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Prabhat Upadhyay Blog

'Prabhat Upadhyay Blog' - 7 News Result(s)
  • अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के साथ 'दिल और दिमाग' से काम करने वाले नेताओं का दौर भी गया...

    अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के साथ 'दिल और दिमाग' से काम करने वाले नेताओं का दौर भी गया...

    . नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली पिछली सरकार में जब जेटली (Arun Jaitley) मंत्री थे, तो वे अक्सर सरकार के संकटमोचक की भूमिका में नजर आते. मसला कोई भी हो, जेटली के पास जवाब जरूर होता. राफेल जैसे पेचीदा मामले पर जब विपक्ष ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया, तो रक्षामंत्री से पहले अरुण जेटली (Arun Jaitley) इन हमलों का जवाब देने के लिए मैदान में खड़े दिखाई दिये.

  • नामवर सिंह : मरेंगे हम किताबों पर, वरक होगा कफ़न अपना...

    नामवर सिंह : मरेंगे हम किताबों पर, वरक होगा कफ़न अपना...

    बनारस की 'ऊसर भूमि' जीयनपुर से निकल नामवर सिंह (Namwar Singh) ने बीएचयू, सागर और जेएनयू में हिंदी साहित्य की जो पौध रोपी, उनमें से तमाम अब ख़ुद बरगद बन गए हैं. 93 साल...एक सदी में सिर्फ 7 बरस कम. पिछले दो ढाई महीनों को छोड़कर नामवर सिंह लगातार सक्रिय रहे और हिंदी की थाती संजोते-संवारते रहे. आखिरी घड़ी तक लगे रहे.

  • क्या आपका बैंक भी आपको 'चूना' लगा रहा है?

    क्या आपका बैंक भी आपको 'चूना' लगा रहा है?

    कुछ दिनों पहले ही खबर आई कि सार्वजनिक क्षेत्र के 21 बैंकों और निजी क्षेत्र के तीन प्रमुख बैकों ने वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान खाते में सिर्फ न्यूनतम राशि न रख पाने की वजह से ग्राहकों से 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा वसूल लिये. आप जानकर चौंक जाएंगे कि इसमें से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने अकेले 2,433.87 करोड़ रुपये वसूले.

  • अमृतसर ट्रेन हादसा : फिर वही सियासत, मुआवजा और एक अदद जांच आयोग

    अमृतसर ट्रेन हादसा : फिर वही सियासत, मुआवजा और एक अदद जांच आयोग

    र 10 माह के उस मासूम का दर्द और दलबीर सिंह के परिवार की पीड़ा का कौन 'खरीदार' होगा. और आप भी यह मुगालते पालना बंद करिये कि सिस्टम, सरकार, विभाग और नेताओं के लिए आपकी पीड़ा का कोई महत्व-मायने है. यह ज्यादा सियासत, थोड़ा मुआवजा और एक अदद आयोग से अधिक कुछ नहीं है.

  • प्रो. जीडी अग्रवाल की मौत का जिम्मेदार कौन...

    प्रो. जीडी अग्रवाल की मौत का जिम्मेदार कौन...

    प्रो. जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) नहीं रहे. अपने जीते जी गंगा को साफ-सुथरा होता देखने की चाह रखने वाले प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 111 दिनों से अनशन पर थे. इस दौरान उन्होंने सरकार को कई दफे पत्र लिखा और चाहा की गंगा की सफाई के नाम पर नारेबाजी-भाषणबाजी के अलावा कुछ ठोस हो, लेकिन सरकारों का रवैया जस का तस रहा.

  • किसानों के सामने कौन सा मुंह लेकर जाएंगे?

    किसानों के सामने कौन सा मुंह लेकर जाएंगे?

    नाबार्ड के सर्वे में जो सबसे चौंकाने वाली बात है वह यह कि 87 फीसद किसानों की आय 2436 रुपये के आसपास है. हम मान लें कि एक परिवार में न्यूनतम 5 लोग होंगे तो एक सदस्य के हिस्से 500 रुपये से भी कम आएगा. किसान दिल्ली आए थे, अब दिल्ली के 'चश्मे' से इस आंकड़े को देखें. 500 रुपये में आप क्या-क्या कर लेंगे? दो वक्त लंच और डिनर, या सिर्फ लंच या डिनर या एक चाय/कॉफी या शायद इतना टिप ही दे दें.

  • अंतिम यात्रा नहीं सियासी दस्तावेज थी अटल जी की विदाई...

    अंतिम यात्रा नहीं सियासी दस्तावेज थी अटल जी की विदाई...

    मेरी निगाह बरबस सड़क के उस पार एक मस्जिद के किनारे खड़े तमाम मुस्लिम नौजवानों और बच्चों पर पड़ी. सिर पर झक सफेद टोपी लगाए वे 'अटल जिंदाबाद' के नारे लगा रहे थे. मोबाइल से अंतिम यात्रा की तस्वीरें लेने का प्रयास कर रहे थे. फूल बरसा रहे थे. ये महज दो दृश्य नहीं थे. इसे भाजपा की सियासी यात्रा का दस्तावेज भी कह सकते हैं.

