अभी तक अटकी हुई है केंद्रीय विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षा

हम एडीएम के के सिंह के इस लाठीचार्ज पर लौट कर आ रहे हैं लेकिन पहले उनसे भी बड़े ओहदे पर विराजमान देश के गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बात कर लेते हैं। उनके बेटे के खिलाफ हत्या का मुकदमा तो चल ही रहा है, उनके खिलाफ भी चल रहा है। उस केस को 22 साल हो गए मगर फैसला नहीं आ रहा है।

नई दिल्ली:

पटना में एक ए डी एम हैं, इनका नाम है के के सिंह। आज राजधानी में शिक्षक बनने की पात्रता पास कर चुके कई हज़ार युवाओं का प्रदर्शन था, इन पर आज जम कर लाठियां बरसाई गई हैं. यह वही तस्वीर है जिसमें एक छात्र ज़मीन पर घसीटा जा रहा है, एडीएम के के सिंह लाठियां बरसा रहे हैं। यह नौजवान तड़प रहा है मगर के के सिंह की लाठी अकड़ रही है।नौजवान अपने बचाव में तिरंगा का सहारा लेता है मगर प्रशासन की लाठी नहीं रुकती है। के के सिंह मारते जाते हैं। किसी आंदोलन, प्रदर्शन को रोकने या नियंत्रित करने के लिए प्रशासन के पास अब यही एक भाषा बच गई है। अगर यह तस्वीर न आती तो शायद किसी को इस बात से फर्क नही पड़ता कि इन नौजवानों पर लाठी चलाई गई है।बाकियों को भी चोटें आई हैं। मुख्यमंत्री ने घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं। लेकिन ए डी एम के के सिंह की लाठी मारने की यह तस्वीर अब उस प्रशासन की स्थायी छवि बन चुकी है जिसके बदलने की बात की जा रही है। क्या वाकई प्रशासन के पास यही एक तरीका बचता है कि बेरहमी से लाठी चलाई जाए, जबकि इनके प्रदर्शन का कारण भी यही प्रशासन और सरकार है। जिसने 2019 से इन छात्रों को सड़क पर कई बार उतरने के लिए मजबूर किया है। 


हम एडीएम के के सिंह के इस लाठीचार्ज पर लौट कर आ रहे हैं लेकिन पहले उनसे भी बड़े ओहदे पर विराजमान देश के गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बात कर लेते हैं। उनके बेटे के खिलाफ हत्या का मुकदमा तो चल ही रहा है, उनके खिलाफ भी चल रहा है। उस केस को 22 साल हो गए मगर फैसला नहीं आ रहा है। नीचली अदालत में बरी हो चुके हैं लेकिन यह मामला 14 साल से हाई कोर्ट में ही सुनवाई और फैसले का इंतज़ार करता रहा। आज इस केस की सुनवाई थी मगर 6 सितंबर के लिए टल गई है। मई के महीने से लेकर जिस तरह पांच बार सुनवाई टली है,संदेह होता है कि सुनवाई टालने के लिए तरह-तरह के बहाने तो नहीं बनाए जा रहे हैं।गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के वकील ने एक नई अपील दायर कर दी कि मामले की सुनवाई का तबादला लखनऊ से इलाहाबाद कोर्ट कर दिया जाए। जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट का ही हिस्सा है लखनऊ बेंच। क्या ऐसा सुनवाई की तारीख टालने के लिए किया गया है? इसके पहले की सुनवाई के दौरान जो कारण बताए गए हैं, उन्हें क्रम से देखने पर संदेह गहरा ही होता है। 

