प्राइम टाइम इंट्रो : ड्रग्स पंजाब के सामने बहुत बड़ी चुनौती

प्राइम टाइम इंट्रो : ड्रग्स पंजाब के सामने बहुत बड़ी चुनौती

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

पंजाब की चर्चा नशे के लिए होगी, कैंसर के लिए होगी, किसानों की आत्महत्या के लिए होगी। इसका मतलब है कि पंजाब की चर्चा होनी चाहिए क्योंकि कुछ ठीक नहीं चल रहा है। ज़रूर वहां से आने वाले सरकारी विज्ञापनों में बड़े बड़े कारखानों की चिमनियां दिखती हैं, कुछ ग्रोथ रेट भी दिखता है और तमाम तरह के विकास के दावे होते हैं। पंजाब में नशे को लेकर आज कोई बात नहीं हो रही है। इसलिए नहीं हो रही है कि कोई फिल्म आ गई है या चुनावों को देखते हुए कुमार विश्वास ने एक म्यूज़िक वीडियो बना दिया है कि नशे की लत छोड़ दो।

कई साल से पत्र पत्रिकाओं में पंजाब के नशे पर काफी रपटें छपती रही हैं। आउटलुक, इंडिया टुडे, तहलका, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, स्क्रोल, एनडीटीवी से लेकर ट्रिब्यून, तमाम अखबार, चैनल और पत्रिकाओं में पंजाब में ड्रग्स की भयावह कहानियां आती रही हैं। इसलिए पहले ये बात दिमाग से निकाल देनी चाहिए कि पंजाब में ड्रग्स की बात कर उसकी बदनामी की जा रही है। 2010 में बीबीसी पर पंजाब में नशे की महामारी पर रिपोर्ट छपी थी।  अप्रैल 2012 में न्यूयॉर्क टाइम्स में स्टोरी है कि भारत का एक राज्य बुरी तरह नशे की जकड़ में आ चुका है। 2014 में अल जज़ीरा ने रिपोर्ट छापी है कि ड्रग हरिकेन ने पंजाब को अपनी चपेट में ले लिया है।

वाशिंगटन पोस्ट से लेकर लंदन के डेली मेल तक ने पंजाब के ड्रग्स की कहानियां छापी हैं। आउटलुक ने जनवरी 2011 में एक रिपोर्ट छापी थी। इसमें बताया गया है कि मई 2009 में जब बीएसएफ ने तरणतारण में 376 सिपाहियों की भर्ती निकाली तो 8600 जवानों में से सिर्फ 85 ही सिपाही के लायक निकले। इस रिपोर्ट में कमांडेंट अजीत कुमार ने कहा है कि लड़कों का शरीर कमज़ोर पड़ गया है। उनकी छातियां धंस गई हैं। अनुराग कश्यप की फिल्म 'उड़ता पंजाब' के प्रोमो में आप भी तरणतारण का नाम सुनेंगे। आज से पांच साल पहले आउटलुक पत्रिका में चंदरसुता डोगरा लिखते हैं कि पार्टी आफिस से लेकर दफ्तरों, गांव के चौपाल में जाइये, हर समय आपको सुनने को मिलेगा कि नशे की लत पंजाब की जवानी को ख़त्म कर रही है।

बीबीसी ने 2010 में पंजाब ड्रगस महामारी पर रिपोर्ट की है। चिट्टियां कलाइयां वे, ये गाना आपने कुछ समय पहले सुना था। लेकिन यह चिट्टा शब्द नशे पर बने गीतों में आकर ख़तरनाक हो जाता है। चिट्टा का मतलब होता है सफेद रंग। हेरोइन का पाउडर भी सफेद होता है इसलिए पंजाब में ड्रग्स के लिए चिट्टा का इस्तेमाल होता है। इसलिए अनुराग कश्यप की फिल्म उड़ता पंजाब का एक गाना है 'चिट्टा वे' और आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास के म्यूज़िक वीडियो में भी चिट्टा का ज़िक्र है। कुमार का वीडियो राजनीतिक भी है, सीधा सीधा बादल सरकार पर हमला करता है। इस वीडियो को यू ट्यूब पर सिर्फ एक लिंक को 11 लाख से अधिक बार देखा जा चुका है। अनुराग कश्यप की फिल्म का गाना चिट्टा वे को 37 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है।

