आज सड़कों का दिन है। कांग्रेस भारत जोड़ों यात्रा के लिए सड़क पर उतरी है तो आम आदमी पार्टी मेक इंडिया नंबर वन की भारत यात्रा पर निकली है। विपक्ष को न दिखाने और न देखने वाले क्या इन यात्राओं पर नज़र रख रहे हैं या इन यात्राओं के ज़रिए विपक्ष खुद को दिखा पाएगा? एक तीसरी सड़क इन दो यात्राओं से छोटी है मगर मीडिया के कवरेज़ के हिसाब से मीलों लंबी है।8 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नए राजपथ का अनावरण करने वाले हैं। एक तरफ विपक्ष सड़कों पर पैदल चल कर देश की हालत बता रहा है दूसरी तरफ सत्त पक्ष इस सजे धजे लघु सड़क मार्ग के सहारे किसी नई शक्ति के आगमन का एलान कर रहा है। जिसका नाम नई दिल्ली नगर पालिका ने कर्तव्य पथ रखने का फैसला किया है।
देखा जाए तो इस पथ का कर्तव्य से कम संबंध हैं, सैर सपाटे और राजकीय प्रदर्शनों से ज़्यादा है।, सत्ता के रास्तों का नाम लोक और कर्तव्य कर देने के बाद भी सत्ता के चरित्र में बदलाव नहीं आता है। इस लिहाज से राजपथ ही ठीक रहता लेकिन अब जब ऐसा फैसला हो ही गया है तो कोई बात नहीं। इसकी भव्यता पहले भी आकर्षित करती रही है, आगे भी करेगी। सरकार का पक्ष है कि नए नामों से औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा मिलेगी।
बाकी पथों को निराश होने की ज़रूरत नहीं है। जिन पथों से हर दिन भारत भर के करोड़ों लोग मामूली वेतन पर काम करने जाते हैं, उन पथों का नाम लापरवाही पथ रख देना चाहिए। इन खराब सड़कों पर चलने के अलावा जनता के पास कोई और चारा नहीं होता है। किसी की गाड़ी टूट रही है तो किसी की टांग टूट जाती है। ग़रीब देश के नागरिक जानते हैं कि उन्हें हर हाल में अपने कर्तव्य सेंटर यानी दफ्तर पहुंचना ही है। बल्कि आइडिआ आ गया है, कर्तव्य पथ के साथ साथ तमाम दफ्तरों का नाम कर्तव्य केंद्र रख देना चाहिए, कर्मचारी का नाम कर्तव्यवान रख देना चाहिए। कुछ नाम आप भी सोचिए, इस बीच सूचना ये है कि औसत आय के मामले में भारत का स्थान दुनिया में 145 वां हैं। इसलिए कर्तव्य पथ पर चलते रहिए ताकि औसत आय में भले दो चार आना न जुड़े, जो मिल रहा है, मिलता रहे। दिल्ली का राजपथ और अब कर्तव्य पथ तो हमेशा ही सुंदर सजा धजा दिखता था। ख़राब सड़कों के अनुभवों को याद कर कर्तव्य पथ का मज़ा खराब मत कीजिए।
बंगलुरु के लोगों को तो दफ्तर जाने के लिए कर्तव्य पथ ही नहीं मिल रहा है, बहुत सारे पथ पर बारिश का पानी बह रहा है, इस समय ये जलपथ का रुप धारण किए हुए हैं। आई टी सिटी में दूसरे राज्यों से आए लोग हैरान क्यों हैं, जबकि वे जिस सिटी से इस आई टी सिटी में आए हैं, वहां तो मामूली बरसात में जलभराव हो जाता है। इसका मतलब है कि इस मूलभूत समस्या को लेकर कोई भी कर्तव्य नहीं कर रहा है। बंगलुरु के पथ डूब गए हैं, टूट गए हैं तो क्या हुआ, वे जब भी दिल्ली आएं, कर्तव्य पथ पर ज़रूर आएं, सेल्फी लें, इंस्टा के लिए रील बनाएं। यही सब तो सोशल मीडिया के ज़माने के नागिरकों के कर्तव्य हैं।
सड़क से ही संबंधित एक और खबर है, उद्योगपति साइरस मित्री की कार दुर्घटना में मौत की। इस दुर्घटना का एक तुरंत असर तो यह हुआ है कि कार में पीछे बैठने पर भी सीट बेल्ट लगानी होगी और लगानी भी चाहिए। 2019 के मोटर व्हीकल एक्ट में इसका प्रावधान कर दिया गया था। इस साल फरवरी में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के बयान छपे हैं कि भारत में पीछे की सीट पर तीन जगहों पर सीट बेल्ट का विकल्प अनिवार्य कर दिया गया है। तब 6 सितंबर को ऑफिस ऑफ नितिन गडकरी ने क्यों ट्विट किया कि कार में बैठने वाले सभी लोगों के लिए सीट बेल्ट अब होगा अनिवार्य। अब होगा अनिवार्य से तो यही मतलब निकलता है कि अभी तक अनिवार्य नहीं था।