यह तस्वीर तब की है जब गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा पर किसानों की हत्या का आरोप लगा था। गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा गृहमंत्रालय में सहज रुप से गृह मंत्री से मिलने जा रहे हैं। इस तस्वीर को आप दर्शकों ने प्राइम टाइम में कई बार देखा होगा। इनके खिलाफ भी हत्या के मामले में सुनवाई की तारीखों का किस्सा कम दिलचस्प नहीं है। दैनिक भास्कर ने सुनवाई की तारीखों और टलने के कारणों पर रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसके अनुसार 16 मई को सुनवाई की तारीख थी लेकिन जज के छुट्टी पर होने के कारण 24 मई की तारीख पड़ी।भास्कर ने लिखा है कि 24 मई को मंत्री के वकील कोर्ट में हाज़िर नहीं हुए क्योंकि वे 11 मई से 31 मई तक के लिए छुट्टी पर चले गए। लेकिन यही वकील छुट्टी पर होने के बाद भी मंत्री के बेटे के मामले में 25 मई को उसी कोर्ट की दूसरी बेंच में हाज़िर होते हैं। भास्कर ने सवाल किया है कि जब छुट्टी पर थे तब 25 मई को आ गए, लेकिन 24 मई को क्यों नहीं आए। 24 मई को 11 जुलाई की तारीख पड़ती है। टेनी के वकील ने तारीख बढ़ाने की मांग की तब भास्कर ने लिखा है कि इस पर अदालत नाराज़ हो गई, कहा कि क्या चाहते हैं, मुकदमा सुना ही न जाए। अदालत ने यहां तक कह दिया कि तय करके बताएं कि क्या करना है?  नहीं तो जब तक यह मुकदमा पूरा होगा, अजय मिश्रा को कस्टडी में लेना होगा।

भास्कर ने अपनी आज की रिपोर्ट में लिखा है। उस दिन कोर्ट से कहा जाता है कि अंतिम सुनवाई के दिन वकील सलिल श्रीवास्तव नहीं, गोपाल चतुर्वेदी होंगे।अब चौथी  तारीख मिलती है 20 जुलाई की। इस दिन वकील गोपाल चतुर्वेदी हाज़िर नहीं होते हैं।दैनिक भास्कर ने लिखा है कि कोर्ट को बताया गया कि वकील सलिल श्रीवास्तव को कोरोना हो गया है।तब कोर्ट ने कहा कि   "वादी के वकील ने इस आधार पर अगली डेट मांगने का विरोध किया है। वादी के वकील का कहना है कि अभियुक्त के वकील के अनुरोध पर अपील की सुनवाई बार-बार स्थगित की गई है। ऐसा लगता है कि वे अपील की सुनवाई में विलंब कर रहे हैं।" और इसके बाद चौथी बार तारीख दी जाती है, 22 अगस्त की।यह मामला छात्र नेता प्रभात गुप्ता की हत्या का है, जिसमें अजय मिश्रा का नाम है। 2001 की इस घटना में अजय मिश्रा टेनी निचली अदालत से बरी हो चुके हैं। हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।

2014 में द हिन्दू में सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई को लेकर दो अहम खबरे हैं। एक खबर है कि गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों से कहा है कि जितने भी सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामले हैं, उनका हर दिन ट्रायल हो और सुनवाई पूरी हो।क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ऐसा चाहते हैं।दूसरी खबर है कि तत्कालीन कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने सभी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखा है कि मौजूदा सांसद और विधायकों के खिलाफ चल रहे हैं मामलों की निगरानी की जाए। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि अगर किसी विशेष परिस्थिति में एक साल के भीतर ट्रायल पूरा नहीं होता है तो हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को रिपोर्ट देनी होगी। उस दौरान भी अजय मिश्रा के मामले की सुनवाई नहीं होती है। अब तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सांसदों और विधायको के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए अलग से कोर्ट भी बनाया गया है। इसके बाद भी अजय मिश्रा का यह मामला इस तरह रुक रुक कर चल रहा है। 

