यूनिवर्सिटी पर हमारी सीरीज़ जारी है. ये दसवां अंक है. इस सीरीज़ के बहाने आपने हिन्दुस्तान के कई छोर देखें. समझ रहे होंगे कि कैसे कॉलेजों को बर्बाद कर एक सामाजिक अंतर पैदा किया गया है. जिनके पास पैसे हैं वो अब 10-10 लाख रुपये देकर बीए, एमए की पढ़ाई प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं. जिनके पास पैसे नहीं हैं उनके लिए बहुत कम कॉलेज बचे हैं जहां पढ़ाई होती है. राज्यों में तो हालत और भी ख़राब हैं.
साधारण आय वाले परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा महंगी भी हो रही है और मुश्किल भी. इसलिए यह मामला किसी नेता के रूटीन बयान से ज़्यादा गंभीर तो है ही. इस दिवाली फैज़ाबाद में बहुत रौनक रहने वाली है. वहां 2 लाख दीये जलेंगे और एक कीर्तिमान बनने जा रहा है. भगवान राम की 200 करोड़ रुपये की प्रतिमा बनने वाली है. यह सारी बातें सुनकर किसी को भी भरोसा हो जाए कि धरम-करम का काम ठीक चल रहा है. उम्मीद है लोग धरम-करम के काम में पठन-पाठन का भी काम शामिल करते होंगे. शिक्षा भी धरम का ही काम है. अभी तक इसके लिए किसी बड़े दावे की ख़बर नहीं सुनाई दी है.
यह अयोध्या का सबसे बड़ा कॉलेज है कामता प्रसाद सुंदर लाल साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय है. कामता प्रसाद और सुंदर लाल के नाम पर यह कॉलेज हैं. दोनों ही व्यवसायी हैं. दोनों ने शहर में कॉलेज बने इसलिए 1-1 लाख रुपये दिए थे. बहुत मेहनत से जानकारी जुटाई है. यहां 11000 के करीब छात्र-छात्राएं हैं.
लड़कियों की सही संख्या का पता तो नहीं चला लेकिन यह मालूम हुआ कि उनके लिए कॉलेज के कैंपस में शौचालय नहीं है. गर्ल्स कामनरूम में मात्र छह शौचालय हैं. जो काफी नहीं हैं. यह भी सुनने को मिला कि पोस्ट ग्रेजुएट के छात्रों ने कॉलेज आना कम कर दिया है. साकेत कॉलेज में 145 रेगुलर शिक्षक होने चाहिए मगर यहां 85 ही हैं. वो भी इनमें से हाल फिलहाल में भी नियुक्त हुए हैं. बहुत दिनों तक यह कॉलेज 60-65 शिक्षकों के भरोसे चलता रहा है. आज भी यहां 60 शिक्षकों की कमी है. कुछ विषयों में गेस्ट टीचर रखे गए हैं जो 15 से 20 हज़ार की सैलरी पर पढ़ा रहे हैं. यहां इस वक्त झांकियां बन रही हैं जो दीपोत्सव के वक्त इस्तेमाल होंगी. दीपावली के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या के लिए कई रिकॉर्ड तोड़ कार्यक्रमों की घोषणा की है.
फैज़ाबाद के ही दर्शननगर में एक कॉलेज है गौतम बुद्ध महाविद्यालय, वहां पर 7-8 शिक्षक ही हैं. जब हमारे सहयोगी प्रमोद श्रीवास्तव यहां गए तो गेट बंद था और अंदर में गाय-बकरी चराई जा रही थीं. मेन गेट पर ही झाड़ियां उग आई हैं. गंदगी का विवरण इस वक्त उचित नहीं होगा क्योंकि अयोध्या दीपोत्वस में डुबा हुआ है. सरकारी कॉलेज है ये. कॉलेज की इमारत का कौन सा हिस्सा देखकर आप खुद को तसल्ली दिलाना चाहेंगे कि कुछ नहीं होगा, केवल इस मुल्क में नेता बातें ही करेंगे.
