज़ है जिसके बारे में देश नहीं जानता. पर्दा हटता है और महिला और पुरुष हॉकी टीम के खिलाड़ी मंच पर आते हैं. प्रधानमंत्री मोदी का कार्यक्रम होता तो उनकी तस्वीर सबसे बड़ी होती लेकिन इस पर्दे पर नवीन पटनायक की तस्वीर भी नहीं है. इस कार्यक्रम में नवीन पटनायक टीम इंडिया की जर्सी और लोगो लांच कर रहे हैं. इस जर्सी में कोणार्क का पहिया है और विलुप्त होते कछुए हैं. पटनायक चाहते तो जर्सी पर ही अपनी तस्वीर लगा देते जैसे टीके के प्रमाणपत्र में प्रधानमंत्री का फोटो लगा है. जर्मनी, चीन, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका हर जगह टीका लग रहा है लेकिन कहीं भी टीके के प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का फोटो नहीं है. यह कार्यक्रम दिल्ली में हुआ था और उस समय हर जगह यह ख़बर छपी थी. लेकिन ख़बरों के एकाधिकार की बाढ़ में ऐसी हर ख़बर खरपतवार की तरह बहकर कहीं चली जाती है. फरवरी 2018 के इस कार्यक्रम में ओडिशा सरकार ऐलान करती है कि वह अगले पांच साल के लिए हॉकी टीम की स्पांसर बनेगी. इस बात का डिटेल हमारे पास नहीं है कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खेल हॉकी की टीम को स्पांसर क्यों नहीं किया, एक राज्य सरकार ने क्यों किया. नवीन पटनायक कहते हैं कि हॉकी ओडिशा के लिए जीवन शैली है. way of life है. 

वाकई ओडिशा ने देश को तोहफा दिया है. यही वो टीम थी जो 2016 के रियो ओलिंपिक से बाहर हो गई थी. उसके पहले 2015 में भारतीय हॉकी टीम को अच्छे प्रायोजक नहीं मिले थे. 2016 में टीम ने ख़राब प्रदर्शन किया. 2018 में ओडिशा सरकार प्रायोजक बन जाती है. ओडिशा का प्रायोजक बनना कारपोरेट के प्रायोजक बनने जैसा नहीं था कि अपने उत्पाद का ब्रांड बनाना है. ओडिशा ने ब्रांड के लिए नहीं खेल के लिए निवेश किया. स्टेडियम और ट्रेनिंग में पैसा लगाया. हिन्दी प्रदेशों में मेजर ध्यानचंद के नाम पर राजनीति होती रहती है. भारत रत्न की मांग कर कई नेता हेडलाइन में छप तो जाते हैं मगर इससे हॉकी का भला नहीं होता है.  फरवरी 2018 में ओडिशा में हॉकी का विश्व कप आयोजित किया जाता है. उस समय इसके प्रचार के लिए ओडिशा सरकार एक वीडियो बनाती है. 43 सेकेंड के इस वीडियो में नवीन पटनायक बहुत कम समय के लिए हैं. इसका एक बड़ा हिस्सा भी है जिसमें थोड़ी देर के लिए हैं लेकिन उस तरह से नहीं जिस तरह से ऐसे विज्ञापनों में प्रधानमंत्री मोदी होते हैं. यह बहुत अच्छी बात है कि कोई राज्य सरकार खेल को बढ़ावा देने आती है. 2018 में हॉकी विश्व कप के आयोजन में ओडिशा की इतनी तारीफ हुई कि 2023 के लिए भी ओडिशा को मौका मिल गया. यह पहली बार होगा जब किसी राज्य में लगातार दूसरी बार विश्व कप होने जा रहा है. 

ओडिशा एक गरीब राज्य है. हर साल आपदा की चपेट में आता है. आपदा से निपटने में भी ओडिशा ने जो ढांचा विकसित किया है वह काबिले तारीफ है. वह अपने स्तर पर ही संभाल लेता है. उसी तरह की आत्मनिर्भरता खेल के मामले में हासिल करने की कोशिश दिखाई पड़ रही है.