प्रभात गुप्ता छात्र नेता थे। 22 साल उम्र थी। इनकी हत्या में चार लोग नामज़द हैं। इनमें से एक गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी भी हैं। लखनऊ हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 14 साल चली है। इस मामले में अजय मिश्रा को निचली अदालत ने बरी कर दिया था तब उस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।प्रभात गुप्ता के भाई राजीव गुप्ता ने बताया कि 12 मार्च 2018 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की डबल बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा था मगर फैसला ही नहीं सुनाया जाता है। जब दोबारा सुनवाई का आदेश होता है तब भी चार साल तक कोई सुनवाई नहीं होती है। 

अब जब फिर से सुनवाई होनी है तब सुनवाई की तारीख चार बार टल गई है औऱ पांचवी बार पड़ी है। अजय मिश्रा की तरफ से अदालत बदलने की अर्जी लगा दी गई है।अगर किसान आंदोलन के दौरान अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को हत्या के आरोप में गिरफ्तार नहीं किया जाता तब शायद प्रभात गुप्ता के परिवार को उम्मीद ही नहीं रही होगी कि कुछ होगा। उस विवाद का असर ही रहा होगा कि प्रभात गुप्ता के भाई राजीव गुप्ता 5 अप्रैल 2022 को सुनवाई शुरू करने की अर्ज़ी लगाते हैं। 16 मई 2022 की तारीख तय होती है और तब से लेकर अब तक तारीख पर तारीख ही चल रही है। 

लखीमपुर ज़िले का मामला लखनऊ कोर्ट के तहत आता है, गृह राज्य मंत्री इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में चाहते हैं। प्रभात गुप्ता के वकील इस दावे को चुनौती देते हैं। इस बीच नंवबर 2021 को लखीमपुर खीरी में एक कांड होता है।एक जीप चार किसानों को कुचल कर मार देती है। गृह राज्य मंत्री आशीष मिश्रा के बेटे पर हत्या का आरोप लगता है और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से इस मामले में सुवनाई आगे बढ़ती है।आशीष मिश्रा जेल भेज दिए जाते हैं। किसान आंदोलन के नेता किसानों की हत्या के मामले में गिरफ्तारी और इस्तीफे की मांग करते हैं। आज ही खबर आती है कि गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ हत्या के मामले में सुनवाई एक और बार के लिए टल गई। आज की ही खबर है कि किसान फिर से जंतर मंतर पहुंच गए। 

गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा का मामला है, वर्ना इसी तरह का केस अगर तेजस्वी यादव के खिलाफ होता या विपक्ष के नेता के तो पांच सौ प्रेस कांफ्रेंस हो गई होती कि इन्हें बचाया जा रहा है।आपने देखा कि अजय मिश्रा के मामले में चार चार साल सुनवाई नहीं होती है, 9 महीने तक फैसला नहीं आता है, और अब तारीख ही पड़ती जा रही है। इस देश में प्रशासन बेलगाम हो चुका है।बिहार की राजधानी पटना के ए डी एम के के सिंह  जिस तरह से प्रदर्शनकारियों पर लाठी बरसा रहे हैं,उससे यही लगता है कि प्रशासन अब खुद को सुपर पावर समझने लगा है। 

हमने शुरू में यह तस्वीर दिखाई, एडीएम के के सिंह उस नौजवान को लाठियों से लहू लुहान कर रहे हैं जिसने बचाव में तिरंगे का सहारा लिया है। उसे सड़क पर घसीटा जा रहा है। यह घटना पटना के डाकबंगला चौराहा की है। राजधानी के बीच से प्रदर्शन करने की जगह हटाकर गर्दनीबाग कर दी गई है जहां किसी की नज़र नहीं जाती। गर्दनीबाग में ये नौजवान कई दिनों तक धरना प्रदर्शन कर चुके हैं, ज़ाहिर है किसी की निगाह नहीं गई होगी या इनका मामला नहीं सुलझा होगा। तभी ये लोग डाकबंगला जाने के लिए मजबूर हुए होंगे ताकि समाज और सरकार की नज़र पड़े।