शौचालय की व्यवस्था देखकर लगता है कि व्यवस्था इसी को कहते हैं. जहां शौच की जगह हो वहीं कुर्सियां रख दो. इस कालेज के सभी विषयों में शिक्षकों की कमी है. यहां सात विषयों की पढ़ाई होती है. 125 छात्र हैं और 6 शिक्षक हैं. अंग्रेज़ी में 20 छात्र हैं और एक भी शिक्षक नहीं है. अवध यूनिवर्सिटी में 631 कॉलेज जुड़े हैं. 33 के करीब ही सरकारी हैं और बाकी सेल्फ फाइनेंस वाले कॉलेज हैं. जिन्हें हम प्राइवेट कॉलेज कहते हैं. कई प्राइवेट कॉलेज में टीचर आठ से दस हज़ार में पढ़ा रहे हैं.
अच्छी बात है कि पढ़ाई को लेकर अब कहीं उत्सव नहीं है. समाज और छात्रों ने भी उच्च शिक्षा के मुद्दे को छोड़ दिया है. अब हम चलते हैं झारखंड के चाईबासा. यहां पर एक विश्वविद्यालय है जिसका नाम है कोल्हान यूनिवर्सिटी. इस यूनिवर्सिटी की बुनियाद इलाके के अति पिछड़े आदिवासी और ग़ैर आदिवासी छात्रों के लिए रखी गई थी. 2009 में यूनिवर्सिटी बनाने की घोषणा हुई थी, अभी तक बिल्डिंग बनाने का काम चल रहा है. टाटा कॉलेज चाइबासा ने ही जमीन दी थी. इस यूनिवर्सिटी की भी हालत यकीन दिलाती है कि आप भारत में कहीं भी चले जाइये, उच्च शिक्षा का हाल बदहाल मिलेगा.
16 अंगीभूत और 27 संबद्ध कॉलेजों वाली कोल्हान यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले 90 फीसदी छात्र वाकई ग़रीब हैं. ज़्यादातर आदिवासी हैं. हम जब शूट कर रहे थे तब कॉलेज की छुट्टी हो चुकी थी, वरना आप भारत की एक और हकीकत देखते. यह भी पता चला कि हर विभाग के पास दो ही कमरे हैं. एक कमरा एमए प्रथम वर्ष और एक कमरा दूसरे वर्ष के लिए है. एक कमरे का आकार बीस बाई बीस फुट का ही है. मुश्किल से 40-50 छात्र आते हैं. बाकी छात्र खड़े होकर या नीचे बैठकर क्लास करते हैं.
हरबंस ने बताया कि यहां 75 फीसदी आदिवासी छात्र 40-40 किमी दूर से साइकिल चलाकर आते हैं. ये सभी सारंडा इलाके से आते हैं. जहां आज भी मोबाइल टावर ठीक से काम नहीं करता है. यूनिवर्सिटी में ऑनलाइन फार्म भरने की व्यवस्था तो आ गई है मगर नेटवर्क न होने के कारण कई छात्र फार्म नहीं भर पाते हैं. जिसके कारण कई छात्र एक ही क्लास में 2-2 साल से अटक गए हैं. क्योंकि ऑनलाइन फार्म नहीं भरने के कारण इम्तहान ही नहीं दे सकते हैं. यह भी सुनने को मिला कि समस्या लेकर छात्र जब वाइस चांसलर के पास जाते हैं तो वे कॉफी पिलाते हैं. समस्या का समाधान नहीं होता मगर समस्या सुनने की एक योजना है जिसका नाम है 'कॉफी विद वीसी'. यह कार्यक्रम इस यूनिवर्सिटी के तमाम कॉलेजों में आयोजित किया जा रहा है. अखबारों में खबर छपती है कि आज फलां कॉलेज में 'कॉफी विद वीसी' है. वाइस चांसलर छात्रों की समस्या सुनेंगे. समाधान नहीं होता मगर हेडलाइन बन जाती है.