इन गानों को लेकर ज़रूर इन दिनों पंजाब में नशे की महामारी पर बात हो रही है मगर नशे का मुद्दा तो 2012 में भी था जब राहुल गांधी ने कहा था कि पंजाब में 10 में से 7 लोग नशे की चपेट में हैं। तब अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल ने कहा था कि हमारे युवाओं की छवि बिगाड़ने की कोशिश है। राहुल गांधी को पंजाब के युवाओं से माफी मांगनी चाहिए। अपने नेता के बचाव में तब मनीष तिवारी ने कोर्ट में दिया पंजाब सरकार का ही हलफनामा पेश किया था कि पंजाब का 70 प्रतिशत युवा नशे का शिकार है। ये हलफनामा पंजाब की बीजेपी अकाली सरकार ने ही पेश किया था। 9 जून यानी आज हमारे सहयोगी आनंद पटेल ने मोहाली में पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री से बात की। उनकी आज भी वही पोज़िशन है तो 2012 में थी।

इसी साल जनवरी में ऑल इंडिया मेडिकल साइंस ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में कितने लोग नशे की चपेट में हैं इसकी सही सही संख्या किसी के पास नहीं है। एम्स ने यह अध्ययन भारत सरकार के समाज कल्याण मंत्रालय के कहने पर ही किया था। इसके तहत पंजाब के दस ज़िलों में सर्वे हुआ। सर्वे के दौरान ड्रग्स के शिकार 3620 युवाओं से बातचीत की गई तो पता चला कि 76 फीसदी नशेड़ी 18 से 35 साल के हैं। इनमें से 99 फीसदी लड़के हैं और 54 फीसदी शादीशुदा। 89 फीसदी लड़के पढ़े लिखे हैं और इनमें से कोई मज़दूर किसान है, सरकारी कर्मचारी है तो बिजनेसमैन है। 54 फीसदी नशेड़ी गांवों में रहने वाले हैं। सर्वे के अनुमान के अनुसार कम से कम पौने दो लाख और अधिक से अधिक करीब ढाई लाख लोग नशे के शिकार हैं। सबसे अधिक हेरोइन का इस्तेमाल होता है। अफीम के चूरे का भी चलन है। अभी हाल ही में आपने बंगाल के मालदा विवाद के समय अफीम की अवैध खेती के बारे में सुना होगा। हेरोइन के लिए एक आदमी रोज़ 1400 रुपये खर्च करता है। सर्वे में कहा गया है कि पंजाब का नौजवान हर दिन हिरोइन और अफीम पर 20 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। एक साल में ड्रग्स का अनुमानित कोरोबार साढ़े सात हज़ार करोड़ का है।

20 करोड़ की ड्रग्स रोज़ जहां बिक रही हो तो क्या हमें नहीं जानना चाहिए कि इसके नेटवर्क के पीछे कौन है। ड्रग्स का कारोबार बिना किसी संगठित गिरोह और सरगना के हो ही नहीं सकता है। कई बार राजनीतिक आरोप लगे हैं। इनसे बचने के लिए राज्य सरकार ने नशे के ख़िलाफ अभियान चलाने का भी दावा किया है। इन दिनों इंडियन एक्सप्रेस पंजाब के नार्को वार पर लगातार रिपोर्ट प्रकाशित कर रहा है। इस सीरीज की खासियत ये है कि आठ महीने तक एक्सप्रेस के संवाददाताओं ने इस पर काम किया है। आजकल की पत्रकारिता में आठ महीने एक स्टोरी के तमाम पहलुओं पर काम करने में लगाने को मिले तो उसका स्तर आप समझ ही रहे हैं क्या होगा। ये मैं खास तौर से इसलिए बता रहा हूं कि रिपोर्टिंग बंद होती जा रही है। बिना रिपोर्टिंग के आपको सही तथ्यों की जानकारी मिल ही नहीं सकती। सवाल करना ज़रूरी होता है। सवाल पैदा होते हैं ज़मीन से न कि स्टुडियो से। खैर। एक्सप्रेस ने सूचना के अधिकार के तहत नारकोटिक्स एक्ट के तहत दर्ज की गई एफआईआर की कॉपी हासिल की है।