आज अगर ये लाठी चार्ज की घटना न हुई होती तो संदेह ही है कि कोई इसे कवर भी करता। अब सरकार बदली है तो शायद गोदी मीडिया कवर करने लग जाता। मगर यह कितना दुखद है। ये नौजवान शिक्षक बनने की पात्रता की परीक्षा पास कर चुके हैं। यह परीक्षा सरकार की कराती है। इनका कहना है कि 2019 में ही पात्रता परीक्षा पास कर ली, इनके नाम मेरिट में हैं तो सरकार को भर्ती करनी चाहिए क्योंकि इसी तरह की परीक्षा पास करने वाले दूसरे नौजवानों को नौकरी मिल चुकी है। तीन साल से नियुक्ति का इंतज़ार कर रहे हैं। इन्हें आश्वास दिया गया था कि भर्ती निकलेगी और मौका मिलेगा। अगस्त आ गया तो ज़ाहिर है सब्र टूटेगा ही। तो राजभव तक मार्च करना चाहते थे, जिससे रोका गया और ये स्थिति पैदा हुई। 

“12 दिन के लिए फार्म भरने से वंचित कर दिया। 2019 दिसंबर से पास हैं, सड़क पर लड़ रहे हैं कि फार्म भरने का मौका दीजिए। अभी तक विज्ञापन जारी नहीं किया गया. लिखित रुप से आश्वासन दिया गया कि 28 दिनो के धरना प्रदर्शन पर बैठे थे कि जुलाई अंतिम सप्ताह में विज्ञप्ति निकाल देंगे, अगस्त बीत गया, सितंबर आने वाला है, अब कब देंगे, उम्र खत्म हो जाएगा, तब और दो तीन साल के बाद उम्र एक्सपायर कर जाएंगे। शिक्षक होने वाले हैं। शिक्षक बनने की पात्रता पास कर चुके हैं। एक ही साथ दो विज्ञापन जारी हुआ। हम लोगों अभी तक रोड पर हैं, इसका जिम्मेवार कौन है”

बात सही है, जब जुलाई तक फार्म निकालने का आश्वासन दिया गया था तब निकल जाना चाहिए था। छात्रों ने आधा अगस्त बीत जाने के बाद आंदोलन किया है। अगस्त एक और मामले में आकर जा रहा है और छात्र बेचैन हो रहे हैं कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश परीक्षा कब पूरी होगी, नतीजे कब आएंगे, और नामांकन कब पूरा होगा।केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्नातक की प्रवेश परीक्षा कई हफ्तों की देरी से चल रही है और देश आराम से चल रह है। UGC और NTA के ट्विटर हैंडल पर नतीजे आने की तारीख बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं है।इंडियन एक्सप्रेस में NTA के किसी अधिकारी का बयान छपा है, नाम नहीं है, लेकिन इस बयान में अधिकारी ने दो तारीखें बताई हैं।

7 सितंबर को नतीजे आएंगे या बहुत से बहुत 10 सितंबर तक नतीजे आ जाएंगे। अगर ऐसा है तो नामांकन में ही सितंबर का महीना चला जाएगा। 2019 में दिल्ली विश्व विद्यालय में 20 जुलाई से स्नातक की कक्षाएं शुरू हो गई थीं। यहां सितंबर में शुरू होंगी, इसका ठिकाना नहीं, अगस्त तो चला ही गया। क्या इससे किसी को फर्क पड़ता है? इस साल सारे केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए एक ही परीक्षा हो रही है, इस परीक्षा का नाम CUET है, करीब 15 लाख छात्रों ने इसके लिए फार्म भरे हैं। 15 लाख छात्रों का मामला है, ऐसा लगता है कि परीक्षा हो या न हो, एडमिशन हो या न हो, किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता है। फर्क क्यों नहीं पड़ता है इस सवाल का जवाब एक दूसरे प्रसंग से मिलता है।

