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This Article is From Jan 21, 2019

कबाड़ से तैयार ताजमहल और एफिल टावर

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 21, 2019 15:00 pm IST
    • Published On जनवरी 21, 2019 09:41 am IST
    • Last Updated On जनवरी 21, 2019 15:00 pm IST

ट्रक की चादरें काटी गईं. कारों के नट बोल्ट जुटाए. पुराने कटोरे और कड़ाही से गुंबद बनाई. लोहे की पाइप काट-काटकर बड़े गुंबद की जाली बनी. ज़ब्त की गई और कबाड़ पड़ी साइकिलों के पहियों से रिम निकालकर चारों मीनारें खड़ी की गईं. रास्ते पर फेंक दिए गए टिन के कनस्तर का भी इस्तमाल हुआ है. कुल मिलाकर 10 से 15 टन लोहे के कबाड़ से दिल्ली में यह ताजमहल बनकर तैयार हो गया है. सराय काले खां बस अड्डे से लगा राजीव गांधी स्मृति वन हुआ करता था, जिसे पहले कबाड़ से ही भरकर समतल मैदान बनाया गया था. अब यहां कबाड़ से सात अजूबे बन रहे हैं.

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दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए बड़ौदा स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स के कलाकारों को बुलाया है. संदीप और अनुज ने बताया कि इससे पहले भी वे बड़ौदा में 70 से अधिक कलाकृतियां बना चुके हैं. शिल्पकार अनुज और संदीप ने बताया कि कबाड़ देखते ही उनके भीतर का कलाकार जाग जाता है कि इसका कुछ किया जाए. एक भी कबाड़ ख़रीदकर नहीं लाया गया, बल्कि ज़रूरत के हिसाब नगर निगम के गोदामों से ही खोजा गया.

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'क्राइस्ट द रिडीमर' की मूर्ति बनाने के लिए दिल्ली के पार्कों में लगने वाली पुरानी बेंच के लोहे का इस्तमाल किया गया है. जब पार्क में बेंच ख़राब हो जाती हैं, तो उन्हें उठाकर नगर निगम के गोदाम में रख दिया जाता है. वहां पड़े-पड़े यह कबाड़ काफी जगह घेरता है. चोरी से लेकर इनके बेचने में धांधली की ख़बरें भी आती रहती हैं. लिहाज़ा इनसे लोगों के काम आने वाली चीज़ बना दी गई है. जनता के पैसे का इससे बेहतर इस्तेमाल क्या हो सकता है.

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ब्राज़ील के रियो डी जेनेरो में स्थापित ईसा मसीह की प्रतिमा की एक प्रति अब दिल्ली में भी होगी. मूल प्रतिमा तो 39.5 मीटर ऊंची है, लेकिन यह छोटी-सी है. ईसा मसीह की दाढ़ी और बाल के लिए बहुत सारे स्प्रिंग का इस्तमाल किया गया है. सब्ज़ी बेचने वाले ठेले के नीचे जो कमानी रहती है, जिसमें वे टोकरी वगैरह रखते हैं, उसका भी इस्तेमाल हुआ है.

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जब पूरा भारत 'स्टैच्यू आफ लिबर्टी' से भी ऊंची सरदार पटेल की प्रतिमा की चर्चा कर रहा था, तब किसी को ख़बर नहीं थी कि दिल्ली में 'स्टैच्यू आफ लिबर्टी' बनकर तैयार है. अनुज ने बताया कि 30 फुट ऊंची है. इस मूर्ति को बनाने में भी दिल्ली की पहचान रेहड़ी के पहिये का एक्सल, उसकी कमानी का इस्तमाल किया गया है. बाइक की चेन से बाल वगैरह बने हैं. पहिये की रिम से मशाल बनी है. काफी मात्रा में गियर का इस्तमाल हुआ है. ये कलाकृतियां भले दुनियाभर की हैं, लेकिन इसमें सिर्फ दक्षिण दिल्ली के कबाड़ का इस्तेमाल हुआ है.

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 यही नहीं, यहां इजिप्ट का पिरामिड है. इटली का कोलोसियम है. पेरिस का एफिल टावर है. बड़ौदा स्कूल आफ फाइन आर्ट्स से निकले 15-20 कलाकारों की टीम ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में काम किया है. 30-40 वेल्डरों को लगाकर करीब 70 टन कबाड़ से सात अजूबे बनाए गए हैं. इन्हें इस तरह बनाया गया है कि एक ही बार में सब न दिख जाएं. हर कलाकृति को देखने के लिए आपको चलकर जाना होगा. मेहनत करनी होगी, तभी देख पाएंगे. संदीप और अनुज ने कहा कि अगर एक जगह से एक बार में सातों दिख जाएं, तो फिर वह बात नहीं रहती. अब जिन्हें देखना होगा, उन्हें करीब जाकर देखना होगा, इसलिए इनकी रंगाई-पुताई भी नहीं होगी. सारी कृतियां एक रंग में दिखेंगी. जंग खाए लोहे के रंग की.

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कबाड़ से ही तैयार की गई है पीसा की झुकती मीनार (The Leaning Tower of Pisa)

 

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इसी तरह कबाड़ में फेंकी जा चुकी सामग्री से ही तैयार किया है रोम का कोलोसियम (The Roman Colosseum)
 
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मिस्र के पिरामिड (The Pyramids of Egypt) भी निगम के जंकयार्ड से निकाले गए सामान से ही तैयार किए गए हैं.

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