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मध्य प्रदेश में कुपोषण ने ले ली एक और मासूम की जान... 45 जिले रेड जोन में, 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित

केंद्र के न्यूट्रिशन ट्रैकर ऐप के अनुसार, मई 2025 में मध्‍य प्रदेश के 55 में से 45 जिले 'रेड जोन' में थे जहां 20% से अधिक बच्चे अपनी उम्र के अनुसार बेहद कम वजन के हैं. 

मध्य प्रदेश में कुपोषण ने ले ली एक और मासूम की जान... 45 जिले रेड जोन में, 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार मध्‍य प्रदेश में 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं. (प्रतीकात्‍मक फोटो)
  • मध्य प्रदेश में कुपोषण के कारण 15 महीने की दिव्यांशी की मौत हो गई, जिसका वजन बेहद कम था.
  • आदिवासी विकास खंडों में 2020 से 2025 तक 85 हजार से अधिक बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्रों में भर्ती किया गया.
  • मध्‍य प्रदेश में कुपोषण की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है. प्रदेश में 55 में से 45 जिले रेड जोन में शामिल हैं.
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भोपाल:

मध्य प्रदेश में कुपोषण ने एक और मासूम की जान ले ली है. शनिवार को शिवपुरी की 15 महीने की दिव्यांशी ने जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया. उसका वजन मात्र 3.7 किलो था. कुपोषण के लिए चलाए जा रहे दस्तक अभियान में पहले ही उसे चिह्नित किया गया था, लेकिन उसका हीमोग्लोबिन केवल 7.4 ग्राम/डीएल पाया गया जो जीवन के लिए बेहद खतरनाक था. डॉक्टरों का कहना है कि परिवार को बार-बार उसे पोषण पुनर्वास केंद्र (NRC) में भर्ती करने की सलाह दी गई. हालांक‍ि दिव्यांशी की मां का आरोप है कि उसके ससुरालवालों ने बेटी होने के कारण इलाज नहीं करवाया. मां ने नम आंखों से कहा, “जब भी वह बीमार पड़ती, कहते मरने दो, यह तो लड़की है,” 

कुछ दिन पहले ही श्योपुर की डेढ़ साल की राधिका ने दम तोड़ दिया था, उसका वजन केवल 2.5 किलो था जबकि इस उम्र में औसत वजन करीब 10–11.5 किलो होना चाहिए. मां ने बताया कि जन्म के समय बच्ची स्वस्थ थी, लेकिन तीन महीने के भीतर ही हाथ-पांव सूखकर पतले हो गए. इसी तरह भिंड जिले के लहार अस्पताल में जुलाई में एक और मासूम की मौत हुई. परिवार का दावा है कुपोषण कारण था, डॉक्टरों ने इनकार किया, कुल मिलाकर राज्य में तस्वीर बेहद भयावह है.

क्‍या कहते हैं सरकारी आंकड़े?

  • विधानसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, हल 2020 से जून 2025 तक आदिवासी विकास खंडों में 85,330 बच्चों को NRC में भर्ती किया गया. हर साल यह संख्या लगातार बढ़ी है.
  • 2020–21 में 11,566 बच्‍चों को भर्ती किया गया 
  • 2024–25 में 20,741 बच्चे भर्ती हुए.
  • केवल 2025–26 के पहले तीन महीनों में ही 5,928 बच्चों का इलाज किया जा चुका है.
  • सरकारी रिकॉर्ड मानते हैं कि प्रदेश में 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं, जिनमें से 1.36 लाख गंभीर रूप से कमजोर हैं. 
  • अप्रैल 2025 में राष्ट्रीय स्तर पर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में गंभीर और मध्यम कुपोषण का औसत 5.40% था, जबकि मध्य प्रदेश में यह दर 7.79% रही.

प्रदेश के 55 से 45 जिले रेड जोन में

केंद्र के न्यूट्रिशन ट्रैकर ऐप के अनुसार, मई 2025 में राज्य के 55 में से 45 जिले “रेड जोन” में थे जहां 20% से अधिक बच्चे अपनी उम्र के अनुसार बेहद कम वजन के हैं. 

कागजों पर सरकार NRC में प्रति बच्चा 980 रुपए खर्च करती है. आंगनवाड़ियों में सामान्य बच्चों के लिए 8 रुपए प्रतिदिन और गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के लिए 12 रुपए प्रतिदिन का प्रावधान है.

12 रुपए में तो दो केले भी नहीं आते: भूरिया

कांग्रेस विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया ने कहा “12 रुपए में तो दो केले भी नहीं आते. दूध 70 रुपए प्रति लीटर है. 8 रुपए में क्या पोषण मिलेगा? हकीकत यह है कि राज्य सरकार एक रुपया भी अपने खर्च से नहीं देती, पूरा पैसा केंद्र से आता है.”

हालांकि, 2025–26 में पोषण के लिए बजट 4,895 करोड़ रुपए रखा गया है, लेकिन जमीनी हालात जस के तस हैं.
कमजोर वित्तीय प्रावधान के अलावा सबसे बड़ी समस्या है भ्रष्टाचार.

वर्ष 2022 में NDTV ने पोषण आहार की आपूर्ति और परिवहन में बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया था. हाल ही में कैग (CAG) ने पुष्टि की कि इसमें 858 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ. इसके बावजूद किसी अधिकारी या ठेकेदार पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई.

लाभार्थियों तक नहीं पहुंचता पोषण आहार!

विशेषज्ञ कहते हैं कि पोषण आहार अक्सर लाभार्थियों तक पहुंचता ही नहीं. आपूर्ति बीच रास्ते में ही गायब हो जाती है, आंगनवाड़ी केंद्र अनियमित चलते हैं और जमीनी कार्यकर्ता जवाबदेह नहीं हैं.

महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया कहती हैं “हम लगातार नए प्रयोग कर रहे हैं. मांडला, देवास और झाबुआ में अच्छे नतीजे आए हैं. माताओं को जागरूक किया जा रहा है. हमें विश्वास है कि आने वाले समय में हालात सुधरेंगे.”
दिव्यांशी, राधिका और भिंड का मासूम… ये केवल तीन नाम नहीं हैं, बल्कि उस व्यवस्था की असफलता का सबूत हैं, जो छोटे बच्चों को पोषक आहार तक देने में नाकाम रही है.

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