आप सोच रहे होंगे कि हम कोल्हान कहां पहुंच गए. आप दर्शकों में से ही कोई हमें यहां से वहां ले जा रहा है. 13 अगस्त, 2009 को इस यूनिवर्सिटी के 22 विभागों के लिए 22 प्रोफेसर, 44 एसोसिएट प्रोफेसर, 88 सहायक प्रोफेसर के पद के लिए राज्य सरकार ने स्वीकृति दी थी. आज तक यहां किसी भी स्थायी बहाली नहीं हुई है. 22 टीचर हैं जिन्हें तबादले के ज़रिए यहां लाया गया है. पर्यावरण को लेकर हम कितने गंभीर हो जाते हैं मगर स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट से पता चला कि यहां पर्यावरण विज्ञान पढ़ाने के लिए मास्टर ही नहीं है. हिन्दी विभाग में 350 छात्र हैं मगर पढ़ाने वाले सिर्फ 2 हैं. राजनीति विभाग में 300 छात्र हैं मगर पढ़ाने वाले सिर्फ एक हैं.
जनजातीय समाज के लिए यूनिवर्सिटी बनती है, जनजातीय अध्ययन के लिए भी शिक्षक नहीं है. ये चुटकुला सिर्फ सरकारें ही सुना सकती हैं अपनी जनता को. जनता भी हंसती रह जाती है और नेता अपनी मूर्ति बनवा कर चले जाते हैं. कुछ कॉलेज में कंप्यूटर लैब है मगर लैब खुलते ही नहीं है. नेता आते हैं और लैब का उदघाटन करके चले जाते हैं. अखबार में हेडलाइन छप जाती है कि डिजिटल इंडिया हो गया है.
ये खबर इसलिए छपी है कि कोल्हान यूनिवर्सिटी में पीचडी की डिग्री पहले बांट दी गई और इम्तहान बाद में लिया गया. अखबार में छपा है कि कोल्हान यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक ने 8 सितंबर, 2017 को एक अजीबोग़रीब अधिसूचना जारी की. इसमें पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर चुके शोधार्थियों को भी कोर्सवर्क की परीक्षा के लिए आवेदन करने के आदेश जारी किए गए थे. ऐसा कम ही सुना होगा कि पहले डिग्री बंट गई और फिर इम्तहान हो रहा है. ज़रूरी है कि हम और आप ताज महल के मसले को लेकर उलझे रहे ताकि व्यवस्थाएं हमें बेवकूफ बनाती रहें.
जमशेदपुर महिला कॉलेज का हाल भी आप सुन लीजिए. 1953 में बने इस कालेज में 9000 छात्राएं पढ़ती हैं. 1977 के बाद से यहा पदों की संख्या नहीं बढ़ी है जबकि छात्राओं की संख्या कई गुना बढ़ गई है. यहां पर 57 शिक्षक होने चाहिए मगर हैं 34 शिक्षक ही. 46 गेस्ट टीचर पढ़ा रहे हैं जिन्हें महीने में 5000 से अधिक नहीं मिल सकता है. पोस्ट ग्रेजुएट की क्लास लेने वाले को पांच हज़ार की सैलरी मिल रही है. जो पीजी टॉपर्स होता है उसी को पढ़ाने के लिए कहा जाता है. इस यूनिवर्सिटी के कुछ और कॉलेजों में शिक्षकों का डिटेल पता चला है कि टाटा कॉलेज चाईबासा में 84 पद मंज़ूर हैं मगर 25 शिक्षक ही हैं. महिला कॉलेज चाईबासा में 40 पद मंज़ूर हैं मगर 15 शिक्षक ही हैं. घाटशिला कॉलेज, घाटशिला में 40 पद मंज़ूर हैं मगर 18 शिक्षक ही हैं.
