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This Article is From Jul 01, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : मॉनसून सत्र में पास होगा जीएसटी बिल?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 01, 2016 21:53 pm IST
    • Published On जुलाई 01, 2016 21:53 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 01, 2016 21:53 pm IST
जब भी संसद का सत्र शुरू होता है जीएसटी की बात ज़ोर ज़ोर से होने लगती है। अब पेश होगा तो अब पास होगा। जीएसटी के बारे में सुनते पढ़ते यही लगा कि यह भारत की कर प्रणाली की सभी समस्याओं का एकमुश्त समाधान है। गुड्स एंड सर्विस टैक्स बोलते हैं। इसे अब तक सबसे बड़ा कर सुधार बता कर पेश किया जा रहा है। अगर ऐसा है तो जीएसटी को लेकर बातों का दायरा भी व्यापक होना चाहिए। सरकार के दावों से लगता है कि वो इसे पास कराने के लिए ज़रूर सहमति और संख्या के बेहद करीब पहुंच चुकी है और अब इसे कानून बनने से कोई नहीं रोक सकता। ज़रूर यह एक जटिल विषय है मगर आज़मा कर देखने में क्या हर्ज़ है। वैसे भी वित्त मंत्री कहते हैं कि जीएसटी से देश का आर्थिक एकीकरण होने वाला है, अब इतनी बड़ी गतिविधि हो रही है तो देश को भी चर्चा करनी चाहिए।

अभी भारत में पैदा होने वाले किसी भी माल पर केंद्र और राज्य मिलकर कई प्रकार के टैक्स लगाते हैं। जैसे सेल्स टैक्स, एक्साइज़, चुंगी, वैट वगैरह। इन्हें आप अप्रत्यक्ष कर कहते हैं। जहां माल पैदा हुआ वहां टैक्स, जहां से बिकने या बनने गया तो रास्ते भर में नाना प्रकार की चुंगी और आपने खरीदा तो फिर टैक्स। व्यापारियों कारोबारियों के लिए कई विभागों और कागज़ों के झंझट का सामना करना पड़ता था। कई जगहों के बिजनेस डूब जाते थे और कई जगहों के चल पड़ते थे। जैसे गाज़ियाबाद में मशीन और मशीनरी पार्ट पर राज्य सरकार 14.5 प्रतिशत टैक्स लगाती है। इसी आइटम पर आस पास के कुछ राज्य पांच से सात प्रतिशत का टैक्स लगाते हैं। जिससे गाजियाबाद में इसका धंधा कमज़ोर हो जाता है क्योंकि लोग इस काम के लिए दूसरे राज्यों में चले जाते हैं। अब हमें यह नहीं मालूम कि अगर सभी जगह एक दर से टैक्स लगा दिया जाए तो सभी जगह मशीनरी का धंधा चमकेगा या किसी एक या दो जगह पर ही चमकेगा।

जीएसटी लागू होगा तो एक ही बार और एक ही जगह टैक्स देना होगा। इससे पहले वैट और सर्विस टैक्स आया था तब भी उन्हें लेकर खूब सपने दिखाये गए थे। लेकिन अब सबको मिलाकर एक जीएसटी आ रहा है तो सपने भी एक हो गए हैं। टैक्स की उगाही बढ़ जाएगी और भारत की जीडीपी भी दशमलव नौ से डेढ़ से दो प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।

जीडीपी बढ़ने के पीछे दलील यह दी जाती है कि इस वक्त असंख्य कारोबार का कोई रिकॉर्ड नहीं है, लिहाज़ा जीडीपी का सही आंकलन नहीं हो पाता है। जीएसटी से जुड़े जानकार कहते हैं कि जो भी सेवाएं देते हैं चाहे वे व्यापारी हैं या उद्योगपति अगर उनका सालाना टर्नओवर दस लाख से अधिक है तो रिटर्न फाइल करना पड़ेगा। इससे सरकार के पास ज्यादा से ज्यादा वास्तविक आंकड़ा आएगा और करों की वसूली भी बढ़ जाएगी।

लेकिन जो जीएसटी आ रहा है क्या वो वाकई एक दर और एक प्रकार की कर प्रणाली है। क्या वाकई जीएसटी के लागू होने के बाद सभी जगह समान कर लागू होंगे। अगर ऐसा है तो इसकी सूची में ये तीन अलग अलग नाम क्या कहते हैं। सेंटर जीएसटी, स्टेट जीएसटी, इंटर स्टेट जीएसटी।

वित्त मंत्री ने इसे आर्थिक एकीकरण कहा है तो फिर तीन प्रकार की जीएसटी क्यों हैं। एक प्रकार की क्यों नहीं है। आलोचकों का कहना है कि तीन प्रकार की जीएसटी के कारण अब व्यापारी का असेसमेंट भी तीन जगहों पर देखा जाएगा। जैसे पहले चल रहा था वैसे ही अब भी चलेगा। आलोचकों का कहना है कि एक ही रिटर्न फाइल करनी होगी लेकिन उसकी जांच कम से कम दो या तीन अधिकारी केंद्र या राज्य के स्तर पर करेंगे। कहीं व्यवस्था वही तो नहीं रहेगी। क्या वाकई विभागों के चक्कर लगाने से मुक्ति मिल जाएगी। सोना, चांदी और विलासिता पर जीएसटी अलग होगी। आम जनता से जुड़ी चीज़ों पर जीएसटी अलग होगी। अगर रेट का झंझट जीएसटी में रहेगा तो फिर जीएसटी का क्या फायदा।