हम वर्ल्ड में only country हैं जहां नारी को देवी माना जाता है, उस only country में इन्हें माला पहनाया जा रहा है जो बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराने के बाद जेल में बंद किए गए थे। नारी के सम्मान में मैदान में कूद जाने वाले नेता और मंत्री मैदान से भाग गए है। समय से पहले इनकी रिहाई से बिलकीस की नींद उड़ गई है, वह अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित है, लेकिन इन्हें सरेआम फूल माला पहनाया जा रहा है।पिछले हफ्ते से लोग इनकी रिहाई को लेकर सवाल उठा रहे हैं लेकिन किसी ग़रीब गार्ड को धक्का देकर अंग्रेज़ी में गाली देने वाले हाउसिंग सोसायटी के लोग इस मसले पर पूरी तरह से चुप्पी साध गए। उनसे बोला ही नहीं जाएगा कि ये गलत हो रहा है।

हाउसिंग सोसायटी का व्हाट्स एप ग्रुप तमाम अनैतिकताओं को सही ठहराने का अड्डा हो गया है। जो मिडिल क्लास ग़लत का विरोध करने तिरंगा लेकर रामलीला मैदान तक आ जाता था, वो अब व्हाट्स एप ग्रुप में गर्दन गाड़कर ग़लत को सही ठहराने में लगा रहता है।इन तस्वीरों पर मिडिल क्लास की क्या राय है? क्या मान लिया जाए कि मिडिल क्लास खुद को समझा चुका है कि यह सही है? बिल्किस बानो के साथ बलात्कार करने वाले, उसकी बेटी को पटक कर मार देने वाले, परिवार के अन्य सदस्यों की हत्या करने वाले दोषी रिहा कर होकर घूमेंगे, फूल माला से स्वागत होगा, जब इस बात से किसी को फर्क नहीं पड़ा, तो हम कैसे मान लें कि 15 लाख छात्रों ने मॉल जाना छोड़ दिया है, खाना छोड़ दिया है और उन्हें नींद नहीं आ रही कि तीन महीने हो गए,एडमिशन हुआ है न पढ़ाई शुरू हुई है.

केंद्रीय विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षा अगस्त में भी पूरी नहीं हुई, सितंबर में पूरी होगी तो क्लास कब शुरू होंगे, क्या इसे लेकर किसी को कोई बेचैनी भी है?15 लाख छात्रो ने फार्म भरे हैं। जनरल छात्र के लिए परीक्षा के फार्म की फीस 650 रुपये है और अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 550 रुपये। इस पर जीएसटी अलग से है। NTA को परीक्षा फीस के रुप में कितना पैसा मिला है, इसकी सार्वजनिक जानकारी नहीं है। 

UGC और NTA के ट्विटर हैंडल पर छात्र पूछ रहे हैं कि रिजल्ट कब निकलेगा, पढ़ाई कब शुरू होगी। इनका कहना है कि निजी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई शुरू हो चुकी है लेकिन यहां नामांकन तक नहीं हुआ है। छात्र पूछ रहे हैं कि रिजल्ट की कोई आधिकारिक तारीख क्यों नहीं बताई जा रही है। 6 अप्रैल को NTA ने अधिसूचना जारी की थी। इसमें यही लिखा है कि परीक्षा जुलाई के पहले और दूसरे हफ्ते में होगी और नतीजों की घोषणा वेबसाइट पर होगी मगर नतीजों की कोई तारीख नहीं दी गई है। कुछ दिन पहले इंडियन एक्सप्रेस में एक अनाम अधिकारी का बयान छपा है कि 7 सितंबर को नतीजे आ सकते हैं, बहुत से बहुत 10 सितंबर तक नतीजे आ ही जाएंगे। मतलब इस तरह से तारीख बताई जा रही है। इस परीक्षा के दूसरे चऱण की परीक्षा 4 से 6 अगस्त के बीच होनी थी, उसे टाल दिया गया और कहा गया कि 12 से 14 अगस्त के बीच होगी। फिर 7 अगस्त को ट्विट आता है कि 12 से 14 अगस्त वाली परीक्षा 24 से 28 अगस्त के बीच होगी। नए सिरे से एडमिट कार्ड जारी किए जाएंगे। कई बार परीक्षा क्केंद्र बदले जाने को लेकर परेशानी आई है तो बीच परीक्षा में तकनीकी खराबी को लेकर परीक्षा रद्द करनी पड़ी है।