2008 के बाद से इन कॉलेजों में नियुक्ति ही नहीं हुई है. अभी जहां भी नियुक्तियां हो रही हैं वो बहुत धीमी गति से हो रही हैं. सारे पद नहीं भरे जा रहे हैं. हर जगह एक शिक्षक पर छात्रों की संख्या इतनी है कि कोई भी विश्व स्तरीय छोड़िए ज़िला स्तरीय टॉप कॉलेज बनने का सपना नहीं देख सकता. यूजीसी ने जो गाइड लाइन्स निकाली हैं उसके अनुसार विश्व स्तरीय बनने का सपना देखने वाली यूनिवर्सिटी में एक शिक्षक पर 20 ही छात्र होने चाहिए. यहां न तो 300 छात्रों पर एक टीचर है.
झारखंड के कोल्हान से चलते हैं मुंबई. वहां तो सब कुछ ठीक ही होना चाहिए. 130 साल पुरानी है यह मुंबई यूनिवर्सिटी. इसके 4 कैंपस हैं और 774 कॉलेज संबंद्ध हैं. इसकी गिनती भारत के बड़े विश्वविद्यालयों में होती है. ये जवाहर लाल नेहरू लाइब्रेरी है. इमारत तो ठीक है मगर अंदर हालत ख़राब हैं. दीवारों पर दरारें पड़ी हुई हैं. बरसात के समय छत टपकती है. दूसरी मंज़िल का एक स्लैब टूट चुका है. मरम्मत तो छोड़िए किसी ने मलबा उठाया तक नहीं है. यहां पर खेल-कूद के सामान तो हैं मगर खेलने के लिए जगह नहीं है. आप खुद इसकी हालत देखते चलिए. यहां पर एक हाल भी है जिसकी छत दो साल पहले टूट गई थी, आज तक मरम्मत नहीं हुई है. सुरक्षा कारणों से छात्रों को यहां पर आने से मना कर दिया गया है. दो साल हो गए, लाइब्रेरी की मरम्मत नहीं हुई वो भी मुंबई यूनिवर्सिटी में. लाइब्रेरी का हाल बता रहा है कि नेताओं ने, वाइस चांसलरों ने आपको चुनौती दी है कि वे उच्च शिक्षा को बर्बाद कर देंगे और आप उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे.
हमारे सहयोगी सोहित मिश्रा ने यह जानकारी दी है. आप मुंबई यूनिवर्सिटी का हाल देखिए, कोल्हान यूनिवर्सिटी के हाल पर नहीं रोएंगे बल्कि सारी यूनिवर्सटी का हाल देखने के बाद इतना तो होगा कि आप उच्च शिक्षा को लेकर रोना बंद कर देंगे. आपके हुक्मरानों, नेताओं ने आपको फंसा दिया है. अब आप इससे नहीं निकल सकते हैं. इससे निकलने का एक ही रास्ता है कि आप अपना ध्यान हिन्दू-मुस्लिम जैसे मसलों में लगाएं.
सोहित मिश्रा अब आपको यूनिवर्सटी कैंपस में बने भाषा भवन लेकर जा रहे हैं. जाने का रास्ता भी नहीं है. किसी तरह फिसलने से बचते हुए सोहित आपको यहां ले आते हैं. किसी को घास भी नज़र नहीं आती है. ऐसा लगता है कि मुंबई यूनिवर्सिटी ने खुद को मृत घोषित कर दिया है. ये भाषा भवन है. 2015 में भाषा भवन का कैंपस बन चुका है, इमारत इसी तरह पड़ी हुई है. जो स्टाफ सोहित को लेकर गया वो सांप के डर से आगे नहीं गया. सोहित आगे गए और आपके लिए ये तस्वीर लेकर आए हैं. ये मुंबई यूनिवर्सिटी के कैंपस में है. ब्रांदा कुर्ला कांप्लेक्स में मुंबई यूनिवर्सटी है.
