विज्ञापन
This Article is From Jan 23, 2020

शिकारा का प्रीमियर: सब कुछ पहली बार जैसा था, जैसे पहली बार उसी दिन गोली चली हो

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 05, 2020 12:02 pm IST
    • Published On जनवरी 23, 2020 19:50 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 05, 2020 12:02 pm IST

जम्मू से आए कश्मीरी पंडित परिवारों को देख रहा था तभी राहुल पंडिता की एक बात कान से टकराई. सबके भीतर इतना भरा हुआ है कि लोग फट पड़ते हैं. हर बार शुरू से कहानी बताने लगते हैं. उसके बाद धीरे-धीरे कश्मीरी पंडित परिवारों से टकराता गया. कनॉट प्लेस के पीवीआर प्लाज़ा सिनेमा हॉल के भीतर जा ही रहा था कि किसी ने पीछे से आवाज़ दी और मुझे खींच लिया, विधु विनोद चोपड़ा. मुड़ते ही उन्होंने कहा कि मैं टीवी नहीं देखता. मैं तो खुद कहता हूं लोग टीवी न देखें. पर वो कुछ और कहना चाहते थे. उन्होंने कहा कि राहुल ने आपके वीडियो का लिंक भेजा था. शाहीन बाग वाले एपिसोड का. मैं देखने लगा तो हैरान हुआ कि टीवी पर इतनी शांति से कैसे बातचीत हो सकती है. फिर मैंने ही कहा था कि इनको बुलाओ. लेकिन मुझे अफ़सोस है कि उसके पहले आपके बारे में कुछ पता नहीं था.

मुझसे कई लोग हर दिन टकराते हैं जिन्हें एक या दो दिन पहले पता चला होता है कि मैं हूं, या मेरा शो है. पता नहीं क्यों मुझे ये बात बारिश के बाद की हवा जैसी छूती है. खुद को अब भी पहली बार जाने जाते हुए देखने की खबर कशिश पैदा करती होगी. वैसे मैं उस दिन राहुल पंडिता के कारण ही जा सका. अच्छा हुआ कि ऐन वक्त पर मैसेज आ गया कि आज आना है. अपन ने कार मोड़ी और पहुंच गए. फिर वहां जो हुआ और जो देखा मेरे जीवन का पहला अनुभव जैसा था.

हॉल में जम्मू के जगती कैंप से लाए गए परिवार बिठाए गए. निर्देशक ने पहली बात यही कही कि आप लोगों को आने में तकलीफ तो नहीं हुई, खाना ठीक से खाया. उसके बाद निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने फिल्म के निर्माण से जुड़ा एक वीडियो दिखाया. फिर दिखाया अपनी मां का वीडियो. परिंदा का प्रीमियर मुंबई में था. मां-बेटे के पास थीं और पीछे श्रीनगर का घर जल गया. जब कई साल बाद लौटीं तो निर्देशक बेटे ने कैमरे में सब रिकार्ड किया था. वो वीडियो भी प्रीमियर का हिस्सा हो गया.फिर निर्देशक ने फिल्म का कोई तीस मिनट का क्लिप दिखाया.

हाल में सन्नाटा था. जो विस्थापित हुए, जिनके अपने मार दिए गए वो अपनी ही कहानी पर्दे पर देख रहे थे. तीस साल पहले के वक्त के सामने खड़े थे. उस हिस्से को मेरा देखना पहली बार था. पंडित परिवारों के लिए देखना भी पहली बार की तरह था. गोली की आवाज़ से लेकर जले हुए घरों के सामने वो खड़े नहीं थे, हाल में बैठे थे. ऐसा लगा कि वक्त ने घेर लिया हो. देखो, देखते जाओ.. पंडित परिवारों ने भी इस फ़िल्म में काम किया है. चार हजार लोग उस फ़िल्म में दिखेंगे.

निर्देशक का गला भरता था, मगर छलकता नहीं था. कमाल का संयम था. विधु चोपड़ा ने यही कहा कि ये फिल्म नफ़रत से नफ़रत करने के लिए बनाई है, किसी के ख़िलाफ़ नहीं बनाई है. उनकी फ़िल्म संवाद कायम करना चाहती है. विधु विनोद चोपड़ा ने फिल्म निर्माण में सहयोग के लिए कश्मीर के मुसलमानों का शुक्रिया अदा किया.

उसके बाद बुलाईं कि सादिया जो शांति घर बनी हैं और आदिल ख़ान जो शिव बने हैं. आदिल ने इरशाद कामिल की लिखी कविता का पाठ किया जो फ़िल्म का भी हिस्सा है. निर्देशक ने कहा कि ये कश्मीर था. इंशाअल्लाह यही कश्मीर फिर से होगा. हम वैसे ही पहले की तरह वहां रहेंगे.

फिल्म को लिखने में अभिजात जोशी और राहुल पंडिता ने मदद की है. अभिजात ने कहा कि मुझे अपने निर्देशक के सेकुलर क्रेडेंशियल पर पूरा भरोसा है. राहुल पंडिता ने अपनी मां का क़िस्सा सुनाया. उसके लिए बोलना आसान तो नहीं होगा. राहुल की एक बात रास्ते में मेरे साथ लौटने लगी. कश्मीर जाता हूं तो अपनी ज़ुबान सुनकर जुड़ जाता हूं. मुझे यक़ीन नहीं होता कि कैसे अपने आप कश्मीरी बोलने लगता हूं. जबकि वहां से लौटकर कोई बोलने को नहीं होता. अपनी बहन से ही कश्मीरी बोल पाता हूं.

एक बार के लिए भी इस निर्देशक को मैंने फ़िल्म को भुनाते नहीं देखा, न तल्ख़ी से भरा देखा. बिल्कुल एक नई चादर बिछा दी और कहा कि तीस साल लोग चुप रहे. हम बस चाहते हैं कि वे सॉरी कश्मीरी पंडित बोलें. बस एक सॉरी. ज़्यादा तो मांगा नहीं था. इसलिए बाहर निकलते हुए जिस किसी परिवार से मिला उनसे आंखें मिलाकर सॉरी बोल आया. निर्देशक ने कितना कम मांगा था. मैं हैरान था. किसी फ़िल्म को लेकर ऐसा मेरा पहला अनुभव था.

सॉरी की आवाज़ निर्देशक के दिल से निकली थी इसलिए उस दिन शाम को जामिया के शाहीन बाग में कश्मीरी पंडितों के समर्थन में भाषण हुआ. जामिया के लड़कों ने पोस्टर बनाए और लिखा कि हम कश्मीरी पंडितों से हमदर्दी रखते हैं. फिर राहुल पंडिता से अगले दिन उनके अनुभवों पर बात भी हुई. प्राइम टाइम का वह वीडियो यू ट्यूब में है.

कितना कुछ है लिखने को. हर बार छोड़ देता हूं कि उसमें मैं दिखने लगता हूं. पर क्या करें कहानी शुरू ही होती है उसी मैं से. फ़िल्म सात फ़रवरी को आ रही है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com