कृषि की तरह वन प्रबंधन भी छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा घटक है. जंगल न केवल अर्थव्यवस्था के बड़े भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि वह राज्य की संस्कृति का सार भी दर्शाते हैं. वनों और वन उत्पादों को लेकर स्थानीय लोगों के अधिकारों को सशक्त करते हुए विकास के नए और ऐतिहासिक किस्से गढ़े जा रहे हैं.
जिस उद्देश्य के साथ नई सरकार अपनी नई नीति के साथ आगे बढ़ रही है, उसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इस बयान से अच्छे से समझा जा सकता है: 'अगर जंगलों से होने वाली आय बढ़ती है तो आदिवासियों के बीच जंगल के लिए प्यार और बढ़ेगा.' इस दिशा में, यह नई नीति वन आधारित आर्थिक गतिविधियों में आर्थिक और सांस्कृतिक विकास को समान महत्व और जोर देती है.
आदिवासियों की 31% आबादी राज्य के 44 फीसदी वनक्षेत्र में रहती है. छत्तीसगढ़ सरकार की नई आर्थिक रणनीति जंगलों के प्रति अपने दृष्टिकोण के माध्यम से इस बड़ी आबादी के जीवन में एक अविश्वसनीय बदलाव ला रही है. न केवल वन वासियों की आय बढ़ रही है, बल्कि अतिरिक्त रोजगार के अवसरों में भी तेजी दिख रही है.
हर साल तेंदू पत्तों की 15 लाख बोरियां राज्य में एकत्रित की जाती हैं जिससे 12,53,000 परिवारों को रोजगार मिलता है. तेंदू पत्तों की कीमत भी राज्य सरकार ने 2,500 रुपये से बढ़ाकर 4,000 रुपये प्रति बोरी कर दी है जिससे उन्हें करीब 649 करोड़ रुपये का सीधा लाभ पहुंचा है. राज्य सरकार ने वर्ष 2020 में 870.61 करोड़ रुपये खर्च कर तेंदू पत्ते इकट्ठा करने वाले 13 लाख वनवासियों की को लाभ पहुचाने का लक्ष्य रखा है.
राज्य में वनवासियों द्वारा कई दुर्लभ जड़ी-बूटियां व अन्य वन्य उत्पाद इकट्ठा करने का काम किया जाता है. तेंदूपत्ता सहित सभी प्रकार की वन उपज के संग्रहण और प्रसंस्करण की प्रक्रिया से वनवासियों को 2,500 करोड़ रुपये की आय होती है. सरकार ने वनवासियों को बिचौलियों के शोषण से मुक्त करने और उन्हें वनोपज का उचित मूल्य दिलाने के उद्देश्य से वनोपज की वस्तुओं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 7 रुपये से 25 रुपये तक तय कर दिया है. इस योजना के तहत करीब 930 करोड़ के वन्य उत्पाद का व्यापार राज्य के भीतर ही होता है. वन उपज की खरीद 866 हाट बाजारों के माध्यम से की जाती है और इस साल अप्रैल तक छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लगभग 86,000 क्विंटल वन उत्पादों को बढ़ी हुई दर पर खरीदा गया है.
वन उत्पादों के प्रसंस्करण से महलाओं के 1,390 स्वयं सहायता समूहों को रोजगार मिल रहा है. इनका प्रसंस्करण 130 वन धन केंद्रों में हो रहा है. करीब 8000 महिलाओं ने मास्क का उत्पादन कर अपनी आय बढ़ाई है. लघु वन उत्पादों के प्रसंस्करण के लिए राज्य द्वारा 155 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी गई है. मैसूर के CFTRI की मदद से, महुआ-आधारित एनर्जी बार, चॉकलेट, अचार, सैनिटाइजर, आंवला-आधारित निर्जलित उत्पाद, इमली कैंडी, जामुन का रस, बेल शरबत, बेल मुरब्बा, चिरौंजी और काजू के पैकेट, आदि का उत्पादन योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है. इससे 5,000 से अधिक परिवारों को रोजगार मिलेगा.
इन सबके अलावा वनों से जुड़ी अन्य गतिविधियों से भी बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं. रोजगार के 30 लाख मानव-दिवस जल संरक्षण, कुओं व जंगलों के पुनरुद्धार जैसी गतिविधियों से पैदा हुए हैं. वहीं रोजगार के 20 लाख मानव-दिवस वन रोपण, नदी के किनारों पर वृक्षारोपण आदि के माध्यम से सृजित किए जा रहे हैं. करीब 50 लाख मानव-दिवस का रोजगार नरवा विकास कार्यक्रम द्वारा प्रदान किए जा रहे हैं. 7,000 से अधिक आदिवासी युवाओं को आवर्ती चरई योजना के माध्यम से रोजगार मिला है जिसमें जैविक खाद का उत्पादन शामिल है. वन प्रबंधन समितियों से संबंधित विभिन्न कार्य जैसे आग लगने की घटनाओं को रोकना, पौधे तैयार करना, वन्यजीव प्रबंधन, भूजल संरक्षण, मशरूम उत्पादन, मत्स्य पालन, पर्यटन विकास, लकड़ी कला विकास, लाख चूड़ी निर्माण, दोना व पत्तल उत्पादन, टेराकोटा के हस्तशिल्प के कार्य: इनके जरिए रोजगार के 10 लाख मानव-दिवस सृजित हो रहे हैं. वन विकास निगम के माध्यम से लगभग 14,000 युवाओं को बांस के पेड़ की रखवाली, बांस के फर्नीचर निर्माण, वनौषधि बोर्ड के माध्यम से औषधीय पौधों के रोपण आदि से रोजगार मिल रहा है.
छत्तीसगढ़ सरकार की नई नीति ने वन क्षेत्रों के निवासियों में नई ऊर्जा और उत्साह की लहर पैदा की है. इसका नतीजा इतना महत्वपूर्ण था कि कोरोनावायरस को लेकर लगाए गए लॉकडाउन की अवधि के दौरान, जहां पूरे देश में वन-आधारित आर्थिक गतिविधियां स्थिर थीं, छत्तीसगढ़ ने एक अविश्वसनीय उपलब्धि हासिल की: लॉकडाउन के दौरान एकत्र वन उपज का 98 प्रतिशत हिस्सा राज्य का ही था.
(तरण प्रकाश सिन्हा (IAS) छत्तीसगढ़ सरकार के जनसंपर्क आयुक्त हैं.)
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