ये शंकर राव चौहान शिक्षक प्रशिक्षण की बिल्डिंग है. 2012 में यह इमारत बन चुकी है, 2015 में इसका उदघाटन भी हुआ लेकिन इसे एनओसी नहीं मिली है. दो साल से इस इमारत का कोई इस्तेमाल नहीं हुआ है.
हमने जो यूनिवर्सिटी की तस्वीर दिखाई हैं वो सारी की सारी पोज़िटिव स्टोरी हैं. सोचिए इससे ज्यादा पोज़िटिव क्या हो सकता है कि हम करोड़ों रुपये की इमारत बनाकर इस्तेमाल नहीं करते हैं, लाइब्रेरी की मरम्मत नहीं करते हैं, क्लास में प्रोफेसर नहीं रखते, फिर भी करोड़ों छात्र इन्हीं यूनिवर्सिटी से हर साल पास होते हैं. इससे बड़ी पोजिटिव स्टोरी हो ही नहीं सकती. मुंबई यूनिवर्सिटी में एक विवाद भी चल रहा है.
यहां 15 जून तक सभी विषयों के रिज़ल्ट आ जाने चाहिए थे. जब रिजल्ट नहीं आया तो हंगामा होने लगा. राज्यपाल ने आदेश दिया कि 31 अगस्त तक रिज़ल्ट घोषित हो जाना चाहिए. इस बीच मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री ने भी आदेश दिए मगर कुछ नहीं हुआ. जून में जो रिजल्ट आ जाना चाहिए था वो आया 19 सितंबर को. महाराष्ट्र में नियम है कि परीक्षा होने के 30 से 45 दिन के भीतर रिज़ल्ट आ जाना चाहिए. इसके बाद भी 2300 छात्रों के नतीजे अभी तक नहीं आए हैं. जबकि दूसरा सत्र शुरू हो चुका है. कहा जा रहा है कि 3700 उत्तर पुस्तिकाएं ग़ायब हो गई हैं. इस साल यूनिवर्सिटी ने फैसला लिया कि सभी नतीजे ऑनलाइन चेक होंगे. शिक्षकों के पास ट्रेनिंग नहीं थी और शिक्षक भी पर्याप्त नहीं थे. जो नतीजे घोषित हुए हैं उनमें कई छात्रों को 0 से लेकर 5 अंक दिए गए हैं. उनका कहना है कि उनका पेपर अच्छा हुआ था. छात्र दोबारा जांच की मांग कर रहे हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी की तरह मुंबई यूनिवर्सिटी भी एडहॉक शिक्षकों के भरोसे चल रही है. यहां जिस तरह पद ख़ाली हैं उन्हें देखकर लगता है कि सरकारों की नीतियों के दो चरण है. पहले तो कॉलेज में बगैर मास्टर के पढ़ाओ ताकि वे आजीवन बेरोज़गार बने रहे, अगर इनमें से कोई फिर भी पढ़-लिख लेता है तो इन्हें किसी भी हाल में मास्टर मत बनने दो. मुंबई यूनिवर्सिटी में 86 प्रोफेसर होने चाहिए मगर हैं सिर्फ 35. प्रोफेसर के 51 पद ख़ाली हैं. सहायक प्रोफेसर होने चाहिएं 279 मगर हैं सिर्फ 170.
आप सोच रहे होंगे कि कोई तो यूनिवर्सिटी होगी जो ढंग की होगी, जहां सभी शिक्षक होंगे, हमें तो नहीं मिली, आप ही बता दीजिए कि ऐसी कौन सी यूनिवर्सिटी है.
This Article is From Oct 17, 2017
बुनियादी सुविधाओं को तरसते कॉलेज, रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 17, 2017 23:47 pm IST
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Published On अक्टूबर 17, 2017 21:09 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 17, 2017 23:47 pm IST
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