राउरकेला में 112 करोड़ की लागत से बन रहा दुनिया का सबसे बड़ा हॉकी स्टेडियम अगले साल जुलाई तक तैयार हो जाएगा. इस स्टेडियम का नाम है बिरसा मुंडा इंटरनेशनल हॉकी स्टेडियम. यहां बीस हज़ार लोगों के बैठने की क्षमता होगी. इसी के साथ भुवनेश्वर में कलिंग स्टेडियम बन चुका है जो दुनिया में हाकी के लिए शानदार स्टेडियम माना जाता है. हॉकी को लेकर ओडिशा की प्रतिबद्धता इस बात से भी समझी जा सकती है कि विश्व कप से पहले यहां कई अंतरराष्ट्रीय मैच हो चुके हैं. हॉकी के खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देने के लिए हाई परफॉर्मेंस सेंटर बनाए गए हैं. भारतीय पुरुष हाकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में न्यूज़ीलैंड, स्पेन,अर्जेंटीना, जापान और ब्रिटेन को हरा दिया है. सेमीफाइनल में बेल्जियम से मुकाबला होगा. महिला टीम दक्षिण अफ्रीका, आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया को हराकर सेमीफाइनल में पहुंची है. अर्जेंटीना के साथ सेमीफाइनल मुक़ाबला है. 

ओडिशा का सुंदरगढ़ हॉकी के लिए जाना जाता है. यहां के कई खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा चुके हैं. राज्य सरकार सिर्फ इस एक ज़िले में 17 सिंथेटिक हॉकी टर्फ बनवा रही है. इसे सुंदरगढ़ के 17 ब्लॉक में बनाया जा रहा है. एक हॉकी सैंड टर्फ के लिए लगभग 7 से 8 करोड़ खर्चा होगा. खेल में इस स्तर पर निवेश हो रहा है. एक ज़िले के भीतर हर ब्लाक में बनाने की यह योजना खिलाड़ी को सुसज्जित स्टेडियम के करीब लाने की है ताकि गांवों के खिलाड़ी नज़दीक के मैदान में ही अभ्यास कर सकें. ओडिशा के सबसे ज्यादा हॉकी खलाड़ी इसी ज़िले से आते हैं. 

नवीन पटनायक ने हॉकी खिलाड़ी दिलीप तिर्के को राज्यसभा का सदस्य बनाया है. दिलीप तिर्के भी सुंदरगढ़ के रहने वाले हैं. 400 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके तिर्के का घर देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. पिछले साल अक्टूबर में ओडिशा सरकार ने 2023 तक रग्बी इंडिया का प्रायोजक बनने के करार पर हस्ताक्षर किया. इसी के साथ ओडिशा सरकार रग्बी फुटबॉल की टीम की भी प्रायोजक बन गई है. एक राज्य के तौर पर खेलों में निवेश और रफ्तार की यह योजना दूसरे राज्यों को प्रभावित करनी चाहिए. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का कहना है कि राज्य में खेलों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 1000 करोड़ से अधिक का निवेश किया जा रहा है. राज्य सरकार कर रही है. पटनायक कहते हैं कि ओडिशा खेल का पावर हाउस बनने जा रहा है. 

साल 2017 से ओडिशा में खेल को लेकर एक बड़ा मोड़ आता है जब राज्य में कुल बजट 149 करोड़ खेलों के लिए तय होता है. 2018 में यह 250 करोड़ होता है और इस साल पटनायक कहते हैं कि इसे बढ़ाकर 350 करोड़ किया जाएगा. इस साल मार्च में ओडिशा सरकार खेलों के विकास के लिए 356 करोड़ की योजना को मंज़ूरी देती है. एक गरीब राज्य खेल को लेकर गंभीर हो जाता है और उसका नतीजा आज सबके सामने है. 

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ओडिशा ने वाकई अपने लिए नहीं किया बल्कि हॉकी के लिए किया. यही काम पंजाब भी कर सकता था और नहीं करने वाला बिहार भी कर सकता था. ओडिशा का अनुभव बताता है कि कम समय में एक साथ निवेश हो और बुनियादी ढांचा बनाकर तैयार कर दिया जाए तो उसके नतीजे भी कम ही समय में आते हैं. लेकिन इसके लिए खुद को पीछे रखकर चुपचाप काम करने की ज़रूरत है. यह बताना ज़रूरी था क्योंकि जब टोक्यो ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में भारतीय दल गुज़र रहा था तब सोनी टीवी ने आधे स्क्रीन पर खेल मंत्री अनुराग ठाकुर को दिखाया था. इसे लेकर कई लोगों ने सवाल उठाए थे. आप बैठे रहिए. सवाल को खड़े रहने दीजिए.