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This Article is From Jan 13, 2019

क्या आपका बैंक भी आपको 'चूना' लगा रहा है?

Prabhat Upadhyay
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 13, 2019 17:03 pm IST
    • Published On जनवरी 13, 2019 16:59 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 13, 2019 17:03 pm IST

पिछली शाम बैंक वालों का मैसेज आया. क्रेडिट कार्ड का बिल जमा करने के लिए. बिल?...दिमाग पर काफी जोर डालने के बावजूद याद नहीं आया कि हाल-फिलहाल में क्रेडिट कार्ड से क्या खरीदा था. थक-हारकर कस्टमर केयर को फोन मिलाया. उन्होंने बताया कि ये बिल दरअसल और कुछ नहीं, बल्कि 'एनुअल मेंटिनेंस चार्ज' है. लेकिन क्रेडिट कार्ड देते वक्त तो बैंक की तरफ से कहा गया था कि कोई एनुअल चार्ज आदि नहीं है..फिर ये क्यों? इसपर कस्टमर केयर रिप्रजेंटेटिव ने कहा कि सालभर के अंदर एक निश्चित धनराशि की खरीदारी करने पर ही एनुअल चार्ज नहीं लगता है. मैंने दोबारा याद करने की कोशिश की. याद आया कि कार्ड देते वक्त तो बैंक की तरफ से इसका भी जिक्र नहीं किया गया था. नहीं सर, वो हमारी पॉलिसी है, रिप्रजेंटेटिव ने कहा. खैर, मैंने गुस्से में फोन रख दिया. फिर याद आया कि एनुअल चार्ज ही क्यों...बैंक तो मिनिमम बैलेंस न रखने और एकाउंट बंद करवाने पर भी ग्राहकों से पैसा वसूल ले रहे हैं. फिर तमाम 'हिडेन' चार्जेज को तो छोड़ ही दें. और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (सरकारी बैंक) तो इस मामले में निजी बैंकों को मात दे रहे हैं. 

कुछ दिनों पहले ही खबर आई कि सार्वजनिक क्षेत्र के 21 बैंकों और निजी क्षेत्र के तीन प्रमुख बैकों ने वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान खाते में सिर्फ न्यूनतम राशि न रख पाने की वजह से ग्राहकों से 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा वसूल लिये. आप जानकर चौंक जाएंगे कि इसमें से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने अकेले 2,433.87 करोड़ रुपये वसूले. अब एक और डाटा देखिये. नीरव मोदी और उनके मामा मेहुल चोकसी का 'शिकार' हुए पीएनबी ने सिर्फ अकाउंट क्लोजर यानी खाता बंद करवाने के नाम पर पिछले चार वित्तीय वर्षों के दौरान लोगों से 207 करोड़ रुपये ऐंठ लिये. इस तरह, तमाम बैंकों द्वारा अलग-अलग गैर वाजिब मदों में वसूली गई राशि (जबरन) को कंपाइल करें तो यह पैसा हजारों करोड़ रुपये है. हमारा-आपका हजारों करोड़ रुपये.

नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या...और ऐसे तमाम नाम. जब ये लोग बैंकों को हजारों करोड़ रुपये का चपत लगाकर चंपत हुए तो खूब हो हल्ला मचा, लेकिन क्या स्थिति वाकई बदल गई है. जरा एक और डाटा पर नजर डालिये. आरबीआई के मुताबिक पिछले वित्तीय वर्ष में बैंकों के 41,167 करोड़ रुपये फ्रॉड यानी धोखाधड़ी की भेंट चढ़ गए. जबकि, वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली छमाही के दौरान ही बैंकों को 23 हजार करोड़ रुपये से अधिक का चूना लग चुका है. थोड़ा और पीछे चलते हैं. पिछले महीने एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि पिछले चार वर्षों के दौरान धोखाधड़ी से संबंधित कुल 19102 शिकायतें आईं और 1 लाख 14 हजार 221 करोड़ रुपये इसकी भेंट चढ़ गए. यह कोई छोटी-मोटी धनराशि नहीं है. इसके बावजूद बैंक फ्रॉड रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.

पंजाब नेशनल बैंक का ही उदाहरण ले लें. नीरव मोदी एंड कंपनी की बदौलत पीएनबी डूबने की कगार पर आ गया, लेकिन इसके बावजूद बैंक ने कोई सबक नहीं सीखा. इसका नतीजा यह रहा कि वर्तमान वित्तीय वर्ष यानी 2018-19 की पहली छमाही में फिर पीएनबी के 1500 करोड़ रुपए से ज्यादा धोखाधड़ी की भेंट चढ़ गए. यानी बैकों का पूरा ध्यान फ्रॉड रोकने से कहीं ज्यादा ग्राहकों को अलग-अलग तरीके से 'ठगने' पर है. इन दिनों एटीएम में ठगी आम बात हो गई है, लेकिन तुर्रा यह है कि, ''हम एटीएम में कोई सुरक्षा गार्ड आदि तैनात नहीं करते हैं...ऐसी कोई पॉलिसी नहीं है''. यह जवाब पीएनबी का है, फिर भले ही वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में उसके ग्राहकों के 4.45 करोड़ रुपये ठग लिये गए हों.  

(प्रभात उपाध्याय Khabar.NDTV.com में चीफ सब एडिटर हैं...)

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