साइरस मिस्त्री की कार दुर्घटना को केवल सीट बेल्ट न लगाने तक सीमित करना ठीक नहीं रहेगा, सड़क की डिज़ाइन पर भी बात होनी चाहिए। सीट बेल्ट के शोर में यह बात दब गई कि भारत में कई सड़कों की डिज़ाइन खराब है जिसके कारण दुर्घटनाएं होती रहती हैं। कार चलाने का अनुशासन होना चाहिए लेकिन साथ-साथ सड़क की डिज़ाइन का भी मूल्यांकन होना चाहिए। मीडिया में यह बात आई है कि जिस जगह पर साइरस की कार दुर्घटनाग्रस्त हुई है वहां पर हाइवे संकरा हो जाता है। चार लेन की जगह दो लेन का हो जाता है। क्योंकि डिवाइडर की डिजाइन ठीक नही है। सेंट्रल रोड रिसर्ट इंस्टीट्यूट के मुख्य वैज्ञानिक एस वेलमुरुगन ने समाचार एजेंसी PTI से कहा है कि इस दुर्घटना से तीन बातों पर ध्यान जाना चाहिए। एक कि हाइवे की डिज़ाइन में निरंतरता होनी चाहिए, मतलब ऐसा न हो कि कुछ दूर तक एक डिज़ाइन और कुछ दूर तक अलग डिज़ाइन हो। हाइवे पर जो साइन बोर्ड लगे होते हैं वो साफ तौर पर समझ आने चाहिएं। सीट बेल्ट को लेकर जागरुकता होनी चाहिए। यह बात केवल हाइवे के लिए नहीं है आप दिल्ली में ही देखेंगे कि कुछ दूरी तक सड़क कुछ और दिखती है और कुछ दूरी के बाद कुछ और। यही नहीं मामूली दूरी के बाद स्पीड में भी बड़ा बदलाव आ जाता है।
उद्योग जगत में साइरस मिस्त्री का अपना प्रभाव और मुकाम रहा है, इसलिए भी मीडिया में इस दुर्घटना को लेकर काफी कवरेज हुआ, जिसमें सड़क डिज़ाइन से लेकर सीट बेल्ट को लेकर बातें हुईं, मगर सीट बेल्ट की बात सबसे अधिक होेने लगी, कार की डिज़ाइन की बात होने लगी और इस तरह सड़क की डिज़ाइन की बात दर्ज तो हुई मगर पीछे रह गई। इस देश में हर साल अस्सी हज़ार से एक लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मर जाते हैं। इसके बाद भी अभी तक पीछे की सीट पर बेल्ट लगाना अब क्यों अनिवार्य किया गया है? 4 जून 2014 को दिल्ली में एक भीषण सड़क दुर्घटना हुई थी
2014 में आई मोदी सरकार ने अभी ठीक से कामकाज शुरू भी नहीं किया था कि एक कद्दावर नेता की मौत कार दुर्घटना में हो जाती है। गोपीनाथ मुंडे बीजेपी में ओबीसी नेताओं के बड़े चेहरे थे, उनकी मौत को लेकर समर्थकों को भारी सदमा लगा था। उस समय के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने पीछे की सीट पर बेल्ट लगाने को लेकर कई सारे बयान दिए थे। उन्होंने कहा था कि अगर गोपीनाथ मुंडे ने सीट बेल्ट लगाई होती तो जान बच जाती। साथ ही यह भी कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय एन जी ओ के साथ मिलकर मल्टी मीडिया कैंपेन चलाने जा रहा है। हर्षवर्धन ने इंग्लैंड में हए एक शोध का भी ज़िक्र किया था कि अगर पीछे की सीट वाले बेल्ट लगाएंगे तो दुर्घटना से मृत्यु में 45 प्रतिशत की कमी आ जाती है। 1955 से ही दुनिया के कई देशों में पीछे की सीट पर बेल्ट लगाने का कानून है। अनिवार्य बना दिया गया था।
2014 में डॉ हर्षवर्धन का बयान है कि गोपीनाथ मुंडे की मौत एक टर्निंग प्वाइंट है। सभी के लिए अलार्म है। 2012 में मशहूर हास्य कलाकार जसपाल भट्टी की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। गोपीनाथ मुंडे की मौत के बाद जसपाल भट्टी की पत्नी सविता भट्टी का बयान छपा मिला कि यह दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि हम इन दुर्घटनाओं से कुछ नहीं सीखते। 2022 में साइरस मिस्त्री के साथ ऐसा होता है। हम केवल बातें कर रहे हैं। 2012 से 2014 आ गया और 2014 से 2022 आ गया, पीछे की सीट पर सीट बेल्ट के इस्तेमाल को लेकर तत्परता क्यों नहीं दिखाई गई। 