बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार राष्ट्रीय लोकत्रांतिक गठबंधन (एनडीए) से बाहर के पहले नेता थे, जिन्होंने 9 नवंबर को अपनी 'निश्चय यात्रा' पर निकलने से पहले नोटबंदी और काले धन के खिलाफ केंद्र सरकार के कदम का स्वागत किया था. काले धन के खिलाफ सभी दल बोलते रहे हैं, लेकिन जब यह निर्णय आया था, तब शायद किसी को अंदाज़ा नहीं था कि आने वाले समय में यह देश की राजनीति में इतना बड़ा मुद्दा बन जाएगा.
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नीतीश समर्थक तर्क देते हैं कि नोटबंदी करने का मांग करना और केंद्र में आने पर इसे पूरा करने का वादा समाजवादियों के मैनिफेस्टो का स्थायी पन्ना रहा है. वैसे भी, नीतीश कुमार ने जब से बिहार में सरकार बनाई है, वह राज्य में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करते रहे हैं. इसके लिए उन्होंने पुलिस विभाग के भीतर अलग से स्पेशल विजिलेंस यूनिट भी बनाया है, जो केवल यही काम करता है. दूसरी तरफ, बिहार शायद देश का पहला राज्य है, जहां एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और एक रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक का घर न सिर्फ जब्त किया गया, बल्कि वहां अब सरकारी विद्यालय भी चल रहा है.
लेकिन जानकार मानते हैं कि नीतीश के मोदी को समर्थन के पीछे निजी राजनैतिक हितों से ज्यादा बिहार का स्वार्थ है... सबसे पहले नीतीश कुमार का आकलन है कि केंद्र के इस कदम से बिहार में बैंकों की पर्याप्त शाखाएं न होने के कारण जो जाली नोट का धंधा चलता रहता है, वह काफी कम हो जाएगा. मौजूदा समय में बैंकों की पर्याप्त शाखाएं न होने के कारण जाली नोट लंबे समय तक लोगों के बीच बाज़ारों में घूमता रहता है, जो अब शायद बंद होगा. नेपाल, बांग्लादेश से सटे होने के कारण बिहार में जाली नोट का धंधा करने वालों का एक समानांतर आर्थिक साम्राज्य धीरे-धीरे कायम हो गया था, जो अब शायद खत्म हो.
दूसरा, राज्य में शराबबंदी की हवा निकालने में लगे माफियाओं के लिए भी यह कदम बड़ा धक्का है, क्योंकि बिहार में शराब की अवैध बिक्री से हो रही कमाई पूरी तरह नकदी है और अब इसे रखना और चलाना आसान नहीं रहेगा. और वैसे भी, लोगों के पास अब उतनी नकदी बची ही नहीं है कि वे मुंहमांगे दाम देकर शराब की तलब पूरी करें. इसके अलावा बिहार में इस कदम के बाद घूस और रिश्वत से कमाया गया काला धन रखने वालों में भी बेचैनी बढ़ी है, और जब तक काला धन पैदा करने के नए नुस्खे मिलेंगे, कम से कम तब तक ऐसे लोगों या ऐसे अधिकारियों से जनता को राहत मिलेगी.
लेकिन उनके नजदीकी लोग भी मानते हैं कि नीतीश कुमार को इस बात का आभास है कि आम लोगों, खासकर किसानों, मजदूरों और मध्यम वर्ग के लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए नीतीश ने पिछले हफ्ते मधुबनी में सार्वजनिक मंच से केंद्र सरकार पर व्यंग्य करते हुए कहा भी था कि एक ओर वह कुछ भी करने से पहले तैयारी करते हैं, वहीं केंद्र सरकार बिना किसी तैयारी के काम करती है.