अखबारों में ज्यादातर लेख और बयानों को पढ़ते हुए जीएसटी की प्रशंसा ही मिलती है। उनका कहना है कि जीएसटी अंतिम रूप से तो बेहतर है। एक परिपक्व अर्थव्यवस्था में हर तरह के कारोबार का रिकॉर्ड तो होना ही चाहिए। क्या भारत के ज्यादातर लोग इसके लिए तैयार हैं। अव्वल तो राजनीतिक दलों को ही मनाने में इतने साल लग गए तो लोगों को भी वक्त देना ही होगा। रिकॉर्ड से बाहर व्यापार कर पाना मुश्किल होगा। दुनिया के 160 से अधिक देशों में जीएसटी लागू है। अमेरिका में नहीं लागू है। अरुण कुमार ने ईकोनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली में कुछ सवाल उठाये हैं।

यह कहा जा रहा है कि जी एस टी के कारण हमारी जीडीपी में अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा बढ़ जाएगा। अप्रत्यक्ष कर बढ़ने से मुद्रास्फीति बढ़ती है तो चीज़ों के दाम कैसे कम हो जाएंगे। अरुण कुमार का कहना है कि ज्यादातर चीज़ों के दाम बढ़ेंगे। जीएसटी का असंगठित क्षेत्र के काराबोर पर क्या असर पड़ने वाला है। क्या वाकई इससे हमारी अर्थव्यवस्था में छिपे काले धन को कम या समाप्त किया जा सकेगा।

क्या जीएसटी वाकई हर मर्ज़ की दवा है। प्रोफेसर प्रभात पटनायक ने जीएसटी को लेकर संघीय ढांचे के कमज़ोर पड़ने की आशंका ज़ाहिर की है। संघीय ढांचे का मतलब आप यूं समझिये कि केंद्र और राज्य अपने आर्थिक फैसले अपनी अपनी ज़रूरतों के हिसाब से करेंगे। जीएसटी के बाद राज्यों के लिए टैक्स को लेकर कुछ करने के लिए नहीं बचेगा। वो हर चीज़ के लिए केंद्र पर निर्भर हो जाएंगे। लेकिन वित्त मंत्री का दावा है कि ज्यादातर राज्य जीएसटी के लिए सहमत हो गए हैं। सिर्फ तमिलनाडु को कुछ आपत्तियां हैं।

संसद का मॉनूसन सत्र हो सकता है जीएसटी के कारण ऐतिहासिक हो जाए। संविधान संशोधन बिल है। राज्यसभा में पास होने के बाद आधे राज्यों की विधानसभा से भी पास होना होगा। वित्त मंत्री दावा करते हैं कि इससे भारत की जीडीपी दो प्रतिशत बढ़ जाएगी। क्या वाकई जीएसटी नहीं होने के कारण हमारी जीडीपी 2 प्रतिशत कम है। जीएसटी के कारण हम किस आधार पर आशा कर रहे हैं कि अप्रत्यक्ष कर का आधार बढ़ जाएगा। क्या भारत की जीडीपी इसलिए कम है कि बहुत सारे कारोबारों की गिनती नहीं है। अगर जीएसटी का मतलब एक टैक्स होना था तो राज्यों को पेट्रोलियम पर वैट और सेल्स टैक्स लगाने की छूट क्यों दी गई। केंद्र सरकार राज्यों को तीन साल तक जो भी राजस्व नुकसान होगा उसकी भरपाई करेगी। उसके बाद राजस्व नुकसान होगा तो राज्य क्या करेंगे इसकी कोई चर्चा या हम आम लोगों के बीच समझ नहीं है। जीएसटी काउंसिल में तीन चौथाई से फैसला होगा। देश में राजनीति स्थायी नहीं है। मौजूदा दौर पर भाजपा को बढ़त हो सकती है लेकिन जीएसटी काउंसिल में भाजपा विरोधी राज्य के लिए क्या स्थिति इतनी आसान होगी। मौजूदा व्यवस्था में ही फंड को लेकर केंद्र और राज्य के बीच झगड़े होते रहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि राज्य का वित्त मंत्री जीएसटी काउंसिल के दफ्तर में ही बैठा रहेगा। एक और सवाल उठता है कि जब सारे कर जीएसटी काउंसिल से तय होंगे तो राज्यों में वित्त मंत्री क्या करेगा।

हम हिन्दी के दर्शकों को इन जटिल विषयों से गुज़र कर देखना चाहिए ताकि जब सरकार संसद में इसे पास कर इसे लेकर बड़े बड़े दावे करे तो हम भी इसकी उपयोगिता और ऐतिहासिकता को समझ सकें।

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