दिल्ली विश्वविद्यालय में 20 जुलाई से कक्षा शुरू हो जाया करती थी। नामांकन की प्रक्रिया काफी हद तक पूरी हो जाती थी मगर अगस्त बीतने जा रहा है, प्रथम वर्ष की पढ़ाई शुरू नहीं हुई है। लगता है कि सितंबर भी नामांकन और काउंसलिंग में चला जाएगा । इस नुकसान की जवाबदेही किसकी होगी,इस पर तब बात होगी जब इस देश को छापों की राजनीति से फुर्सत मिलेगी।15 लाख छात्रों का सवाल है।दो महीने की देरी हो चुकी है। कहीं कोई हलचल नहीं है। कोई और देश होता तो रोज़ इस पर बहस होती और प्रेस कांफ्रेंस होती रहती, लेकिन ट्विटर हैंडल पर तारीखों को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।  

ऐसा नहीं है कि मीडिया में खबरें नहीं हैं। रवीश रंजन और अक्षय डोंगरे ने हमारे ही यहां इस पर रिपोर्ट फाइल की है। अख़बारों में भी काफी खबरें मिलेंगी कि परीक्षा केंद्र बदल गया, परीक्षा केंद्र पर इंटरनेट काम नहीं कर रहा था तो जवाब टाइप करने पर भी टाइप नहीं हो रहा था। कारण जो भी रहे हैं, जिसकी भी जवाबदेही हो, उन्हें तो कुछ नहीं हुआ, नुकसान छात्रों का हो गया है। अगर इस देश का छात्र इसे नुकसान समझने की हालत में है तब वर्ना क्या पता वो इसे भी फायदा मान रहा हो। कुछ कह नहीं सकते।

7 अगस्त को UGC के चेयरमैन मामिदला जगादेश कुमार ने इस पर सफाई दी थी। उनका बयान मीडिया में कई जगहों पर छपा है। चेयरमैन ने कहा है कि CUET की परीक्षा में जानबूझ कर और षडयंत्र के तहत गड़बड़ी की गई है। किसने षडयंत्र किया है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं, अगर किसी ने ऐसा किया है तो क्या UGC ने CBI जांच के लिए लिखा है? कहीं FIR दर्ज कराई गई है?15 लाख छात्रों का भविष्य दांव पर हैं और इतने हल्के में कह दिया जाता है कि षडयंत्र हो गया। 

डिजिटल इंडिया का ढिंढोरा पीटने के इतने वर्षों बाद भी केंद्रीय विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षा समय पर पूरी नहीं हो सकी है। कोविड के समय कोविन की वेबसाइट बन गई लेकिन नेशनल टेस्टिंग एजेंसी प्रवेश परीक्षा की मुक्कमल व्यवस्था नहीं कर सकी?नई प्रवेश परीक्षा के फार्म भरने की अंतिम तारीख 6 मई थी। जून, जुलाई, अगस्त बीत रहा है, परीक्षा पूरी नहीं हुई है।ये उस यूनिवर्सिटी का हाल है जहां बड़ी संख्या में शिक्षक एडहॉक पढ़ाते हैं, दस दस साल पढ़ाने के बाद भी नौकरी मिलने का इंतज़ार करते हुए बुढ़ाते रहते हैं। ऐसी हताशा में कोई क्या ही पढ़ाता होगा। 2019 में दिल्ली विश्व विद्यालय में प्रवेश के लिए  ढाई लाख छात्रों ने फार्म भरे थे।हमारे सहयोगी हरि सिंह ने दिल्ली विश्व विद्यालय के वाइस चांसलर से बात की है। उनका कहना है कि इतनी बड़ी परीक्षा कभी नहीं हुई थी।इसलिए अड़चनें आई हैं मगर कोशिश है कि सितंबर के अंत तक सारी प्रक्रिया पूरी हो जाए। इसका मतलब है कि पढ़ाई अक्तूबर से ही शुरू होगी। वाइस चांसलर ने कहा कि जो नुकसान हुआ है,उसकी भरपाई के लिए गर्मी की छुट्टीयां रद्द कर दी जाएंगी। 

