बढ़ती आबादी, शहरीकरण और उपभोक्तावाद के कारण कचरा प्रबंधन एक गंभीर चुनौती बन गया है. पहले केवल मेट्रो शहरों में ठोस कचरे की समस्या थी, लेकिन अब यह छोटे शहरों और गांवों तक फैल गई है. आधुनिक जीवनशैली में सिंगल यूज प्लास्टिक, ई-कचरा, जैव-चिकित्सा कचरा और औद्योगिक अपशिष्ट तेजी से बढ़ रहे हैं. इसका पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है.
स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डालता है कचरा
कचरे में मौजूद कई तरह के हानिकारक रसायन जैसे स्थायी जैव-अविघटनशील प्रदूषक (Persistent organic pollutants) जैसे फ्थैलेट्स, बिस्फेनॉल-ए, भारी धातुएं (जैसे सीसा, पारा) पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं. अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन के कारण जब यह रसायन जल, मिट्टी और वायु में प्रवेश करते हैं, तो यह जैव संचय (Bioaccumulation) और जैवआवर्धन (Biomagnification) की प्रक्रिया को बढ़ावा देते हैं. इनका सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है. इससे कैंसर, हार्मोनल असंतुलन, प्रजनन क्षमता में गिरावट, तंत्रिका तंत्र को नुकसान और श्वसन संबंधी रोग जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं.

कचरा इंसान में कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है.
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शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ता कचरा संकट शहरी क्षेत्रों में बढ़ते औद्योगिकरण और अनियंत्रित उपभोक्तावाद के कारण ठोस कचरे की मात्रा तेजी से बढ़ रही है. वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि अपशिष्ट, प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी एक गंभीर समस्या बन चुका है. अनियंत्रित खुले में कचरा जलाना, अवैज्ञानिक कचरा निपटान और अप्रभावी पुनर्चक्रण प्रणाली पर्यावरणीय संकट को और गहरा रही हैं.
कचरा प्रबंधन की चुनौतियां
कचरा प्रबंधन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका कचरा प्रबंधन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका है. कचरे का पृथक्करण (Segregation at Source) आवश्यक है, इससे गीले और सूखे कचरे को अलग किया जा सके. पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग (Recycling & Reuse) के माध्यम से प्लास्टिक, धातु और कागज को फिर से प्रयोग में लाया जा सकता है. जैविक कचरे से खाद और बायोगैस (Composting & Biogas) बनाई जा सकती है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. ई-कचरा और खतरनाक कचरे का सुरक्षित निपटान भी आवश्यक है, क्योंकि इसमें भारी धातुएं होती हैं, जो पर्यावरण को दूषित कर सकती हैं. साथ ही, नवाचार और स्मार्ट अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के तहत आईटी और मशीन लर्निंग का उपयोग करके कचरा प्रबंधन को अधिक कुशल बनाया जा सकता है.

सरकार, उद्योगों और नागरिकों को एक साथ मिलकर कचरा-मुक्त भारत की दिशा में काम करना होगा.
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सतत जीवन और क्षमता निर्माण की आवश्यकता सतत जीवन की ओर बढ़ने के लिए जन जागरूकता, नीति सुधार और सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है. सार्वजनिक-निजी भागीदारी कचरा प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. इसमें सरकार और निजी कंपनियां मिलकर कचरे के कुशल निपटान और पुनर्चक्रण के लिए आधुनिक सुविधाएं विकसित कर सकती हैं. कचरे से संपत्ति (Waste to Wealth) की अवधारणा के तहत, अपशिष्ट पदार्थों को संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए, जिससे उनका फिर से उपयोग और मूल्य संवर्धन किया जा सके. हमें अपनी उपभोक्तावादी प्रवृत्ति को बदलना होगा और 'रिड्यूस, रीयूज, रिसाइकिल' (Reduce, Reuse, Recycle) को अपनाना होगा. सरकार, उद्योगों और नागरिकों को मिलकर कचरा-मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम करना होगा.
कचरा सिर्फ एक समस्या नहीं, बल्कि एक संसाधन भी है, जिसे सही तरीके से उपयोग कर हम पर्यावरणीय संतुलन बना सकते हैं और सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं.
डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के नीजि हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.