एक्सप्रेस के संवाददाताओं ने पाया कि 2014 में जब पंजाब सरकार ने नशे के ख़िलाफ अभियान चलाया तो इसके तहत उस साल 17,068 लोग गिरफ्तार किये गए। दिसंबर 2015 तक 11,593 लोग गिरफ्तार किये गए। इतनी संख्या में लोग गिरप्तार किये गए मगर हमारे सहयोगी आनंद पटेल को पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री कहते हैं कि पंजाब में नशे की समस्या है ही नहीं। एक्सप्रेस के संवाददाताओं ने पंजाब के 14 ज़िलों के 152 थानों से एफआईआर की 6,598 कॉपी हासिल की और उनका अध्ययन करना शुरू किया। पता चला कि 42 फीसदी युवा बहुत कम ड्रग्स रखने के आरोप में गिरफ्तार किये गए हैं। ज़्यादातर के पास से 5 ग्राम या उससे कम की हेरोइन बरामद हुई या 50 ग्राम या उससे कम अफीम। किसी के पास जली हुई माचिस की डिब्बी भी मिली तो वो भी गिरफ्तार हुआ और किसी के पास से जली हुई सिल्वर फॉयल मिली तो वो भी गिरफ्तार हुआ। एक्सप्रेस के संवाददाताओं अपने अध्ययन में पाया कि इतने बड़े अभियान में 6000 से अधिक लोग गिरफ्तार किये जाते हैं और उनमें से एक भी बड़ी मछली नहीं है।

एक्सप्रेस के संवाददाताओं के नाम हैं वरिंदर भाटिया, मन अमन सिंह छिना और नवजीवन गोपाल। आठ महीने से किसी स्टोरी पर कोई काम करे तो उनका नाम लेना तो बनता ही है। हम टीवी वाले अब ईर्ष्या ही कर सकते हैं। मुझे उम्मीद है आप सही अखबार पढ़ते होंगे। खैर। तो इन संवाददाताओं ने एफआईआर में एक और पैटर्न नोटिस किया है वो लाजवाब है।

कई एफआईआर देखकर लगा कि कट एंड पेस्ट किया गया है। मतलब यहां से लिया वहां चिपका दिया। अलग अलग थानों में अलग अलग लोग गिरफ्तार हुए हैं मगर पकड़े जाने की कहानी एक सी लगती है। कई बार पुलिस का नाका देखते ही आरोपी ड्रग्स फेंक कर भागता है और पकड़ा जाता है। ज़्यादातर लोग सड़क किनारे झाड़ियों में ड्रग्स का सेवन करते हुए पकड़े जाते हैं तो कोई दीवार से लग कर नशा ले रहा है। अभी तक जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई है उनमें किसी बड़ी जगह से किसी की गिरफ्तारी का ज़िक्र नहीं मिलता है। वकीलों ने एक्सप्रेस के संवाददाताओं से कहा है कि किसी सक्षम एजेंसी से इनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए। डॉक्टरों का कहना है कि जो नशे की लत में गिरप्तार हुए हैं वे बीमार लोग हैं। उनकी जगह ड्रग्स के सप्लायरों को पकड़ा जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2015 के मन की बात में ड्रग्स का ज़िक्र किया है। उन्होंने पंजाब का नाम तो नहीं लिया मगर सोशल मीडिया से अनुरोध किया है कि वे एक हैशटैग चलायें। ड्रग्स फ्री इंडिया। वैसे एक हैशटैग और चलाया जा सकता है ड्रग्स फ्री पंजाब। अगर प्रधानमंत्री अपने मन की बात में ये कह दे तों।


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