भले ही उनके सहयोगियों में इस बात को लेकर इतने-से वक्तव्य से असंतोष है, लेकिन नीतीश काले धन और नोटबंदी पर फिलहाल किसी से भी डिक्टेट होने के मूड में नहीं दिखते. उन्हें मालूम है कि भले ही लोगों को कष्ट हो रहा है, लेकिन आम लोगों के बीच इस मुद्दे पर काफी खुशी है कि काला बाज़ारी करने वाले या काला धन रखने वाले लोगों पर कार्रवाई हो रही है.
इसके अलावा एक और तर्क है कि बिहार की वर्तमान आर्थिक हालत, खासकर राज्य में शराबबंदी करने के बाद सीधे पांच हज़ार करोड़ के नुकसान के बाद, में केंद्र सरकार के साथ बहुत विरोध और आक्रामक विपक्ष की भूमिका में रहकर आप किसी राहत की उम्मीद नहीं कर सकते. हालांकि नोटबंदी के बाद राज्य के राजस्व में और कमी आएगी और उस पर धान की फसल अच्छी होने के कारण सरकार पर किसानों का दबाव होगा कि उनके धान को अधिक से अधिक खरीदा जाए. जहां तक राजनीतिक नफा-नुकसान का प्रश्न है, नीतीश विरोधी भी मानते हैं कि इस मुद्दे पर अगर उन्होंने प्रधानमंत्री का समर्थन किया है, तो इससे उनके राजनैतिक वोटबैंक पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ने वाला.
शुरू के दौर में इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बनिया समुदाय के लोग रहे हैं और उनकी नाराज़गी चर्चा के केंद्र में रही है, लेकिन नीतीश इस समुदाय से बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. वैसे बिहार में बनिया समुदाय भी मानता है कि नीतीश सरकार में उनकी हर मांग पर ठोस कदम उठाए गए हैं और राज्य की विधि व्यवस्था में सुधार होने से उनका व्यवसाय भी फला-फूला है, लेकिन जब चुनाव में चंदे के रूप में मदद और वोट देने की बारी आई, तब जेडीयू को ठेंगा दिखा दिया गया.
नीतीश कुमार को यह भी मालूम है कि उनके राजनैतिक जीवन की सबसे बड़ी पूंजी उनकी अपनी छवि और काम रहा है, जिसके कारण सीमित वोटबैंक का नेता होने के बावजूद वह राज्य के पहले राजनेता बने, जिसे तीन बार लगातार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला, इसलिए इस मुद्दे पर अगर वह ममता बनर्जी की तरह सड़क पर आ भी जाते हैं, तो उन्हें बहुत कुछ हासिल नहीं होने वाला, बल्कि बीजेपी को बिहार में उनकी गिनती लालू प्रसाद यादव, मायावती और मुलायम सिंह यादव की श्रेणी में करने में मदद मिलेगी.
एक और बात... अगर केंद्र सरकार नोटबंदी का फैसला उलट भी देती है, तो जनता के बीच नीतीश कह सकते हैं कि हमने अच्छे काम का समर्थन किया था, लेकिन उन्होंने तैयारी नहीं की थी, इसलिए सब गड़बड़ हो गया.
हालांकि नीतीश ने अभी से मांग कर दी है कि केंद्र जब तक बेनामी संपत्ति रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता, यह अभियान अधूरा रहेगा. उनका कहना है कि बेनामी संपत्ति रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई, तो न केवल हज़ारों एकड़ बेनामी ज़मीन का पता चल पाएगा, बल्कि विकास के कामों के लिए ज़मीनें मिलना भी आसान हो जाएगा.
लेकिन निश्चित रूप से आने वाले दिनों में नीतीश कुमार को अपना रुख और नज़रिया साफ रखना होगा. उन्हें भी मालूम है कि उनके सहयोगी और समर्थक इस मुद्दे पर भी उनकी बात उनके बेबाक स्टाइल से ही सुनना चाहते हैं, और समर्थकों के मुताबिक अभी तक उनका स्वर और तेवर स्पष्ट नहीं हैं.
मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...
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