गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जिस वक्त राष्ट्रपति भारत की जनता को संविधान के प्रति आश्वस्त कर रहे थे उसी वक्त हज़ारों मील दूर बीमार वित्त मंत्री बैंक फ्राड के मामले में आरोपी बनाए गए हस्तियों के लिए ब्लॉग लिख रहे थे. चंदा पर आरोप है कि वे कथित रूप से वीडियोकोन को 1000 करोड़ से अधिक का लोन देने के फैसले में शामिल थी जिनके पति की कंपनी के खाते में वीडियोकान के मालिक ने धूत ने 64 करोड़ डाले थे. यह मामला एक दूसरे को लाभ पहुंचाने का है. एक साल की जांच के बाद एफ आई आर हुई है.
सीबीआई ने बैंकिंग सेक्टर की हस्ती के वी कामथ, ICICI Bank के सी ई ओ संदीप बख्शी, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के सीईओ ज़रीन दारूवाला, टाटा कैपिटल के प्रमुख राजीव सबरवाल का भी नाम लिया है.
अरुण जेटली ने लिखा है कि हज़ारों किमी दूर बैठे हुए जब मैं ICICI केस में संभावित आरोपियों की सूची देखता हूं तो मेरे मन में वही ख़्याल फिर से आ रहा है- मुख्य टारगेट पर फोकस नहीं करने से यह कहीं नहीं लेकर जाने वाला है. अगर हम बैंकिंग सेक्टर की सारी हस्तियों को बिना प्रमाण के या प्रमाण को शामिल कर लेंगे तो हम किस मकसद को पूरा कर रहे हैं.
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हम सब जानते हैं कि सीबीआई की साख दो कौड़ी की नहीं है. इसका काम है नागरिकों को फंसाना और मुकदमों को उलझना. हाल के दिनों में सीबीआई ने खुद से साबित किया है जब उसके दो निदेशकों की लड़ाई सड़क पर आ गई. दोनों एक दूसरे पर रिश्वत से लेकर केस को प्रभावित करने के आरोप लगाने लगे हैं. लेकिन जब देश के वित्त मंत्री सीबीआई की जांच पर सवाल उठा रहे हैं तो उसी के साथ प्रभावित भी कर रहे हैं. जब आप आरोप में नाम आने पर सभी से मुकदमे का सामना करने के लिए कहते हैं तो बैंक सेक्टर की इन हस्तियों के लिए क्यों ब्लॉग लिख रहे हैं. क्या वित्त मंत्ती भी जानते हैं कि सीबीआई एक दो कौड़ी की संस्था बन कर रह गई है?
आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ ने सीबीआई को अपने राज्य में प्रवेश के अधिकार पर पाबंदी लगा दी है. क्या आपने सुना है कि प्रधानमंत्री इसका विरोध कर रहे हों, वित्त मंत्री इसका विरोध कर रहे हों, सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करने गई हो कि यह संघवाद की भावना के अनुकूल नहीं है. सीबीआई के पेशेवर संस्था है. अब जब वित्त मंत्री ही उसके पेशेवर होने पर सवाल उठा रहे हैं तो बाकियों के सवाल को आप कैसे खारिज कर देंगे?
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सवाल है कि वित्त मंत्री की चिन्ता में कौन है? आम आदमी नहीं है. वे नेता नहीं हैं जिन्हें सीबीआई के बनाए हुए झूठ का ज़िंदगी भर सामना करना पड़ता है. वे नेता भी नहीं है जो इसी सीबीआई के जाल से बचा लिए जाते हैं.बैंकर हैं. वे बैंकर हैं जिन्हें वित्त मंत्री बैंकिंग सेक्टर के बड़े नाम मानते हैं. तो क्या बड़े नाम वालों के लिए भारत में अलग कानून है? इस तर्क से तो प्रधानमंत्री के हमारे मेहुल भाई, नीरव मोदी और विजय माल्या भी अपने सेक्टर की बड़ी हस्तियां थीं.
क्या वित्त मंत्री उस प्रधानमंत्री के कैबिनेट के ही सदस्य हैं जो दावा करते फिर रहे हैं कि सौ फीसदी लूट बंद कर दी है?
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