5 जून 2014 का नितिन गडकरी का एक बयान है कि एक महीने के भीतर केंद्र सरकार भारतीय वाहन कानून संशोधन विधेयक लाएगी ताकि सुरक्षा के नियमों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मानकों की तरह बनाया जा सके। तब फिर क्यों गडकरी के दफ्तर से ट्विट हो रहा है कि पीछे की सीट पर बेल्ट अब से अनिवार्य होगा? जबकि मोटर व्हीकल एक्ट 2019 में लिखा है कि जो लोग गाड़ी में आगे की सीट पर बैठते हैं या फिर आगे की ओर देखते हुए पीछे बनाई सीटों में बैठते हैं उनको सीट बेल्ट लगाना अनिवार्य है। सीट बेल्ट न पहनने पर करीब 1000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
मोटर व्हीकल एक्ट में जब लिखा है कि सीट बेल्ट लगाना अनिवार्य है चाहे आप आगे की सीट पर बैठे हों या पीछे की सीट पर, 1000 रुपये का जुर्माना भी तब क्यों नितिन गडकरी कह रहे हैं कि अब से अनिवार्य होगा, अब फैसला लिया गया? अखिलेश शर्मा के साथ गडकरी क्यों कह रहे हैं कि आज ही मैंने फाइल पर साइन किया है कि पीछे की सीट पर बेल्ट लगाना अनिवार्य होगा। अगर साइन करने की ही बात थी तब तो यह काम बहुत पहले कर दिया जाना चाहिए था।
गोपीनाथ मुंडे की मौत के समय ही इस तरह के कदम उठाए जाते और अलार्म से लेकर जागरुकता पर बात होती। बात तो हुई ही होगी, प्रधानमंत्री मोदी ने भी मन की बात में सड़क सुरक्षा का ज़िक्र किया है, और भी कई अभियान हुए ही होंगे,माई गवर्नमेंट के पेज पर सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करने की प्रतिज्ञा है। पौने दो लाख लोगों ने प्रतिज्ञा ली है, सबसे ज्यादा महाराष्ट्र से लोगों ने प्रतिज्ञा ली है। लेकिन यह सब होते हुए भी आज क्यों पीछे की सीट पर बेल्ट लगाने का फैसला होता है? पत्र सूचना कार्यालय के यू ट्यूब चैनल पर सीट बेल्ट को लेकर एक प्रचार वीडियो है, जो जागरुकता के लिए बनाया गया है, इसमें खुद नितिन गडकरी मंत्री कार की अगली सीट पर बैठे हैं और संदेश दे रहे हैं। 2018 के साल में नितिन गडकरी खुद पीछे की सीट पर बेल्ट लगाने की बात इस प्रचार वीडियो में नहीं करते हैं, जबकि गोपीनाथ मुंडे की मौत के पीछे एक कारण यह भी था कि उन्होंने पीछे की सीट पर बेल्ट का प्रयोग नहीं किया था।
2019 में पीछे की सीट पर बेल्ट अनिवार्य किया जाता है तो इसे सख्ती से लागू करना चाहिए था लेकिन उससे पहले मंत्री जी या मंत्रालय को यह साफ करना चाहिए कि अनिवार्य करने का फैसला इस हफ्ते क्यों हुआ है, अगर एक्ट में यह बात थी तो पहले ही सख्ती से लागू नहीं करना था?सरकार को अपनी ही रिपोर्ट से पता है कि सीट बेल्ट एक मुख्य कारण है।परिवहन मंत्रालय हर साल एक रिपोर्ट तैयार करता है।इस रिपोर्ट का टाइटल है Road accident in India 2020,2020 में तालाबंदी लगी थी, लंबे समय तक सड़कों पर गाड़ियां नहीं चल रही थीं। इस रिपोर्ट के पेज नंबर 72 पर बताया गया है कि सीट बेल्ट न लगाने की वजह से 2020 में 15,146 लोगों की मौत हुई और 39,102 लोग घायल हो गए। सड़क दुर्घटना में मारे जाने वाले कुल लोगों में इनकी संख्या 11 प्रतिशत रही. 2018 में 24,435 लोग मारे गए, कुल मौतों में इनकी संख्या 16.14% रही। 2019 में 20,885 लोग मारे गए, कुल मौतों में इनकी संख्या 13.82% है।