वाइस चांसलर कहते हैं कि गर्मी की छुट्टी रद्द कर देंगे और कोर्स कवर करेंगे। दिल्ली विश्व विद्यालय में पहले सेमेस्टर के छात्रों की परीक्षाएं दिसंबर और जनवरी में हो जाती हैं। क्या तब तक पहले सेमेस्टर का कोर्स पूरा हो सकेगा? कुछ ही दिन पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के कानून के छात्र इस बात को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे कि कोर्स पूरा नहीं हुआ है और परीक्षा की तारीख की घोषणा कर दी गई है और शुरू भी हो गई है। क्या यह साधारण बात है? 
उधर दिल्ली में ही, एम्स में पैरामेडिकल की पढ़ाई कर रहे अभिषेक मालवीय की मौत को लेकर उनके सहपाठी 9 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं। सहपाठियों का मानना है कि अगर समय पर एंबुलेस की सुविधा मिली होती तो अभिषेक मालवीय की मौत नहीं हुई होती। छात्र क्रमिक भूख हड़ताल कर रहे हैं। 

जबलपुर के धर्मशास्त्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के छात्र भी कई दिनों से धरना दे रहे हैं। इन छात्रों का कहना है कि विश्व विद्यालय प्रशासन कई प्रकार की आर्थिक गड़बड़ियों में शामिल है, जिसकी जांच होनी चाहिए।

छात्रों का यह भी आरोप है कि महिला छात्रावस की प्रबंधन कथित रुप से कपड़े पहनने से लेकर अन्य बातों को लेकर अभद्र टिप्पणियां करती रहती हैं। ऐसी अनावश्यक टिप्पणियों को बंद किया जाना चाहिए। छात्रों ने भूख हड़ताल भी की है।इन छात्रों का आरोप है कि बिना कारण बताए फीस में 40,000 रुपये की वृद्धि कर दी गई। बढ़ी हुई फीस जमा करने का बहुत कम समय दिया गया, ऊपर से देरी होने पर 500 रुपये प्रति दिन के हिसाब से दंड लगा दिया गया। यह यूनिवर्सिटी 2018 मे मध्यप्रदेश सरकार ने बनाई थी मगर चार साल बाद भी किराए के कैंपस में चल रही है। 

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नौजवानों की चुनौतियां विकराल हो चुकी हैं। उनके धरने प्रदर्शनों को ही कवर करने निकलेंगे तो पांच साल तक घर नहीं लौट पाएंगे। इस मामले में गोदी मीडिया का आभार प्रकट करना चाहिए, अगर वह प्रोपेगैंडा में इस देश की जवानी को नहीं उलझाता तो नौजवान जागरुक हो जाते और गोदी मीडिया से उम्मीद करते कि अब कुछ पत्रकारिता भी हो। इन झंझटों से मुक्ति का जश्न आप जानते हैं कहां मनाया जाता है? हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्स एप ग्रुप में। अगर आप उनके जश्न में खलल डालना चाहते हैं तो प्राइम टाइम के दो चार एपिसोड का लिंक शेयर कर दीजिएगा। ब्रेक ले लीजिए।