'Prabhat Upadhyay Blog' - 7 News Result(s)
  • अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के साथ 'दिल और दिमाग' से काम करने वाले नेताओं का दौर भी गया...

    अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के साथ 'दिल और दिमाग' से काम करने वाले नेताओं का दौर भी गया...

    . नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली पिछली सरकार में जब जेटली (Arun Jaitley) मंत्री थे, तो वे अक्सर सरकार के संकटमोचक की भूमिका में नजर आते. मसला कोई भी हो, जेटली के पास जवाब जरूर होता. राफेल जैसे पेचीदा मामले पर जब विपक्ष ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया, तो रक्षामंत्री से पहले अरुण जेटली (Arun Jaitley) इन हमलों का जवाब देने के लिए मैदान में खड़े दिखाई दिये.

  • नामवर सिंह : मरेंगे हम किताबों पर, वरक होगा कफ़न अपना...

    नामवर सिंह : मरेंगे हम किताबों पर, वरक होगा कफ़न अपना...

    बनारस की 'ऊसर भूमि' जीयनपुर से निकल नामवर सिंह (Namwar Singh) ने बीएचयू, सागर और जेएनयू में हिंदी साहित्य की जो पौध रोपी, उनमें से तमाम अब ख़ुद बरगद बन गए हैं. 93 साल...एक सदी में सिर्फ 7 बरस कम. पिछले दो ढाई महीनों को छोड़कर नामवर सिंह लगातार सक्रिय रहे और हिंदी की थाती संजोते-संवारते रहे. आखिरी घड़ी तक लगे रहे.

  • क्या आपका बैंक भी आपको 'चूना' लगा रहा है?

    क्या आपका बैंक भी आपको 'चूना' लगा रहा है?

    कुछ दिनों पहले ही खबर आई कि सार्वजनिक क्षेत्र के 21 बैंकों और निजी क्षेत्र के तीन प्रमुख बैकों ने वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान खाते में सिर्फ न्यूनतम राशि न रख पाने की वजह से ग्राहकों से 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा वसूल लिये. आप जानकर चौंक जाएंगे कि इसमें से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने अकेले 2,433.87 करोड़ रुपये वसूले.

  • अमृतसर ट्रेन हादसा : फिर वही सियासत, मुआवजा और एक अदद जांच आयोग

    अमृतसर ट्रेन हादसा : फिर वही सियासत, मुआवजा और एक अदद जांच आयोग

    र 10 माह के उस मासूम का दर्द और दलबीर सिंह के परिवार की पीड़ा का कौन 'खरीदार' होगा. और आप भी यह मुगालते पालना बंद करिये कि सिस्टम, सरकार, विभाग और नेताओं के लिए आपकी पीड़ा का कोई महत्व-मायने है. यह ज्यादा सियासत, थोड़ा मुआवजा और एक अदद आयोग से अधिक कुछ नहीं है.

  • प्रो. जीडी अग्रवाल की मौत का जिम्मेदार कौन...

    प्रो. जीडी अग्रवाल की मौत का जिम्मेदार कौन...

    प्रो. जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) नहीं रहे. अपने जीते जी गंगा को साफ-सुथरा होता देखने की चाह रखने वाले प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 111 दिनों से अनशन पर थे. इस दौरान उन्होंने सरकार को कई दफे पत्र लिखा और चाहा की गंगा की सफाई के नाम पर नारेबाजी-भाषणबाजी के अलावा कुछ ठोस हो, लेकिन सरकारों का रवैया जस का तस रहा.

  • किसानों के सामने कौन सा मुंह लेकर जाएंगे?

    किसानों के सामने कौन सा मुंह लेकर जाएंगे?

    नाबार्ड के सर्वे में जो सबसे चौंकाने वाली बात है वह यह कि 87 फीसद किसानों की आय 2436 रुपये के आसपास है. हम मान लें कि एक परिवार में न्यूनतम 5 लोग होंगे तो एक सदस्य के हिस्से 500 रुपये से भी कम आएगा. किसान दिल्ली आए थे, अब दिल्ली के 'चश्मे' से इस आंकड़े को देखें. 500 रुपये में आप क्या-क्या कर लेंगे? दो वक्त लंच और डिनर, या सिर्फ लंच या डिनर या एक चाय/कॉफी या शायद इतना टिप ही दे दें.

  • अंतिम यात्रा नहीं सियासी दस्तावेज थी अटल जी की विदाई...

    अंतिम यात्रा नहीं सियासी दस्तावेज थी अटल जी की विदाई...

    मेरी निगाह बरबस सड़क के उस पार एक मस्जिद के किनारे खड़े तमाम मुस्लिम नौजवानों और बच्चों पर पड़ी. सिर पर झक सफेद टोपी लगाए वे 'अटल जिंदाबाद' के नारे लगा रहे थे. मोबाइल से अंतिम यात्रा की तस्वीरें लेने का प्रयास कर रहे थे. फूल बरसा रहे थे. ये महज दो दृश्य नहीं थे. इसे भाजपा की सियासी यात्रा का दस्तावेज भी कह सकते हैं.