सीट बेल्ट नहीं लगाने से होने वाली मौतों का यह आंकड़ा किसी भी तरह से कम नहीं है। यह संख्या बता रही है कि पीछे की सीट पर बेल्ट लगाने के लिए जागरुकता की नहीं, सख्ती की ज़रूरत थी। आज जो फैसले लिए गए हैं, वो कई साल पहले भी लिए जा सकते थे। इस चर्चा में एक कमी और है। किसी की भी मौत भयावह और दुखद है लेकिन सड़क दुर्घटना में जितने लोग मारे जाते हैं उनमें कार वालों से ज्यादा दो पहिया वाहन चालकों, साइकिल सवारों और पैदल चलने वालों की होती है। हर साल अस्सी हज़ार से एक लाख लोग सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं मगर चर्चा तभी होती है जब कार दुर्घटनाग्रस्त होती है। इसमें भी हम ढंग से चर्चा नहीं करते। न बदलाव आता है, केवल भावुकता पैदा की जाती है। यहां केवल सीट बेल्ट का सवाल नहीं है, सड़क की डिज़ाइन का सवाल है, दुर्घटना के बाद कितनी जल्दी और किस स्तर का इलाज मिलता है, उसका सवाल है। IIT दिल्ली में आज प्रो दिनेश मोहन की याद में एक सेमिनार हुआ है। दिनेश मोहन सड़क सुरक्षा से जुड़ी नीतियों और अभियानों के लिए काम करते रहे हैं। वहां भी यह बात उठी कि ज़्यादातर मौतें, सही चिकित्सा नहीं मिलने के कारण होती हैं।
नितिन गडकरी लंबे समय से कहते रहे हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। लेकिन संख्याओं में मामूली सुधार ही है। 2017 से 2019 के बीच नेशनल हाइवे पर मरने वालों की संख्या में ऐसा कोई बदलाव नहीं आया जिससे लगे कि हम बड़े सुधार की तरफ अग्रसर हो चुके हैं। सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों में कमी तभी आएगी जब दुर्घटना के बाद अच्छी चिकित्सा सुविधा मिले, सड़क की डिज़ाइन में तेज़ी से सुधार हो, सुरक्षा के अनुशासन को सख्ती से लागू किया जाए, न कि हज़ारों रुपये का जुर्माना थोप कर गरीब जनता पर भार डाल दिया जाए। जुर्माना लगाकर अनुशासन नहीं आता है, अनुशासन आता है नियमों को लागू करने से। सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों में कमी को लेकर गडकरी के ही अलग अलग बयान मिलते हैं। पिछले साल 5 जुलाई की एक प्रेस रिलीज़ है PIB की, इसमें मंत्री का बयान छपा है कि 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों में 50 प्रतिशत की कमी लाएंगे।
18 जनवरी 2021 को नितिन गडकरी ट्विट करते है कि पिछले वर्ष स्वीडन के साथ 'Zero road fatality' के थीम पर आधारित 'Vision on Indian roads by 2030' कार्यक्रम के दौरान 2030 तक भारत में 50% सड़क दुर्घटनाओं को कम करने का संकल्प किया था। लेकिन इस लक्ष्य को 2025 से पहले ही पूरा करने की हमें कोशिश करनी है। 8 अप्रैल 2022 को ट्विट आता है कि सड़क सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा। 2025 में प्रधानमंत्री का विज़न है कि सड़क दुर्घटनाओं में 50 प्रतिशत की कमी लाई जाए, देसी सुरक्षा रेटिंग एजेंसी शुरू की जा रही है इसका नाम भारत NCAP होगा, जिसका पूरा नाम है New Car Assessment Program,एक महीने बाद 9 मई 2022 को ट्विट आता है कि सड़क सुरक्षा बहुत गंभीर मुद्दा है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हमने इसे उच्च प्राथमिकता दी और लक्ष्य तय किया है कि 2024 तक सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों में 50 फीसदी की कमी लाई जाएगी। कभी दुर्घटनाओं को कम करने का टारगेट है तो कभी दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों को कम करने का टारगेट है। कभी साल 2024 का टारगेट है तो कभी 2025 का तो कभी 2030 का। टाइमलाइन और हेडलाइन से हालात नहीं बदलते हैं। दुर्घटनाओं को कम करने का टारगेट 2030 से 2025 किया गया तो इसके लिए ऐसा क्या किया गया है, क्या किया जा रहा है, मंत्री या मंत्रालय को इन बातों की जानकारी जनता को देनी चाहिए।हर साल औसतन 1 लाख से अधिक लोग इस देश में सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं, कभी कभी यह संख्या सवा लाख से भी अधिक होती है, क्या केवल बयान देने से मरने वालों की संख्या आधी हो जाएगी?
भारत में ऐसा कोई नियामक संस्था नहीं है, जो सीधे तौर पर सड़क सुरक्षा की निगरानी करे। इस देश में हर साल सवा लाख लोग सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं तो नियामक और अलग से कानून क्यों नहीं होना चाहिए? अगर डिज़ाइन खराब होने के कारण, सड़क में गड्डा होने के कारण किसी की मौत होती है तो कानूनन इसकी जवाबदेही किसकी होनी चाहिए? उम्मीद है इन बातों पर खुल कर बहस होगी और सीट बेल्ट के अनिवार्य होते ही अगली दुर्घटना तक निश्चिंत नहीं हो जाएंगे। अब बात एक दूसरी सड़क की। कन्याकुमारी से कश्मीर की। कांग्रेस ने आज से भारत जोड़ों पदयात्रा शुरू की है। उमा शंकर सिंह इस यात्रा को कवर कर रहे हैं, उनकी रिपोर्ट
आम आदमी पार्टी ने भी एक पदयात्रा आज ही शुरू की है। हरियाणा के हिसार से। इसका नाम मेक इंडिया नंबर वन है। दिल्ली के मुख्यमंत्री और पंजाब के मुख्यमंत्री इस यात्रा में शामिल हुए।अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दुनिया के कई देश भारत के बाद आजाद हुए और भारत से आगे निकल गए
आप भी पदयात्रा शुरू कर दें, बंगलुरु के लोग इन दिनों जलयात्रा कर रहे हैं। घर से निकलते हैं सड़क मार्ग से दफ्तर जाने के लिए लेकिन जलमार्ग से उनका सामना हो जाता है। बंगलुरु के कई इलाकों में बिजली तक बहाल नहीं हो पाई है। मध्य प्रदेश में पोषण आहार योजना के तहत लाभार्थियों के 'टेक होम राशन' में कथित घोटाले के मामले ने सियासी रंग ले लिया है. इसे लेकर कांग्रेस ने राज्य के सभी संभागों में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की मांग की. सरकार का कहना है कि ये सिर्फ ड्राफ्ट रिपोर्ट है वक्त आने पर महिला बाल विकास विभाग इसका जवाब देगा ..
उत्तराखंड में सरकारी भर्ती को लेकर नौजवान सड़क पर उतर आए हैं। हालांकि वहां सरकार ने जांच की घोषणा वगैरह कर दी है लेकिन जिस तरह से नेताओं के रिश्तेदारों की बहाली की खबरें आई हैं, उससे युवा बेचैन हैं। मंगलवार को उत्तरकाशी के पुरोला और चमोली के गोपेश्वर में छात्र विरोध प्रदर्शन पर उतरे और बुधवार को देहरादून में राज्य भर से आए छात्रों और युवा संगठनों ने प्रदर्शन किया… परेड ग्राउंड से छात्रों का जुलूस मुख्यमत्री को ज्ञापन देने के लिए सचिवालय तक जा रहा था लेकिन पुलिस ने उससे पहले ही उन्हें रोक दिया… वैसे मुख्यमंत्री को अब ज्ञापन की ज़रूरत क्या होगी, जो है सो सब को दिख ही रहा है… अब भी नहीं दिखेगा तो कब दिखेगा… बहती गंगा में हाथ धोने के लिए अब विपक्षी राजनीतिक दल भी इन प्रदर्शनों का हिस्सा बन गए हैं… प्रदर्शन का ये सिलसिला अब पूरे राज्य में फैल रहा है… हर ज़िले से छात्र और युवा संगठन सरकारी भर्तियों में हो रहे घोटालों से नाराज़ हैं और सरकार से न सिर्फ़ जांच की मांग कर रहे हैं बल्कि दोषियों को सख़्त से सख़्त सज़ा देने और आगे की भर्तियों को निष्पक्ष तरीके से आयोजित करने की भी मांग भी कर रहे हैं.